जाट जाति वर्तमान समय की सबसे प्रतिष्ठित जातियों में से एक मानी जाती है। जाट क्षत्रिय समुदाय के अभिन्न अंग माने जाते हैं, इनका विस्तार भारत में मुख्यत: "पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, गुजरात आदि भारत के पठार इलाकों मैं है।
पंजाब में जट्ट (Jatt) एवं अन्य राज्यों में इन्हें जाट (Jaat) नाम से संबोधित किया जाता है। जाट समाज के लोग आज के आधुनिक युग में अपनी पुरानी परंपराओं से जुड़े हुए हैं, इस जाति की सामाजिक संरचना बेजोड़ है। जाट समाज की गोत्र और खाफ व्यवस्था प्राचीन समय की मानी जाती है।
जाट समाज की उत्पत्ति के विषय में कई मान्यताएं हैं इस विषय में अलग-अलग इतिहासकारों के अलग-अलग मत हैं, कुछ इतिहासकारों के अनुसार जाट शब्द की उत्पत्ति 'जेष्ठ' शब्द हुई हैं। प्राचीन मान्यताओं के अनुसार कहा जाता है कि राजसूय यज्ञ के बाद युधिष्ठिर को 'जेष्ठ' कहा गया और बाद में युधिष्ठिर की संतान को 'जेठर' शब्द से संबोधित किया जाने लगा, जैसे जैसे समय बीतता गया 'जेठर' समय के अनुसार जाट नाम से संबोधित किया जाने लगा। इस मान्यता के अनुसार जाट समाज की उत्पत्ति युधिष्ठिर से मानी जाती है।
इसके अलावा एक प्राचीनतम कथा के अनुसार भगवान शिव शंकर से जाट समुदाय की उत्पत्ति को जोड़कर देखा जाता है, इस मान्यता के पीछे एक दिलचस्प कहानी है, यह कहानी 'देवसंहिता' नामक पुस्तक में उल्लेखित है। इस कहानी के अनुसार शिव के ससुर राजा दक्ष ने हरिद्वार के पास 'कनखल' में एक यज्ञ का आयोजन किया था। इस यज्ञ में सभी देवी देवताओं को बुलाया गया लेकिन भगवान शिव और शिव की पत्नी 'सती' को कोई निमंत्रण प्राप्त नहीं हुआ।
जब सती को पिता के द्वारा यज्ञ के बारे में खबर प्राप्त हुई तो शिव से बिना निमंत्रण के अपने पिता के यज्ञ कार्यक्रम में जाने की आज्ञा मांगी। शिव ने उन्हें यह कहकर आज्ञा दे दी कि - "तुम उनकी पुत्री हो और तुम्हे अपने घर बिना निमंत्रण के भी जा सकती हो" शिव से अनुमति लेकर सती अपने पिता के द्वारा आयोजित यज्ञ कार्यक्रम में जा पहुंची, लेकिन वहां सती को अपमानित किया गया एवं शिव के बारे में भी बुरा भला कहा गया। इसी बात पर क्रोधित होकर सती ने हवन कुंड में कूदकर आत्मदाह कर लिया।
जब इस बात का पता भगवान शिव को चला तो वह क्रोधित हो उठे और अपनी जटाओं से वीरभद्र नामक गण को बनाते हैं। वीरभद्र यज्ञ आयोजित किए जाने वाले स्थान पर जाकर नरसंहार करता है, तथा शिव के ससुर दक्ष का सर काट देता है। इस नरसंहार को रोकने के लिए भगवान विष्णु, ब्रह्मा और सभी देवी देवता शिव से राजा दक्ष को माफ करने की याचना करते हैं। सभी देवी देवताओं की विनती के बाद भगवान शिव शांत हो जाते हैं और राजा दक्ष को पुनर्जीवित कर देते हैं।
इस कथा के अंतर्गत जो इस कहानी में वीरभद्र नामक किरदार है, उसे जाट समाज का पूर्वज माना जाता है। कई पुस्तकों में उल्लेख मिलता है कि वीरभद्र से जाट समुदाय की उत्पत्ति हुई थी। इस बात में कितनी सच्चाई है, इसका पुख्ता प्रमाण किसी के पास नहीं है।
जाट समाज की धार्मिक धारणाइतिहासकार सुखवंत सिंह के अनुसार जाट क्षत्रिय समुदाय से ताल्लुक रखते हैं, एक असली जाट स्वाभिमानी और परोपकारी स्वभाव का होता है जो कमजोर लोगों की सहायता करता है। जाटों ने कभी ब्राह्मणवाद को स्वीकार नहीं किया। जाट समाज के लोग अपने पूर्वजों की पूजा करते हैं, जिसे भंडारा कहा जाता है। इस जाति के लोग भगवान कृष्ण को अपना पूर्वज मानते हैं, लेकिन इस बात का प्रमाण किसी भी ग्रंथ में देखने को नहीं मिलता है। जाटों की उत्पत्ति के विषय में इतिहासकारों के अलग-अलग मत हैं, लेकिन मुख्यत: मूल रूप से इस जाति के लोग भारतीय हैं।
जाटों की वर्तमान स्थितिजाटों की वर्तमान स्थिति पहले से बेहतर है, ज्यादातर जाट मुख्य रूप से खेती करते हैं। इस जाति के लोग मुख्य रूप से ग्रामीण इलाकों में रहते हैं। आजकल भारतीय खेल जगत में जाट जाति के लोगों का अच्छा प्रदर्शन देखने को मिल रहा है, आने वाले समय में जाट जाति के लोग खेल जगत में अच्छा प्रदर्शन कर सकते हैं। जाट समाज के लोगों की आर्थिक Growth Rate अन्य जातियों के मुकाबले बेहतर है।
जाटों की जनसंख्या21वीं सदी के पूर्वार्द्ध में, पंजाब की कुल जनसंख्या का 20 प्रतिशत जाट थी, लगभग 10 प्रतिशत जनसंख्या ब्लोचिस्तान, राजस्थान और दिल्ली तथा 2 से 5 प्रतिशत जनसंख्या सिन्ध, उत्तर-पश्चिम सीमान्त और उत्तर प्रदेश में रहती थी। पाकिस्तान के 40 लाख जाट मुस्लिम हैं; भारत के लगभग 60 लाख जाट दो अलग जातियों के रूप में विभाजित हैं: एक सिख जो मुख्यतः पंजाब केन्द्रित हैं तथा अन्य हिन्दू हैं।
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