5.4.23

अखिल भारतीय दामोदर दर्जी महासंघ का सफरनामा: लेखक: रमेश चंद्र जी राठौर आशुतोष

 


-रमेश राठौर आशुतोष की कलम से :

अखिल भारतीय दामोदर दर्जी महासंघ(प्रधान कार्यालय शामगढ) की स्थापना 1965 में डॉ दयारामजी आलोक शामगढ द्वारा की गई । सामाजिक सेवाओं का जुनून आलोक साहेब को युवावस्था में मात्र 25 वर्ष की उम्र से ही हो गया था। आलोकजी ने महासंघ का सविंधान लिपिबद्ध किया जिसमे आवश्यक सुधार डॉ लक्ष्मीनारायण जी अलौकिक द्वारा  किए जाकर रसायन फार्मेसी प्रेस दिल्ली से संविधानआलेख  की पुस्तक छपवाकर समाज मे वितरित की गई थी।

महासंघ ने वार्षिक अधिवेशन की परंपरा के अंतर्गत 5 अधिवेशन किये जो क्रमशः 1965 में पहला अधिवेशन राठौर भवन शामगढ पर किया गया जिसमें दूर दराज के 134 समाजजनों ने अपनी उपस्तिथि दर्ज करवाई थी। उसके बाद 1966 में डग राजस्थान में  दर्जी समाज के  मन्दिर उद्यापन के समय किया गया।

 उल्लेखनीय है कि 1966 में दर्जी समाज के डग मन्दिर की प्राण-प्रतिष्ठा का भव्य व ऐतिहासिक कार्यक्रम दर्जी समाज डग के सभी दर्जी बन्धुओ की सहमति





व समाज सहयोग से महासंघ के तत्ववाधान में सम्पन्न हुआ है।

डग के सत्यनारायण मन्दिर के उद्यापन के लिए दान दाताओं की सूचि 

वार्षिक अधिवेशन श्रंखला में 1967 में ग्राम साठखेड़ा के दर्जी समाज के वित्तीय सहयोग से सम्पन्न हुआ। वर्ष 1968 व 1969 के अधिवेशन आलोक सदन शामगढ में सम्पन्न हुए।
उक्त अधिवेशन में समाज मे व्याप्त कुरीति नोंद प्रथा (इसमे महिलाओं को एक मुश्त भोजन सामग्री परोसी जाती थी जिसे बांधकर महिलाएं घर ले जाती थी) को बंद करने का प्रस्ताव भी रखा गया था जो कालांतर में बाद में शामगढ में एक मोसर आयोजन से बंद हुआ। यह हम सब जानते हैं कि कुप्रथाएं एक मीटिंग अथवा एक अधिवेशन से बंद नहीं हो सकती है। कुप्रथाएं व रूढ़ी , परम्परायें के लिए समाज को बार बार अवगत करना होता है। समयानुसार समाज के व्यक्तियों को समझ आती है और कुप्रथाएं लुप्त होती जाती है।
 1970 में डॉ आलोक साहेब का ट्रांसफर चचोर होने से महासंघ की गतिविधियों में रुकावट आ गई। चूंकि उस जमाने में वर्तमान जैसी डिजिटल  मीडिया सेवाएं नहीं होने से महासंघ की गतिविधियाँ मे ठहराव या गया था| । चचोर से बरलाई व बाद में आलोक साहेब का ट्रांसफर रामपुरा हुआ तब से पुनः समाज सेवा के द्वारा कुछ करने का जज्बा जाग्रत हुआ। रामपुरा दर्जी समाज को संगठित कर दर्जी समाज का पहला व मन्दसौर जिले का प्रथम सामूहिक विवाह सम्मेलन महासंघ के झंडे तले आयोजित कर सफलता हांसिल की।
    1983 में पुनः रामपुरा नगर में दूसरे विवाह सम्मेलन का बीड़ा उठाकर उसे अंजाम तक पहुंचाया।
1990 में शामगढ जिसे समाज का ह्रदय स्थल समझा जाता है में सामूहिक विवाह सम्मेलन की रूप रेखा तैयार कर श्री भेरुलालजी राठौरकी अध्यक्षता मे  विशाल आयोजन हुआ । महासंघ के तत्वावधान में आयोजित यह सरा सम्मेलन था।
आलोक साहेब के बोलिया आ जाने के बाद 2006 , 2008 व 2010 में एक एक वर्ष छोड़कर तीन सम्मेलन बोलिया में आयोजित किये गए।
ज्ञातव्य हो कि 2010 में बोलिया में नि:शुल्क सामूहिक विवाह सम्मेलन डाक्टर साहेब ने निज वित्त पोषण से  किया था जो अब तक के नए गुजराती दर्जी समाज  का एक मात्र  सामूहिक विवाह सम्मेलन है।
2012 के सम्मेलन का अध्यक्षीय नेतृत्व महासंघ में मुझे  याने (रमेश आशुतोष) को  दिया। मैंने कुछ हटकर इस सम्मेलन की प्लानिंग तैयार की थी । यह सम्मेलन भव्यता लिए हुए स्मरणीय आयोजन की सूची में जाना जाता है।
2014 के विवाह सम्मेलन में दर्जी समाज का पारिवारिक परिचय ग्रंथ समाज सेतु 2014 (प्रकाशक- अखिल भारतीय दामोदर दर्जी महासंघ) का विमोचन कार्यक्रम रखा गया। इस सम्मेलन में भी कुछ नया करने के उद्देश्य से पहली बार सम्मेलन का नेतृत्व महिला को देने का काम महासंघ के खाते में जाता है। सु श्री माया राठौर पिता डॉ लक्ष्मीनारायण जी अलौकिक 2014 के सामूहिक विवाह सम्मेलन की अध्यक्ष बनाई गई जिनके नेतृत्व से सम्मेलन के प्रति समाज जनों में विश्वास , पारदर्शिता का संदेश पहुंचा।
समाज मे महासंघ की अगुवाई में विवाह सम्मेलनों की मांग को देखते हुए 2017 में नों वा सामूहिक विवाह सम्मेलन कंचन गंगा गार्डंन में आयोजित किया गया जिसकी अध्यक्षता डॉ दयाराम जी आलोक साहेब ने बखूबी निभाई। महासंघ के सम्मेलनों की एक विशेषता यह रही है कि बचत राशि महासंघ ने कभी अपने कोष में सम्मिलित नहीं की उसे डिवाइड कर सभी जोड़ो को घर घर जाकर आना पाई का आय व्यय पत्रक छपवाकर पत्रक सहित रिटर्न दिया यह अपने आप मे महासंघ की लोकप्रियता व पारदर्शिता का प्रमाण है।

महासंघ की विशेषताएं:

1. स्वेच्छिक दान: महासंघ ने कभी भी धन संग्रह हेतु समाज के गांव में जाकर उगाई (वसूली) मुहिम नहीं की।
2. समाज सेवा का सिद्धांत: जिसने दिया उसका भी भला और जिसने नहीं दिया उसका भी भला।
3. सफल सम्मेलन: 9 सफल सम्मेलन आयोजित किए गए।
4. डिजिटल माध्यम से समाज सेवा: लोक डाउन के दौरान भी महासंघ के संस्थापक डॉ आलोक साहेब ने इंटरनेट को माध्यम बनाकर समाज सेवा की।
5. दर्जी समाज के फोटो: लगभग दस हजार फोटो इंटरनेट पर लोड किए गए।
6. पारदर्शिता: महासंघ का हिसाब पूछने का नहीं, देखने का समय होना चाहिए।
7. वंशावलि: सात पीढ़ियों तक की पारिवारिक जानकारी इकट्ठा की गई।

महासंघ की इन विशेषताओं को देखकर यह स्पष्ट होता है कि यह संगठन समाज सेवा और पारदर्शिता के लिए प्रतिबद्ध है। डॉ आलोक साहेब की मेहनत और समर्पण की भावना प्रशंसनीय है| 
महाप्रबंधक-----
रमेश राठौर आशुतोष
संचालक: कंचनगंगा गार्डन गायत्री शक्तिपीठ के सामने शामगढ

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