6.4.24

वाल्मीकि समाज की उत्पत्ति और इतिहास /history of Valmiki Samaj



इस समुदाय का नाम महर्षि वाल्मीकि के नाम पर पड़ा है। ये लोग स्वयं को संस्कृत में 'रामायण' और 'योग वशिष्ठ' जैसे ग्रंथों के रचयिता आदि कवि महर्षि वाल्मीकि के वंशज बताते हैं। यह महर्षि वाल्मीकि को अपना गुरु और ईश्वर का अवतार मानते हैं।
वाल्मीकि (Valmiki) भारत में पाया जाने वाला एक जाति या संप्रदाय है. वाल्मीकि शब्द का प्रयोग पूरे भारत में विभिन्न समुदायों द्वारा किया जाता है, जो खुद को रामायण के रचयिता भगवान वाल्मीकि के वंशज होने का दावा करते हैं. यह एक मार्शल जातीय समुदाय है, पारंपरिक रूप से इनका कार्य युद्ध करना रहा है. भारत के विभिन्न राज्यों में इन्हें अलग-अलग नामों से जाना जाता है, जैसे-नायक, बोया, मेहतर, आदि. यह पूरे भारत में व्यापक रूप से पाए जाते हैं. उत्तरी भारत और दक्षिण भारत के राज्यों में पाए जाते हैं. उत्तरी भारत के राज्यों में इन्हें अनुसूचित जाति (Scheduled Caste, SC) के रूप में वर्गीकृत किया गया है.आइये जानते हैं वाल्मीकि समाज का इतिहास, वाल्मीकि जाति की उत्पति कैसे हुई?

वाल्मीकि समाज का इतिहास

उत्तर भारत में पाए जाने वाले इस समुदाय के लोग पारंपरिक रूप से सीवेज क्लीनर और स्वच्छता कर्मी के रूप में कार्य करते आए हैं. ऐतिहासिक रूप से इन्हें जातिगत भेदभाव, सामाजिक बहिष्कार और उत्पीड़न का सामना करना पड़ा है. हालांकि, शिक्षा और रोजगार के आधुनिक अवसरों का लाभ उठाकर अब यह अपने परंपरागत कार्य को छोड़कर अन्य पेशा भी अपनाने लगे हैं. इससे इनकी समाजिक स्थिति में सुधार हुई है.

वाल्मीकि समाज की जनसंख्या


2001 की जनगणना के अनुसार, पंजाब में यह अनुसूचित जाति की आबादी का 11.2% थे‌ और दिल्ली एनसीआर क्षेत्र में यह दूसरी सबसे अधिक आबादी वाली अनुसूचित जाति थी. 2011 की जनगणना के अनुसार उत्तर प्रदेश मेें अनुसूचित जाति की कुल आबादी 13,19,241 दर्ज की गई थी.

दक्षिण भारत के वाल्मीकि समाज

दक्षिण भारत में बोया या बेदार नायक समाज के लोग अपनी पहचान बताने के लिए वाल्मीकि शब्द का प्रयोग करते हैं. आंध्र प्रदेश में इन्हें बोया वाल्मीकि या वाल्मीकि के नाम से जाना जाता है.‌ बोया या बेदार नायक पारंपरिक रूप से एक शिकारी और मार्शल जाति है. आंध्र प्रदेश में यह मुख्य रूप से अनंतपुर, कुरनूल और कडप्पा जिलों में केंद्रित हैं. कर्नाटक में यह मुख्य रूप से बेलारी, रायचूर और चित्रदुर्ग जिलों में पाए जाते हैं. आंध्र प्रदेश में पहले इन्हें पिछड़ी जाति में शामिल किया गया था, लेकिन अब इन्हें अनुसूचित जनजाति के रूप में सूचीबद्ध किया गया है. तमिलनाडु में इन्हें सबसे पिछड़ी जाति (Most Backward Caste, MBC), जबकि कर्नाटक में अनुसूचित जनजाति के रूप में वर्गीकृत किया गया है.

वाल्मीकि समाज किस धर्म को मानते हैं?

यह मुख्य रूप से हिंदू धर्म को मानते हैं. पंजाब में निवास करने वाले कुछ वाल्मीकि सिख धर्म के अनुयाई हैं

वाल्मीकि समाज की उत्पति

 इस समुदाय या संप्रदाय का नाम महर्षि वाल्मीकि के नाम पर पड़ा है.इस समुदाय या संप्रदाय के सदस्य संस्कृत रामायण और योग वशिष्ठ जैसे ग्रंथों के रचयिता आदि कवि महर्षि वाल्मीकि के वंशज होने का दावा करते हैं. यह महर्षि वाल्मीकि को अपना गुरु और ईश्वर का अवतार मानते हैं.

क्या ब्राह्मण और क्षात्रिय थे वाल्मीकि?

हिन्दू समाज में लगभग 6500 जातियाँ है। 12वी शताब्दी के पहले सफाई कर्म या चर्म कर्म का उल्लेख नही मिलता है। शुद्र और अनुसूचित जाति मे फर्क है, हिंदू जाति पहले भी चार वर्णों में बंटी हुई थी पर कोई जाति अछूत नही थी।
  जाति इतिहासविद डॉ . दयाराम  आलोक के अनुसार दलित वर्ग का उदय विदेशी आक्रांता तुर्क, मुस्लिम , और मुगलकाल मे हुई । कुछ काम ऐसे हैं  कि कोई नही करना चाहेगा और सिर पर मैला ढोना, ये तो बिल्कुल भी कोई नही चाहेगा। यह काम जबरदस्ती कराया हुआ लगता है। अब सवाल है कि जबरदस्ती किसने कराया कुछ सेकुलर लोग तर्क देते हैं कि यह ब्राह्मणों ने कराया। हमारे भारत में घर में शौचालय होने का कभी कोई प्रमाण नहीं मिलता.   ब्राह्मण तो खासकर इसे अत्यंत ही अपवित्र समझते थे। आज भी बहुत से ब्राह्मण घर में शौचालय होने के सख्त विरोधी है। घर में शौचालय होने का प्रचलन मुस्लिम आगमन के बाद हुआ। मुस्लिम आक्रमणकारियों ने भारत को जी भर के लूटा मुगल तो यहीं बस गए । लाखों का जबरदस्ती धर्म परिवर्तन कराया गया जिन लोगों ने नहीं माना उन्हें मार डाला गया या असहनीय यातनाएं दी गई. सबसे ज्यादा मार क्षत्रियों और ब्राह्मणों को झेलना पड़ा उन्हें हिंदू धर्म छोड़ने के लिए विवश किया गया. नहीं करने पर जबरदस्ती उन्हें ऐसे कामों के लिए विवश किया गया जो बिल्कुल ही करने योग्य नहीं था. इन्हीं में से एक था सिर पर मैला ढोना गंदगी की सफाई करना. मुस्लिमों ने जबरदस्ती क्षत्रियों ब्राह्मणों को इसके लिए मजबूर किया. उन्होंने अपना धर्म नहीं छोड़ा बल्कि इस अपवित्र काम करने के लिए राजी हो गए. इससे यह कह सकते हैं कि अपने धर्म के लिए उन्होंने बहुत बड़ी कुर्बानी दिया. इस समाज को प्रखर देशभक्ति धर्मपरायणता, हिंदू समाज रक्षक की भूमिका एवं त्याग बलिदान के लिए उचित स्थान मिलना चाहिए.
 उत्तर भारत में वाल्मीकि, महाराष्ट्र और दक्षिण भारत में सुदर्शन और मखियार गुजरात में रूखी पंजाब में मजहबी सिक्ख के नाम से जाने वाल्मकी समाज के बारे में डॉक्टर भीमराव अंबेडकर ने लिखा है वर्तमान शूद्र और वैदिक काल में शूद्र दोनों अलग-अलग है. यह सारी जानकारी डॉक्टर विजय सोनकर शास्त्री के किताब हिंदू वाल्मीकि जातिसे ली गई है. घरों में शौचालय का निर्माण उस समय शुरू हुआ जब हजारों की संख्या में बनाई गई बेगमें घर से बाहर जाने पर अपने यौन सुख के लिए सुरक्षाकर्मियों से संपर्क करने लग गए. शुरुआत में शौचालय का सफाई नौकरों से कराया गया बाद में युद्ध बंदी हिंदू ब्राह्मणों और क्षत्रियों से कराया गया. वर्तमान वाल्मीकि जाति में ब्राह्मण के अनेक. गोत्र पाए जाते हैं. शरीर से हष्ट पुष्ट वाल्मीकि समाज के लोग एक कुशल योद्धा जाति है. धीरे -धीरे वाल्मीकि समाज शिक्षा से वंचित रह गए क्योंकि उन्हे अछूत समझा जाने लगा था। ये लोग अलग बस्ती में रहने लगे और हजारों वर्ष के अंदर दलित बन गए.

रामायण लिखने वाला वाल्मीकि कौन था?

वाल्मीकि, संस्कृत रामायण के प्रसिद्ध रचयिता हैं जो आदिकवि के रूप में प्रसिद्ध हैं। उन्होंने संस्कृत मे रामायण की रचना की। महर्षि वाल्मीकि द्वारा रची रामायण वाल्मीकि रामायण कहलाई। रामायण एक महाकाव्य है जो कि श्री राम के जीवन के माध्यम से हमें जीवन के सत्य व कर्तव्य से, परिचित करवाता है
वाल्मीकि समाज मैं हांडाला गोत्र की कुलदेवी बलीकालका माता दिल्ली में जिन का स्थान गांव दिचाऊ कलां हर्षि वाल्मीकि का जन्म भृगु गोत्र के एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। वाल्मीकि प्रचेता (जिसे सुमाली के नाम से भी जाना जाता है) नामक ब्राह्मण के दसवें पुत्र थे। उनके माता-पिता ने रत्नाकर नाम दिया था।

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