आंजना समाज, जिसे जाट, चौधरी, पटेल, या कलबी के नाम से भी जाना जाता है, की उत्पत्ति क्षत्रिय वर्ण से मानी जाती है. यह समाज मुख्य रूप से पश्चिमी राजस्थान (मारवाड़) और गुजरात के सीमावर्ती क्षेत्रों में पाया जाता है. कृषि और पशुपालन इस समाज के लोगों की आय का मुख्य स्रोत है. आंजना समाज में, संत श्री राजारामजी महाराज ने समाज सुधारक के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, विशेष रूप से अन्याय और सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ.
आंजना समाज की उत्पत्ति के बारे में कुछ मुख्य बातें:
क्षत्रिय वर्ण:
आंजना समाज को क्षत्रिय वर्ण से संबंधित माना जाता है.
आंजणा के विभिन्न नाम:
इस समाज को आंजणा, जाट, चौधरी, पटेल, या कलबी जैसे नामों से भी जाना जाता है.
मुख्य क्षेत्र:
यह समाज मुख्य रूप से पश्चिमी राजस्थान (मारवाड़) और गुजरात के सीमावर्ती क्षेत्रों में पाया जाता है.
आजीविका:
कृषि और पशुपालन इस समाज के लोगों की आय के मुख्य स्रोत हैं.
सामाजिक सुधार:
संत श्री राजारामजी महाराज ने इस समाज में शिक्षा और सामाजिक सुधार के लिए महत्वपूर्ण कार्य किए.
आंजना समाज भारत के इतिहास और संस्कृति में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है, और आधुनिक समय में भी देश के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दे रहा है.
आँजणा समाज की कुल २३२ गोत्रे हैं ।जिसमे अटीस ओड,आकोलिया, फेड़, फुवा,फांदजी, खरसान, भुतादिया, वजागांड, वागडा, फरेन, जेगोडा, मुंजी, गौज, जुआ लोह, इटार, धुजिया, केरोट, रातडा, भटौज, वगेरह समाविष्ट हैं ।
गुजरात के कई चौधरियों के गोत्र उत्तर भारत के जाटों के समान हैं। आँजणा जाट (अंजना, चौधरी) जालौर, पाली, सिरोही, जोधपुर, बाड़मेर, उदयपुर और चित्तौड़गढ़ जिलों में निवास करते हैं
आँजणा कि उत्पति के बारे में विविध मंतव्य/दंत्तकथाये प्रचलित हैं। जैसे भाट चारण के चोपडे में आँजणा समाज के उत्पति के साथ सह्स्त्राजुन के आठ पुत्रो कि बात जुडी हुई है । जब परशुराम शत्रुओं का संहार करने निकले तब सहस्त्रार्जुन के पास गए । युद्घ में सहस्त्रार्जुन और उनके ९२ पुत्रो की मृत्यु हो गयी ।आठ पुत्र युद्ध भूमि छोड कर आबू पर माँ अर्बुदा की शरण में आये ।अर्बुदा देवी ने उनकी रक्षा की ।
आँजणा कि उत्पति के बारे में विविध मंतव्य/दंत्तकथाये प्रचलित हैं। जैसे भाट चारण के चोपडे में आँजणा समाज के उत्पति के साथ सह्स्त्राजुन के आठ पुत्रो कि बात जुडी हुई है । जब परशुराम शत्रुओं का संहार करने निकले तब सहस्त्रार्जुन के पास गए । युद्घ में सहस्त्रार्जुन और उनके ९२ पुत्रो की मृत्यु हो गयी ।आठ पुत्र युद्ध भूमि छोड कर आबू पर माँ अर्बुदा की शरण में आये ।अर्बुदा देवी ने उनकी रक्षा की ।
माँ अर्बुदा देवी
भविष्य मे वो कभी सशत्र धारण न करे की शर्त पर परशुराम ने उनको जीवनदान दिया ।उन आठ पुत्रो में से दो राजस्थान गए और भरतपुर में राज्य की स्थापना की | उनके वंशज जाट कहलाने लगे|
शेष छह पुत्र आबू में ही रह गए वो आँजणा नाम से पहचाने गए ।
चौधरी समाज का इतिहास भाट की किताबों और पीढ़ियों से चली आ रही कहानियों के आधार पर लिखा गया है।
आँजणा जाट (अंजना, चौधरी) जालौर, पाली, सिरोही, जोधपुर, बाड़मेर, उदयपुर और चित्तौड़गढ़ जिलों में निवास करते है। वे राजस्थानी की मारवाड़ी बोली बोलते हैं। मध्य प्रदेश और गुजरात में बनासकांठा, मेहसाणा, गांधीनगर, साबरकांठा में भी। अन्य उत्तर भारतीय जाट समुदाय की तरह, आँजणा चौधरी गोत्र बहिर्विवाह का पालन करते हैं।
राजस्थान में, आंजणा को दो व्यापक क्षेत्रीय प्रभागों में विभाजित किया गया है: मालवी और गुजराती। मालवी आँजणा चौधरी को आगे कई बहिर्विवाही कुलों में विभाजित किया गया है जैसे कि जेगोडा,अट्या, बाग, भूरिया, डांगी, एडिट, बकवास, गार्डिया, हुन, जुडाल, काग, कावा, खरोन, कोंडली, कुकल, कुवा, लोगरोड, मेवाड़, मुंजी, ओड।, तारक, वागडा,कुणीया, सुराणा, भोड,कातरोटिया,टांटिया,फोक,हरणी,ठांह,सिलाणा,बोका आदि
राजस्थान में, आंजणा को दो व्यापक क्षेत्रीय प्रभागों में विभाजित किया गया है: मालवी और गुजराती। मालवी आँजणा चौधरी को आगे कई बहिर्विवाही कुलों में विभाजित किया गया है जैसे कि जेगोडा,अट्या, बाग, भूरिया, डांगी, एडिट, बकवास, गार्डिया, हुन, जुडाल, काग, कावा, खरोन, कोंडली, कुकल, कुवा, लोगरोड, मेवाड़, मुंजी, ओड।, तारक, वागडा,कुणीया, सुराणा, भोड,कातरोटिया,टांटिया,फोक,हरणी,ठांह,सिलाणा,बोका आदि
आंजणा राजस्थानी की मारवाडी बोली बोलते हैं।
पारंपरिक व्यवसाय खेती है, और आँजणा चौधरी मूल रूप से छोटे किसान किसानों का समुदाय है। उनकी पारंपरिक जाति परिषद है, जो भूमि और वैवाहिक विवादों के विवादों को सुलझाती है। आँजणा हिंदू हैं, और उनके प्रमुख देवता अंजनी (अर्बुदा)माता हैं, जिनका मंदिर माउंट आबू में स्थित है।
पारंपरिक व्यवसाय खेती है, और आँजणा चौधरी मूल रूप से छोटे किसान किसानों का समुदाय है। उनकी पारंपरिक जाति परिषद है, जो भूमि और वैवाहिक विवादों के विवादों को सुलझाती है। आँजणा हिंदू हैं, और उनके प्रमुख देवता अंजनी (अर्बुदा)माता हैं, जिनका मंदिर माउंट आबू में स्थित है।
श्री राजाराम जी महाराज, राजस्थान में जोधपुर जिले के शिकारपुरा में स्थित आश्रम है, श्री राजाराम जी महाराज आँजणा पटेल समाज के धर्म गुरु भी है|सोलंकी राजा भीमदेव प्रथम की पुत्री अंजनाबाई ने आबू पर्वत पर अन्जनगढ़ बसाया और वहां रहनेवाले आँजणा कहलाये ।मुंबई मैं गजट के भाग १२ मैं बताये मुजब इ. स. ९५३ में भीनमाल मैं विदेशियों का आक्रमण हुआ, तब कितने ही गुजर भीनमाल छोड़कर अन्यत्र गए । उस वक्त आँजणा पाटीदारो के लगभग २००० परिवार भीनमाल से निकल कर आबू पर्वत की तलहटी में आकर चम्पावती नगरी में रहने लगे । वहां से फिर धाधार मे आकर स्थापित हुए, अंत मे बनासकांठा ,साबरकांठा ,मेहसाना और गांधीनगर जिले मे फ़ैल गए|
आँजणा समाज का इतिहास राजा महाराजाओं के इतिहास जैसा लिखित नहीं हैं ।धरती और माटी के साथ जुडी हुई इस जाती के बारे मैं कोई शिलालेख भी कहीं नहीं पाया जाता
इस समाज के लोग मुख्य रूप से राजस्थान , गुजरात,मध्य प्रदेश ( मेवाड़ एवं मारवाङ क्षेत्र ) में रहते हैं ।आँजणा समाज का मुख्य व्यवसाय कृषि और पशुपालन है। आँजणा समाज बहुत तेजी से प्रगति कर रहा है समाज के लोग सेवा क्षेत्र और व्यापार की ओर बढ रहे हैं।इस समय समाज के बहुत से लोग,महानगरों और अन्य छोटे - बड़े शहरों मे कारखानें और दुकानें चला रहे है।आँजणा समाज के बहुत से लोग सरकारी एवं निजी सेवा क्षेत्र में विभिन्न पदों पर जैसे इंजीनियर, डॉक्टर, वकील, अध्यापक, प्रोफेसर और प्रशासनिक सेवाओं में हैं।
आँजणा समाज में कई सामाजिक,धार्मिक और राजनीतिक नेताओं ने जन्म लिया है।अठारहवीं सदी में महान संत श्री राजाराम जी महाराज ने आँजणा समाज में जन्म लिया ।उन्होंने समाज में अन्याय ( ठाकुरों और राजाओं द्वारा ) और सामाजिक कुरितियों के खिलाफ जागरूकता पैदा की।उन्होंने समाज में शिक्षा के महत्व पर भी जोर दिया। आँजणा समाज में अलग अलग समय पर महान संतों एवं विचारकों ने जन्म लिया हैं।इन संतो एवं विचारकों ने देश के विभिन्न हिस्सों में कई मंदिरों एवं मठों का निर्माण करवाया।राजस्थान में जोधपुर जिले की लूणी तहसील में शिकारपुरा नामक गाँव में एक मठ ( आश्रम )का भी निर्माण करवाया।यही आश्रम आज श्री शिकारपुरा आश्रम के नाम से प्रसिद्ध धार्मिक स्थल है ।
संत श्री राजारामजी महाराज आश्रम,शिकारपुरा जोधपुर यह आश्रम राजस्थान के जोधपुर जिले के शिकारपुरा गाव में स्थित है।शिकारपुरा आश्रम लूणी से 13 किमी पर स्थित है लूणी राजस्थान के जोधपुर जिले में एक तहसील है । इस आश्रम की स्थापना उन्नीसवीं शताब्दी में संत श्री राजारामजी महाराज द्वारा की गयी थी ।
आँजणा समाज का इतिहास राजा महाराजाओं के इतिहास जैसा लिखित नहीं हैं ।धरती और माटी के साथ जुडी हुई इस जाती के बारे मैं कोई शिलालेख भी कहीं नहीं पाया जाता
इस समाज के लोग मुख्य रूप से राजस्थान , गुजरात,मध्य प्रदेश ( मेवाड़ एवं मारवाङ क्षेत्र ) में रहते हैं ।आँजणा समाज का मुख्य व्यवसाय कृषि और पशुपालन है। आँजणा समाज बहुत तेजी से प्रगति कर रहा है समाज के लोग सेवा क्षेत्र और व्यापार की ओर बढ रहे हैं।इस समय समाज के बहुत से लोग,महानगरों और अन्य छोटे - बड़े शहरों मे कारखानें और दुकानें चला रहे है।आँजणा समाज के बहुत से लोग सरकारी एवं निजी सेवा क्षेत्र में विभिन्न पदों पर जैसे इंजीनियर, डॉक्टर, वकील, अध्यापक, प्रोफेसर और प्रशासनिक सेवाओं में हैं।
आँजणा समाज में कई सामाजिक,धार्मिक और राजनीतिक नेताओं ने जन्म लिया है।अठारहवीं सदी में महान संत श्री राजाराम जी महाराज ने आँजणा समाज में जन्म लिया ।उन्होंने समाज में अन्याय ( ठाकुरों और राजाओं द्वारा ) और सामाजिक कुरितियों के खिलाफ जागरूकता पैदा की।उन्होंने समाज में शिक्षा के महत्व पर भी जोर दिया। आँजणा समाज में अलग अलग समय पर महान संतों एवं विचारकों ने जन्म लिया हैं।इन संतो एवं विचारकों ने देश के विभिन्न हिस्सों में कई मंदिरों एवं मठों का निर्माण करवाया।राजस्थान में जोधपुर जिले की लूणी तहसील में शिकारपुरा नामक गाँव में एक मठ ( आश्रम )का भी निर्माण करवाया।यही आश्रम आज श्री शिकारपुरा आश्रम के नाम से प्रसिद्ध धार्मिक स्थल है ।
संत श्री राजारामजी महाराज आश्रम,शिकारपुरा जोधपुर यह आश्रम राजस्थान के जोधपुर जिले के शिकारपुरा गाव में स्थित है।शिकारपुरा आश्रम लूणी से 13 किमी पर स्थित है लूणी राजस्थान के जोधपुर जिले में एक तहसील है । इस आश्रम की स्थापना उन्नीसवीं शताब्दी में संत श्री राजारामजी महाराज द्वारा की गयी थी ।
आंजना उत्पत्ति की पौराणिक कहानी
चौधरी समाज का इतिहास भाट की किताबों और पीढ़ियों से चली आ रही कहानियों के आधार पर लिखा गया है।
परशुराम ब्राह्मण और ऋषि थे। परशुराम ने इस पृथ्वी को इक्कीस बार क्षत्रिय विहीन बनाया। अंत में जब उन्हें विदित हुआ कि सहस्त्रार्जुन नामक एक क्षत्रिय राजा और उनके 100 पुत्र जीवित बचे हुए हैं तो परशुराम ने वहाँ पहुँच कर उसके 100 पुत्रों में से 92 को मार डाला। बचे हुए आठ बेटे युद्ध के मैदान से भाग गए और आबू पर 'मा अर्बुदा' के मंदिर के पीछे छिप गए। परशुराम वहां भी अपना फरसा लेकर पहुंचे और उन्हें मारने की तैयार हुए। आठों घबरा गए और बचाने के लिए माँ अर्बुदा से प्रार्थना की| 'माँ अर्बुदा' प्रकट हुई और परशुराम से निवेदन किया, हे ऋषिराज ये आठों अजनबी है। और उन्होंने मेरे सामने आत्मसमर्पण कर दिया है। इसलिए मैं उन्हें मरने नहीं दूंगी। परशुराम ने कहा कि आठ में से भविष्य में अस्सी हजार होंगे और वह मेरे खिलाफ युद्ध छेड़ेंगे? माँ अर्बुदा बोली , "मैं आपको विश्वास दिलाती हूं कि ये आठ अब अपने हाथों में शस्त्र धारण नहीं करेंगे और आज से ये कृषि कार्य करेंगे और पृथ्वी के पुत्र बन के रहेंगे।तब परशुराम का क्रोध शांत हुआ। परशुराम के वहां से जाने पर वो आठों बाहर आए और माँ के सामने अपने हाथ जोड़ कर खड़े हुए, और कहा, माँ आप हमारी माँ हो। हमें रास्ता दिखाओ।माँ ने कहा तुम अजनबी हो। आप यहाँँ कृषि काम करो। आज से लोग आपको आँजणा के रूप में पहचानेंगे। आँजणा अब भारत के विभिन्न राज्यों में रहने लगे हैं । खेती और पशुपालन के व्यवसाय के साथ भारत के राज्यों में फैल गए। जैसे उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार, बंगाल, राजस्थान और गुजरात। आज, आँजणा भारत के लगभग नौ राज्यों में रहते हैं और उन सभी ने मिलकर अखिल आँजणा महासभा का गठन किया। इसका मुख्य कार्यालय राजस्थान के आबू में है। उन्होंने देहरादून के पास एक बड़ा शिक्षण संस्थान भी स्थापित किया है।कुछ आंजना जाट लोग अपने को हिंदू देवता हनुमान की माता अंजना से संबंधित मानते हैं[
आंजना जाति के कुछ प्रसिद्ध व्यक्ति:
संत राजाराम जी महाराज आँजणा समाज के एक महान संत और आध्यात्मिक मार्गदर्शक माने जाते हैं। उनका जीवन समाज सेवा, भक्ति और सांस्कृतिक जागरूकता से परिपूर्ण था। वे विशेष रूप से कलबी पटेल समाज के आराध्य संत माने जाते हैं, लेकिन उनका प्रभाव आँजणा जाति सहित कई समुदायों पर पड़ा।
उनकी शिक्षाएँ समाज में एकता, आत्मबल और आध्यात्मिक उन्नति को प्रेरित करती हैं। उन्होंने अपने जीवन में भक्ति के साथ-साथ सामाजिक सुधारों पर भी ज़ोर दिया, जिससे आँजणा समाज को सांस्कृतिक और आध्यात्मिक पहचान मिली। उनके जीवन पर आधारित भजन और कथाएँ आज भी समाज में प्रेरणा का स्रोत हैंउदयलाल आंजना:
एक भारतीय राजनीतिज्ञ, जो राजस्थान सरकार में सहकारिता मंत्री और राजस्थान प्रदेश कांग्रेस कमेटी के उपाध्यक्ष हैं,
हरीश आंजना:
उदयलाल आंजना द्वारा स्थापित हरीश आंजना फाउंडेशन के संस्थापक
उनकी शिक्षाएँ समाज में एकता, आत्मबल और आध्यात्मिक उन्नति को प्रेरित करती हैं। उन्होंने अपने जीवन में भक्ति के साथ-साथ सामाजिक सुधारों पर भी ज़ोर दिया, जिससे आँजणा समाज को सांस्कृतिक और आध्यात्मिक पहचान मिली। उनके जीवन पर आधारित भजन और कथाएँ आज भी समाज में प्रेरणा का स्रोत हैंउदयलाल आंजना:
एक भारतीय राजनीतिज्ञ, जो राजस्थान सरकार में सहकारिता मंत्री और राजस्थान प्रदेश कांग्रेस कमेटी के उपाध्यक्ष हैं,
हरीश आंजना:
उदयलाल आंजना द्वारा स्थापित हरीश आंजना फाउंडेशन के संस्थापक
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