जब भी श्रीमदभगवद्गीता की बात आती है तो हम सभी को भगवान श्रीकृष्ण द्वारा अर्जुन को दिए गए दिव्य ज्ञान का ही ध्यान आता है। निःसंदेह भगवद्गीता सर्वाधिक प्रसिद्ध है किन्तु आपको ये जानकर हैरानी होगी कि पुराणों में और भी कई गूढ़ ज्ञान का वर्णन है जिन्हे गीता कहा गया है। वैसे तो लगभग ३०० गीताओं का वर्णन मिलता है किन्तु इस लेख में मुख्य गीताओं के विषय में बताया जा रहा है:
श्रीमद्भगवद्गीता:
ये सर्वाधिक प्रसिद्ध गीता है जिसमें श्रीकृष्ण ने अर्जुन का मोह भंग करने के लिए उन्हें गूढ़ ज्ञान की बात बताई थी। ये इतना प्रसिद्ध है कि आज गीता का अर्थ श्रीमद्भगवद्गीता ही माना जाता है। इसमें १८ अध्याय और ७०० श्लोक हैं। इनमें से १ श्लोक धृतराष्ट्र ने, ४० श्लोक संजय ने, ८४ श्लोक अर्जुन ने और बांकी ५७५ श्लोक श्रीकृष्ण ने कहे हैं।
अणु गीता:
इसमें भी श्रीकृष्ण और अर्जुन का ही संवाद है। ये वास्तव में श्रीमद्भगवद्गीता का ही पुनः उद्धरण है। इसका वर्णन हमें महाभारत में तब मिलता है जब युद्ध के पश्चात अर्जुन श्रीकृष्ण से पुनः वही ज्ञान देने को कहते हैं क्यूंकि उनके मन से उस ज्ञान का कुछ भाग लुप्त हो चुका था। तब श्रीकृष्ण उनसे कहते हैं कि उस ज्ञान को ठीक उसी प्रकार सुनाना असंभव है। फिर श्रीकृष्ण उसी लुप्त हुए ज्ञान को अणु गीता में अर्जुन को बताते हैं।
भिक्षु गीता:
इसे श्रीमद्भगवद्गीता का भाग माना जाता है जिसमें श्रीकृष्ण ने उद्धव को एक भिक्षुक के रूप में मन को वश में करने का रहस्य बताया।
गोपी गीता:
इसे भी भगवद्गीता का भाग माना जाता है जिसे वृन्दावन की गोपियों ने श्रीकृष्ण से बिछुड़ते समय गीत के रूप में गया। इसमें उनके प्रति असीम भक्ति के विषय में जानने को मिलता है।
उद्धव गीता:
इसमें श्रीकृष्ण और उद्धव के बीच का संवाद है जिसमें श्रीकृष्ण ने अपने प्रिय सखा को ज्ञान की अनेक बातें बताई। इसे श्रीकृष्ण द्वारा दी गयी अंतिम शिक्षाओं के रूप में देखा जाता है क्यूंकि इसके बाद श्रीकृष्ण ने निर्वाण ले लिया था।
नारद गीता:
इसमें देवर्षि नारद और श्रीकृष्ण का वार्तालाप है जिसमें जीवन में गुरु और आध्यात्मिक संरक्षक के महत्त्व को बताया गया है। इसका वर्णन हमें हरिवंश पुराण में मिलता है।
पांडव गीता:
इसका एक नाम प्रपन्न गीता भी है जिसमें श्रीहरि के प्रति की गयी कई प्रार्थनाओं का संग्रह है। ये नारायण के प्रति पूर्ण समर्पण हो जाने के बारे में बताती है। इसमें से अधिकांश श्लोक पांडवों द्वारा रचित माने जाते हैं जब उन्होंने युद्ध के पश्चात अपने पापों के नाश के लिए श्रीहरि की स्तुति की थी।
उत्तर गीता:
ये भी श्रीकृष्ण और अर्जुन के बीच का संवाद है। युद्ध के पश्चात पांडवों ने हस्तिनापुर पर ३६ वर्ष राज्य किया। इतने समय तक राज्य करने के कारण अर्जुन का मन सांसारिक चीजों में रम गया। तब उन्हें पता चला कि श्रीकृष्ण ने निर्वाण लेने का निर्णय किया है। उनके चले जाने पर ज्ञान का लोप हो जाता इसीलिए अर्जुन ने सांसारिक मोह को छोड़ कर फिर से उस ज्ञान को ऋषियों के साथ सुना। ज्ञान की वही गंगा उत्तर गीता के नाम से प्रसिद्ध हुई।
शौनक गीता:
इसमें महर्षि शौनक और धर्मराज युधिष्ठिर के बीच का संवाद है जिसमें ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति और उसकी संरचना के विषय में बताया गया है। इसका वर्णन हमें महाभारत के अरण्य पर्व में मिलता है।
व्याध गीता:
ये भी एक प्रसिद्ध गीता है जिसका वर्णन महाभारत के वन पर्व में मिलता है। इसमें एक व्याध, उसकी पत्नी और एक संन्यासी, जो स्वयं को सिद्ध मानने लगा था, उसका वर्णन है। ये कथा महर्षि मार्कण्डेय ने युधिष्ठिर को सुनाई थी और इसका वर्णन भागवत पुराण में भी है।
नहुष गीता:
इसका वर्णन हमें महाभारत में मिलता है जिसमें महाराज नहुष और युधिष्ठिर के बीच का संवाद है। सप्तर्षियों के श्राप के कारण नहुष सर्प योनि में एक अजगर के रूप में जन्में। उन्होंने मुक्ति के लिए एक लम्बी प्रतीक्षा की और जब भीम उनके पास आये तो उन्होंने उसे जकड लिया। तब अपने भाई को छुड़ाने के लिए युधिष्ठिर ने नहुष के कई गूढ़ प्रश्नों का उत्तर दिया जो नहुष गीता के नाम से विख्यात हुआ।
युधिष्ठिर गीता:
इस गीता का वर्णन महाभारत में है जब धर्मराज एक यक्ष का रूप लेकर युधिष्ठिर की परीक्षा लेने आये। उनकी माया से भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेव मृत हो गए और अंततः युधिष्ठिर ने उनके गूढ़ और कठिन प्रश्नों का सही सही उत्तर देकर उन्हें जीवित किया।
पराशर गीता:
इस गीता का वर्णन हमें महाभारत के शांतिपर्व में मिलता है जिसमें महर्षि पराशर और मिथिला के सम्राट महाराज जनक के बीच का संवाद है। पराशर उप-पुराण में भी इस गीता का वर्णन है।
पिंगला गीता:
महाभारत के शांति पर्व में वर्णित इस गीता में पितामह भीष्म और युधिष्ठिर का संवाद है। पिंगला एक प्रसिद्ध गणिका थी जिसमे मिले ज्ञान को इस गीता में सम्मलित किया गया है।
बोध्य गीता:
इसमें महाराज ययाति और ऋषि बोध्य के बीच का संवाद है जिसका वर्णन महाभारत के शांति पर्व में है।
विचक्षु गीता:
इसका वर्णन महाभारत के शांति पर्व में है जिसमें पितामह भीष्म और युधिष्ठिर के बीच का संवाद है। इसमें भीष्म युधिष्ठिर को अहिंसा की शिक्षा देते हैं। जीवहत्या से जो पाप मनुष्य को लगता है, उसका वर्णन भी इस गीता में है।
मणकी गीता:
महाभारत के शांति पर्व में ही भीष्म युधिष्ठिर को मणकी मुनि की कथा सुनाते हैं। उसी प्रकरण का ज्ञान इस गीता में है।
व्यास गीता:
ये गीता महर्षि व्यास द्वारा रचित ब्रह्म पुराण का भाग है। इसमें महर्षि व्यास अनेक ऋषियों को योग एवं अध्यात्म की शिक्षा देते हैं।
वृत्र गीता:
इसका वर्णन भी महाभारत के शांतिपर्व में आता है जहाँ दैत्यराज वृत्रासुर और उनके गुरु शुक्राचार्य के बीच का संवाद है।
संपक गीता:
इसका वर्णन भी महाभारत के शांतिपर्व में है जहाँ पितामह भीष्म युधिष्ठिर को संपक नाम के एक पवित्र ब्राह्मण के बारे में बताते हैं जिन्होंने ये शिक्षा दी थी कि प्रसन्नता एवं सुख केवल त्याग द्वारा ही प्राप्त किया जा सकता है।
हरिता गीता:
इसका वर्णन भी महाभारत के शांति पर्व में भीष्म-युधिष्ठिर संवाद के दौरान आता है जिसमें भीष्म ऋषि हरिता द्वारा दी गयी संन्यास की शिक्षा के बारे में बताते हैं जिससे मोक्ष की प्राप्ति हो सकती है।
भीष्म गीता:
महाभारत में वर्णित ये गीता पितामह भीष्म द्वारा रचित श्लोकों से भरी है जिसमें वे महादेव और भगवान विष्णु की भांति-भांति से आराधना करते हैं।
ब्रह्म गीता:
इसका वर्णन रामायण में आता है जब ब्रह्मपुत्र वशिष्ठ अपने शिष्य श्रीराम को निर्वाण के प्रकार के बारे में बताते हैं। इसमें ब्रह्म, आत्मा और विश्व का गूढ़ ज्ञान दिया गया है। यही ज्ञान योग वशिष्ठ ग्रन्थ का भी भाग है।
ब्राह्मण गीता:
महाभारत में वर्णित इस गीता में एक विद्वान ब्राह्मण और उनकी पत्नी के बीच का संवाद है जिसमें वे अपनी पत्नी को बताते हैं कि किस प्रकार माया के बंधन से बचा जा सकता है और मनुष्य के उच्चतम स्वरुप को प्राप्त किया जा सकता है।
सनत्सुजान गीता:
महाभारत के उद्योग पर्व में वर्णित इस गीता में महर्षि सनत्सुजान एवं हस्तिनापुर के नरेश महाराज धृतराष्ट्र के बीच का संवाद है। इसमें मन, बुद्धि एवं ब्रह्म को प्राप्त करने के साधन के साधन के विषय में बताया गया है।
विदुर गीता:
महाभारत में वर्णित ये भी बहुत प्रसिद्ध है जिसे आम भाषा में विदुर नीति भी कहा जाता है। इसमें हस्तिनापुर के महामंत्री महात्मा विदुर महाराज धृतराष्ट्र को देश, राज्य और राजनीती सम्बन्धी अनेक गूढ़ बातें बताते हैं।
भ्रमर गीता:
श्रीमद्भागवत पुराण में वर्णित इस गीता में एक भ्रमर (मधु मक्खी) के माध्यम से गोपियों एवं श्रीकृष्ण के अनन्य भक्त उद्धव के बीच का संवाद है।
वेणु गीता:
भागवत पुराण में ही वर्णित इस गीता में गोपियों द्वारा श्रीकृष्ण के वेणु (बांसुरी) के बारे में गूढ़ जानकारी दी गयी है।
जनक गीता:
कुछ लोग अष्टावक्र गीता को ही जनक गीता कहते हैं किन्तु ये अलग है। इसका वर्णन तब आता है जब राजा जनक ने कुछ सिद्धों द्वारा गए गए एक गुप्त गीत को सुना और स्वयं से ही ज्ञान चर्चा की।
बक गीता:
इसमें देवराज इंद्र और महर्षि बक के बीच का संवाद है जिसमें महर्षि बक ने संसार के दुखों का वर्णन किया है जो प्राणियों के अपने कर्मों के अनुसार भोगनी पड़ती है। इसका वर्णन भी हमें महाभारत में मिलता है।
सिद्ध गीता:
यही वो सिद्धों द्वारा गयी गयी गीता है जिसे महाराज जनक ने अपने राजभवन से सुना था। इसमें स्वज्ञान एवं इन्द्रियों पर नियंत्रण रखने के विषय में बताया गया है। इसका वर्णन भी हमें योग वशिष्ठ के उपशांति प्रकरण में प्राप्त होता है।
राम गीता:
इसमें श्रीराम द्वारा गूढ़ ज्ञान की बातें बताई गयी हैं। पुराणों में हमें दो राम गीता का वर्णन मिलता है। पहली राम गीता में श्रीराम और लक्ष्मण के बीच का संवाद है। इसमें जीव, विद्या, अविद्या, ईश्वर, माया और अद्वैत वेदांत के बारे में बहुत कुछ बताया गया है। इस गीता के बारे में हमें ब्रह्माण्ड पुराण में वर्णित अध्यात्म रामायण में मिलता है। दूसरी राम गीता में श्रीराम और हनुमान जी के बीच का संवाद है जिसमें ज्ञान और इस संसार को ना छोड़ने पर जोर दिया गया है। कहते हैं इसी गीता के बाद श्रीराम ने हनुमान जी को कल्प के अंत तक जीवित रहने का वरदान दिया था। इसका वर्णन हमें ज्ञान वशिष्ठ तत्व सरायण में मिलता है।
अष्टावक्र गीता:
ये भी बहुत प्रसिद्ध गीता है जिसमें महर्षि अष्टावक्र और राजा जनक के बीच का संवाद है। ये स्वयं को जानने और अद्वैत वेदांत को समझाता है। ये आत्मा और इस नश्वर शरीर के विषय में भी बताता है। इसका मुख्य वर्णन महाभारत के वन पर्व में है और रामायण के कुछ अन्य संस्करणों में हमें इसके बारे में पता चलता है।
अगस्त्य गीता:
ये महर्षि अगत्स्य द्वारा रचित है जिसमें मोक्ष और धर्म की व्याख्या की गयी है। गुरु के निर्देश में भक्ति मार्ग से कोई जीव किस प्रकार परमात्मा को प्राप्त कर सकता है, इसमें उसके बारे में विस्तार से बताया गया है। इसका वर्णन हमें वाराह पुराण में मिलता है।
देवी गीता:
ये देवी भागवत का एक भाग है जिसमें माता आदिशक्ति और पर्वतराज हिमालय के बीच का संवाद है। इसमें माता हिमालय को अपने दिव्य स्वरुप के विषय में बताती है। इसका वर्णन हमें लिंग पुराण में मिलता है।
भरत गीता:
ये भागवत पुराण का भाग है जिसमें चक्रवर्ती सम्राट भरत के विषय में विस्तार से बताया गया है जिनके नाम पर हमारे देश का नाम भारत वर्ष पड़ा।
अवधूत गीता:
महर्षि अत्रि के पुत्र भगवान दत्तात्रेय और भगवान कार्तिकेय के बीच के संवाद को इस गीता में बताया गया है। इसमें जीवात्मा और आत्मा के गूढ़ रहस्य को समझाया गया है। इसका वर्णन भी हमें स्कन्द पुराण में मिलता है।
ऋषभ गीता:
इस गीता में महर्षि ऋभु और उनके शिष्य निगध के बीच का वार्तालाप है। इसमें अद्वैत वेदांत के विषय में बताया गया है जिसका वर्णन हमें उप पुराणों में से एक - श्री शिवरहस्य पुराण में मिलता है।
हंस गीता:
ये भगवान विष्णु के २४ अवतारों में से एक हंस अवतार से जुड़ा है जिसमें श्रीहरि ने हंस के रूप में ब्रह्मा के पुत्रों को ज्ञान प्रदान किया था। इसमें संसार को माया और आत्मा को एकमात्र सत्य के रूप में उजागर किया गया है।
जीवन्मुक्त गीता:
यह भगवान दत्तात्रेय द्वारा कहा गया है जिसमें जीवन्मुक्त जीव, अर्थात जिसनें अपने आत्मा के रहस्य को जान लिया हो, उसके बारे में बताया गया है। इसमें प्रकृति के गूढ़ रहस्यों के विषय में भी बताया गया है।
श्रुति गीता:
श्रीमद्भागवत में वर्णित इस गीता में अनेकों ऋषियों और विद्वानों द्वारा भगवान विष्णु की स्तुति से सम्बंधित श्लोक हैं।
युगल गीता: इसका वर्णन भी भागवत में आता है जिसमें गोपियों द्वारा श्रीकृष्ण की विभिन्न प्रकार से स्तुति की गयी है।
युगल गीता: इसका वर्णन भी भागवत में आता है जिसमें गोपियों द्वारा श्रीकृष्ण की विभिन्न प्रकार से स्तुति की गयी है।
हनुमद गीता:
इसमें श्रीराम और माता सीता का हनुमान जी के साथ संवाद है जब वे रावण का वध कर पुनः अयोध्या आ जाते हैं।
ईश्वर गीता:
इसका वर्णन हमें कूर्म पुराण में मिलता है जिसमें भगवान शंकर की शिक्षाएं सम्मलित हैं। इसमें भी भगवत्गीता की भांति ही अनेक गूढ़ रहस्य सम्मलित हैं और भगवान शंकर के प्रति पूर्ण समर्पण के बारे में बताया गया है। शैव संप्रदाय के लिए इस ग्रन्थ का बड़ा महत्त्व है।
सूर्य गीता:
तत्व सरण्य में वर्णित इस गीता को भगवान ब्रह्मा ने भगवान शंकर के दक्षिणमूर्ति स्वरुप से कहा था जिसमें भगवान सूर्यनारायण और उनके सारथि अरुण का संवाद है।
गणेश गीता:
इसमें श्रीगणेश द्वारा अपने भक्त राजा वरेण्य को दी गयी शिक्षाओं का वर्णन है। इसके बारे में हमें गणेश पुराण में पता चलता है। इस विषय में एक विस्तृत लेख हमने पहले ही धर्म संसार पर प्रकाशित किया है ।
यम गीता:
इसका वर्णन विष्णु पुराण और नृसिंह उप-पुराण में दिया गया है। इसमें भगवान विष्णु के गुणों, आत्मज्ञान, ब्रह्म, जीवन मरण का चक्र और मोक्ष के विषय में बताया गया है।
विभीषण गीता:
इसमें श्रीराम और राक्षस राज विभीषण के बीच का संवाद है जो रामायण के अंतिम खंड - युद्ध कांड में वर्णित है। इसमें श्रीराम विभीषण को जीवन के संघर्ष और पीड़ा के विषय में बताते हैं।
गुरु गीता:
इस गीता में भगवान भोलेनाथ और माता पार्वती के बीच का संवाद है। इसमें महादेव ने माता को जीवन में गुरु के महत्त्व के विषय में बताया है। इस गीता का वर्णन स्कन्द पुराण में दिया गया है।
कपिल गीता:
इसमें प्रजापति कर्दम के पुत्र कपिल मुनि और उनकी पत्नी (कपिल मुनि की माता) देवहुति के बीच का संवाद है। इसमें कपिल मुनि ने अपनी माता को आत्मा के गूढ़ रहस्य से परिचित करवाया है।
शिव गीता:
पद्म पुराण का भाग इस गीता में भगवान शिव द्वारा श्रीराम को दी गयी शिक्षाओं का सार है।
सुत गीता:
इसका वर्णन स्कन्द पुराण के यज्ञ वैभव खंड में दिया गया है। ये अद्वैतवाद का समर्थन और द्वैतवाद का खंडन करता है।
वशिष्ठ गीता:
इसमें ब्रह्मर्षि वशिष्ठ और श्रीराम के बीच का संवाद है जिसमें अंतिम सत्य के विषय में बताया गया है। इसका वर्णन हमें योग वशिष्ठ के निर्वाण प्रकरण में मिलता है।
ऋषभ गीता:
इसमें महर्षि ऋषभ द्वारा उनके पुत्रों को दी गयी शिक्षा है जो सत्य के रहस्य को उजागर करती है और विश्व के कल्याण के लिए स्वयं को भौतिक माया से मुक्त करने का उपाय बताती है। श्रीमद्भागवत में वर्णित इस गीता का उद्देश्य सभी प्रकार के बंधनों से मुक्त होकर स्वयं को विश्व कल्याण के लिए समर्पित कर देना है।
रूद्र गीता:
भागवत पुराण में वर्णित इस गीता में भगवान रूद्र द्वारा भगवान विष्णु की प्रशंसा में रचे गए श्लोक हैं। इसमें रूद्र द्वारा ब्रह्मा, विष्णु एवं महेश के स्वरूप का वर्णन भी किया गया है।
विद्या गीता:
इस गीता में त्रिपुर रहस्य के बारे में बताया गया है जिसे भगवान दत्तात्रेय भगवान परशुराम से कहते हैं। इसमें दत्तात्रेय ने माता त्रिपुरसुन्दरी की आराधना भी की है जो विद्या की देवी भी मानी गयी है।
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