2.10.17

नाई जाती की उत्पत्ति,और इतिहास




नाई जाति के इतिहास के बारे में जानकारीः
नाई जाति के बारे में कहा जाता है कि उनके पहले पूर्वज नाभि थे. नाभि इक्ष्वाकु वंश के राजा थे.
नाई जाति के लोग आम तौर पर शाकाहारी होते हैं.
नाई जाति के लोग वैदिक क्षत्रिय हैं.
नाई जाति के लोगों में कई महान सम्राट, राजा, मंत्री, योद्धा, वीर रक्षक, अंगरक्षक, प्रसिद्ध वैध्य, पंडित (विद्वान), ऋषि, सन्त, योगी, आचार्य आदि श्रेष्ठ व्यक्तित्व रहे हैं.
नाई जाति के लोगों ने ब्रिटिश काल में अपनी सामाजिक स्थिति को ऊपर उठाने की कोशिश की थी.
नाई जाति के लोगों ने 1921 की जनगणना में खुद को ठाकुर और 1931 की जनगणना में ब्राह्मण बताकर अपनी सामाजिक स्थिति को ऊपर उठाने की कोशिश की थी.
नाई जाति के लोगों को केंद्र सरकार ने पिछड़ा वर्ग में घोषित किया है.
नाई जाति के लोगों को राज्य सरकार ने अत्यंत पिछड़ा वर्ग की श्रेणी में शामिल किया है. 
नाई जाति क्षत्रिय वर्ण की चंद्रवंश शाखा में आती है.
रामायण के मुताबिक, सुषेण वैद्य नाई जाति से थे और लंका में वैद्य थे.
नाई जाति की कुलदेवी
श्री लिम्बाच मां हैं.


नाइयों की कुलदेवी चेहर माँ 

को भी प्राचीन समय से नाई जाति के लोग पूजते आ रहे हैं. नाई जाति इक्ष्वाकु वंश से जुड़ी है.
मान्यता है  कि नाई समाज के कुलदेता श्रीश्री बाबा धर्मदास जबकि कुलदेवी नारायणी माता है़।
नाई जाति को हज्जाम, नापति जैसे नामों से भी जाना जाता है.
नाई जाति के लोग कई सरनेमों का इस्तेमाल करते हैं, जैसे कि नाऊ, नौआ, क्षौरिक, नापित, मुंडक, भांडिक, नाइस, सैन, सेन, सविता-समाज, मंगला इत्यादि. आधुनिक समय में उत्तरी भारत में नाई खुद को नाई के बजाय "सैन" कहते हैं
नाई शब्द की उत्पत्ति संस्कृत के 'नाय' शब्द से हुई है. इसका मतलब है जो समाज का नेतृत्व करता है और समाज को न्याय देता है.
दरअसल, प्राचीन काल मे लोग बाल कटवाने का नही बल्कि उनको लंबे रखने का शौक रखते थे. एसे मे बाल काटने वालो की यदा-कदा ही जरूरत पडती होगी या फिर यूं कहे कि उस समय नाई जाति का ही अस्तित्व नही था.लेकिन कुछ लोग थे जो अपने पास कैंची आदि रखकर लोगो के घायलावस्था मे उनके बालो की सफाई करके मरहम-पट्टी का कार्य किया करते थे.
नाई , जिसे सैन के नाम से भी जाना जाता है, नाई की व्यावसायिक जातियों के लिए एक सामान्य शब्द है। कहा जाता है कि यह नाम संस्कृत शब्द नापिता (नापित) से लिया गया है। आधुनिक समय में उत्तरी भारत में नाई खुद को नाई के बजाय "सैन" कहते हैं।
गुजरात में नाई जाति को वालंद के नाम से जाना जाता है
नाई तमिल क्षेत्र में नाई जाति के कुछ सदस्य चिकित्सा का काम करते है और उन्हें अंबाथन कहा जाता है 
इस समुदाय का पारंपरिक व्यवसाय नाईगिरी है।
 वे विवाह के लिए वर -वधू की जोड़ियां खोजने का काम भी करते हैं। समुदाय के शिक्षित लोगों ने व्यापार और सेवा जैसे कई अन्य व्यवसाय अपनाए हैं।
नाई जाति के लोगों के परम गुरु धनवंतरि और चरक थे.
''नाई'' या ''न्यायी''?
" नाई " शब्द की उत्पत्ति संस्कृत भाषा के 'नाय' से मानी गयी है, जिसका हिन्दी अर्थ है- नेतृत्व करने वाला अर्थात् वह जो समाज का नेतृत्व करे या न्यायी जो न्याय करे ।

नाई कौन से कास्ट में आते हैं?

केंद्र सरकार द्वारा दी गई आरक्षण में नाई जाति को पिछड़ा वर्ग तो घोषित किया गया। किंतु पिछड़े वर्ग में अन्य दूसरी जाति के दबंग एवं संपन्न लोगों ने हर लाभ से इस समाज को वंचित कर दिया। वहीं राज्य सरकार ने नाई जाति को अत्यंत पिछड़ा वर्ग की श्रेणी में शामिल किया।
जमशेदपुर में बनेगा नाई समाज के कुलदेवता बाबा धर्मदास का मंदिर जमशेदपुर में नाई समाज के कुलदेवता श्री बाबा धर्मदास मंदिर बनेगा।
नाई समाज का गोत्र क्या है?
नाईयों के कई गोत्र और वंश हैं।नाई जाति के कुछ गोत्र ये रहे:
कुकडेला, नरेडिया, चौहान मोरवाल, कुटनिया, नागल, मोरोठीया, कैतोदिया, नागवान, मोहदोवरीया, कौशल,पड़िहार,तंवर,गहलोत,गोयल,देवड़ा,सोलंकी,राठौर,सीसोदिया,गंगवाल ,परमार,पँवार,कछावा आदि 

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