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21.6.25

दर्जी जाति का गौरवशाली इतिहास : पीपा ,छीपा ,नामदेव ,दामोदर वंशी और उपजातियों की जानकारी

  



मित्रों ,भारत मे जाति व्यवस्था वैदिक काल से ही अस्तित्व मे है|जाति इतिहास के विडिओ के अंतर्गत आज "दर्जी जाति का इतिहास और जानकारी'  विषय पर चर्चा करेंगे 

दर्जी जाति का इतिहास उतना ही पुराना है जितना की मानव का इतिहास।

विश्व इतिहास में यह माना गया है कि कपास का सर्वप्रथम उपयोग भारत में ही हुआ था अतः यह कहना सार्थक होगा की धागा बनाना और कपड़ा बनाना भी भारत में ही आरम्भ हुआ यही कला चीनियों ने भारत से सीखी किंतु वे इस कला को और अधिक विकसित कर सके |
जाति इतिहास लेखक डॉ ,दयाराम  आलोक के मतानुसार  2500 ईसा पूर्व से ही मनुष्य प्रजाति का एक तबका वस्त्र निर्माण और उसकी  डिजाइन बनाने के कार्य में लग गया| कालांतर में भारत में वैदिक और उत्तर वैदिक काल में जाति व्यवस्था प्रकाश में आई और दर्जी जाति भी इसी काल में आई। जाति व्यवस्था प्रचलित होने पर कपड़े से सम्बंधित कार्य करने वालो को दर्जी कहा गया लेकिन यह जाति बिना पहचान के ही सेकड़ो वर्षो पूर्व से ही कार्य में लगी हुई है।
Darji History Video in Hindi 



अब यह जाति अपने द्वारा सीखी गयी कलाकारी को अपनी सन्तानो को भी देने लगे और अगली पीढ़ी भी उन्नत कलाकारी कर पाई जिसमे कपड़ा निर्माण, छपाई, रँगाई, वस्त्र निर्माण आदि कार्य शामिल है और इसी कार्य से सम्बंधित लोगो में वैवाहिक सम्बन्ध होने लगे। यह जाति एक विकसित जाति रही जिसके प्रमाण इसी बात से लगाया जा सकता है कि राजा और सम्पन्न लोग अपने पर्सनल दर्जी रखते थे और यही प्रथा आधुनिक काल में अंग्रेजो ने भी रखी उन्होंने दर्जी जाति को भारत में टेलर नाम दिया।आज भी दर्जी जाति के लोग इस कार्य को बखूबी कर रहे है | 

पीपा क्षत्रिय दर्जी समाज

गागरोन रियासत के प्रतापी शासक जो राजा से बने संत




पीपा क्षत्रिय दर्जी समाज का इतिहास, संत पीपाजी महाराज से जुड़ा हुआ है, जो 14वीं शताब्दी के एक महान संत और भक्ति आंदोलन के नेता थे. वे गागरोनगढ़ के एक राजपूत राजा थे जिन्होंने बाद में सिंहासन त्यागकर संत बनने का फैसला किया.पीपा वंशीय दर्जी समाज क्षत्रीय गोत्र वाला सबसे अधिक संख्या वाला दर्जी  समाज है जो पीपा जी महाराज के अनुयायी हैं। 

दामोदर वंशी दर्जी समुदाय की जानकारी 



दामोदर वंशी दर्जी समाज एक पारंपरिक भारतीय समुदाय है जो मुख्य रूप से मध्य प्रदेश और राजस्थान में पाया जाता है। यह समुदाय अपनी विशिष्ट संस्कृति, परंपराओं और व्यवसाय के लिए जाना जाता है। यहाँ कुछ महत्वपूर्ण बातें हैं जो दामोदर वंशी दर्जी समाज के बारे में बताती हैं:
1. उत्पत्ति: दामोदर वंशी दर्जी समाज की उत्पत्ति गुजरात से हुई है, जहाँ से वे मुस्लिम शासकों के अत्याचारों और जबरन इस्लामीकरण के दबाव के कारण पलायन कर मध्य प्रदेश और राजस्थान में बस गए।
2. व्यवसाय: दामोदर वंशी दर्जी समाज का मुख्य व्यवसाय दर्जी का काम है, जिसमें वे कपड़े सिलते और बनाते हैं।
3. संस्कृति: दामोदर वंशी दर्जी समाज की संस्कृति में हिंदू परंपराएं और रीति-रिवाज शामिल हैं, जिनमें वे अपने आराध्य संत दामोदर जी महाराज  की पूजा करते हैं और उनकी जयंती और  निर्वाण तिथि  मनाते है | 
   जूनागढ़ के मुस्लिम शासकों के अत्याचारों और जबरन इस्लामीकरण की वजह से दामोदर वंशीय दर्जी समाज के दो जत्थे गुजरात को छोड़कर मध्य प्रदेश और राजस्थान में विस्थापित हुए।
 पहला जत्था 1505 ईस्वी में महमूद बेगड़ा के शासनकाल में विस्थापित हुआ, और दूसरा जत्था 1610 ईस्वी में नवाब मिर्जा जस्साजी खान बाबी के शासनकाल में विस्थापित हुआ।
इन दोनों जत्थों के लोगों की बोली और संस्कृति में अंतर होने के कारण, पहले जत्थे के लोग "जूना गुजराती" और दूसरे जत्थे के लोग "नए गुजराती" कहलाने लगे।
  दामोदर वंशी दर्जी समाज के परिवारों की गौत्र क्षत्रियों की है, जिससे यह ज्ञात होता है कि इनके पुरखे क्षत्रिय थे। और जूना गुजराती समाज के लोग "सेठ" उपनाम का उपयोग करते हैँ 



उल्लेख योग्य है कि वैश्विक स्तर पर दर्जी समाज की सबसे बड़ी और सबसे अधिक पाठकों वाली website का Address

https://damodarjagat.blogspot.com

जिसकी पाठक  संख्या करीब  साढ़े पाँच  लाख है
ज्ञातव्य है कि डॉ. दयाराम आलोक ने दर्जी समाज के उत्थान और विकास के लिए महत्वपूर्ण योगदान दिया है। उन्होंने समाज को संगठित करने और उसकी गतिविधियों को सही दिशा देने के लिए अखिल भारतीय दामोदर दर्जी महासंघ का गठन 1965 मे  किया, जो एक महत्वपूर्ण कदम था। इस संस्था का  प्रधान कार्यालय 14,जवाहर मार्ग शामगढ़ है । 
   उन्होंने समाज की आर्थिक स्थिति को मजबूत करने के लिए सामूहिक विवाह की परंपरा शुरू की, जिसमें 9 सामूहिक विवाह आयोजित किए गए। 2010 में उन्होंने स्ववित्त पोषित निशुल्क सामूहिक विवाह का आयोजन किया, जो एक बहुत ही सराहनीय कदम था।

नामदेव दर्जी समाज 




   सन्त नामदेव जो दर्जी जाति से थे उन्होंने भक्ति की पराकाष्ठा को पार कर ईश्वर को भोज कराया ततपश्चात नामदेव दर्जी जाति व अन्य जातियों के सन्त बन गए और मुख्य रूप से दर्जी जाति के लोगो ने तो नाम के साथ नामदेव लगाना भी आरंभ कर दिया वर्तमान में नामदेव समाज प्रकाश में आया जो कि  आधुनिक महाराष्ट्र, गुजरात, मध्य प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में विकसित हुआ।
दर्जी  जाति और समाज ने कलात्मक और आर्थिक रूप से राष्ट्र विकास में अहम भूमिका अदा की और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि कला से जुड़ाव होने के कारण यह समाज किसी भी आपराधिक गतिविधियों से अछूता ही रहा, सरकारी नीतियों  के कुछ  नकारात्मक प्रभाव  इस जाति पर होने पर भी कभी विरोध के स्वर इस जाति में सुनाई नही पड़े। आज इस समाज ने यथार्थ  मानवतावाद को चरितार्थ किया


  सन्यासी दर्जी 

"सन्यासी दर्जी" शब्द का अर्थ है एक ऐसा दर्जी (दर्जी) जो संन्यास (सन्यास) के जीवन को अपनाता है। यह एक ऐसा व्यक्ति है जो दर्जी के रूप में काम करने के साथ-साथ आध्यात्मिक मार्ग पर भी चलता है।यह दर्जी समुदाय अधिकांशत:  दक्षिण भारत के  राज्यों  मे निवास करता है 

काकुतस्थ  दर्जी - 

  काकुस्थ (Kakustha) वंश, जिसे दर्जी जाति भी कहा जाता है, सूर्यवंशी क्षत्रिय (सूर्यवंश के राजा) माने जाते हैं, जो अयोध्या के इक्ष्वाकु वंश से संबंधित हैं. वे अपने आप को महाराज पुरंजय के वंशज मानते हैं और सूचीकार (दर्जी) भी कहलाते हैं. यह समाज संत नामदेव को भी अपने समाज का मानते हैं.

सोरठिया  दर्जी -

  सोरठिया दर्जी, गुजरात में पाई जाने वाली अहीर/यादव जाति का एक वंश है। वे यदुवंशी अहीरों के वंशज माने जाते हैं और उनके 484 उपनाम हैं, जो किसी भी अन्य गुजराती अहीर/यादव शाखा से अधिक हैं। वे मुख्य रूप से किसान और जमींदार हैं, लेकिन परिवहन और भारी निर्माण मशीनरी व्यवसाय में भी सक्रिय हैं|
दक्षिण भारत में दर्जी समुदाय को अलग-अलग नामों से जाना जाता है, जैसे कि दर्जी, चित्तार, सना, चिकवा आदि.
पिस्से (Pissey) कर्नाटक में दर्जी समुदाय का एक उपनाम है, जिसे वेड, काकाडे, और सन्यासी के साथ उपयोग किया जाता है.

टाँक ,रूहेल ,इदरिसी 

  रूहेला दर्जी समुदाय, जिसे "टांक" या "इदरीसी" दर्जी भी कहा जाता है, एक भारतीय समुदाय है जो दर्जी (सिलाई) का काम करता है। वे मूल रूप से क्षत्रिय राजपूत वंश से माने जाते हैं। कुछ इतिहास के अनुसार, वे अफगानिस्तान के रोह क्षेत्र से आए थे और 18वीं शताब्दी में रोहिलखंड क्षेत्र में बस गए थे। दर्जी समुदाय में, वे वस्त्र निर्माण और सिलाई के काम के लिए जाने जाते हैं।
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Disclaimer: इस लेख में दी गई जानकारी Internet sources, Digital News papers, Books और विभिन्न धर्म ग्रंथो के आधार पर ली गई है. Content को अपने बुद्धी विवेक से समझे। 

27.9.17

वैष्णव धर्म की जानकारी और इतिहास:Vaishnav Dharm




वैष्णव सम्प्रदाय, भगवान विष्णु को ईश्वर मानने वालों का सम्प्रदाय है. वैष्णव धर्म या वैष्णव सम्प्रदाय का प्राचीन नाम भागवत धर्म या पांचरात्र मत है. इस सम्प्रदाय के प्रधान उपास्य देव वासुदेव हैं, जिन्‍हें, ज्ञान, शक्ति, बल, वीर्य, ऐश्वर्य और तेज- इन 6: गुणों से सम्पन्न होने के कारण भगवान या 'भगवत' कहा गया है और भगवत के उपासक भागवत कहलाते हैं. वैष्णव के बहुत से उप संप्रदाय हैं. जैसे: बैरागी, दास, रामानंद, वल्लभ, निम्बार्क, माध्व, राधावल्लभ, सखी और गौड़ीय. वैष्णव का मूलरूप आदित्य या सूर्य देव की आराधना में मिलता है.


वैष्‍णव धर्म या सम्‍प्रदाय से जुड़े महत्‍वपूर्ण तथ्‍य:


(1) वैष्णव धर्म के बारे में सामान्य जानकारी उपनिषदों से मिलती है. इसका विकास भगवत धर्म से हुआ है.
(2) वैष्णव धर्म के प्रवर्तक कृष्ण थे, जो वृषण कबीले के थे और जिनका निवास स्थान मथुरा था.
(3) कृष्ण का सबसे पहले उल्लेख छांदोग्य उपनिषद में देवकी के बेटे और अंगिरस के शिष्य के रूप में हुआ.
सम्‍प्रदाय
संस्‍थापक
आजीवक
मक्‍खलिपुत्र
घोर अक्रियवादी
पूरण कश्‍यप
यदृच्‍छावाद
आचार्य अजित
भौतिकवादी
पकुध कच्‍चायन (भौतिक दर्शन)
अनिश्‍चयवादी
सजय वेट्ठलिपुत्र

(i) मत्स्य
(ii) कच्‍छप
(iii) वराह
(iv) नृसिंह
(v) वामन
(vi) परशुराम
(vii) राम
(viii) कृष्‍ण
(ix) बुद्ध
(x) कल्कि


(6) 24 अवतारों का क्रम इस तरह है:

(i) आदि परषु
(ii) चार सनतकुमार
(iii) वराह
(iv) नारद
(v) नर-नारायण
(vi) कपिल
(vii) दत्तात्रेय
(viii) याज्ञ
(ix) ऋषभ
(x) पृथु
(xi) मतस्य
(xii) कच्छप
(xiii) धनवंतरी
(xiv) मोहिनी
(xv) नृसिंह
(xvi) हयग्रीव
(xvii) वामन
(xviii) परशुराम
(xix) व्यास
(xx(xxi) बलराम

(xxii) कृष्ण
(xxiii) बुद्ध
(xxiv) कल्कि) राम
प्रमुख सम्‍प्रदाय, मत एवं आचार्य

प्रमुख सम्‍पदाय
मत
आचार्य
वैष्‍णव सम्‍प्रदाय
विशिष्‍टाद्वैत
रामानुज
ब्रह्मा सम्‍प्रदाय
द्वैत
आनंदतीर्थ
रुद्र सम्‍प्रदाय
शुद्धद्वैत
वल्‍लभाचार्य
सनक सम्‍प्रदाय
द्वैताद्वैत
निम्‍बार्क

(7) वैष्णव धर्म में ईश्वर प्राप्ति के लिए सर्वाधिक महत्व भक्ति को दिया है.
(8) ऋग्वेद में वैष्णव विचारधारा का उल्लेख मिलता है. वैष्‍ण ग्रंथ इस प्रकार हैं:
(i) ईश्वर संहिता
(ii) पाद्मतन्त
(iii) विष्णुसंहिता
(iv) शतपथ ब्राह्मण
(v) ऐतरेय ब्राह्मण
(vi) महाभारत
(vii) रामायण
( viii) विष्णु पुराण
(8) वैष्‍ण तीर्थ इस प्रकार हैं:
(i) बद्रीधाम
(ii) मथुरा
(iii) अयोध्या
(iv) तिरुपति बालाजी
(v) श्रीनाथ
(vi) द्वारकाधीश

(9) वैष्‍णव संस्‍कार इस प्रकार हैं:

(i) वैष्णव मंदिर में विष्णु राम और कृष्ण की मूर्तियां होती हैं. एकेश्‍वरवाद के प्रति कट्टर नहीं हैं.
(ii) इसके संन्यासी सिर मुंडाकर चोटी रखते हैं.
(iii) इसके अनुयायी दशाकर्म के दौरान सिर मुंडाते वक्त चोटी रखते हैं.
(iv) ये सभी अनुष्ठान दिन में करते हैं.
(v) यह सात्विक मंत्रों को महत्व देते हैं.
(vi) जनेऊ धारण कर पितांबरी वस्त्र पहनते हैं और हाथ में कमंडल तथा दंडी रखते हैं.
(vii) वैष्णव सूर्य पर आधारित व्रत उपवास करते हैं.
(viii) वैष्णव दाह संस्कार की रीति हैं.
(ix) यह चंदन का तीलक खड़ा लगाते हैं.
(10) वैष्‍णव साधुओं को आचार्य, संत, स्‍वामी कहा जाता है.
प्रमुख सम्‍प्रदाय, संस्‍थापक और पुस्‍तक

प्रमुख सम्‍प्रदाय
संस्‍थापक
पुस्‍तक
बरकरी
नामदेव
-
श्रीवैष्‍णव
रामानुज
ब्रह्मासूत्र
परमार्थ
रामदास
दासबोध
रामभक्‍त
रामानंद
अध्‍यात्‍म रामायण


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