इज़रायल दक्षिण पश्चिम एशिया का एक स्वतंत्र यहूदी राज्य है, जो 14 मई 1948 ई. को पैलेस्टाइन से ब्रिटिश सत्ता के समाप्त होने पर बना। यह राज्य रूम सागर के पूर्वी तट पर स्थित है।
खून से सना है दशकों पुराना इतिहास
इजरायल और फिलिस्तीन के बीच इस संघर्ष की शुरुआत प्रथम विश्व युद्ध के समय हुई थी. ओटोमन यानी उस्मानी साम्राज्य की हार के बाद ब्रिटेन ने फिलिस्तीन पर कब्जा हासिल कर लिया था. फिलिस्तीन में यहूदी, अल्पसंख्यक थे, जबकि अरब बहुसंख्यक थे. अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने ब्रिटेन को फिलिस्तीन में यहूदी मदरलैंड बनाने का काम सौंपा था.
ब्रिटिश शासन ने बाल्फोर घोषणा की जिसमें फिलिस्तीन में 'यहूदियों के लिए एक अलग राज्य' बनाने के लिए अपना समर्थन देने का संकेत दिया. इसमें कहा गया, 'ऐसा कुछ भी नहीं किया जाएगा जो यहां मौजूद गैर-यहूदी समुदायों के नागरिक और धार्मिक अधिकारों के खिलाफ हो'.
1922 से 1947 तक पूर्वी और मध्य यूरोप से यहूदियों का पलायन बढ़ गया क्योंकि युद्ध और फिर द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान यहूदियों को उत्पीड़न और अत्याचारों का सामना करना पड़ा. फिलिस्तीन के लोग शुरू से ही यहूदियों को बसाने के खिलाफ थे. 1929 में हेब्रोन नरसंहार में बहुत सारे यहूदी मारे गए थे, ये दंगा यहूदियों के बसने के खिलाफ हुए फिलिस्तीनी दंगों का एक हिस्सा था.
फिलिस्तीन में जैसे-जैसे यहूदी बढ़ते गए कई फिलिस्तीनी विस्थापित होते गए और यहीं से दोनों के बीच हिंसा और संघर्ष की शुरुआत हुई. 1947 में संयुक्त राष्ट्र ने फिलिस्तीन को यहूदी और अरबों के लिए दो अलग-अलग राष्ट्र में बांटने का प्रस्ताव पास किया. यहूदी नेतृत्व ने इस पर हामी भरी, लेकिन अरब पक्ष ने इसे अस्वीकार कर दिया.
इजरायल बनते ही संघर्ष शुरू
ब्रिटिश शासन, दोनों के बीच संघर्ष खत्म करने में नाकाम रहा और पीछे हट गया. इधर यहूदी नेतृत्व ने इजरायल की स्थापना की घोषणा कर दी. संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) ने तत्कालीन फिलिस्तीन को 'स्वतंत्र अरब और यहूदी राज्यों' में विभाजित करने का जो प्रस्ताव पारित किया, उसे अरब नेताओं ने खारिज कर दिया था.
14 मई 1948 को यहूदी नेतृत्व ने एक नए राष्ट्र की स्थापना की घोषणा की और इस तरह इजरायल अस्तित्व में आया. इसी साल कई अरब देशों ने इजरायल पर हमला बोल दिया. इस लड़ाई में फिलिस्तीनी लड़ाकों ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया. इस जंग में यहूदी भारी पड़े. इजरायली सुरक्षाबलों ने 7.5 लाख फिलिस्तीनियों को इलाके से खदेड़ दिया और उन्हें पड़ोसी देशों में शरण लेने को मजबूर होना पड़ा.
युद्ध अगले साल शांत हुआ और संयुक्त राष्ट्र की ओर से आवंटित क्षेत्र का ज्यादातर हिस्सा फिलिस्तीनियों ने गंवा दिया. इजरायल के यहूदियों ने इसे 'स्वतंत्रता संग्राम' कहा, जबकि फिलिस्तीनियों ने इसे 'द कैटास्ट्रोफ' या 'अल-नकबा' (तबाही) कहा.
संघर्ष के केंद्र में येरुशलम क्यों?
1948 की जंग में फिलिस्तीन का काफी सारा हिस्सा इजरायल के कब्जे में आ चुका था. 1949 में एक आर्मीस्टाइस लाइन खींची गई, जिसमें फिलिस्तीन के 2 क्षेत्र बने- वेस्ट बैंक और गाजा. गाजा को गाजा पट्टी भी कहा जाता है और यहां करीब 20 लाख फिलिस्तीनी रहते हैं. वहीं वेस्ट बैंक इजराइल के पूर्व में स्थित है, जहां करीब 30 लाख फिलिस्तीनी रहते हैं. इनमें से ज्यादातर मुस्लिम, अरब हैं. वेस्ट बैंक में कई यहूदी पवित्र स्थल हैं, जहां हर साल हजारों तीर्थयात्री आते हैं.
येरुशलम विवादित क्षेत्रों के केंद्र में है, जिसको लेकर दोनों देशों के बीच शुरू से ही ठनी हुई है. इजरायली यहूदी और फिलिस्तीनी अरब, दोनों की पहचान, संस्कृति और इतिहास येरुशलम से जुड़ी हुई है. दोनों ही इस पर अपना दावा करते हैं.
यहां की अल-अक्सा मस्जिद, जिसे यूनेस्को ने विश्व धरोहर घोषित कर रखा है, दोनों के लिए बेहद अहम और पवित्र है. इस पवित्र स्थल को यहूदी 'टेंपल माउंट' बताते हैं, जबकि मुसलमानों के लिए ये ‘अल-हराम अल शरीफ’ है. यहां मौजूद ‘डोम ऑफ द रॉक’ को यहूदी धर्म में सबसे पवित्र धर्म स्थल कहा गया है, लेकिन इससे पैगंबर मोहम्मद का जुड़ाव होने के कारण मुसलमान भी इसे उतना ही अपना मानते हैं.
इस परिसर का मैनेजमेंट जॉर्डन का वक्फ करता है, लेकिन सुरक्षा इंतजामों पर इजरायल का अधिकार है. अल-अक्सा मस्जिद परिसर को लेकर लंबे समय से दोनों देशों के बीच विवाद होता आ रहा है. दो साल पहले 2021 में 11 दिनों तक खूनी संघर्ष हुआ था, जिसमें कई जानें गई थींं.
यहां मुस्लिम नमाज पढ़ सकते हैं लेकिन गैर-मुस्लिमों को यहां केवल एंट्री मिलती है लेकिन इबादत करने पर पाबंदी लगी है. पिछले दिनों यहूदी फसल उत्सव 'सुक्कोट' के दौरान यहूदियों और इजरायली कार्यकर्ताओं ने यहां का दौरा किया था तो हमास ने इसकी निंदा की थी. हमास का आरोप था कि यहूदियों ने यथास्थिति समझौते का उल्लंघन कर यहां प्रार्थना की
क्या है हमास, आखिर चाहता क्या है?
1970 के दशक में फिलिस्तीन ने अपने हक के लिए आवाजें उठानी शुरू की. यासिर अराफात की अगुवाई वाले 'फतह' जैसे संगठनों ने फिलिस्तीनी लिबरेशन ऑर्गनाइजेशन (PLO) बनाकर इसका नेतृत्व किया. इजरायल पर हमले भी किए. करीब 2 दशक तक रह-रह कर लड़ाइयां चलती रहीं. 1993 में PLO और इजरायल के बीच ओस्लो शांति समझौता हुआ. दोनों ने एक-दूसरे से शांति का वादा किया.
इस बीच 1987 में फिलिस्तीनी विद्रोह के दौरान हमास यानी हरकत अल-मुकावामा अल-इस्लामिया का उभार हुआ. इसकी स्थापना की, शेख अहमद यासीन ने, जो 12 साल की उम्र से ही व्हील चेयर पर रहा. एक साल बाद हमास ने अपना चार्टर पब्लिश किया, जिसमें इजरायल को मिटाकर फिलिस्तीन में एक इस्लामी समाज की स्थापना की कसम खाई.
इजरायल और फतह के बीच हुए ओस्लो शांति समझौते की हमास ने निंदा की. 1997 में अमेरिका ने हमास को आतंकी संगठन घोषित कर दिया, जिसे ब्रिटेन और अन्य देशों ने भी स्वीकृति दी. 2000 के दशक की शुरुआत में दूसरे इंतिफादा (विद्रोह) के दौरान हमास का आंदोलन हिंसक होता चला गया.
2005 में गाजापट्टी पर इजरायल के अधिकार छोड़ने के बाद हमास ने उस पर कब्जा कर लिया. 15 सदस्यों वाले पोलित ब्यूरो के माध्यम से संचालित होने वाले हमास के मुखिया अभी इस्माइल हानियेह है. बताया जाता है कि वे कतर की राजधानी दोहा से इसकी कमान संभालते हैं. इसके मिलिट्री विंग की कमान मारवान इसा और मोहम्मद दईफ के पास है.
फंडिंग की बात करें तो ईरान इस वक्त हमास का सबसे बड़ा मददगार है, जिस पर हर साल करीब 100 मिलियन डॉलर की मदद करने के आरोप लगते हैं.
ताजा संघर्ष के लिए ईरान पर हमास को उकसाने के आरोप लग रहे हैं. ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के अनुसार ईरान में हुई कई बैठकों के बाद हमास ने इजरायल पर हमला किया.
इजरायल को खत्म कर हमास नया फिलिस्तीन बनाना चाहता है. वो पूरे इलाके को फिलीस्तीन घोषित कर यहां इस्लामी साम्राज्य की स्थापना करना चाहता है.
दूसरी ओर इजरायल ने हमले के बाद हमास को पूरी तरह खत्म करने का संकल्प लिया है. संयुक्त सशस्त्र सेना इजरायल रक्षा बल (IDF) के जवान जवाबी कार्रवाई में लगे हैं.
अब आगे क्या होगा?
इजरायल और फिलिस्तीनी चरमपंथी संगठन हमास के बीच छिड़े युद्ध में केवल एक ही विजेता होगा. ये न तो इजरायल होगा और न ही हमास! पढ़ते हुए अजीब लग रहा है, लेकिन एक्सपर्ट्स का यही मानना है.
कुछ एक्सपर्ट्स का कहना है कि इजरायल पर अचानक हुए हमले में ईरान का हाथ हो सकता है. ईरान के नेताओं ने हमले पर प्रोत्साहन और समर्थन के साथ प्रतिक्रिया भी व्यक्त की है. उनका दावा है कि हालिया जंग के पीछे ईरान है और वो अपने मंसूबे में कामयाब होता दिख रहा है.
डेनवर यूनिवर्सिटी के कोरबेल स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज में रिसर्चर एरोन पिलकिंगटन ने अपने आर्टिकल में लिखा है, 'मध्य पूर्व की राजनीति और सुरक्षा के एक विश्लेषक के रूप में, मेरा मानना है कि दोनों पक्षों के हजारों लोग पीड़ित होंगे. लेकिन जब धुआं शांत हो जाएगा, तो केवल एक ही देश के हित पूरे होंगे और वो देश है ईरान.'
युद्ध के कम से कम तीन संभावित परिणाम हैं और सभी ईरान के पक्ष में हैं. पहला- इजरायल की कठोर प्रतिक्रिया सऊदी अरब और अन्य अरब देशों को अमेरिका समर्थित प्रयासों से अलग कर सकती है.
दूसरा- अगर इजरायल खतरे को खत्म करने के लिए गाजा में आगे बढ़ना जरूरी समझता है, तो इससे पूर्वी यरुशलम या वेस्ट बैंक में एक और फिलिस्तीनी विद्रोह भड़क सकता है, जिससे इजरायल में अस्थिरता बढ़ेगी.
आखिरी संभावना ये कि इजरायल अपने उद्देश्यों को कम ताकत के साथ भी हासिल कर सकता है. वो तनाव बढ़ने की संभावना काे कम कर सकता है. लेकिन इसकी संभावना नहीं है.
दो पक्षों में बंटी दुनिया
ईरान और यमन ने हमास के हमले का खुले तौर पर समर्थन किया है. वहीं दूसरी ओर भारत, अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, इटली, जापान जैसे देश इजरायल के समर्थन में खड़े हैं. वहीं यूरोपियन यूनियन ने भी कहा कि इजरायल को अपनी संप्रभुता की रक्षा का अधिकार है.
संयुक्त राष्ट्र, सऊदी अरब, ब्राजील और चीन ने दोनों पक्षों से शांति की अपील की है. दक्षिण अफ्रीका और रूस ने तत्काल युद्धविराम का आह्वान किया है. वहीं तुर्की ने भी दोनों पक्षों से तनाव कम करने की अपील की है.
इजराइल इतना शक्तिशाली क्यों है?
इजराइल की सैन्य ताकत का कारण कई हैं, जिनमें से कुछ में इसकी सैन्य नीतियां, हथियार, संगठन और अमेरिका से मिलने वाला समर्थन शामिल हैं. इजराइल अपने सैनिकों की ट्रेनिंग और उनके हथियारों को अपग्रेड करने पर भी काफी खर्च करता है. यही कारण है कि इजराइल को मध्य पूर्व में सबसे मजबूत देश बनाते हैं. इजराइल रक्षा इतिहास में सबसे एडवांस हथियारों का दावा करता है. इसकी मिसाइल प्रोटेक्शन सिस्टम मिसाइल हमलों को रोकने के लिए बहुत अधिक कारगर है. सिस्टम का एक प्रमुख हिस्सा आयरन डोम है, जिसे 2011 में इजराइलियों द्वारा बनाया गया था और इसने इजराइली बस्तियों पर दागे गए लगभग 90 प्रतिशत रॉकेटों को रोक दिया था.
इन सिस्टम के आगे हर देश टेकते हैं घुटने
आयरन डोम मध्य पूर्व में बेजोड़ है. इसे दोहराने की तकनीक किसी भी देश के पास नहीं है. इससे भी अच्छी बात यह है कि मध्य पूर्व का कोई भी देश अब तक इस पर काबू नहीं पा सका है. हालांकि इजराइल अपने दुश्मनों से घिरा हुआ है, फिर भी आयरन डोम की बदौलत वे सुरक्षित हैं. उनकी मिसाइल प्रोटेक्शन सिस्टम एरो मिसाइलों से भी सुसज्जित है जो वायुमंडल में आने वाली दुश्मन के रॉकेटों को रोक सकती है. एमआईएम-104 पैट्रियट और डेविड स्लिंग मिसाइलें दुश्मन के सभी प्रकार के विमानों और रॉकेटों को रोकने की क्षमता रखती हैं. ये मिसाइलें सुनिश्चित करती हैं कि इजराइल का हवाई क्षेत्र विदेशी आक्रमणों से अच्छी तरह सुरक्षित है. मिसाइल प्रोटेक्शन सिस्टम बड़ी इजराइली वायु सेना का हिस्सा है, जो इजराइल की ताकत की रीढ़ है.
आजादी के 24 घंटों के अंदर ही लड़नी पड़ी थी अरब देशों से जंग
यह वही इजराइल देश है, जिसने आजादी के 24 घंटे के भीतर पड़ोसी अरब देशों से जंग लड़ी थी. आपको जानकर हैरानी होगी कि एक तरफ इस देश के नागरिक आजादी का जश्न मना रहे थे तो वहीं दूसरी ओर उसकी सेना जंग लड़ रही थी. यह बात 1948 की है. इजराइल के लिए यह तब काफी कठिन समय था क्योंकि उसके पास उतनी सुविधाएं और एडवांस टेक्नोलॉजी नहीं थी. आज के समय में उसके पास कुछ ऐसे हथियार हैं, जिससे अमेरिका को भी डर लगता है. 1 साल तक चली इस युद्ध में आखिरकार इजराइल की जीत हुई. अरब देशों की सेनाओं ने हार मान ली.
साहित्य मनीषी डॉ.दयाराम आलोक के सामाजिक ,साहित्यिक कार्य सुनिए इस लिंक में
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