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18.9.25

धानुक जाति की उत्पत्ति और इतिहास




  धानुक जाति का इतिहास प्राचीन है, जिसकी शुरुआत योद्धाओं और धनुर्धरों के रूप में हुई और यह 'धानुक' शब्द 'धनुष' से उत्पन्न हुआ है। पारंपरिक रूप से धनुष-बाण बनाना और चलाना इनका पेशा रहा है, और इनके वंशज राजा जनक जैसे पौराणिक पात्रों से माने जाते हैं। 

धनुर्धर पूर्वज:

धानुक जाति का मूल नाम 'धानुक' है, जो 'धनुष' शब्द से उत्पन्न हुआ है, जिसका अर्थ धनुष चलाने वाला होता है। ये राजा-महाराजाओं के समय में एक वीर कौम के रूप में जाने जाते थे, जो अपनी धनुर्विद्या के लिए प्रसिद्ध थे।

पौराणिक संबंध:

धानुक जाति किसका वंशज है?
राजा शतधनु जो सत्ययुग में मिथिला के राजा थे उनके ही वंशज आगे जाकर त्रेता मे राजा जनक कहलाये। धानुक जाति के पूर्वज का नाम लेते समय धनका मुनि का नाम लिया जाता है। इस आधार पर ही यह माना जाता है कि धनक मुनि राजा जनक और धानुक जाति के पूर्वज थे .

साहित्य में उल्लेख:

धानुक जाति का उल्लेख प्राचीन साहित्य में भी मिलता है। मालिक मोहम्मद जायसी की 'पद्मावत' और आशीर्वादी लाल श्रीवास्तव की 'दिल्ली सल्तनत' जैसी किताबों में इनका जिक्र है।

पहचान का संघर्ष:

समुदाय के सदस्यों का कहना है कि उन्हें अपनी ऐतिहासिक पहचान के बारे में सही जानकारी नहीं दी गई और इसलिए उन्होंने इसे खोजने की कोशिश नहीं की।

आजीविका:

वर्तमान में धानुक समाज के कई सदस्य खेत में नौकर के रूप में काम करके अपनी आजीविका कमाते हैं, या फिर शिक्षा और व्यावसायिक क्षेत्रों में आगे बढ़ रहे हैं।

क्या धानुक क्षत्रिय हैं?

नहीं, धानुक समाज को वर्तमान में सरकारी तौर पर क्षत्रिय नहीं माना जाता है। ऐतिहासिक रूप से, धानुक जाति के लोग धनुष चलाने वाले योद्धाओं से जुड़े थे और उन्हें सम्मान मिलता था, लेकिन संघर्षों और आक्रमणों के बाद, उनकी भूमि, संपत्ति और प्रतिष्ठा खो गई और उन्हें क्षत्रिय से शूद्र या फिर अनुसूचित जातियों में शामिल कर दिया गया।
 इसके बाद, वे राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात और बिहार जैसे विभिन्न राज्यों में फैल गए।

धानुक जाति के गुरु कौन हैं?



  जाती इतिहासकार डॉ .दयाराम आलोक के मतानुसार  धानुक जाति का कोई एक निश्चित 'गुरु' नहीं है, बल्कि कई सामाजिक और आध्यात्मिक हस्तियों को उनका गुरु माना जाता है। इनमें प्रमुख रूप से संत कबीर दास हैं, जिन्हें कई क्षेत्रों में धानुक समाज अपना गुरु मानता है, 

                                 संत शिरोमणि सुपल भगत 


तथा संत सुपल भगत भी समाज के पूजनीय गुरु हैं। इसके अतिरिक्त, कुल देवता के रूप में महाराजा धनक पूजे जाते हैं, और भगवान शिव को धनुष-बाण प्रदान करने वाले मानते हैं।

कुलदेवता :


धानुक समाज के कुल देवता के रूप मे राघो बाबा, बाबा महतो साहेब, महाराजा धनक, ऋषि धनक पूजे जाते हैं।

धानुक जाति के गोत्र:-

धानुक जाति में अलग-अलग क्षेत्रों और गोत्रों के अनुसार अलग-अलग गोत्र पाए जाते हैं, जिनमें कथरिया, धोसिया, कछवाय, नगेले, लचिया, कनररिया, रकशेले, भटेले आदि प्रमुख हैं. धानुक समाज के गोत्र प्रादेशिक होते हैं, जिसका अर्थ है कि यह जाति के गोत्र क्षेत्र के अनुसार बदलते रहते हैं.

कुछ प्रमुख धानुक गोत्र:

कथरिया, धोसिया, कछवाय, नगेले, लचिया, कनररिया, रितोरिया, रकशेले, भटेले, तुरइयाँ, भिसोरिया, कनपुरिया, सौंनपूरिया, बड़गइयाँ, अजनेरिया, बंजरिया, बड़गोती, हिन्नारिया, चुर्मेले, रोशनपुरिया, सितोरिया.

आधुनिक स्थिति-

अनुसूचित जाति/जनजाति:

कुछ क्षेत्रों में, विशेषकर बिहार में इन्हें 'निचले पिछड़े' के रूप में वर्गीकृत किया गया है। अन्य राज्यों जैसे उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश, चंडीगढ़ और दिल्ली में इन्हें अनुसूचित जाति का दर्जा मिला है।

राजनीतिक चेतना:


                             बिहार के शहीद रामफल मंडल 


  वर्तमान समय में धानुक समाज राजनीतिक रूप से सक्रिय है और अपनी पहचान तथा अधिकारों के लिए संघर्ष कर रहा है, जिसमें बिहार के शहीद रामफल मंडल का भी योगदान है.