हिंदू दर्जी समुदाय का कोई केंद्रीय इतिहास नहीं है। यह उस समुदाय के लोगों पर निर्भर करता है जहां वे रह रहे थे। कुछ लोगों से अपने इतिहास से संबंधित प्राचीन और मध्यकालीन युग , कुछ से संबंधित Tretayuga (चार में से एक युग में वर्णित हिंदू प्राचीन ग्रंथों की तरह, वेद , पुराण , आदि। लेकिन सभी हिंदू दर्जी समुदाय की उत्पत्ति क्षत्रिय वर्ण से हुई है। क्षत्रिय होने का प्रमाण गोत्र है, इनके गोत्र क्षत्रिय वर्ण से हैं।
मध्यकालीन युग से:
दर्जी जाति मूल रूप से क्षत्रिय लोगों से जुड़ी रही है जो कुछ परिस्थितियों के कारण अहिंसक बन गए जैसे: मुगलों और अन्य राजाओं के बीच लड़े गए हर युद्ध के बाद हमारे लोगों की मौत, मुस्लिम ग्रामीण की क्रूरता, उनकी धर्मांतरण नीतियां। इन घटनाओं को देखकर, कुछ क्षत्रियों ने संत नामदेव , संत कबीरदास , संत रैदास और स्वामी रामानंद के 36 अन्य विद्वानों के साथ भक्ति आंदोलन में शामिल होने का फैसला किया है ।
त्रेतायुग से:
जब भगवान परशुराम क्षत्रियों को नष्ट कर रहे थे तो क्षत्रीय वर्ण के दो भाई मंदिर में छिप जाते हैं और पुजारी द्वारा संरक्षित होते हैं। पुजारी ने एक भाई को कपड़े सिलने और दूसरे को मूर्ति के लिए रंगने और मुहर लगाने का आदेश दिया।
कर्नाटक में दर्जी समाज को पिसे, वेड, काकड़े और सन्यासी के नाम से जाना जाता है. यह मुख्य रूप से एक भूमिहीन या कम भूमि वाला समुदाय है, जिसका परंपरागत व्यवसाय सिलाई (Tailoring) है. आज भी यह मुख्य रूप से अपने पारंपरिक व्यवसाय में लगे हुए हैं. यह खेती भी करने लगे हैं. साथ ही यह शिक्षा और रोजगार के आधुनिक अवसरों का लाभ उठाते हुए अन्य क्षेत्रों में भी अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहे हैं. भारत के आरक्षण प्रणाली के अंतर्गत हिंदू और मुस्लिम दर्जी दोनों को अन्य पिछड़ा वर्ग (Other Backward Class, OBC) के रूप में वर्गीकृत किया गया है.दर्जी जाति के लोग किस धर्म को मानते हैं?
भारत के गुजरात, पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश,महाराष्ट्र , छत्तीसगढ़, उड़ीसा, कर्नाटक, बिहार आदि राज्यों में इनकी अच्छी खासी आबादी है. धर्म से यह हिंदू या मुसलमान हो सकते हैं. हिंदू समुदाय में इन्हें हिंदू दर्जी या क्षत्रिय दर्जी कहा जाता है, क्योंकि इन्हें मुख्य रूप से क्षत्रिय वर्ण का गोत्र माना जाता है.
दर्जी समाज का इतिहास
दर्जी समुदाय की उत्पत्ति के बारे में भारत के अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग किंवदंतियां प्रचलित हैं. गुजरात मे 14 वीं शताब्दी मे जबरन इस्लामिकरण और तत्कालीन इस्लामिक शासकों द्वारा हिंदुओं के प्रति हिंसक घटनाओं से प्रताड़ित होकर दामोदर वंशीय दर्जी समाज जूनागढ़ तथा अन्य स्थानो को छोड़कर मध्य प्रदेश और राजस्थान मे आ बसे |
पहला जत्था 1505 ईस्वी में महमूद बेगड़ा के शासनकाल में विस्थापित हुआ, और दूसरा जत्था 1610 ईस्वी में नवाब मिर्जा जस्साजी खान बाबी के शासनकाल में गुजरात मे अपने मूल स्थानों को छोड़ने पर विवश हुआ और मध्य प्रदेश व राजस्थान मे आकर रहने लगा|
इन दोनों जत्थों के लोगों के गुजरात से पलायन के बीच 105 साल का अंतर होने के कारण, पहले जत्थे के लोग "जूना गुजराती" और दूसरे जत्थे के लोग "नए गुजराती" कहलाने लगे।
संपादक डॉ . दयाराम आलोकजी 9926524852 हैं जो अखिल भारतीय दामोदर दर्जी महासंघ केअध्यक्ष हैं|
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*मंदिरों की बेहतरी हेतु डॉ आलोक का समर्पण भाग 1:-दूधाखेडी गांगासा,रामदेव निपानिया,कालेश्वर बनजारी,पंचमुखी व नवदुर्गा चंद्वासा ,भेरूजी हतई,खंडेराव आगर
*जाति इतिहास : Dr.Aalok भाग २ :-कायस्थ ,खत्री ,रेबारी ,इदरीसी,गायरी,नाई,जैन ,बागरी ,आदिवासी ,भूमिहार
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*जाति इतिहास:Dr.Aalok भाग 4 :-सौंधीया राजपूत ,सुनार ,माली ,ढोली, दर्जी ,पाटीदार ,लोहार,मोची,कुरेशी
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