18.12.22

धोबी ,रजक जाती का इतिहास:Dhobi jati ka Itihas





धोबी समाज का जन्म मूलनिवासियों मे हुआ था । ऐसा कहा जाता है कि जब भारत पर आर्यों का आक्रमण हुआ इससे पहले धोबी समाज खेती , पशुपालन ही किया करते थे । भारतीय हिंदू ग्रंथ में भी धोबी समाज के बारे में बताया गया है । भारत देश में कई जाति के लोग निवास करते हैं उन्ही जातियों में एक धोबी समाज भी निवास करती है ।

रजक समाज का इतिहास संक्षिप्त मे

रजक समाज भारत के मूलनीवासी समुदायो मे से एक है और इसका जन्म भी मूलनीवासीयो से ही हुआ है. रजक समाज के लोग अन्य मूलनीवासीयो की तरह बराबरी मे भरोसा करने वाले लोग थे और वे सब बिना भेदभाव के मिलजुलकर रहते थे.
रजक समाज के लोग भारत देश के विभिन्न प्रांतो मे आर्यो के आक्रमण से पहले से रहते चले आ रहे हैं . आर्य आक्रमण से पहले रजक समाज के लोग अन्य मूलनीवासीयो की तरह खेती और पशु पालन का कम किया करते थे लेकिन आर्यो ने अपने बेहतर हथियारो और घोड़ो के बल पे भारत के मूलनीवासीयो को अपना घर बार खेती बड़ी छोड़ कर जंगल मे रहने के लिए मजबूर कर दिया. स्वाभिमानी मूलनीवासीयो ने सेकडो सालो तक आर्यो से हार नही मानी और वे अपने पशु धन और खेती के लिए आर्यो से लड़ते रहे. आर्यो ने उन्हे राक्षस, दैत्या, दानव इत्याति नाम दिए और उनकी पराजय की झूठी कहानिया लिखी जो आज ब्राह्मण धरम के ग्रंथ बन गये है.
मूलनीवासीयो और आर्यो की लड़ाई सेकडो सालो तक चलती रही और धीरे धीरे आर्यो को यह समझ आने लगा की लड़ाई कर के मूलनीवासीयो को हराया नही जा सकता इसलिए उन्होने अंधविशवास का सहारा लिया और देवी देवताओ के नाम पर मूलनीवासीयो को डरना शुरू कर दिया. भोले भले लोग कपटी ब्राह्मानो की चाल को ना समझ सके और धीरे धीरे उनके झाँसे मे आगये .
 
 ब्राह्मनो ने मन घड़ंत कहानिया बनाई और सब लोगो मे फैला दी. सालो तक मूल नीवासी इस झूठ को समझकर इस से बचते रहे लेकिन जब झूठ भी सालो तक बोला जाए तो वो सही लगने लगता है इसी तरह मूल नीवासीयो को भी भरोसा होने लगा ब्राह्मानो के भगवान पर. ब्राह्मानो ने मूल नीवासीयो के देवताओ को झूठा कहा और उन्हे डरा डरा कर ब्राह्मानो के देवताओ को मानने के लिए राज़ी कर लिया.
  भोले भले मूल नीवासी एक बार जहाँ चालक ब्राह्मानो की बातो मे आ गए तो फिर ब्रह्मनो ने धीरी धीरे खुद को भगवान के बराबर और मूलनीवासीयो को जानवर के बराबर बताकर उन्हे जर जर ज़िंदगी जीने पर मजबूर कर दिया. इस तरह मूलनीवासी आर्य ब्राह्मानो के गुलाम बन कर रह गये.
ब्राह्मणों ने मूलनीवासीयो मे फुट डालने के लिए और हमेशा के लिए उन्हे दबाकर रखने के लिए जाती प्रथा को शुरू किया और अपने हिसाब से अपने हित के लिए सारे काम मूलनिवासियो मे बाँट दिए और उनमे उच नीच का भाव भर दिया ताकि वे खुद एक दूसरे से उपर नीचे के लिए लड़ते रहे और ब्राह्मण राज करते रहे. यह आज तक चला आ रहा है.
 डॉ. दयाराम आलोक के अनुसार, रजक समाज का उद्गम उन मूल निवासियों से हुआ जिन्हें लोगों को पाप मुक्त करने का काम सौंपा गया था। शुरुआत में, यह काम बहुत सम्मानजनक था, और लोग अपनी शुद्धि और मुक्ति के लिए रजक समाज के लोगों के घर जाते थे।
उनके मतानुसार, रजक समाज के लोग लोगों को पाप मुक्त करने के लिए घर का पानी छिड़ककर उन्हें पवित्र और पाप मुक्त कर देते थे। लेकिन धीरे-धीरे, रजक समाज की इज्जत बढ़ने लगी, और ब्राह्मणों को लगा कि उनसे गलती हो गई है।
इसके परिणामस्वरूप, ब्राह्मणों ने रजक समाज के लोगों का तिरस्कार करना शुरू कर दिया, झूठी कहानियां लिखकर और लोगों को भड़काकर। सदियों बाद, रजक समाज के लोगों को पाप मुक्ति दाता से कपड़े धोने वाला बनाकर रख दिया गया।
यह डॉ. आलोक के शोध और अध्ययन पर आधारित है, जो जाति इतिहास के क्षेत्र में एक प्रमुख विद्वान हैं। उनके अनुसार, रजक समाज के लोगों का तिरस्कार करना एक ऐतिहासिक गलती है जिसे सुधारने की आवश्यकता है
लेकिन आज सभी मूलनीवासीयो की तरह रजक समाज के लोग भी पढ़ लिख गये है और ब्राह्मानो की चाल को समझ गये है . वे ये समझ गये है की वे किसी से कम नही है और कुछ भी कर सकते है. जो काम उन्हे बेइज़्ज़त करने के लिए उनपर थोपा गया था आज वो काम छोड़कर डाक्टर इंजिनियर कलेक्टर बन रहे है. वे ब्राह्मानो की चाल को समझ गये है की किस तरह मंदिर भगवान के नाम पर उनसे काम कराया जाता रहा , उन्हे अपमानित किया जाता रहा, अब वे और अपमान नही सहने वाले. सम्मान से जीना हर इंसान का हक़ है और वे ये हक लेकर रहेंगे.
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