11.5.21

बांछड़ा जाती की जानकारी:Banchada caste history

Dr.Dayaram Aalok donates benches to Hindu temples and Mukti Dham 


भारत में बेटियों के लिए और महिलाओं के लिए कई सरकार द्वारा कई स्कीम चलाई गई हैं. उज्जवला योजना से लेकर विधवा पेंशन तक ऐसा बहुत कुछ है जो महिलाओं की भलाई के लिए किया गया है, लेकिन फिर भी बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ का नारा देने वाले इस देश में बच्चियों का गर्भपात करवाया जाता है और पुरुष और महिलाओं की संख्या में बहुत बड़ा फर्क है. पर देश का एक समुदाय ऐसा है जो बेटी के पैदा होने पर खुशियां भी मनाता है और उन्हें बहुत अच्छे से पालता भी है. उन्हें काम भी करने देता है पर काम क्या है ये जानकर कोई भी समाज या सरकार चिंता में पड़ जाएगी!
मध्यप्रदेश का बांछड़ा समुदाय लड़कियों के पैदा होने पर खुशियां मनाता है क्योंकि इस समुदाय के लोग जिस्मफरोशी के धंधे से अपना घर चलाते हैं. लड़की पैदा होने का मतलब है एक और इंसान हो जाएगा घर चलाने के लिए.
हमारे सभ्य समाज के लोगों को वेश्यावृति के बारे में बात करने में शर्म आती है क्योंकि इसे वो सही नहीं मानते, घिनौना काम मानते हैं, लेकिन ये ही लोग दिन के उजाले से निकलते ही रात के अंधियारे में इन इलाकों की ख़ाक छानना शुरू कर देते हैं। ये बात भले ही आम लोगों के लिए चौंकाने वाली हो, लेकिन मालवा अंचल में 200 वर्षों से बेटी को सेक्स बाज़ार में धकेलने की परंपरा चली आ रही है। दरअसल इन गांवों में रहने वाले ‘बांछड़ा समुदाय’ के लिए बेटी के जिस्म का सौदा आजीविका का एकमात्र ज़रिया बना हुआ है, यहां 'वेश्यावृती' एक परंपरा है।
वैसे तो भारतीय समाज में आज भी बेटी को बोझ समझा जाता हो, लेकिन बांछड़ा समुदाय में बेटी पैदा होने पर जश्न मनाया जाता है। बेटी के जन्म की खूब धूम होती है क्योंकि ये बेटी बड़ी होकर कमाई का ज़रिया बनती है.. चलो कहीं तो बेटियां आगे हैं (शर्मनाक)। इस समुदाय में यदि कोई लड़का शादी करना चाहे तो उसे दहेज़ में 15 लाख रुपए देना अनिवार्य है। इस वजह से बांछड़ा समुदाय के अधिकांश लड़के कुंवारे ही रह जाते हैं। यहां पर ये धंधा या कहें कि गंदगी इतनी फैल चुकी है कि बाछड़ा समाज देह मंडी के रूप में कुख्यात है, जो वेश्यावृत्ति के दूसरे ठिकानों की तुलना में इस मायने में अनूठे हैं, कि यहां सदियों से लोग अपनी ही बेटियों को इस काम में लगाए हुए हैं। इनके लिए ज्यादा बेटियों का मतलब है, ज्यादा ग्राहक!
 भारत में एक ऐसी जगह है जहां खुद मां-बाप अपने बेटी से जिस्‍मफरोशी का धंधा करवाते हैं और खुद ही ग्राहक भी ढूंढ कर लाते हैं तो आप यकीन नहीं करेंगे। लेकिन बता दें कि ये सच है। इस जगह बेटी पैदा होने पर जश्‍न मनाया जाता है। इस जश्‍न के पीछे का कारण भी उतना ही भयावह है। हम बात कर रहे हैं मध्यप्रदेश के मालवा इलाके के रतलाम, मंदसौर और नीमच जिलों में निवास करने वाले बांछड़ा समुदाय की जहां लड़की होने पर जश्न इसलिए मनाया जाता है ताकि बड़ा होने पर उन्हें देह व्यापार के दलदल में धकेला जा सके। अब जो ताजा मामला सामने आया है उसके मुताबिक बांछड़ा समुदाय के लोग दूसरे समुदायों से लड़कियों को खरीद कर उन्हें देह व्यापार में धकेल रहे हैं। पेशे से वकील एक आरटीआई एक्टिविस्‍ट अमित शर्मा ने इस बात पर चिंता जाहिर की है और कहा है कि इस तरह इस गंदे धंधे में शामिल महिलाओं की संख्‍या लगातार बढ़ रही है। विस्‍तार से जानिए पूरा मामला
बेहद अजीब है सामाजिक मान्‍यता
बांछड़ा समुदाय में देहव्यापार को सामाजिक मान्यता है और इसलिये इनके परिवार में लड़की का होना बड़ा अहमियत रखता है। बांछड़ा समुदाय में प्रथा के अनुसार घर में जन्म लेने वाली पहली बेटी को जिस्मफरोशी करनी ही पड़ती है। मालवा में करीब 70 गांवों में जिस्मफरोशी की करीब 250 मंडियां हैं, जहां खुलेआम परिवार के सदस्य ही बेटी के जिस्म का सौदा करते है।
बेटी के लिए ग्राहक पाकर खुश होते हैं मां-बाप इस समुदाय में बेटी के जिस्म के लिए मां-बाप ग्राहक का इंतज़ार करते है। कोई उनकी बेटी के साथ हम बिस्तर होने के लिए राजी हो जाता है तो उन्हें ख़ुशी होती है की चलो ग्राहक तो आया। सौदा होने के बाद बेटियां अपने परिजनों सामने ही हमबिस्‍तर हो जाती हैं। आश्चर्य की बात यह है कि परिवार में सामूहिक रूप से ग्राहक का इंतज़ार होता है, जिसको ग्राह‍क पहले मिलता है उसकी कीमत परिवार में सबसे ज्यादा होती है।
ज्‍यादा बेटी मतलब ज्‍यादा कमाई इस समुदाय में यदि कोई लड़का शादी करना चाहे तो उसे दहेज़ में 15 लाख रुपए देना अनिवार्य है। इस वजह से बांछड़ा समुदाय के अधिकांश लड़के कुंवारे ही रह जाते हैं। यहां पर ये धंधा या कहें कि गंदगी इतनी फैल चुकी है कि बाछड़ा समाज देह मंडी के रूप में कुख्यात है, जो वेश्यावृत्ति के दूसरे ठिकानों की तुलना में इस मायने में अनूठे हैं, कि यहां सदियों से लोग अपनी ही बेटियों को इस काम में लगाए हुए हैं। इनके लिए ज्यादा बेटियों का मतलब है, ज्यादा ग्राहक!
2000 से ज्‍यादा महिलाएं इस धंधे में शामिल बांछड़ा समुदाय के उत्थान के लिए काम करने वाले गैर सरकारी संगठन ‘‘ नई आभा सामाजिक चेतना समिति'' के संयोजक आकाश चौहान ने बताया, ‘‘ मंदसौर, नीमच और रतलाम जिले में 75 गांवों में बांछड़ा समुदाय की 23,000 की आबादी रहती है। इनमें 2,000 से अधिक महिलायें और युवतियां देह व्यापार में लिप्त हैं।'' चौहान ने दावा किया कि मंदसौर जिले की जनगणना के अनुसार यहां 1000 लड़कों पर 927 लड़कियां हैं, पर बांछड़ा समाज में स्थिति उलट है। महिला सशक्तिकरण विभाग द्वारा वर्ष 2015 में कराये गये सर्वे में 38 गांवों में 1047 बांछड़ा परिवार में इनकी कुल आबादी 3435 दर्ज की गयी थी। इनमें 2243 महिलायें और महज 1192 पुरूष थे, यानी पुरूषों के मुकाबले दो गुनी महिलायें।
दूसरे समुदाय की लड़कियां भी हो रही हैं शामिल वहीं नीमच जिले में वर्ष 2012 के एक सर्वे में 24 बांछड़ा बहुल गांवों में 1319 बांछड़ा परिवारों में 3595 महिलायें और 2770 पुरूष पाये गये। इस पूरे मामले में मालवा में पुलिस इंस्पेक्टर अनिरूद्व वाघिया ने बताया कि दूसरे समाज की लड़कियों को खरीदकर उनको वेश्यावृत्ति के धंधे मे धकेलना चौंकाने वाला हैं। नीमच, मन्दसौर जिले में इस तरह के अब तक करीब 70 से अधिक मामले उजागर हो चुके हैं।
 
  मंदसौर, नीमच और रतलाम के 75 गांव में निवासरत बाछड़ा समाज के 30 हजार लोग समाज की पहचान वर्षों से अछूत और आपराधिक प्रवृत्ति वाले होने की रही है। अब बदलाव की बयार चल रही है और निर्मल समाज का गठन कर युवा यह दाग मिटाने के लिए 5 साल से प्रयासरत है। असर यह हुआ कि समाज के 110 लोग कुरीतियों तिलांजलि देकर सरकारी नौकरी कर रहे हैं।
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