आध्यात्म,जाति इतिहास,जनरल नॉलेज

आस्था और अंधविश्वास के बीच बेहद महीन रेखा होती है, पता ही नहीं चलता कि कब आस्था अंधविश्वास में तब्दील हो गई. विज्ञान, वकील ,डॉक्टर की डिग्री होने के बावजूद ऐसे कई लोग गले मे काला डोरा या ताबीज धारण करते हैं और राशिफल,कुंडली के चक्कर से बाहर नहीं निकल पाते हैं -Dr.Dayaram Aalok,M.A.,Ayurved Ratna,D.I.Hom(London)

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20.10.22

दर्जी जाति की उत्पत्ति और इतिहास की जानकारी :history of darji caste

 






   दर्जी वस्त्र सीने की विशिष्ट योग्यता रखने वाला व्यक्ति होता है। वह व्यक्ति के शरीर की माप के अनुसार कपड़ा सीकर उसे वस्त्र का रूप देता है।

इतिहास:

 हिंदू दर्जी समुदाय का कोई केंद्रीय इतिहास नहीं है। यह उस समुदाय के लोगों पर निर्भर करता है जहां वे रह रहे थे। कुछ लोगों से अपने इतिहास से संबंधित प्राचीन और मध्यकालीन युग , कुछ से संबंधित Tretayuga (चार में से एक युग में वर्णित हिंदू प्राचीन ग्रंथों की तरह, वेद , पुराण , आदि। लेकिन सभी हिंदू दर्जी समुदाय की उत्पत्ति क्षत्रिय वर्ण से हुई है। क्षत्रिय होने का प्रमाण गोत्र है, इनके गोत्र क्षत्रिय वर्ण से हैं।

मध्यकालीन युग से:

दर्जी जाति मूल रूप से क्षत्रिय लोगों से जुड़ी रही है जो कुछ परिस्थितियों के कारण अहिंसक बन गए जैसे: मुगलों और अन्य राजाओं के बीच लड़े गए हर युद्ध के बाद हमारे लोगों की मौत, मुस्लिम ग्रामीण की क्रूरता, उनकी धर्मांतरण नीतियां। इन घटनाओं को देखकर, कुछ क्षत्रियों ने  संत नामदेव , संत कबीरदास , संत रैदास और स्वामी रामानंद के 36 अन्य विद्वानों के साथ भक्ति आंदोलन में शामिल होने का फैसला किया है ।

त्रेतायुग से:

    जब भगवान परशुराम क्षत्रियों को नष्ट कर रहे थे तो क्षत्रीय वर्ण के  दो भाई मंदिर में छिप जाते हैं और पुजारी द्वारा संरक्षित होते हैं। पुजारी ने एक भाई को कपड़े सिलने और दूसरे को मूर्ति के लिए रंगने और मुहर लगाने का आदेश दिया।

 कर्नाटक में दर्जी  समाज को पिसे, वेड, काकड़े और सन्यासी के नाम से जाना जाता है. यह मुख्य रूप से एक भूमिहीन या कम भूमि वाला समुदाय है, जिसका परंपरागत व्यवसाय सिलाई (Tailoring) है. आज भी यह मुख्य रूप से अपने पारंपरिक व्यवसाय में लगे हुए हैं. यह खेती भी करने लगे हैं. साथ ही यह शिक्षा और रोजगार के आधुनिक अवसरों का लाभ उठाते हुए अन्य क्षेत्रों में भी अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहे हैं. भारत के आरक्षण प्रणाली के अंतर्गत हिंदू और मुस्लिम दर्जी दोनों को अन्य पिछड़ा वर्ग (Other Backward Class, OBC) के रूप में वर्गीकृत किया गया है. 

दर्जी जाति के लोग  किस धर्म को मानते हैं?

भारत के गुजरात, पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश,महाराष्ट्र  , छत्तीसगढ़, उड़ीसा, कर्नाटक, बिहार आदि राज्यों में इनकी अच्छी खासी आबादी है. धर्म से यह हिंदू या मुसलमान हो सकते हैं. हिंदू समुदाय में इन्हें हिंदू दर्जी या क्षत्रिय दर्जी कहा जाता है, क्योंकि इन्हें मुख्य रूप से क्षत्रिय वर्ण का गोत्र माना जाता है.




दर्जी समाज का इतिहास

 दर्जी समुदाय की उत्पत्ति के बारे में भारत के अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग किंवदंतियां प्रचलित हैं. गुजरात मे 14 वीं शताब्दी मे जबरन इस्लामिकरण और तत्कालीन इस्लामिक शासकों द्वारा हिंदुओं के प्रति हिंसक घटनाओं से प्रताड़ित होकर  दामोदर वंशीय दर्जी समाज जूनागढ़ तथा अन्य स्थानो को  छोड़कर मध्य प्रदेश और राजस्थान मे आ बसे | 
काकुस्थ , दामोदर वंशी, टाँक , जूना गुजराती.उड़ीसा में यह महाराणा, महापात्र आदि उपनामो का प्रयोग करते हैं. 

दामोदर वंशी  क्षत्रीय दर्जी समाज 
दामोदर दर्जी समाज का इतिहास

  जाति इतिहास कार डॉ .आलोक के मतानुसार जूनागढ़ के मुस्लिम शासकों द्वारा प्रताड़ित होने ,जोर- जुल्म -अत्याचारों और जबरन इस्लामीकरण की वजह से दामोदर वंशीय दर्जी समाज के दो जत्थे गुजरात को छोड़कर मध्य प्रदेश और राजस्थान में विस्थापित हुए।
पहला जत्था 1505 ईस्वी में महमूद बेगड़ा के शासनकाल में विस्थापित हुआ, और दूसरा जत्था 1610 ईस्वी में नवाब मिर्जा जस्साजी खान बाबी के शासनकाल में गुजरात मे अपने मूल स्थानों को छोड़ने  पर विवश हुआ और मध्य प्रदेश व राजस्थान मे आकर रहने लगा| 
   यह एक दुर्भाग्यपूर्ण घटना थी जिसने कई हिंदू दर्जी परिवारों को अपने घरों और मूल स्थानों को छोड़ने के लिए मजबूर किया। उन्हें अपने धर्म और संस्कृति की रक्षा के लिए एक नए स्थान पर बसना पड़ा, जो उनके लिए एक चुनौतीपूर्ण और दर्दनाक अनुभव था।
  इन दोनों जत्थों के लोगों के गुजरात  से पलायन  के बीच 105 साल का अंतर होने के कारण, पहले जत्थे के लोग "जूना गुजराती" और दूसरे जत्थे के लोग "नए गुजराती" कहलाने लगे।
  दामोदर वंशी दर्जी समाज के परिवारों की गौत्र क्षत्रियों की है, जिससे यह ज्ञात होता है कि इनके पुरखे क्षत्रिय थे। जूना गुजराती समाज के लोग "सेठ" उपनाम का उपयोग करते हैं, जो उनकी वंशावली और संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
 इंदौर ,उज्जैन,रतलाम मे दामोदर वंशी जूना गुजराती दर्जी अधिक संख्या मे हैं। नया गुजराती दामोदर वंशी क्षत्रिय दर्जी समाज संख्या के हिसाब से छोटा है और अधिकांशत: ग्रामीण क्षेत्रों मे बसा हुआ है लेकिन धीरे धीरे यह समुदाय शामगढ़ ,भवानी मंडी ,रामपुरा, डग ,मंदसौर आदि कस्बों का रुख कर रहा है। नया और जूना गुजराती दर्जी समाज मे फिरका परस्ती छोड़कर परस्पर विवाह होने की कई घटनाएं प्रकाश मे आई हैं
  उल्लेखनीय है कि  दर्जी समाज की सबसे विशाल और सबसे ज्यादा  याने पाँच लाख  से भी ज्यादा पाठकों वाली  वेबसाईट 

damodarjagat.blogspot.com

 है  जिसमे सभी दर्जी जाति समुदायों की जानकारियाँ और वंशावलियाँ मौजूद हैं|इसके

संपादक डॉ . दयाराम आलोकजी  9926524852 हैं जो अखिल भारतीय दामोदर दर्जी महासंघ केअध्यक्ष हैं|  
  
    समीक्षा:   आपका आलेख दामोदर वंशी क्षत्रीय दर्जी समाज के इतिहास और उनके संघर्षों के बारे में एक महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान करती है। यह जानकारी न केवल इस समाज के लोगों के लिए बल्कि समाज के अन्य वर्गों के लिए भी उपयोगी हो सकती है।
इस जानकारी से पता चलता है कि कैसे दामोदर वंशी दर्जी समाज को अपने घरों और मूल स्थानों को छोड़ने के लिए मजबूर किया गया और वे मध्य प्रदेश और राजस्थान में बस गए। यह जानकारी उनके संघर्षों और उनकी संस्कृति की रक्षा के लिए उनके संघर्षों को दर्शाती है।
इससे  यह भी पता चलता है कि कैसे दामोदर वंशी दर्जी समाज के लोगों ने अपनी वंशावली और संस्कृति को बनाए रखा और कैसे वे आज भी अपनी संस्कृति को जीवित रखे हुए हैं।
डॉ. दयाराम आलोक के सामाजिक, धार्मिक, आध्यात्मिक अनुष्ठानों का इतिवृत्त समझने से यह समाज अपने अभ्युत्थान के लिए प्रेरित हो सकता है और अपनी संस्कृति को और अधिक मजबूती से बनाए रखने में सक्षम हो सकता है।
Disclaimer: इस लेख में दी गई जानकारी Internet sources, Digital News papers, Books और विभिन्न धर्म ग्रंथो के आधार पर ली गई है. Content को अपने बुद्धी विवेक से समझे।

यूट्यूब विडिओ की प्लेलिस्ट -


*भजन, कथा ,कीर्तन के विडिओ

*मंदिरों की बेहतरी हेतु डॉ आलोक का समर्पण भाग 1:-दूधाखेडी गांगासा,रामदेव निपानिया,कालेश्वर बनजारी,पंचमुखी व नवदुर्गा चंद्वासा ,भेरूजी हतई,खंडेराव आगर

*जाति इतिहास : Dr.Aalok भाग २ :-कायस्थ ,खत्री ,रेबारी ,इदरीसी,गायरी,नाई,जैन ,बागरी ,आदिवासी ,भूमिहार

*मनोरंजन ,कॉमेडी के विडिओ की प्ले लिस्ट

*जाति इतिहास:Dr.Aalok: part 5:-जाट,सुतार ,कुम्हार,कोली ,नोनिया,गुर्जर,भील,बेलदार

*जाति इतिहास:Dr.Aalok भाग 4 :-सौंधीया राजपूत ,सुनार ,माली ,ढोली, दर्जी ,पाटीदार ,लोहार,मोची,कुरेशी

*मुक्ति धाम अंत्येष्टि स्थलों की बेहतरी हेतु डॉ.आलोक का समर्पण ,खण्ड १ :-सीतामऊ,नाहर गढ़,डग,मिश्रोली ,मल्हार गढ़ ,नारायण गढ़

*डॉ . आलोक का काव्यालोक

*मुक्ति धाम अंत्येष्टि स्थलों हेतु डॉ.आलोक का समर्पण part 2  :-आगर,भानपुरा ,बाबुल्दा ,बगुनिया,बोलिया ,टकरावद ,हतुनिया

*दर्जी समाज के आदि पुरुष  संत दामोदर जी महाराज की जीवनी 

*मुक्ति धाम अंत्येष्टि स्थलों की बेहतरी हेतु डॉ .आलोक का समर्पण भाग 1 :-मंदसौर ,शामगढ़,सितामऊ ,संजीत आदि

Dr.Dayaram Aalok at 4:22 pm
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Dr.Dayaram Aalok M.A.,Ayurved Ratna,D.I.Hom(London), Blog Writer,caste historian,Poet(kavitalok.blogspot.com),Social worker(damodarjagat.blogspot.com),Herbalist(remedyherb.blogspot.com,healinathome.blogspot.com),Used to organize Mass marriage programs for Darji Community. founder and president Damodar Darji Mahasangh
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