13.12.23

ब्राह्मणों से दान लेने का हक़ सिर्फ कायस्थों को ,कायस्थ जाती के बारे में पूरी जानकारी




मूलतः कायस्थों के ऋषि गोत्र ये हैं :-

कश्यप, वत्स, वशिष्ठ, शांडिल्य, हुलस, हर्षल, भारद्वाज, अत्रि।
हिन्दू मिताक्षरा के अनुसार सगोत्र की मान्यता सात पीढ़ी तक रहती है और ऋषियों का अवसान हुये कई हजार वर्ष बीत गये हैं तो अब यह सगोत्र नहीं माना जायेगा। ये सब ऋषि भी मूलतः बृह्मा व मनु से उत्पन्न हुये हैं उस दृष्टि से तो हम सब के पिता एक ही थे।
जहाँ तक विवाह संबंधों की बात है तो वहाँ ऋषि गोत्र जिसे कुल गोत्र भी कहा गया है,नहीं अपितु पिंड गोत्र या परिवार गोत्र जिसे हम अल्ल कहते हैं को मिलाया जाता है ताकि परिवार समूह में अंतर जान सकें और ऐक ही परिवार समूह में विवाह न हो जाये।
Kayastha कायस्थ , एक 'उच्च' श्रेणी की जाति है हिन्दुस्तान में रहने वाले सवर्ण हिन्दू हैं ।चित्रगुप्त वंशी क्षत्रियो को ही कायस्थ कहा जाता है। स्वामी वेवेकानंद ने अपनी जाती की व्याख्या कुछ इस प्रकार की है :-
एक बार स्वामी विवेकानन्द से भी एक सभा में उनसे उनकी जाति पूछी गयी थी। अपनी जाति अथवा वर्ण के बारे में बोलते हुए 
यदि मेरी जाति की गणना छोड़ दी जाये, तो भारत की वर्तमान सभ्यता का शेष क्या रहेगा ? अकेले बंगाल में ही मेरी जाति में सबसे बड़े कवि, सबसे बड़े इतिहास वेत्ता, सबसे बड़े दार्शनिक, सबसे बड़े लेखक और सबसे बड़े धर्म प्रचारक हुए हैं।मेरी ही जाति ने वर्तमान समय के सबसे बड़े वैज्ञानिक (जगदीश चंद्र बसु) से भारत वर्ष को विभूषित किया है।
’’स्मरण करो एक समय था जब आधे से अधिक भारत पर कायस्थों का शासन था।
कश्मीर में दुर्लभ बर्धन कायस्थ वंश, काबुल और पंजाब में जयपाल कायस्थ वंश, गुजरात में बल्लभी कायस्थ राजवंश, दक्षिण में चालुक्य कायस्थ राजवंश, उत्तर भारत में देवपाल गौड़ कायस्थ राजवंश तथा मध्य भारत में सतवाहन और परिहार कायस्थ राजवंश सत्ता में रहे हैं। हम सब उन राजवंशों की संतानें हैं.
हम बाबू बनने के लिए नहीं, हिन्दुस्तान पर प्रेम, ज्ञान और शौर्य से परिपूर्ण उस हिन्दू संस्कृति की स्थापना के लिए पैदा हुए हैं ।जिन्होंने हमें जन्म दिया है। यही वह ऐतिहासिक वर्ग है जो श्रीचित्रगुप्तजी का वंशज है। इसी वर्ग कि चर्चा सबसे पुराने पुराण और वेद करते हैं।
यह वर्ग 12 उप-वर्गो में विभजित किया गया है। यह 12 वर्ग श्रीचित्रगुप्तजी की पत्नियो देवी शोभावति और देवी नन्दिनी के 12 सुपुत्रो के वंश के आधार पर है। कायस्थो के इस वर्ग की उपस्थिती वर्ण व्यवस्था में उच्चतम है। .
ऐसे समय इस बात का ज्ञान कर लेना चाहिये कि क्या बात "चित्रंशी या चित्रगुप्तवंशी कायस्थ" की हो रही है या अन्य किसी वर्ग की। पौराणिक उत्पत्त्ति कायस्थों का स्त्रोत भग्गवान श्री चित्रगुप्तजी महाराज को माना जाता है |कहा जाता है कि ब्रह्मा ने चार वर्ण बनाये ( ब्राह्मण , क्षत्रीय, वैश्य, शूद्र) तब यमराज ने उनसे मानवों का विवरण रखने मे सहायता मांगी।
फिर ब्रह्मा 11००० वर्षों के लिये ध्यानसाधना मे लीन हो गये और जब उन्होने आँखे खोली तो एक पुरुष को अपने सामने कलम, दवात-स्याही, पुस्तक तथा कमर मे तलवार बाँधे पाया। तब ब्रह्मा जी ने कहा कि "हे पुरुष! क्योकि तुम मेरी काया से उत्पन्न हुए हो, इसलिये तुम्हारी संतानो को कायस्थ कहा जाएगा। और जैसा कि तुम मेरे चित्र (शरीर) मे गुप्त (विलीन) थे इसलिये तुम्हे चित्रगुप्त कहा जाएगा " श्री चित्रगुप्त जी को महाशक्तिमान क्षत्रीय के नाम से सम्बोधित किया गया है.
गरुण पुराण मे चित्रगुप्त को कहा गया हैः पद्म पुराण के अनुसार श्री चित्रगुप्तजी महाराज के परिवार हैं | श्री चित्रगुप्त जी के दो विवाह हुये,
पहली पत्नी सूर्यदक्षिणा / नंदिनी जो सूर्य के पुत्र श्राद्धदेव की कन्या थी, इनसे 4 पुत्र हुए।
दूसरी पत्नी ऐरावती / शोभावति धर्मशर्मा (नागवन्शी क्षत्रिय) की कन्या थी, इनसे 8 पुत्र हुए।
कायस्थ की 12 शाखाएं हैं - श्रीवास्तव, सूर्यध्वज, वाल्मीक, अष्ठाना, माथुर, गौड़, भटनागर, सक्सेना, अम्बष्ठ, निगम, कर्ण, कुलश्रेष्ठ |
इन बारह पुत्रों का वृतांत अहिल्या, कामधेनु, धर्मशास्त्र एवं पुराणों में भी दिया गया है | श्री चित्रगुप्तजी महाराज के बारह पुत्रों का विवाह नागराज बासुकी की बारह कन्याओं से सम्पन्न हुआ, जिससे कि कायस्थों की ननिहाल नागवंश मानी जाती है और नागपंचमी के दिन नाग पूजा की जाती है | माता नंदिनी के चार पुत्र काश्मीर के आस -पास जाकर बसे तथा ऐरावती / शोभावति के आठ पुत्र गौड़ देश के आसपास बिहार, उड़ीसा, तथा बंगाल में जा बसे |
बंगाल उस समय गौड़ देश कहलाता था ।
पदम पुराण में इसका उल्लेख किया गया है | माता सूर्यदक्षिणा / नंदिनी के पुत्रों का विवरण -

1 - भानु (श्रीवास्तव) -

 श्री भानु माता नंदिनी के जेष्ठ पुत्र थे | उनका राशि नाम धर्मध्वज था | श्री भानु मथुरा में जाकर बसे | इसलिये भानु परिवार वाले माथुर कायस्थ कहलाने के साथ - साथ सूर्यवंशी भी कहलाये |

2 - विभानु (सूर्यध्वज) - 

भटनागर उत्तर भारत में प्रयुक्त होने वाला एक जातिनाम है, जो कि हिन्दुओं की कायस्थ जाति में आते है। इनका प्रादुर्भाव यमराज, मृत्यु के देवता, के पाप पुण्य के अभिलेखक, श्री चित्रगुप्त जी की प्रथम पत्नी दक्षिणा नंदिनी के द्वितीय पुत्र विभानु के वंश से हुआ है। उनकी राशि का नाम श्यामसुंदर था | विभानु को चित्राक्ष नाम से भी जाना जाता है। महाराज चित्रगुप्त ने इन्हें भट्ट देश में मालवा क्षेत्र में भट नदी के पास भेजा था। इन्होंने वहां चित्तौर और चित्रकूट बसाये। ये वहीं बस गये और इनका वंश भटनागर कहलाया। इनका वास स्थान भारत के वर्तमान पंजाब प्रदेश में भट्ट प्रदेश था। इनकी पत्नी का नाम मालिनी था। उपासना देवी- जयन्ती

3 - विश्वभानु (बाल्मीकि) -

 श्री विश्वभानु माता नंदिनी के तृतिय पुत्र थे | उनका राशि नाम दीनदयाल था | श्री विश्वभानु का परिवार गंगा - यमुना दोआब, जिसको प्राचीन काल में साकब द्वीप कहते थे, में जाकर बसे | इसलिये विश्वभानु परिवार वाले सक्सेना कायस्थ कहलाने के साथ - साथ सूर्यवंशी भी कहलाये |

4 - वीर्यभानू (अष्ठाना) - 

श्री वीर्यभानू माता नंदिनी के सबसे छोटे पुत्र थे | उनका राशि नाम माधवराव था | श्री वीर्यभानू का परिवार बांस देश (काश्मीर), में जाकर बसे | इसलिये वीर्यभानू परिवार वाले श्रीवास्तव कायस्थ कहलाने के साथ - साथ सूर्यवंशी भी कहलाये |
माता ऐरावती / शोभावति के पुत्रों का विवरण

1- चारु (माथुर) -

 श्री चारु माता ऐरावती / शोभावति के जेष्ठ पुत्र थे | उनका राशि नाम पुरांधर था | श्री चारु का परिवार सूर्यदेश (बिहार) देश, में जाकर बसे और उनके राष्ट्रध्वज का चिन्ह सूर्य होने के कारण सूर्यध्वज कहलाये |

2- सुचारु (गौड़) -

 श्री सुचारु माताऐरावती / शोभावति के द्वितीय पुत्र थे | उनका राशि नाम सारंगधार था | श्री सुचारु का परिवार पश्चिम बंगाल के अम्बष्ठ जनपद, में जाकर बसे इस कारण अम्बष्ठ कहलाये |

3- चित्र (चित्राख्य) (भटनागर) -

 श्री चित्र माता ऐरावती / शोभावति के तृतीय पुत्र थे | उनका राशि नाम सारंगधार था | श्री चित्र का परिवार गौड़ देश (बंगाल), में जाकर बसे इस कारण गौड़ कहलाये |

4- मतिभान (हस्तीवर्ण) (सक्सेना) - 

निगम उत्तर भारतीय कायस्थ होते हैं। श्री मतिभान (हस्तीवर्ण) माता ऐरावती / शोभावति के चौथे पुत्र थे | उनका राशि नाम रामदयाल था | श्री मतिभान (हस्तीवर्ण) का परिवार निगम देश (काशी), में जाकर बसे इस कारण निगम कहलाये|

5- हिमवान (हिमवर्ण) अम्बष्ठ - 

श्री हिमवान (हिमवर्ण) माता ऐरावती / शोभावति के पाँचवें पुत्र थे | उनका राशि नाम सारंधार था | श्री हिमवान (हिमवर्ण) का परिवार गौड़ देश (बिहार), में प्राचीन करनाली नामक ग्राम में जाकर बसे इस कारण कर्ण कहलाये |

6- चित्रचारु (निगम) - 

श्री चित्रचारु माता ऐरावती / शोभावति के छटवें पुत्र थे | उनका राशि नाम सुमंत था | श्री चित्रचारु का परिवार अष्ठाना देश (छोटा नागपुर), जो नागदेश से भी प्रसिद्ध है में जाकर बसे इस कारण अष्ठाना कहलाये |

7- चित्रचरण (कर्ण)- 

श्री चित्रचरण माता ऐरावती / शोभावति के सातवें पुत्र थे | उनका राशि नाम दामोदर था | श्री चित्रचरण का परिवार बंगाल में नदिया जो बंगाल की खाडी के ऊपर स्थित है, में जाकर बसे | सेवा की भावना के कारण अपने कायस्थ कुल में श्रेष्ठ माने गये इस कारण कुलश्रेष्ठ कहलाये |

8- अतिन्द्रिय (जितेंद्रय) (कुलश्रेष्ठ) -

 श्री अतिन्द्रिय (जितेंद्रय) माता ऐरावती / शोभावति के सबसे छोटे पुत्र थे | उनका राशि नाम सदानंद था | श्री अतिन्द्रिय (जितेंद्रय) का परिवार बाल्मीकि देश (पुराना मध्य भारत), में जाकर बसे इस कारण बाल्मीकि कायस्थ कहलाये |
भाई दूज के दिन कलम-दवात पूजा (कलम, स्याही और तलवार पूजा) करते हैं, जिसमें पेन, कागज और पुस्तकों की पूजा होती है। यह वह दिन है जब भगवान श्रीचित्रगुप्त का उदभव ब्रह्माजी केद्वारा हुआ था और यमराज अपने कर्तव्यों से मुक्त हो, अपनी बहन देवी यमुना से मिलने गये, इसलिए इस दिन पूरी दुनिया भैयादूज मनाती है ।

ब्राह्मणों से दान लेने का हक़ सिर्फ कायस्थों को

ब्राह्मणों को हर जाति से दान लेने का अधिकार है लेकिन कायस्थ है कि उन्हे ब्राह्मणों से दान लेने का अधिकार है ।यह बात सुनने में अजीब जरूर लगती है लेकिन किदवंती के अनुसार यह सत्य है । कायस्थों को ब्राह्मणों से दान लेने का अधिकार क्यूं है , पढिये ।

जब भगवान राम के राजतिलक में निमंत्रण छुट जाने से नाराज भगवान् चित्रगुप्त ने रख दी थी कलम ,उस समय परेवा काल शुरू हो चुका था । परेवा के दिन कायस्थ समाज कलम का प्रयोग नहीं करते हैं यानी किसी भी तरह का का हिसाब - किताब नही करते है आखिर ऐसा क्यूँ है ?कि पूरी दुनिया में कायस्थ समाज के लोग दीपावली के दिन पूजन के बाद कलम रख देते है और फिर यमदुतिया के दिन कलम- दवात के पूजन के बाद ही उसे उठाते है I

कायस्थ के देवता कौन है?

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार कायस्थ जाति को उत्पन्न करनेवाले भगवान चित्रगुप्त का जन्म यम द्वितीया के दिन हुआ। इसी दिन कायस्थ जाति के लोग अपने घरों में भगवान चित्रगुप्त की पूजा करते हैं। उन्हें मानने वाले इस दिन कलम और दवात का इस्तेमाल नहीं करते

कायस्थ इतने बुद्धिमान क्यों होते हैं?

चित्रगुप्त जी महाराज यमराज के यहाँ भविष्यवाणी लिखा करते थे। जैसे राजपूत हथियारों की पूजा करते हैं ठीक वैसे ही कायस्थ कलम और दवात की पूजा करता है। पढ़ना और पढ़ाना उसके खून में है। यही कारण है कि कुशाग्र बुद्धि होने के कारण कायस्थ हर क्षेत्र में श्रेष्ठ साबित होते हैं


कायस्थ कितने प्रकार के होते हैं?

कायस्थ जाति 12 उपजातियों में विभाजित है। कायस्थ के उपविभाजन:- उत्तर भारत के चित्रगुप्त कायस्थ, महाराष्ट्र के प्रभु कायस्थ, दक्षिण भारत के कर्णम/करुणीगर (कायस्थ), उड़ीसा के करण (कायस्थ), बंगाल के बंगाली कायस्थ और असम के कलितस (कायस्थ)

श्रीवास्तव कौन सी जाति के होते हैं?

श्रीवास्तव, चित्रगुप्तवंशी कायस्थ के बारह उप-कुलों में से एक हैं, जो परंपरागत रूप से शासन, प्रशासन और सैन्य सेवाओं में शामिल थे। भारतीय उपमहाद्वीप में वैदिक काल , मध्यकालीन हिंदू और इस्लामी साम्राज्यों के दौरान इस कुल के लोग प्रभावशाली थे, तथा लाला और कायस्थ जैसे शीर्षक अर्जित करते थे।

श्रीवास्तव को हिंदी में क्या कहते हैं?

आपको बता दें कि श्रीवास्तव नाम का अर्थ भगवान विष्णु, धन के धाम होता है। भगवान विष्णु, धन के धाम हो 

कायस्थ क्या काम करते हैं?

कायस्थ। विशेष— कायस्थ जाति के लोग प्रायः लिखने पढ़ने तथा युध्द करने का काम करते है और ये लोग उच्च कोटि के संत पुरुष राजा महाराजा व चक्रवर्ती सम्राट होते हैं और ये लोग प्रायः सारे भारतवर्ष में पाए जाते हैं।

कायस्थ समाज की उत्पत्ति कैसे हुई?

चित्रगुप्त जी का जन्म ब्रह्माजी के अंश से हुआ है. वह उनकी काया से उत्पन्न हुए थे, इसलिए कायस्थ कहलाए. इसी तरह उनकी संतानों के जरिए जो वंश आगे बढ़ा और जो जाति बनी वह कायस्थ कहलाई. चित्रगुप्त जी की जन्म कथा भी अद्भुत है

कायस्थ में कितने उपनाम होते हैं?

आज, केवल चार कुलिन परिवार हैं - बोस, घोष (हालांकि आमतौर पर सदगोप-मिल्कमैन समुदाय द्वारा उपयोग किया जाता है), मित्रा, गुहा। मौलिक कायस्थ के अनेक उपनाम हैं, जिनमें से कुछ हैं- दत्ता, चंद्रा, दास (कुछ), पाल, गेन, पुरकायस्थ, विश्वास, कर, सेन, गुहा-ठाकुरता, सोम, पालित, डे, मल आदि







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