Dr.Dayaram Aalok donates semet benches to Hindu Temples and Mukti Dham
आज जब धर्म-समुदायों के बीच दीवारें खिंच गई हैं और एक ही परिवार में अलग-अलग चूल्हे होने लगे हैं, तब भारत में एक समुदाय ऐसा भी है जिसके अधिकांश घरों में एक वक्त का ताजा और गर्म भोजन थालियों, टोकरी या टिफिन में भरकर ‘कॉमन किचन’ से आता है। यह समुदाय है दाऊदी बोहरा और यह ‘कॉमन किचन’ उसीके फैज-उल मवैद-अल-बुरहानिया कार्यक्रम का हिस्सा है।
फैज-उल मवैद-अल-बुरहानिया कार्यक्रम का उद्देश्य है समाज के कमतर वर्गों में पैदा हो सकने वाली हीन भावना को मिटाना। यह रसोई विश्व में जहां-जहां भी दाऊदी बोहरा हैं, वहां समुदाय के लोग मिलकर चलाते हैं। वहां बने खाने को कलेक्शन सेंटर्स के जरिए या सीधे घरों पर पहुंचा दिया जाता है। यही नहीं, समानता के विचार से जरूरतमंद लोगों को ‘बुरहानी कर्दन हसना’ योजना के तहत बगैर ब्याज के कर्ज भी दिया जाता है, ताकि वे समृद्ध बनकर दूसरों की मदद के भी काबिल बन सकें।
दाऊदी बोहरा समाज के प्रवक्ता मुर्तजा सादरी बताते हैं, ‘अपने समुदाय की सेवा के लिए हमारे पास सेहत और तालीम के लिए भी कई कार्यक्रम हैं। चर्नी रोड का सैफी अस्पताल शहर के सुविधासंपन्न अस्पतालों में और मझगांव का बुरहानी कॉलेज ऑफ कॉमर्स ऐंड मैनेजमेंट रसूखदार कॉलेजों में नाम धराता है। संस्था के ट्रस्ट शिक्षा के लिए सैफी हाईस्कूल, अल हसनत, तैयबिया हाई स्कूल और एमएसबी एजुकेशन इंस्टिट्यूट जैसी संस्थाएं भी चला रहे हैं। समुदाय अपनी सफाई पसंदगी और पर्यावरण रक्षा की पहलों के लिए भी जाना जाता है। चैरिटेबल ट्रस्ट बुरहानी फाउंडेशन इंडिया 1992 से ही बर्बादी रोकने, रिसाइकलिंग और प्रकृति संरक्षण के लिए काम कर रहा है। इस रमजान में समुदाय प्रमुख सैयदना डॉ. मुफद्दल सैफुद्दीन ने विश्व भर में कम से कम दो लाख पेड़ रोपने का संकल्प लिया है।
बोहरा समुदाय ने राष्ट्रीय और स्थानीय स्तर पर अलग-अलग जमातें बनाई हैं जो अपने लोगों की छोटी-बड़ी मदद करती हैं। ज्यादातर लोग इससे खुश हैं, हालांकि मुंब्रा जहां करीब चार से पांच हजार बोहरा रहते हैं-जैसी जगहों से कुछ शिकायतें भी हैं। मसलन, ‘स्थानीय जमात हमारी अनसुनी कर देती है और सैंट्रल जमात उसमें दखल देने से इनकार।’ जाति से बेदखल करने का अधिकार होने के कारण जमात से डरे जाने के कई कारण हैं। इसी वजह समाज के लोग पंगा नहीं लेते।
दाऊदी बोहरा समुदाय काफी समृद्ध, संभ्रांत और पढ़ा-लिखा समुदाय है’, जाने-माने स्तंभकार फिरोज अशरफ बताते हैं, ‘कुछ लोग जो किसानी करते हैं-उन्हें छोड़कर बोहरा मुख्यत: व्यापारिक कौम है।’ लेखक मुजफ्फर हुसैन बताते हैं, ‘दाऊदी बोहरा मेहनतकश और शांतिप्रिय कौम है जो जिम्मेदार नागरिक की तरह केवल अपने काम से मतलब रखती है।’
बच्चियों के खतने को लेकर उठे विवाद और सैयदना के बेटे मुफद्दल सैफुद्दीन और छोटे भाई खोजमा कुतुबुद्दीन के बीच उत्तराधिकार को लेकर कानूनी लड़ाई के कारण दाऊदी बोहरा कई बार सुर्खियों में रहे हैं उसी तरह जैसे दुनिया में अपनी तरह के अकेले सैकड़ों करोड़ रुपये के भेंडी बाजार क्लस्टर डिवेलपमेंट प्रॉजेक्ट के कारण इन दिनों है। भेंडी बाजार में पिछले दिनों गिरी इमारत का कुछ दोष इस योजना को लागू करने वाले सैफी बुरहानी अपलिफ्टमेंट ट्रस्ट पर भी मढ़ा जा रहा है।
दाऊदी बोहरा मुख्यत: गुजरात के सूरत, अहमदाबाद, जामनगर, राजकोट, दाहोद, और महाराष्ट्र के मुंबई, पुणे व नागपुर, राजस्थान के उदयपुर व भीलवाड़ा और मध्य प्रदेश के उज्जैन, इन्दौर, शाजापुर, जैसे शहरों और कोलकाता व चैन्नै में बसते हैं। पाकिस्तान के सिंध प्रांत के अलावा ब्रिटेन, अमेरिका, दुबई, ईराक, यमन व सऊदी अरब में भी उनकी अच्छी तादाद है। मुंबई में इनका पहला आगमन करीब ढाई सौ वर्ष पहले हुआ। यहां दाऊदी बोहरों की मुख्य बसाहट मुख्यत: भेंडी बाजार, मझगांव, क्राफर्ड मार्केट, भायखला, बांद्रा, सांताक्रुज और मरोल में है। यहां तक कि भेंडी बाजार, जहां बोहरों का बोलबाला है- बोहरी मोहल्ला ही कहलाने लगा है। फोर्ट की एक सड़क भी बोहरा बाजार के नाम से मशहूर है।
दाई-अल-मुतलक दाऊदी बोहरों का सर्वोच्च आध्यात्मिक गुरु पद होता है। समाज के तमाम ट्रस्टों का सोल ट्रस्टी नाते उसका बड़ी कारोबारी व अन्य संपत्ति पर नियंत्रण होता हैं। इस समाज में मस्जिद, मुसाफिरखाने, दरगाह और कब्रिस्तान का नियंत्रण करने वाले सैफी फाउंडेशन, गंजे शहीदा ट्रस्ट, अंजुमन बुरहानी ट्रस्ट जैसे दर्जनों ट्रस्ट हैं। 150 छोट ट्रस्टों को मिलाकर बनाया गया अकेला दावते हादिया प्रॉपर्टी ट्रस्ट ही 1000 करोड़ से उपर का बताया जाता है जो जमात के प्रशासन के लिए जिम्मेदार है।
दाऊदी बोहरा मुसलमानों की विरासत फातिमी इमामों से जुड़ी है जो पैगंबर मोहम्मद के प्रत्यक्ष वंशज हैं। 10वीं से 12वीं सदी के दौरान इस्लामी दुनिया के अधिकतर हिस्सों पर राज के दौरान ज्ञान, विज्ञान, कला, साहित्य और वास्तु में उन्होंने जो उपलब्धियां हासिल कीं आज मानव सभ्यता की पूंजी हैं। इनमें एक है काहिरा में विश्व के सबसे पुराने विश्वविद्यालयों में से एक ‘अल-अजहर’। भारत में उनका सबसे बड़ा शाहकार है भेंडी बाजार स्थित रूदाते ताहेरा जो 51वें दाई अल-मुतलक सैयदना डॉ. ताहिर सैफुद्दीन और उनके पुत्र 52वें दाई अल-मुतलक सैयदना डॉ. मोहम्मद बुरहानु्द्दीन का मकबरा है। संगमरमर का बना यह मकबरा 10 से 12वीं सदी के दौरान मिस्र में प्रचलित फातिमीदी वास्तु और भारतीय कला का अद्भभुत मिश्रण है। रूदाते ताहेरा की शान बढ़ाती है बेशकीमती जवाहरातों से जड़ी सुनहरे हर्फों वाली अल-कुरान। मुंबई की 20 से ज्यादा बोहरा मस्जिदों में कई शानदार हैं जिनमें सबसे बड़ी है 100 वर्ष से भी ज्यादा पुरानी सैफी मस्जिद।
दाऊदी बोहरा इमामों को मानते हैं। उनके 21वें और अंतिम इमाम तैयब अबुल क़ासिम थे जिसके बाद 1132 से आध्यात्मिक गुरुओं की परंपरा शुरू हो गई जो दाई-अल- मुतलक कहलाते हैं। 52वें दाई-अल-मुतलक डॉ. सैयदना मोहम्मद बुरहानुद्दीन थे।
उनके निधन के बाद जनवरी 2014 से बेटे सैयदना डॉ. मुफद्दल सैफुद्दीन ने उनके उत्तराधिकारी के तौर पर 53वें दाई-अल-मुतलक के रूप में जिम्मेदारी संभाली है।
कारोबारी समाज
'बोहरा' गुजराती शब्द 'वहौराउ', अर्थात 'व्यापार' का अपभ्रंश है। वे मुस्ताली मत का हिस्सा हैं जो 11वीं शताब्दी में उत्तरी मिस्र से धर्म प्रचारकों के माध्यम से भारत में आया था। 1539 के बाद जब भारतीय समुदाय बड़ा हो गया तब यह मत अपना मुख्यालय यमन से भारत में सिद्धपुर ले आया। 1588 में दाऊद बिन कुतब शाह और सुलेमान के अनुयायियों के बीच विभाजन हो गया। आज सुलेमानियों के प्रमुख यमन में रहते हैं, जबकि सबसे अधिक संख्या में होने के कारण दाऊदी बोहराओं का मुख्यालय मुंबई में है। भारत में बोहरों की आबादी 20 लाख से ज्यादा बताई जाती है। इनमें 15 लाख दाऊदी बोहरा हैं।
दाऊद और सुलेमान के अनुयायियों में बंटे होने के बावजूद बोहरों के धार्मिक सिद्धांतों में खास सैद्धांतिक फर्क नहीं है। बोहरे सूफियों और मज़ारों पर खास विश्वास रखते हैं। सुन्नी बोहरा हनफ़ी इस्लामिक कानून पर अमल करते हैं, जबकि दाऊदी बोहरा समुदाय इस्माइली शिया समुदाय का उप-समुदाय है। यह अपनी प्राचीन परंपराओं से पूरी तरह जुड़ी कौम है, जिनमें सिर्फ अपने ही समाज में ही शादी करना शामिल है| कई हिंदू प्रथाओं को भी इनके रहन-सहन में देखा जा सकता है।
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'बोहरा' गुजराती शब्द 'वहौराउ', अर्थात 'व्यापार' का अपभ्रंश है। वे मुस्ताली मत का हिस्सा हैं जो 11वीं शताब्दी में उत्तरी मिस्र से धर्म प्रचारकों के माध्यम से भारत में आया था। 1539 के बाद जब भारतीय समुदाय बड़ा हो गया तब यह मत अपना मुख्यालय यमन से भारत में सिद्धपुर ले आया। 1588 में दाऊद बिन कुतब शाह और सुलेमान के अनुयायियों के बीच विभाजन हो गया। आज सुलेमानियों के प्रमुख यमन में रहते हैं, जबकि सबसे अधिक संख्या में होने के कारण दाऊदी बोहराओं का मुख्यालय मुंबई में है। भारत में बोहरों की आबादी 20 लाख से ज्यादा बताई जाती है। इनमें 15 लाख दाऊदी बोहरा हैं।
दाऊद और सुलेमान के अनुयायियों में बंटे होने के बावजूद बोहरों के धार्मिक सिद्धांतों में खास सैद्धांतिक फर्क नहीं है। बोहरे सूफियों और मज़ारों पर खास विश्वास रखते हैं। सुन्नी बोहरा हनफ़ी इस्लामिक कानून पर अमल करते हैं, जबकि दाऊदी बोहरा समुदाय इस्माइली शिया समुदाय का उप-समुदाय है। यह अपनी प्राचीन परंपराओं से पूरी तरह जुड़ी कौम है, जिनमें सिर्फ अपने ही समाज में ही शादी करना शामिल है| कई हिंदू प्रथाओं को भी इनके रहन-सहन में देखा जा सकता है।
Disclaimer: इस content में दी गई जानकारी Internet sources, Digital News papers, Books और विभिन्न धर्म ग्रंथो के आधार पर ली गई है. Content को अपने बुद्धी विवेक से समझे
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