21.1.20

रैबारी समाज का इतिहास ,गोत्र एवं कुलदेवियां:Rebari samaj itihas

Dr.Dayaram Aalok Shamgarh donates sement benches to Hindu temples and Mukti Dham 



रबारी भारत की प्रमुख जन-जाति है। भारत मेँ इस जाति को मुख्य रूप से रेबारी, राईका, देवासी, देसाई, धनगर, पाल, हीरावंशी या गोपालक के नाम से पहचाना जाता है, यह जाति राजपूत जाति से निकल कर आई है, ऐसा कई विद्वानोनो का मानना है। यह जाति भली-भोली और श्रद्धालु होने से देवो का वास इसमे रहता है, या देवताओं के साथ रहने से इसे देवासी के नाम से भी जाना जाता है। भारत मेँ रेबारी जाति मुख्य रूप से राजस्थान, गुजरात, मध्यप्रदेश, उतरप्रदेश, हरियाणा, पंजाब आदि राज्योँ मेँ पायी जाती है| विशेष करके उत्तर, पश्विम और मध्य भारत में। वैसे तो पाकिस्तान में भी अंदाजित 10000 रेबारी है।

Rebari samaj itihas 

 रेबारी जाति का इतिहास बहुत पूराना है। लेकिन शुरू से ही पशुपालन का मुख्य व्यवसाय और घुमंतू (भ्रमणीय) जीवन होने से कोई आधारभुत ऐतिहासिक ग्रंथ लीखा नही गया और अभी जो भी इतिहास मिल रहा है वो दंतकथाओ पर आधारीत है। प्रत्येक जाति की उत्पति के बारे मेँ अलग-अलग राय होती है, उसी प्रकार रेबारी जाति के बारे मेँ भी एक पौराणीक दंतकथा प्रचलित है-कहा जाता है कि माता पार्वती  एक दिन नदी के किनारे गीली मिट्टी से ऊँट जेसी आक्रति बना रही थी तभी वहा भोलेनाथ भी आ गये। माँ पार्वती  ने भगवान शिव से कहा- हे ! महाराज क्योँ न इस मिट्टी की मुर्ति को संजीवीत कर दो। भोलेनाथ ने उस मिट्टी की मुर्ति (ऊँट) को संजीवन कर दिया। माँ पार्वती  ऊँट को जीवित देखकर अति प्रसन्न हुयी और भगवान शिव से कहा-हे ! महाराज जिस प्रकार आप ने मिट्टी के ऊँट को जीवित  प्राणी के रूप मेँ बदला है ,उसी प्रकार आप ऊँट की रखवाली करने के लिए एक मनुष्य को भी बनाकर दिखलाओँ। आपको पता है। उसी समय भगवान शिव ने अपनी नजर दोडायी सामने एक समला का पैड था, समला के पेड के छिलके से भगवान शिव ने एक मनुष्य को बनाया। समला के पेड से बना मनुष्य सामंड गौत्र(शाख) का रेबारी था। आज भी सामंड गौत्र रेबारी जाति मेँ अग्रणीय है। रेबारी भगवान शिव का परम भगत था।

Rebari samaj itihas 

शिवजी ने रेबारी को ऊँटो के टोलो के साथ भूलोक के लिए विदा किया। उनकी चार बेटी हुई, शिवजी ने उनके ब्याह राजपूत (क्षत्रीय) जाति के पुरुषो के साथ किये, और उनकी संतती हुई वो हिमालय के नियम के बाहर हुई थी इस लिये वो “राहबरी” या “रेबारी” के नाम से जानी जाने लगी! भाट,चारण और वहीवंचाओ के ग्रंथो के आधार पर, मूल पुरुष को 16 लडकीयां हुई और वो 16 लडकीयां का ब्याह 16 क्षत्रीय कुल के पुरुषो साथ किया गया! जो हिमालयके नियम बहार थे, सोलाह की जो वंसज हुए वो राहबारी और बाद मे राहबारी का अपभ्रंश होने से रेबारी के नाम से पहचानने लगे,बाद मे सोलाह की जो संतति जिनकी शाख(गौत्र) राठोड,परमार,सोँलकी, मकवाणा आदी रखी गयी ज्यो-ज्यो वंश आगे बढा रेबारी जाति अनेक शाखाओँ (गोत्र) मेँ बंट गयी। वर्तमान मेँ 133 गोत्र या शाखा उभर के सामने आयी है जिसे विसोतर के नाम से भी जाना जाता है ।
विसोतर का अर्थ- (बीस + सौ + तेरह) मतलब विसोतर यानी 133 गौत्र ॥ प्रथम यह जाति रेबारी से पहचानी गई, लेकीन वो राजपुत्र या राजपूत होने से रायपुत्र के नाम से और रायपुत्र का अपभ्रंश होने से 'रायका' के नाम से , गायो का पालन करने से 'गोपालक' के नाम से, महाभारत के समय मे पांडवो का महत्वपूर्ण काम करने से 'देसाई' के नाम से भी यह जाति पहचानी जाने लगी! एक मान्यता के अनुसार, मक्का-मदीना के इलाको मे मोहम्मद पयंगबर साहब से पहले जो अराजकता फैली थी, जिनके कारणे मूर्ति पूजा का विरोध होने लगा!

Rebari samaj itihas 

 उसके परिणाम से यह जाति ने अपना धर्म बचाना मुश्किल होने लगा! तब अपने देवी-देवताओ को पालखी मे लेके हिमालय के रास्ते से भारत मे प्रवेश कीया होगा. (अभी भी कई रेबारी अपने देवी-देवताको मूर्तिरूप प्रस्थापित नही करते, पालखी मे ही रखते है!) उसमे हूण और शक का टौला सामिल था! रेबारी जाति मे आज भी हूण अटक (Surname) है! इससे यह अनुमान लगाया जाता है की हुण इस रेबारी जाति मे मील गये होंगे! एक ऐसा मत भी है की भगवान परशुराम ने पृथ्वी को 21 बार क्षत्रीय-विहीन किया था, तब 133 क्षत्रीयो ने परशुराम के डर से क्षत्रिय धर्म छोडकर पशुपालन का काम स्वीकार लिया! इस लिये वो 'विहोतर' के नाम से जाने जाने लगे! विहोतेर मतलब 20+100+13=133. पौराणिक बातो मे जो भी हो, किंतु इस जाति का मूल वतन एशिया मायनोर होगा की जहा से आर्यो भारत भूमि मे आये थे! आर्यो का मुख्य व्यवसाय पशुपालन था ओर रेबारी का मुख्य व्यवसाय आज भी पशुपालन हि है! इसी लीये यह अनुमान लगाया जाता है की आर्यो के साथ यह जाती भारत में आयी होंगी!


Gotra wise Kuldevi List of Rabari Tribe : रेबारी समाज की कुलदेवियां इस प्रकार हैं –

Kuldevi List of Rabari Tribe  रैबारी समाज के गोत्र एवं कुलदेवियां 

सं.कुलदेवीउपासक सामाजिक गोत्र (Gotra of Rabari Tribe)
1.
आईनाथ, स्वांगिया माता (Aai Mata, Swangiya Mata)आल (Aal)
2.
बायण माता (Bayan Mata)विपावत, भीम, गांगल, पेवाला, सांगावत
(Vipawat, Bhim, Gangal, Pewala, Sangawat)
3.
चामुण्डा माता (Chamunda Mata)उलवा, आंडु (Ulwa, Andu)
4.
बीसभुजा माता, बीसा माता (सांठिका गांव)
(Bisbhuja Mata / Bisa Mata)
बार (Bar)
5.
आशापुरा माता (नाडोल), (Ashapura Mata)
ममाय देवी (बागोरिया)  (Mamai Mata)
सेलाणा (Selana)
6.
ममाय माता (बागोरिया) (Mamai Mata)साम्भड़, किरमटा, बाछावत, कालर, आजना
(Sambhar, Kirmata, Bachhawat, Kalar, Ajna)
7.
सच्चियाय माता (Sachiya Mata)देऊ, बिड़ा (Deu, Bida)
8.
गाजन देवी (Gajan Devi)पड़िहार (Parihar / Padihara)
9.
ब्राह्मणी माता (सालोड़ी) (Brahmani Mata)लुकाभीम, गधवा भीम (Lukabhim, Gadhwa, Bhim)
बागोरिया स्थित ममाय माता ब्राह्मणी है। सालोड़ी स्थित बायण माता ब्राह्मणी है।
यह विवरण विभिन्न समाजों की प्रतिनिधि संस्थाओं तथा लेखकों द्वारा संकलित एवं प्रकाशित सामग्री पर आधारित है। इसके बारे में प्रबुद्धजनों की सम्मति एवं सुझाव सादर आमन्त्रित हैं।

भारत के  मन्दिरों और मुक्ति धाम हेतु शामगढ़ के समाजसेवी  द्वारा दान की विस्तृत श्रृंखला 



1 टिप्पणी:

बेनामी ने कहा…

Nogoh ki kuldevi