14.4.22

साहित्यमनीषी,समाज सेवी डॉ. दयारामजी आलोक से साक्षात्कार: Interview with literary scholar, social worker Dr. Dayaram ji Alok


दामोदर दर्जी महासंघ द्वारा आयोजित सामूहिक विवाह सम्मेलन के अवसर पर 

समाज सेवी
डॉ.दयाराम जी आलोक
का


 

रमेशचंद्र जी मकवाना कोटा
द्वारा 
साक्षात्कार

मकवाना :--दामोदर दर्जी समाज (darji samaj)के परिवारों की जानकारी की इस किताब के लिये आपसे साक्षात्कार लेना मेरा सौभाग्य है। आप अपना सक्षिप्त जीवन परिचय दें।
डॉ.दयाराम आलोक :-- शामगढ कस्बे में पुरालालजी राठौर के कुल में जन्म 11 अगस्त सन 1940 ईस्वी। रेडीमेड वस्त्र बनाकर बेचना पारिवारिक व्यवसाय था। अत्यंत साधारण आर्थिक हालात।हाईस्कूल परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण करने के बाद सन 1961 में शासकीय सेवा में अध्यापक के पद पर नियुक्त।सन १९६९ में राजनीति विषय से एम.ए. किया। चिकित्सा विषयक उपाधियां आयुर्वेद रत्न और होम्योपैथिक उपाधि  DIHom( London) अर्जित कीं।

साहित्य मनीषी डॉ. दयाराम आलोक का परिचय सुनिए इसी लिंक में 

मकवाना :-आपने दामोदर दर्जी महासंघ कब और किस उद्धेश्य से संगठित किया?

डॉ. दयाराम आलोक :- दर्जी समाज के महत्वपूर्ण सामाजिक कार्यों को संगठित ढंग से संपादित करने तथा सामाजिक फ़िजुल खर्ची रोकने के उद्देश्य से मैने अपने कुछ घनिष्ठ साथियों के सहयोग से सन 1965 में "दामोदर दर्जी युवक संघ" का गठन किया और एक कार्यकारिणी समिति बनाई। कालांतर मे विस्तृत होकर यह दर्जी युवक संघ "अखिल भारतीय दामोदर दर्जी महासंघ" के टाईटल  से अस्तित्व में है।
 दामोदर दर्जी महासंघ की स्थापना में मुझे शामगढ के 


डॉ.लक्ष्मी नारायण जी अलौकिक ,


रामचन्द्र जी सिसौदिया , शंकरलालजी राठौर, कंवरलाल जी सिसौदिया,गंगारामजी चौहान शामगढ़ एवं रामचंद्रजी चौहान मनासा ,


प्रभुलालजी मकवाना मोडक,देवीलालजी सोलंकी बोलिया वाले और


कन्हैयालाजी पंवार गुराडिया नरसिंह का सक्रिय सहयोग प्राप्त हुआ। मैने संघ का संविधान सन 1965 में लिपिबद्ध किया और 
डॉ.लक्ष्मीनारायण जी अलौकिक के माध्यम से रसायन प्रेस दिल्ली से छपवाकर प्रचारित-प्रसारित किया |

दामोदर युवक संघ का प्रथम अधिवेशन 14 जुन 1965 को शामगढ में पूरालालजी राठौर के निवास पर हुआ ।अधिवेशन में 134 दर्जी बंधु उपस्थित हुए। इस अधिवेशन मे श्री रामचन्द्रजी सिसोदिया को अध्यक्ष, डॉ.दयारामजी आलोक को संचालक,और श्री सीतारामज्री संतोषी को कोषाध्यक्ष बनाया गया। सदस्यता अभियान चलाकर ५० नये पैसे वाले करीब ७२५ सदस्य बनाये गये।

>मकवाना :-- दामोदर दर्जी समाज के डग स्थित श्री सत्यनारायण मंदिर का जीर्णोद्धार और उद्ध्यापन का काम आपने किस तरह संचालित किया? संक्षेप में बताएं।
डॉ.दयाराम आलोक :--डग मंदिर मे भगवान सत्यनारायण की मूर्ति की प्राण-प्रतिष्ठा करवाने के उद्देश्य से मैं 15 मई 1966 के दिन डग गया था। डग के स्थानीय दर्जी बंधुओं की मिटिंग मन्दिर में बुलाइ गई। लंबे विचार विमर्श के बाद डग के सभी दर्जी बंधुओं(सर्वश्री 
गोरधनलालजी सोलंकी,बालमुकंदजी पंवार,नाथूलालजी सोलंकी ,रामकिशनजी चौहान ,गगारामजी पँवार ,सालगरामजी सोलंकी , भगवानजी सोलंकी ,रतनलालजी पँवार ,नाथूलालजी,भंवरलालजी सोलंकी ,कन्हैयालालजी पंवार चेनाजी राठौर आदि) ने एक लिखित प्रस्ताव पर हस्ताक्षर कर मंदिर उद्ध्यापन का कार्य मेरे नेतृत्व में दामोदर दर्जी युवक संघ के सुपर्द कर दिया। उस समय मेरी उम्र यही कोई २५ साल की थी। इतनी कम उम्र में डग के बुजुर्ग दर्जी बंधुओं का मंदिर के उद्ध्यापन जैसे बडे और महत्वपूर्ण कार्य के लिये विश्वास और आशीर्वाद  हासिल कर लेना मेरी सामाजिक जिंदगी की सबसे बडी सफ़लताओं  की एक महत्वपूर्ण कड़ी मानी जा सकती है| 
अर्द्ध शताब्दी  से भी ज्यादा  पुराना यह दस्तावेज दर्जी बंधुओं के समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूं।



यह डाक्यूमेंट दामोदर दर्जी महासंघ के कार्यालय में मौजूद है।

दामोदर दर्जी समाज के डग स्थित भगवान सत्यनारायण मंदिर मे मूर्ति प्राण प्रतिष्ठा अनुष्ठान 

  बंधुओं,दामोदर दर्जी समाज के डग मंदिर में भगवान सत्यनारायण की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा करने की कठिन जिम्मेदारी मैने परमात्मा के आशीर्वाद ,समाज के बुजुर्ग,प्रतिष्ठित दर्जी बंधुओं तथा दामोदर दर्जी महासंघ के उत्साही सदस्यों के माध्यम से निभाई और समाज के लोगों के आर्थिक सहयोग से 23 जून 1966 के दिन डग में मूर्ति प्राण प्रतिष्ठा उत्सव आयोजित किया गया।उल्लेखनीय है कि इसी दिन दामोदर दर्जी युवक संघ का दूसरा जनरल अधिवेशन भी संपन्न हुआ था।उध्यापन के लिए चंदा राशि संगृह करने के लिए दामोदर युवक संघ की रसीद बुक्स  उपयोग मे लाई गई थी|

मकवाना :-- सामुहिक विवाह सम्मेलन की नींव डालते हुए आपने रामपुरा में सन 1981 में प्रथम सामुहिक विवाह सम्मेलन आयोजित कर समाज को एक नई दिशा दी है। इसके बारे में कुछ बताएंगे।

दामोदर दर्जी समाज की आर्थिक बुनियाद 

डॉ.दयाराम आलोक :-- हमारे दर्जी समाज की आर्थिक बुनियाद सनातन काल से कमजोर रही है। सामूहिक विवाह से धन की बचत होती है । राजस्थान में सामूहिक विवाह होने लगे थे लेकिन मध्यप्रदेश में ऐसे आयोजन शुरू नहीं हुए थे। अत: मन में विचार आया कि रामपुरा नगर में दर्जी समाज का प्रथम सामूहिक विवाह सम्मेलन का आयोजन किया जावे। बस, रामपुरा के उत्साही युवकों को अपने विचार बताए और उनके सक्रिय सहयोग से 1981 में प्रथम समूहिक विवाह सम्मेलन आयोजित किया जिसकी आशातीत सफलता से भविष्य मे समाज हित मे ऐसे ही आयोजन करने की अवधारणा मजबूत हुई|

सामूहिक विवाह सम्मेलन के बारे मे लोगों की सोच क्या थी? 


 बंधुओं,वह ऐसा समय था जब लोग सम्मेलन के नाम से नाक-भोंह सिकोडते थे और सामूहिक विवाह सम्मेलन को अच्छी निगाह से नहीं देखते थे। बाद में धीरे- धीरे सम्मेलन के प्रति लोगों की रूचि बढने लगी और अन्य स्थानों पर भी दर्जी समाज के सामूहिक विवाह के आयोजन होने लगे। अब आप देख ही रहे हैं कि प्रति वर्ष या हर दूसरे साल सम्मेलन होने लगे हैं। दामोदर दर्जी महासंघ के बेनर तले 9 सामूहिक विवाह सम्मेलन हो चुके हैं। सातवां सामूहिक विवाह सम्मेलन 27 फ़रवरी 2012 को शामगढ में आयोजित किया गया।

मकवाना :--मैंने आपकी कई कविताएं पत्र-पत्रिकाओं में पढी हैं । अपनी साहित्यिक गतिविधियों पर प्रकाश डालें।

डॉ.दयाराम आलोक:--मेरे अग्रज डॉ.लक्ष्मीनारायण जी अलौकिक की साहित्यिक गतिविधियों का मुझ पर असीम प्रभाव पडा। 60 के दशक में अलौकिक जी दिल्ली,बिकानेर,मथुरा से प्रकाशित मासिक पत्रिकाओं के सह संपादक रहे। उनके लेख नियमित छपते थे।उन्ही दिनों मैने कविता लिखना प्रारंभ किया। मेरी प्रथम रचना"तुमने मेरी चिर साधों को झंकृत और साकार किया है" बिकानेर से निकलने वाली पत्रिका "स्वास्थ्यसरिता" में सन 1963 में प्रकाशित हुई थी।स्वर्गीय श्री ज्ञानप्रकाशजी जैन इस मासिक पत्रिका के संपादक थे। कविता लिखने का सिलसिला जारी रहा और मेरी रचनाएं कादंबिनी ,दैनिक नव ज्योति ,दैनिक जागरण,इन्दौर समाचार ,प्रजादूत,प्रभात किरण, मालव समाचार ,ध्वज मंदसौर ,नई विधा, डिम्पल आदि पत्र-पत्रिकाओं में नियमित अंतराल से प्रकाशित होते रहे। अब तक करीब 150 रचनाएं प्रकाशित हुई हैं।

मकवाना :-- आप संपूर्ण दर्जी परिवारों की जानकारी एकत्र कर रहे हैं ,इसके पीछे आपका क्या प्रयोजन है।

डॉ.दयाराम आलोक :--जिस समाज के हम अंग हैं उसके बारे में जानकारी एकत्र करना हमारा कर्तव्य है|  सन 1965 से ही मैने दर्जी परिवारों की जानकारी


बकायदा निर्धारित छपे हुए फ़ार्म में लिखनी शुरू कर दी थी। आज महासंघ के दफ़्तर में समाज के सभी परिवारों की जानकारी उपलब्ध है।

 मेरे अनुज



श्री रमेशचंद्र राठोर आशुतोष ने दर्जी समाज के परिवारों की जानकारी की दो स्मारिकाओं का सफ़ल संपादन किया और 1993 तथा 2000  में प्रकाशित ये पुस्तकें  दर्जी समाज की जानकारी प्राप्त करने के संदर्भ ग्रंथ के रूप में प्रचलित हैं।

 सन 2000 में प्रकाशित ’समाज ज्ञान गंगा” का वित्त पोषण भवानीशंकर जी चौहान सुवासरा ने किया और गांव-गांव जाकर दर्जी बंधुओं की जानकारी भी उन्होने एकत्र की थी। समाज के लोगों की जानकारी इकट्ठा करना बेहद कठिन काम है। इसके लिए आपने मोटर साइकल के माध्यम से समाज की बसाहट वाले सभी गाँव की यात्रा की ।अब जो जानकारी आपने एकत्र की उसके आधार पर भविष्य में भी समाज की नई पुस्तक छापने में मदद मिलेगी। सामूहिक विवाह सम्मेलन मे शादी करना  समाज की प्राथमिकता हो

मेरा परामर्श है कि अगर अपने समा्ज में कहीं सामूहिक विवाह सम्मेलन हो रहा हो तो अपने घर पर शादी करने  की मूर्खता नहीं करनी चाहिये।सामूहिक विवाह में शादी करके धन की बचत करना चाहिये। जिन दर्जी बंधुओं के घर के मकान नहीं हैं उनके लडकों के संबंध करने में अब थौडी दिक्कत आने लगी है। अपनी पुत्री के लिये योग्य वर की तलाश हर पिता का फ़र्ज है। इसी उद्देश्य को पूरा करने के लिये कुछ लोग दाहोद,झाबुआ राणापुर की तरफ़ संबंध करते हैं। इधर समाज में यह चर्चा जोरों पर है कि जो लोग अपनी लडकियां बाहर वाले दर्जियों को देंगे उन पर प्रतिबंध लगाया जावे। मेरा अपना मत है कि प्रतिबंध लगाना लडकियों के लिये योग्य वर की तलाश करने में बाधक और गैर कानूनी कदम होगा ।हमारे पूर्वजों ने भी रामपुरा के कुछ दर्जी बंधुओं के खिलाफ़ जाति से निष्कासन के निर्णय लिये थे लेकिन कालान्तर में वे निर्णय सफ़ल नहीं हुए।
 इसके बजाए अपने लडकों को अच्छा पढाओ, अपनी आर्थिक व्यवस्था सुधारो, रहने के खुद के मकान और दूकान की व्यवस्था करो, अपने आचरण सुधारो ताकि लडकों के कुंवारे रह जाने की नौबत न आवे।
 इधर कुछ अर्से से लडकियों के पैसे लेकर शादी करने का चलन बढता हुआ नजर आ रहा है। पुराने जमाने में भी कुछ लोग लडकियों के पैसे लेते थे। मेरे विचार में लडकी का गरीब पिता शादी में लगने वाला खर्चा लडके वाले से प्राप्त करता है तो इसे सामाजिक बुराई के रूप में देखना ठीक नहीं है।"कैसा कन्या दान ,पिता ही कन्या का धन खाएगा।" गरीब पिता पर यह बात लागू करना अनुचित है।
कुल मिलाकर अब अच्छे पढे लिखे ,सर्विस करने वाले तथा स्वयं के मकान वाले लडकों की मांग रफ्तार पकड़ रही है|  घर का मकान और पढाई दोनों बातों पर ध्यान देना जरूरी है।

मकवाना: अपनी धार्मिक विचारधारा के बारे में कुछ बतायेंगे?

डॉ.दयाराम आलोक की धार्मिक सोच 

डॉ.दयाराम आलोक: हिन्दु,मुस्लिम सिख, इसाई ,जैन बौद्ध सभी का ईश्वर एक है। किसी भी धर्म ग्रंथ मे उल्लेखित विषय पर अपनी विज्ञान सम्मत तर्क शक्ति का समुचित उपयोग करने के बाद ही किसी निष्कर्ष पर पहुंचना चाहिये। धार्मिक पाखंड से स्वयं को दूर रखना चाहिये। हिन्दु धर्म में ईश्वर के निराकार और साकार दोनों रूपों के समर्थक और भक्त हुए हैं। जहां तक मेरा सवाल है मैं निराकार ईश्वर की अवधारणा को सर्वाधिक प्रचलित साकार (मूर्ति रूप ) पर अधिमान्यता देता हूं। । कण-कण में भगवान होने का सिद्धांत ज्यादा उचित लगता है। स्वामी दयानंद सरस्वती और संत कबीर के कई सिद्धांत मानव का कल्याण करने वाले हैं।धर्म का मर्म निम्न दोहों में पूरी तरह समाविष्ट है---

चार वेद छ: शास्त्र में बात लिखी है दोय,
दुख दीन्हे दुख होत है सुख दीन्हे सुख होत॥

निर्बल को न सताईये जा की मोटी हाय,
मुए भेड की खाल से लोह भस्म हुई जाय ॥

कांकर पाथर जोरि के मस्जिद लई चुनाय,
ता चढि मुल्ला बांग दे बहरा हुआ खुदाय?

पाहन पूजे हरि मिले तो मैं जा पूजूं पहाड
या ते तो चाकी भली पीस खाय संसार॥

कस्तूरी कुंडल बसे मृग ढूंढे वन मांहि
तैसे घट-घट राम है दुनिया देखे नाहीं॥

बकरी पाती खात है ताकी खोली खाल
जो नर बकरी खात है उनको कौन हवाल?

नोट-यह आलेख 2012 मे geni.com वेब साईट पर प्रकाशित हुआ था |कुछ संशोधन भी शामिल किए गये हैं|

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