27.4.17

आत्मविश्वास बढ़ाने वाले चमत्कारी उपाय:Miraculous measures to increase confidence





आत्मविश्वास बढ़ाने के वास्तु शास्त्र से सम्बंधित उपाय :
* अपने आत्मविश्वास को बढ़ाने के लिए आप हमेशा पूर्व दिशा की तरफ मुहं करके ही खाना खाए.

* अपने आत्मविश्वास को बढ़ाने के लिए आप सुबह जल्दी उठ कर उगते सूर्य पर कम से कम 5 मिनट तक ध्यान करे.
*आप रोज़ सुबह जल्दी उठ कर उगते सूर्य के सामने सूर्य के बारह नामो को जपे, इससे सूर्य देव खुश होते है और आप पर अपनी कृपा दृष्टी बनाये रखते है.
* आप रोज़ सुबह गायत्री मंत्र का भी उच्चारण करे इससे आपका मन शांत होगा और धीरे धीरे आपका आत्मविश्वास भी बढ़ने लगेगा
* आप अपने दाये हाथ की अंगुली में सोने से बनी अंगूठी पहने.
* आप सूरजमुखी के फूल को पूर्व दिशा में रखे, इससे आपके आत्मविश्वास मे बढ़ोतरी होती है.
आप अपने आत्मविश्वास को बढ़ने के लिए वास्तु शास्त्र के अलावा कुछ मनोवैज्ञानिक उपायों को भी अपना सकते है क्योकि अगर आपका मन ठीक होता है तो आपके चेहरे पर चमक आती है और आप अपने जीवन की हर कठिन चुनोतियो को भी हँसते हुए पार कर लेते हो. अपने आत्मविश्वास को बढ़ने के लिए आप इन मनोवैज्ञानिक उपायों को अपना सकते है –
· आपको हर बात को उसके उचित अर्थ के साथ देखना चाहिए और उसके यथार्थ को समझने की कोशिश करनी चाहिए.
· साथ ही आपको अपनी क्षमताओ पर भी पूर्ण विश्वास होना चाहिए.
· अगर आपके जीवन में कुछ उतार चढाव की परिस्तिथियाँ आती है तो आपको उस समय संयम से काम लेना चाहिए और हमेशा आशावादी रहना चाहिए.
आपको अपने आपको इस तरह तैयार करना चाहिए कि आप अपने कार्यो में असफलता पाने के बाद भी उम्मीद न छोड़ो और पुनः प्रयास करने लगो.
· आपको अपने निर्णयों पर भी पूरा भरोसा होना चाहिए, नाकि आप किसी की बातो को सुन कर अपने निर्णय को बदल दो.
· अगर आपको लगता है कि आप आपको दिए गए कार्यो को कर सकते हो तो आप खुद ही पहल करके उन कार्यो की जिम्मेदारियों को ले और उनमे सफलता प्राप्त करके दिखाए.
· आप किसी भी चीज़ को अत्यधिक निजी रूप से और अत्यधिक गंभीरता से न ले क्योकि किसी भी चीज़ की अति अच्छी नही होती.
· आप अपने बारे में अच्छा सोचे और साथ ही अपने साथियो के बारे में भी अच्छा सोचे और उनकी मदद करके उनको खुशियाँ दें.
· एक आत्मविश्वास से भरा इंसान हमेशा जिज्ञासा से भरा होता है तो आप भी अपने अंदर की जिज्ञासा को बढाइये.
· आप कभी भी अपनी सफलताओ पर घमंड ना करे बल्कि अपनी सफलताओ से प्रेरित होकर अपने भविष्य के लिए और लक्ष्य बनाये.

मंदिर जाने के चमत्कार!




मंदिर जाने से होने वाले चमत्कार या वे कारण जिनकी वजह से हमें भी रोज़ मंदिर जाना चाहिए
मंदिर शब्द दो शब्दों (मन + दर) से मिल कर बना है अथार्त हमारे मन का दरवाजा. जहाँ हमारे मन को शांति की अनुभूति होती है और हमे आध्यात्म का अहसास होता है. ऐसी जगह पर जाने के लिए वैसे तो हमे किसी कारण या चमत्कार की जरूरत नही होनी चाहिए किन्तु कहा जाता है कि मानव अपने हर काम को किसी न किसी स्वार्थ के कारण ही करता है तो हम आपको मंदिर जाने से होने वाले चमत्कारों से आज परिचित करना चाहेंगे.

मंदिर में स्थापित भगवान की मूर्ति ही मनुष्य के आस्था और विश्वास का केंद्र होती है. मंदिर की वजह से ही हमारे मन में आस्था का विकास होता है और मंदिर ही हमारे धर्म का प्रतिनिधितव भी करता है. आपने इस बात को महसूस किया होगा कि जब भी आप किसी मंदिर के सामने से गुजरते है तो आपका सिर अपने आप ही आस्था से भगवान के मंदिर के सामने नतमस्तक / झुक हो जाता है. हम सब मंदिर में अपने भगवान के प्रति प्यार, आस्था और अपनी कुछ इच्छाओ की पूर्ति के लिए जाते है लेकिन इनके साथ साथ मंदिर जाने के ओर भी कई लाभ आपको मिलते है. वे सभी चमत्कारिक लाभ निम्नलिखित है.
· जैसाकि हमने आपको ऊपर बताया था कि मंदिर मन का द्वार होता है तो मंदिर एक ऐसा है जहाँ हमारे मन को सुख और शांति का आभास होता है.
· मंदिर एक ऐसी जगह है जहाँ आप अपने अंदर एक नयी शक्ति को अनुभव कर सकते है.
· जहाँ जाने से हमारे मन – मस्तिष्क प्रफ्फुलित हो जाता है और हमे आतंरिक सुख मिलता है.
· जहाँ जाने से आपका पूरा शरीर उत्साह से और उमंग से भर जाता है.
· मंदिर में मंत्रो का उच्चारण होता रहता है तो मंत्रो का मीठा स्वर, घंटे – घड़ियाल, शंख और नगाडो की मीठी ध्वनियाँ सुन कर आपके मन को भी अच्छा लगता है.
मंदिर और मंदिर में होने वाली हर घटना के पीछे एक वज्ञानिक कारण होता है. यहाँ तक मंदिर का निर्माण भी पूरी वज्ञानिक विधि के अनुसार ही किया जाता है, मंदिर का निर्माण वास्तु शास्त्र को भी ध्यान में रख कर किया जाता है और इसे पुरे वास्तुशिल्प के हिसाब से बनाया जाता है, जिससे मंदिर में हमेशा शांति और दिव्यता उत्तपन होती रहे. मंदिर के गुम्बद के शिखर के केंद्र बिंदु के बिलकुल ठीक नीचे ही मूर्ति की स्थापना की जाती है, ऐसा ध्वनि सिद्धांत को ध्यान में रख कर किया जाता है, जिससे जब भी मंदिर में मंत्रोचारण किया जाये तो मंत्रो का स्वर और अन्य ध्वनियाँ गुम्बद में गूंजती रहे और वहां उपस्थित सभी लोग इससे प्रभावित हो सके.मूर्ति का और गुम्बद का केंद्र एक ही होता है जिससे मूर्ति में निरंतर उर्जा प्रवाहित होती रहती है और हम भी जब मूर्ति के सामने अपने शीश को झुकाते है, मूर्ति में भगवान के चरणों को स्पर्श करते है और भगवान के सामने नतमस्तक होते है तो वो उर्जा हमारे शरीर में भी प्रवाहित हो जाती है. ये उर्जा हमारे शरीर में भी शक्ति, उत्त्साह भर देती है. मंदिर से हमारे मन, शरीर और आत्मा को पवित्रता मिलती है और हमे शुद्ध करती है जिसकी वजह से हमारे अन्दर का दिखावा खत्म हो जाता है और हम अंदर और बाहर इसी तरह की शुद्धता का आभास होता है. मंदिर में बजने वाले शंख और घंटो की धवानिया वहन के वातावरण को भी शुद्ध करती है और वातावरण में से कीटाणुओं को भी खत्म करती है. मंदिर में घंटे का भी अपना ही एक महत्व है हम जब भी किसी के घर में प्रवेश करते है तो पहले रिंग बजाते है इसी तरह हम जब मंदिर में जाते है तो घंटा बजा कर ही प्रवेश करना चाहिए जिससे हमारे शिष्टाचार का पता चलता है. घंटे का एक और महत्व है कि ये देव भूमि को जाग्रत करता है जिससे हमारी हर प्रार्थना सुनी जा सके. घंटे और घड़ियाल की ध्वनि काफी दूर तक सुनी देती है और मंदिर के आसपास के सारे वातावरण को शुद्ध कर सके और जिससे लोगो को ये भी पता चल जाता है कि आगे मंदिर है.
मंदिर में जिस देवता या भगवान की मूर्ति की स्थापना होती है उनके प्रति हमारी आस्था और हमारा विश्वास होता है और जब भी हम उस मूर्ति के सामने नतमस्तक होते है तो हम अपने आप को एकाग्र पाते है और हमारी यही एकाग्रता हमे हमारे भगवान के साथ जोडती है और उस वक़्त हम अपने भीतर भी ईश्वर की उपस्तिथि को अनुभव करते है. यही एकाग्रता हमे चिंतन में भी सहायक होती है और चिंतन मनन से हमे हमारी हर समस्या का समाधान भी जल्दी प्राप्त हो जाता है. मंदिर जाने से हम मंदिर में स्थापित देवताओ के सामने नतमस्तक होते है जो एक योग का भी हिस्सा होता है तो हम अनजाने में ही प्रतिदिन एक योग को भी कर लेते है. इससे हमारे शारीरिक, मानशिक तनाव से भी मुक्ति मिलती है साथ ही हमारा आलस भी दूर हो जाता है. मंदिर में एक प्रथा परिक्रमा की भी होती है जिसमे आपको पैदल चलना पड़ता है. और आप तो जानते ही है कि यह भी एक प्रकार का व्यायाम है. हमे परिक्रमा नंगे पैरो से करनी होती है और एक शोध में पता चला है कि नंगे पैरो से मंदिर में जाने से पगतलो में एक्यूप्रेशर भी होता है. ये हमारे शरीर के कई अहम बिन्दुओ पर अनुकूल दबाव डालते है. जिससे हमारे स्वास्थ्य में भी लाभ मिलता है.
मंदिर को वज्ञानिक शाला के रूप में बनाने के पीछे हमारे पूर्वजो का और ऋषि – मुनियों का यही लक्ष्य था कि हम प्रतिदिन सुबह अपने कामो पर जाने से पहले मंदिर जाकर सकारात्मक उर्जा को ले सके और शाम को जब हम अपने घर थक कर आते है तो उस वक़्त भी हम मंदिरों से उर्जा को ले कर अपने कर्तव्यों का पालन सफलतापूर्वक कर सके.
इस तरह हमे पता चलता है कि मंदिर सिर्फ हमारी आस्था और हमारे विश्वास का ही केंद्र नही है बल्कि मंदिर हमारी सोच, हमारे विचार, हमारे व्यवहार, हमारे कर्तव्यो, हमारे स्वाथ्य का भी केंद्र है. तो हमे प्रतिदिन मंदिर जरुर जाना चाहिए ताकि आप मंदिर से होने वाले चमत्कारिक और आध्यत्मिक लाभों का फ़ायदा उठा पाए. 









18.4.17

जानिए ,भारत में कहां हुआ था हनुमानजी का जन्म ?





हम में से बहुत कम लोग जानते हैं कि हनुमानजी का जन्म भारत में कहां हुआ था। हनुमानजी की माता का नाम अंजना है इसीलिए उन्हें आंजनेय भी कहा जाता है। उनके पिता का नाम केसरी है इसीलिए उन्हें केसरीनंदन भी कहा जाता है। केसरी को कपिराज भी कहा जाता था, क्योंकि वे कपिक्षेत्र के राजा थे। अब सवाल यह उठता है कि यह कपि क्षे‍त्र भारत में कहां स्थित है? इस विषय में विद्वानों में मतभेद हैं।
हनुमानजी का जन्म कल्पभेद से कई विद्वान चैत्र सुद 1 मघा नक्षत्र को मानते हैं। कोई कार्तिक वद 14, कोई कार्तिक सुद 15 को मानते हैं। कुछ चैत्र माह की पूर्णिमा को उनके जन्म का समय मानते हैं और कुछ कार्तिक, कृष्ण चतुर्दशी की महानिशाको, लेकिन ज्यादातर जगह चैत्र माह की पूर्णिमा को मान्यता मिली हुई है।
हनुमानजीकी जन्मतिथि को लेकर मतभेद हैं। कुछ हनुमान जन्मोत्सव की तिथि कार्तिक कृष्णचतुर्दशी मानते हैं तो कुछ चैत्र शुक्ल पूर्णिमा। इस विषय में ग्रंथों में दोनों के ही उल्लेख मिलते हैं, किंतु इनके कारणों में भिन्नता है। वास्तव में पहला जन्मदिवस है और दूसरा विजय अभिनन्दन महोत्सव।
1. डांग जिला का अंजनी पर्वत : कुछ विद्वान मानते हैं कि नवसारी (गुजरात) स्थित डांग जिला पूर्व काल में दंडकारण्य प्रदेश के रूप में पहचाना जाता था। इस दंडकारण्य में राम ने अपने जीवन के 10 वर्ष गुजारे थे।डांग जिला आदिवासियों का क्षेत्र है। आजकल यहां ईसाई मिशनरी सक्रिय है। हालांकि आदिवासियों के प्रमुख देव राम हैं। आदिवासी मानते हैं कि भगवान राम वनवास के दौरान पंचवटी की ओर जाते समय डांग प्रदेश से गुजरे थे। डांग जिले के सुबिर के पास भगवान राम और लक्ष्मण को शबरी माता ने बेर खिलाए थे। शबरी भील समाज से थी। आज यह स्थल शबरी धाम नाम से जाना जाता है।
शबरीधाम से लगभग 7 किमी की दूरी पर पूर्णा नदी पर स्थित पंपा सरोवर है। यहीं मातंग ऋषिका आश्रम था। डांग जिले के आदिवासियों की सबसे प्रबल मान्यता यह भी है कि डांग जिले के अंजना पर्वत में स्थित अंजनी गुफा में ही हनुमानजीका जन्म हुआ था।

कैथल का अंजनी मंदिर : कैथल हरियाणा प्रान्त का एक शहर है। इसकी सीमा करनाल, कुरुक्षेत्र, जिंद, और पंजाब के पटियाला जिले से मिली हुई है। इसे वानर राज हनुमान का जन्म स्थान माना जाता है।   इसका प्राचीन नाम था कपिस्थल। कपिस्थल कुरू साम्राज्य का एक प्रमुख भाग था। आधुनिक कैथल पहले करनाल जिले का भाग था।  
पुराणों के अनुसार इसे वानरराज हनुमान का जन्म स्थान माना जाता है। कपि के राजा होने के कारण हनुमानजी के पिता को कपिराज कहा जाता था।  कैथल में पर्यटक ऐतिहासिक और पौराणिक कथाओं से जुड़े अवशेष भी देखे जा सकते हैं। इसके अलावा यहां पर हनुमानजी की माता अंजनी का एक प्राचीन मंदिर भी और अजान किला भी।