पिंजारा (Pinjara) भारत और पाकिस्तान में पाया जाने वाला एक जातीय समुदाय है. यह अलग-अलग प्रदेशों में अलग-अलग नामों से जाने जाते हैं. भारत में पिंजारा, मंसूरी और धुनिया शब्द परस्पर उपयोग किए जाते हैं, हालांकि अलग-अलग क्षेत्रों में यह अलग-अलग समुदाय हैं. गुजरात में मुख्य रूप से मंसूरी के नाम से जाना जाता है. गुजरात में इस समुदाय के लिए पिंजारा शब्द अब उपयोग में नहीं है. पिंजारा उत्तर भारत के पारंपरिक कपास धूनिया (Cotton Carder) के भांति, मध्य भारत के पारंपरिक कपास कार्डर हैं.भारत में यह मुख्य रूप से मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक, गुजरात और राजस्थान राज्यों में निवास करते हैं.मैसूर राज्य के शासक टीपू सुल्तान और अंग्रेजी गायक और गीतकार जैन मलिक का संबंध इसी समुदाय से है. आइए जानते हैं पिंजारा समाज का इतिहास, पिंजारा की उत्पति कैसे हुई?
पिंजारा किस धर्म को मानते हैं?
यह इस्लाम धर्म को मानते हैं. यह हिंदी, मारवाड़ी, मराठी, कन्नड़ और उर्दू भाषा बोलते हैं. इस समुदाय के ज्यादातर लोग हाल के दिनों तक किसी सरनेम का प्रयोग नहीं करते थे. हालांकि, अब इस समुदाय के अधिकांश खान, पठान आदि उपनामों को लगाने लगे हैं. जबकि अन्य मशहूर फारसी सूफी संत मंसूर अल हल्लाज, जो खुद भी एक बुनकर थे, के नाम पर मंसूरी उपनाम का प्रयोग करते हैं.
जाति इतिहासविद डॉ . दयाराम आलोक के मतानुसार बादशाह शहबुद्दीन गौरी ने कुछ हिंदुओं को बलपूर्वक मुसलमान बनाया था। ये लोग गौरी पठान कहलाने लगे . पिंजारा जाति के अधिकांश रीति रिवाज हिंदुओंसे मिलते जुलते हैं.इनमे विधवा विवाह प्रचलित है। गांवों मे रहने वाले पिंजारा समाज के लोग खेती का धंधा कर रहे हैं। इनका पहनावा हिंदुओं जैसा ही है। अधिकांश लोग सरनेम का प्रयोग नहीं करते हैं लेकिन हाल ही मे ये लोग पठान ,खान उपनामों का प्रयोग करने लगे हैं। कुछ लोग मंसूरी उपनाम लेकर चल रहे हैं। इनकी स्त्रियाँ हिन्दुओ जैसी लगती हैं. पाजामा बहुत कम पहनती हैं . पुरुष धोती कमीज पहनते हैं. पिंजारा समाज के लोगों की गोत्र हिन्दू क्षत्रियों जैसी हैं जैसे देवड़ा चौहान,भाटी,सोलंकी,पड़िहार,राठौड आदि . इससे विदित होता है कि पिंजारा समाज किसी समय हिन्दू क्षत्रिय समाज के अंग थे.
पिंजारा समाज का इतिहास
पिंजरा समाज मूल रूप से फारस (ईरान) और अफगानिस्तान के रहने वाले थे. यह समुदाय कपास की खेती और उद्योगों के व्यवसाय के उद्देश्य के लिए अफगानिस्तान और फारस से भारत आया था, और यहां आकर बस गया. बता दें कि तब भारत और पाकिस्तान में बंटवारा नहीं हुआ था. इसीलिए यह समुदाय भारत और पाकिस्तान दोनों देशों में पाया जाता है. इस समुदाय की उत्पत्ति स्थानीय धर्मांतरित लोगों और विदेशियों से हुई है जो मुख्य रूप से फारस अफगानिस्तान और बाहर के अन्य क्षेत्रों से आकर भारतीय उपमहाद्वीप में बस गए. यहां आकर यह पारंपरिक रूप से कपास की खेती और व्यवसाय में शामिल हो गए. कुछ पिंजारा जो इस्लाम में धर्मांतरित होने से उत्पन्न हुए थे, इस बात का दावा करते हैं कि वह मूल रूप से राजपूत वंश के हैं. ऐतिहासिक तथ्यों के अनुसार, वह राजा रण सिंह के शासन के दौरान राजस्थान से गुजरात आए थे और यही आकर बस गए. आज भी इनमें राजपूतों के समान राव, देवड़ा, चौहान, भाटी वंश पाए जाते हैं. कुछ इतिहासकारों का मत है कि यह समुदाय का संबंध मूल रूप से अफगानिस्तान से है. इनमें से कुछ राजपूतों से धर्मांतरित मुसलमान हैं. लेकिन उन्हें हिंदू समाज में धूना कहा जाता था. मैसूर राज्य के शासक टीपू सुल्तान और अंग्रेजी गायक और गीतकार जैन मलिक का संबंध इसी समुदाय से है.
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