14.1.20

सुनार,स्वर्णकार समाज की गोत्र और कुलदेवी:sunar jati kuldevi


मैढ क्षत्रिय स्वर्णकार समाज की कुलदेवियाँ,,,,कुलदेवी उपासक सामाजिक गोत्र,,,,
मैढ क्षत्रिय स्वर्णकार समाज की कुलदेवियाँ
कुलदेवी उपासक सामाजिक गोत्र


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1. अन्नपूर्णा माता –
 खराड़ा, 
गंगसिया, 
चुवाणा, 
भढ़ाढरा, 
महीचाल,
रावणसेरा,
 रुगलेचा
2. अमणाय माता – 
कुझेरा, 
खीचाणा,
 लाखणिया, 
घोड़वाल, 
सरवाल, 

परवला
3. अम्बिका माता – 
कुचेवा, 

नाठीवाला
4. आसापुरा माता – 
अदहके, 
अत्रपुरा, 
कुडेरिया, 
खत्री आसापुरा, 
जालोतिया, 
टुकड़ा, 
ठीकरिया, 
तेहड़वा, जोहड़, 
नरवरिया,
 बड़बेचा, 
बाजरजुड़ा,
 सिंद,

 संभरवाल, 
मोडक़ा, 
मरान,
 भरीवाल,
 चौहान
5. कैवाय माता – 
कीटमणा, 
ढोलवा, 
बानरा, 
मसाणिया,

 सींठावत
6. कंकाली माता –
 अधेरे, 

कजलोया, 
डोलीवाल, 
बंहराण,
 भदलास

7. कालिका माता – 
ककराणा, 
कांटा,
 कुचवाल, 
केकाण, 
घोसलिया, 
छापरवाल,
 झोजा, 
डोरे, 
भीवां,
 मथुरिया,
 मुदाकलस

8. काली माता – 
बनाफरा

9. कोटासीण माता –
 गनीवाल,
 जांगड़ा,
  ढीया,
 बामलवा, 
संखवाया, 
सहदेवड़ा, 
संवरा

10. खींवजा माता –
 रावहेड़ा, 
हरसिया
11. चण्डी माता –
 जांगला, 
झुंडा, 
डीडवाण,
 रजवास,
 सूबा

12. चामुण्डा माता – 
उजीणा, 
जोड़ा, 
झाट, 
टांक, 
झींगा, 
कुचोरा, 
ढोमा,
तूणवार, 
धूपड़, 
बदलिया,
 बागा, 
भमेशा,
 मुलतान, 
लुद्र,
 गढ़वाल,
 गोगड़, 
चावड़ा, 
चांवडिया,
 जागलवा,
 झीगा, 
डांवर, 
सेडूंत
13. चक्रसीण माता – 
चतराणा, 
धरना, 
पंचमऊ, 
पातीघोष, 
मोडीवाल, 
सीडा
14. चिडाय माता –
 खीवाण जांटलीवाल, 
बडग़ोता, 
हरदेवाण
15. ज्वालामुखी माता –
 कड़ेल, 
खलबलिया, 
छापरड़ा,
 जलभटिया, 
देसवाल, 
बड़सोला,
 बाबेरवाल, 
मघरान, 
सतरावल,
 सत्रावला, 
सीगड़, 
सुरता,
 सेडा, 
हरमोरा

16. जमवाय माता –
 कछवाहा,
 कठातला, 
खंडारा,
 पाडीवाल,
बीजवा, 
सहीवाल, 
आमोरा, 
गधरावा, 
धूपा, 
रावठडिय़ा

17. जालपा माता – 
आगेचाल,
 कालबा, 
खेजड़वाल,
 गदवाहा, 
ठाकुर, 
बंसीवाल, 
बूट्टण, 
सणवाल
18. जीणमाता – 
तोषावड़, 
19. तुलजा माता –
 गजोरा, 
रुदकी

20. दधिमथी माता – 
अलदायण, 
अलवाण, 
अहिके,
उदावत,
 कटलस, 
कपूरे, 
करोबटन,
 कलनह,
 काछवा,
 कुक्कस,
 खोर, 
माहरीवाल
21. नवदुर्गा माता – 
टाकड़ा,
 नरवला, 
नाबला, 
भालस
22. नागणेचा माता – 
दगरवाल, 
देसा,
 धुडिय़ा, 
सीहरा, 
सीरोटा
23. पण्डाय (पण्डवाय) माता – 
रगल,
 रुणवाल,
 पांडस

24. पद्मावती माता –
 कोरवा, 
जोखाटिया,
 बच्छस, 
बठोठा, 
लूमरा
25. पाढराय माता –
 अचला
26. पीपलाज माता – 
खजवानिया,
 परवाल,
 मुकारा
27. बीजासण माता – 
अदोक ,
 बीजासण, 
मंगला,
 मोडकड़ा, 
मोडाण, 
सेरने
28. भद्रकालिका माता – 
नारनोली
29. मुरटासीण माता –
 जाड़ा,
 ढल्ला,
 बनाथिया, 
मांडण, 
मौसूण, 
रोडा

30. लखसीण माता – 
अजवाल, 
अजोरा, 
अडानिया, 
छाहरावा,
 झुण्डवा, 
डीगडवाल,
 तेहड़ा, 
परवलिया, 
बगे, 
राजोरिया, 
लंकावाल, 
सही, 
सुकलास, 
हाबोरा
31. ललावती माता –
 कुकसा,
 खरगसा, 
खरा, 
पतरावल,
 भानु,
 सीडवा,
 हेर
32. सवकालिका माता – 
ढल्लीवाल,
 बामला,
 भंवर, 
रूडवाल, 
रोजीवाल, 
लदेरा, 
सकट
33. सम्भराय माता – 
अडवाल, 
खड़ानिया, 
खीपल,
 गुगरिया,
 तवरीलिया, 
दुरोलिया, 
पसगांगण, 
भमूरिया

34. संचाय माता –
 डोसाणा
35. सुदर्शनमाता – 
मलिंडा
यह विवरण विभिन्न समाजों की प्रतिनिधि संस्थाओं तथा लेखकों द्वारा संकलित एवं प्रकाशित सामग्री पर आधारित है। इसके बारे में प्रबुद्धजनों की सम्मति एवं सुझाव सादर आमन्त्रित हैं।
अग्रोया और कडेल – मैढ क्षत्रिय जाती मे कडेल गोत्र के सदस्य बहुसंख्य है बडवों (बहीभाटों) द्वारा पता चला है की तुंवर वंश के राजा शालिवाहन अनंगपाल के पुत्र विरहपाल के पुत्र भोज हुए । भोज को दो पुत्र हुए भावडाजी और वीरुजी । भावडाजी के वंशज अग्रोहा (जिला हिसार – हरीयाणा) मे देहली से आकर बसे, उनकी खांप का नाम उक्त ग्राम अग्रोहा के नाम पर अग्रोया पडा । इसलिए कडेल व अग्रोया, भावडाजी व वीरुजी की संतान होने के कारण भाई भाई है ।
वीरुजी के पुत्र किलणणी से कडेल खांप चली, यह परीवार बहुत बढा , अब समस्त भारत मे मैढ क्षत्रिय जाती मे कडेलों का बाहुल्य है । इन्होने अजमेर के निकट कडेल ग्राम बसाया, लेकीन अब वहां सारडीवाल गौत्र के मैढ बंधु है । मारवाड मे मुण्डवे के पास कडलाणी ग्राम है और मुण्डवे मे कडेलों का ही बाहुल्य है । मारवाड मुण्डवे के कडेल बंधु कहते है की कडलाणी ही कडेलों का उदगम स्थान है ।
कुल्थिया – लगभग 750 वर्ष पुर्व कोल्हपुर पाटण के राजा अणहन्तराम सांखला हुए, उनकी पांचवी पिढी मे कुल्थवाहन राजा हुए जिनकी सन्तान कुल्थिया कहलाई, नवाबी के समय यह लोग फतहपुर ( सीकर सेखावाटी ) मे बारुद बनाने का कार्य करता थे, करलाडी के ठाकुर के पास भी कुल्थिया खांप के व्यक्ति रहे वहाम भी वे बारुद बनाने का कार्य करता थे 6 मे से 3 भाई रतनगढ, एक मण्डाणा,एक नोहर व एक सुजानगढ गये । लगभग 470 वर्ष पुर्व सुजानगढ वालों ने स्वर्णकारी का काम सीखा, जो भाई सुजानगढ गये उनका नाम कोटणसी था ।
जांगलवा – इनका निकास स्थान जांगलु बताया गया है, जांगलुदेश (बिकानेर) मे पंवारो का राज्य था. उसी पंवार वंश के सांखला शाखा ने जांगलु (बिकानेर) के नाम पर जांगलवा खांप बनी, कुल्थिया भी इसी परिवार की एक खांप है ।
जौडा – इस खांप के दो नख है एक चौहान , दुसरा सोलंकी, मामा चौहान था और भांजा सोलंकी, चौहानो की कुलदावी चामुंडा और राजधानी सांभर थी, सोलंकीयों की माता ब्राम्हणी और राजधानी नानोर थी, अब चौहान जौडा और सोलंकी जौडा दोनो खांपो का एक नाम होने के कारण नखभेद भुलाकर एक खांप के रुप मे है । जौडो और जवडा एक ही है ।
तुहणगर – तुणगर – राजस्थान के करौली जिल्हे मे त्योहनगढ है उसी ग्राम के नाम पर त्योहनगढीया, त्योहनगर, तुणगर, कहलाए इस खांप के व्यक्ति त्योहनगढ से चलकर मांडुगढ बैराड होते हुए डेरा बसे, इस परीवार मे रतनजी डांवर की पुत्री नाली ब्याही थी जो अपने पती के स्वर्गवास हो जाने पर पाली (मारवाड) मे सती हो गई, अत: इनकी सती नाली, पाली मे पुजा जाती है और इनकी देवी चामुण्डा जो डॉंवरो की भी देवी है खण्डेले मे है ।
डॉँवर – मोयल वंशीय राजा माधवदानजी छापर चुरु (राजस्थान) के राजा थे, उनके पुत्रों ने सोने चांदी का काम सीखा, उनमे से छमरजी से छमा, छाजडजी से छपरडा, छापुजी से छपरवाल, छायडजी से छायरा, और छाहरना धर्मसी से धुपड और सबसे छोटे पुत्र डांवाजी से डॉंवर खांप चली । डावाजी छापर से खण्डेला मे बसे । खण्डेले मे डांवाजी के स्वाभिमानी पौत्र रामसिंहजी ने खण्डेले के राजा द्वारा अपनी माता को कहे गए अपशब्द सुनकर उस राजा का वध कर दिया और फिर अपनी सुरक्षा के लिए खण्डेला छोडकर रातों रात अपने परीवार सहीत बख्तावरपुरा (इस्लामपुर के निकट ग्राम मे ) जा बसे, जब खण्डेले पे नवाब ने चढाई की तब खण्डेले के युवराज ने श्री रामसिंहजी का पता लगाकर उनसे साहयता मांगी, श्री रामसिंहजी ने अपने नौ पुत्रौं को खण्डेले के रक्षार्थ युध्द मे भेज दिये । युध्द समाप्ती पर वे खण्डेले से विदा लेकर पृथक पृथक स्थानों पर चले गये । कोइ इस्लामपुर (बगड रतन शहर ) कोई उदयपुर (चिराणा) कोई गुढा (महेन्द्र गढ) कोई खंडार मुन्दुयाड, गोआ (जि. नागौर ) आदी स्थानो पर गये । इस्लामपुर जानेवाले का परीवार फतहपुर (सीकर) और राजस्थान मारवाड मे भी खुब फला फुला, बादशाहपुर जानेवाले का परीवार भी बहुत बढा ।
सोनालिया (सोंधालिया) – इनके पुरखों का नाम संधुजी था, उन्हों के नाम पर इस खांप का नाम सोंधालिया पडा, अब यह लोग अपने आप को सोनालिया भी कहते है । इनका निकास सांभर, वंश चौहान, देवी जीणमाता है . पिलानी और मण्डरेले मे इनके बहुत घर है ।
नारनौली – महाराजा अर्नगपाल सन 1186 से पहिले अपने दोहीते पृथ्वीराज चौहान (अजमेर) को राज काज सौंप कर तीर्थ यात्रा को गए, वापीस लौटने पर पृथ्वीराज ने अपने नाना को अपना राज नही संभालने दिया, फलत: वे पृथ्वीराज से दु:खी होकर अपने पुरोहीत के पास तोरा वाटो (जयपुर) गये फिर उन्होने पाटन (जिल्ह झालरा पाटन) पर शासन किया, उनके पुत्रों में से अनेको ने वहा स्वर्णकार्य सिखा, सुगन्ध नाम के उनके वंशज ने नारनोल मे निवास किया तब उनकी संतान नारनौली कहलाई, नारनौली खांपवाले अपने पुर्वज सुगन्ध के नाम पर अपने को सुगन्ध भी बतलाते है । इस खांप की पुत्र वधु मक्खनलालजी की पत्नी सावित्री खलबल्या कोटडी मे सती हुई ।
मौसुण – जायल ( मारवाड) मे खींची राजपुतों का बाहुल्य था इस परीवार में गींदाजी नामक प्ररखा हुआ जिसके बारह पुत्रों ने पृथक – पृथक व्यवसाय अपनाये इनकी खांप मौसुण, मसावन, मसौन, व मसाण कहलाती है । इस खांप का पितृ श्रीधर पुरोहीत खांदल्या, डाढी मोडा, तथा ग्राम खाचरजी बावडी (जायल मारवाड ) है ।
बेनाथिया – इनके पुर्वज भी जायल के ही खींची राज घराने के है, इनकी देवी मुरटासीण ( आसापुरा ) अग्नीवंश खींची चौहान है, प्रथम ग्राम जायल (नागौर) राजस्थान है । वहां वहां से संवत 1200 के पुर्व (पृथ्वीराज चौहान के शासन काल मे ) अजमेर आये , फिर ये अजमेर से मांडल, मांडल से कुसिथल गये, 1462 मे कुसिथल मे श्रवणजी बेनाथिया की पत्नी वीरांबाई मिरीण्डीया कुसिथल मे सती हुयी वहां आज भी सती की समाधी है । और उसी कुसीथल के निकट सुग्रीव ग्राम मे बेनाथियों के घर है । उसके पश्चात 1699 में केवलरामजी पुन: अजमेर आकर बस गये । बेनाथियों के अनेक परीवार अजमेर, माण्डल, उदयपुर, नाथद्वारा, चिताम्बा, प्रतापगढ, टोंक, टोडा, मुम्बई, इन्दोर, कोटा, बुंदी आदी स्थानोंपर है । इनके पुर्वज बिना हथियार (बना हथियार) से भी महान युध्द किये इसी कारण इनकी खांप बेनाथिया, बनाथिया, बिनाथिया हुई ।
सोलिवाल – राजा मलैसी कछवाहें के वंशजो ने भिन्न भिन्न काम करके उनमे रतनाजी के रंगलीजी ने सोने, चांदी का काम सिखा उनकी सन्तान सोलिवाल कहलाई । इनके परीवार मे एक बहु अजमेर मे सती हुयी, जिसकी समाधी आज भी अजमेर है ।
आगेचाल – ये चावल नख के है इनका निकास कोट करोड नामक उजडे हुए खेडे का है जो भिवानी के पास है ।
ढल्ला – ढल्ला, ढाबरवाल, ढोया, ढोलणा एक ही वंश जोइया क्षत्री नख के है। मारवाड जिला नागौर के भकरी ग्राम मे भी ढल्लों के कई परीवार है । पंजाब, हरीयाणा व दिल्ली में भी ढल्लों के अनेक परीवार है ।
महायछ – यह खांप भी कोट मरोड से निकली है, वैसे मारवाड व हाडोती मे और पंजाब, हरीयाणा, देहली में भी महायछ खांप वालों के परीवार है ।
स्वर्णकारों के गोत्र यह प्रमाणित करते हैं कि वे अमुक ऋषि के वंशज हैं और नुखें यह घोषित करती हैं कि अमुकस्थान, अमुक राजवंश गुरू या पुरोहित से सम्बद्धता है।
याने गोत्र वंश का सूचक है और नुख विशेष पहचान की|
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हर घड़ी ख़ुद से उलझना है मुक़द्दर मेरा-

विशिष्ट कवियों की चयनित कविताओं की सूची (लिंक्स)

स्वप्न झरे फूल से, मीत चुभे शूल से -गोपालदास "नीरज"

वीरों का कैसा हो वसंत - सुभद्राकुमारी चौहान

सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोसिताँ हमारा-अल्लामा इकबाल

उन्हें मनाने दो दीवाली-- डॉ॰दयाराम आलोक

जब तक धरती पर अंधकार - डॉ॰दयाराम आलोक

जब दीप जले आना जब शाम ढले आना - रविन्द्र जैन

सुमन कैसे सौरभीले: डॉ॰दयाराम आलोक

वह देश कौन सा है - रामनरेश त्रिपाठी

किडनी फेल (गुर्दे खराब ) की रामबाण औषधि

बीन भी हूँ मैं तुम्हारी रागिनी भी हूँ -महादेवी वर्मा

मधुर-मधुर मेरे दीपक जल - महादेवी वर्मा

प्रणय-गीत- डॉ॰दयाराम आलोक

गांधी की गीता - शैल चतुर्वेदी

तूफानों की ओर घुमा दो नाविक निज पतवार -शिवमंगलसिंह सुमन

सरहदें बुला रहीं.- डॉ॰दयाराम आलोक

जंगल गाथा -अशोक चक्रधर

मेमने ने देखे जब गैया के आंसू - अशोक चक्रधर

सूरदास के पद

रात और प्रभात.-डॉ॰दयाराम आलोक

घाघ कवि के दोहे -घाघ

मुझको भी राधा बना ले नंदलाल - बालकवि बैरागी

बादल राग -सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"

आओ आज करें अभिनंदन.- डॉ॰दयाराम आलोक

3 टिप्‍पणियां:

RV ने कहा…

chikna gotra ki kuldevi kaun hai

Unknown ने कहा…

murdase gotra ki kul devi kon he

Yogesh ने कहा…

Cheeday Mata ka mandir kaha hai