23.6.21

जाट जाति की उत्पत्ति का इतिहास:Jat jati ka itihas





जाट जाति वर्तमान समय की सबसे प्रतिष्ठित जातियों में से एक मानी जाती है। जाट क्षत्रिय समुदाय के अभिन्न अंग माने जाते हैं, इनका विस्तार भारत में मुख्यत: "पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, गुजरात आदि भारत के पठार इलाकों मैं है।
 पंजाब में जट्ट (Jatt) एवं अन्य राज्यों में इन्हें जाट (Jaat) नाम से संबोधित किया जाता है। जाट समाज के लोग आज के आधुनिक युग में  भी अपनी पुरानी परंपराओं से जुड़े हुए हैं, इस जाति की सामाजिक संरचना बेजोड़ है। जाट समाज की गोत्र और खाप  व्यवस्था प्राचीन समय की मानी जाती है।
जाट समाज की उत्पत्ति के विषय में कई मान्यताएं हैं  एक प्राचीन मान्यता के अनुसार कहा जाता है कि राजसूय यज्ञ के बाद युधिष्ठिर को 'जेष्ठ' कहा गया और बाद में युधिष्ठिर की संतान को 'जेठर' शब्द से संबोधित किया जाने लगा, जैसे जैसे समय बीतता गया 'जेठर'  को कालांतर मे जाट नाम से संबोधित किया जाने लगा। इस मान्यता के अनुसार जाट समाज की उत्पत्ति युधिष्ठिर से मानी जाती है।
  इसके अलावा एक पौराणिक कथा के अनुसार भगवान शिव शंकर से जाट समुदाय की उत्पत्ति को जोड़कर देखा जाता है, इस मान्यता के पीछे एक दिलचस्प कहानी है, यह कहानी 'देवसंहिता' नामक पुस्तक में उल्लेखित है। इस कहानी के अनुसार शिव के ससुर राजा दक्ष ने हरिद्वार के पास 'कनखल' में एक यज्ञ का आयोजन किया था। इस यज्ञ में सभी देवी देवताओं को बुलाया गया लेकिन भगवान शिव और शिव की पत्नी 'सती' को कोई निमंत्रण प्राप्त नहीं हुआ।
 जब सती को पिता के द्वारा यज्ञ के बारे में खबर प्राप्त हुई तो शिव से अपने पिता के यज्ञ कार्यक्रम में जाने की आज्ञा मांगी। शिव ने उन्हें यह कहकर आज्ञा दे दी कि - "तुम उनकी पुत्री हो और तुम्हे अपने घर बिना निमंत्रण के भी जा सकती हो" शिव से अनुमति लेकर सती अपने पिता के द्वारा आयोजित यज्ञ कार्यक्रम में जा पहुंची, लेकिन वहां सती को अपमानित किया गया एवं शिव के बारे में भी बुरा भला कहा गया। इसी बात पर क्रोधित होकर सती ने हवन कुंड में कूदकर आत्मदाह कर लिया।
 जब इस बात का पता भगवान शिव को चला तो वह क्रोधित हो उठे और अपनी जटाओं से वीरभद्र नामक गण उत्पन्न किया | वीरभद्र यज्ञ आयोजित किए जाने वाले स्थान पर जाकर नरसंहार करता है, तथा शिव के ससुर दक्ष का सर काट देता है। इस नरसंहार को रोकने के लिए भगवान विष्णु, ब्रह्मा और सभी देवी देवता शिव से राजा दक्ष को माफ करने की याचना करते हैं। सभी देवी देवताओं की विनती के बाद भगवान शिव शांत हो जाते हैं और राजा दक्ष को पुनर्जीवित कर देते हैं।
इस कथा के अंतर्गत जो  वीरभद्र नामक किरदार है, उसे जाट समाज का पूर्वज माना जाता है।  
 जाट भारत की पुरानी जातियों में से एक है, विभिन्न इतिहासकारों का जाटो की उत्पत्ति की लेकर अलग-अलग मत है। कई इतिहासकारों का मानना है कि जाट शब्द की उत्पति महाराज युधिष्ठिर से हुई, उन्हें श्री कृष्ण द्वारा ज्येष्ठ से सम्बोधित किया गया, उन्हीं के वंशज ज्येष्ठ और फिर अपभ्रंश से जाट कहलाये।
  जाटों ने कभी ब्राह्मणवाद को स्वीकार नहीं किया। जाट समाज के लोग अपने पूर्वजों की पूजा करते हैं, जिसे भंडारा कहा जाता है। इस जाति के लोग भगवान कृष्ण को अपना पूर्वज मानते हैं, लेकिन इस बात का प्रमाण किसी भी ग्रंथ में देखने को नहीं मिलता है। लेकिन मुख्यत: मूल रूप से इस जाति के लोग भारतीय हैं।
 जाटों की वर्तमान स्थिति  पहले से बेहतर है, ज्यादातर जाट मुख्य रूप से खेती करते हैं। इस जाति के लोग मुख्य रूप से ग्रामीण इलाकों में रहते हैं।  जाट समाज के लोगों की आर्थिक Growth Rate अन्य जातियों के मुकाबले बेहतर है।
जाटों की जनसंख्या 21वीं सदी के पूर्वार्द्ध में, पंजाब की कुल जनसंख्या का 20 प्रतिशत जाट थी, लगभग 10 प्रतिशत जनसंख्या ब्लोचिस्तान, राजस्थान और दिल्ली तथा 2 से 5 प्रतिशत जनसंख्या सिन्ध, उत्तर-पश्चिम सीमान्त और उत्तर प्रदेश में रहती थी। पाकिस्तान के 40 लाख जाट मुस्लिम हैं; भारत के लगभग 60 लाख जाट दो अलग जातियों के रूप में विभाजित हैं: एक सिख जो मुख्यतः पंजाब केन्द्रित हैं तथा अन्य हिन्दू हैं।
इतिहास के महान जाट
महाराजा रणजीत सिंह
महाराजा सूरजमल
तेजाजी
महाराजा जवाहर सिंह
  जाति इतिहासविद  डॉ . दयाराम आलोक के मतानुसार 17वीं शताब्दी के अंत और 18वीं शताब्दी के प्रारंभ में जाटों ने मुगल साम्राज्य के खिलाफ हथियार उठाए| हिंदू जाट राज्य महाराजा सूरजमल के अधीन अपने चरम पर पहुंच गया 20वीं शताब्दी तक पंजाब पश्चिम उत्तर प्रदेश राजस्थान हरियाणा और दिल्ली सहित उत्तर भारत के कई हिस्सों में जमींदार जाट एक प्रभावशाली समूह बन गए इन वर्षों में कई जाटों ने शहरी नौकरियों के पक्ष में कृषि को छोड़ दिया और उच्च सामाजिक स्थिति का दावा करने के लिए अपनी प्रमुख आर्थिक और राजनीतिक स्थिति का उपयोग किया

आजादी में योगदान और जाट -

कई इतिहासकार 1857 की क्रांति को स्वतंत्रता संग्राम नहीं मानते हैं। वीर सावरकर ने 1857 की क्रांति को प्रथम स्वतंत्रता संग्राम मानते हुए पुस्तक लिखी जिसमें लिखा कि क्रांति की शुरुआत 10 मई को मेरठ से शुरु हुई, किन्तु जाट बाहुल्य इस क्षेत्र के जाटो का नाम नहीं लिखे जाने से स्वतंत्रता संग्राम में अपनी मजबूती खो बैठे। क्रांति महज रानी लक्ष्मी बाई, तात्या टोपे, टीपू सुल्तान के इर्द-गिर्द घूमती रहीं तो वही मेरठ से महज मंगल पांडे के इर्द-गिर्द ही रह गई|
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