26.3.23

अलंकार किसे कहते हैं :प्रकार व् भेद ,Alankar parichay

 



अलंकार जो साहित्य को अलंकृत करते हैं। अलंकार संगीत के लिए जिनका अभ्यास किया जाता है अलंकार जो प्रमुख व्यक्तियों को सम्मानित करने के लिए दिए जाते हैं। अलंकार जो शरीर का सौंदर्य बढ़ाने के लिए धारण किए जाते हैं। संस्कृत के अलंकार संप्रदाय के प्रतिष्ठापक आचार्य दण्डी के शब्दों में 'काव्य' शोभाकरान धर्मान अलंकारान प्रचक्षते' - काव्य के शोभाकारक धर्म (गुण) अलंकार कहलाते हैं। हिन्दी के कवि केशवदास एक अलंकारवादी हैं।

सामान्यत: कथनीय वस्तु को अच्छे से अच्छे रूप में अभिव्यक्ति देने के विचार से अलंकार प्रयुक्त होते हैं। इनके द्वारा या तो भावों को उत्कर्ष प्रदान किया जाता है या रूप, गुण, तथा क्रिया का अधिक तीव्र अनुभव कराया जाता है। अत: मन का ओज ही अलंकारों का वास्तविक कारण है। रुचिभेद आएँबर और चमत्कारप्रिय व्यक्ति शब्दालंकारों का और भावुक व्यक्ति अर्थालंकारों का प्रयोग करता है। शब्दालंकारों के प्रयोग में पुररुक्ति, प्रयत्नलाघव तथा उच्चारण या ध्वनिसाम्य मुख्य आधारभूत सिद्धांत माने जाते हैं और पुनरुक्ति को ही आवृत्ति कहकर इसके वर्ण, शब्द तथा पद के क्रम से तीन भेद माने जाते हैं, जिनमें क्रमश: अनुप्रास और छेक एवं यमक, पररुक्तावदाभास तथा लाटानुप्रास को ग्रहण किया जाता है। वृत्यनुप्रास प्रयत्नलाघव का उदाहरण है। वृत्तियों और रीतियों का आविष्कर इसी प्रयत्नलाघव के कारण होता है। श्रुत्यनुप्रास में ध्वनिसाम्य स्पष्ट है ही। इन प्रवृत्तियों के अतिरिक्त चित्रालंकारों की रचना में कौतूहलप्रियता, वक्रोक्ति, अन्योक्ति तथा विभावनादि अर्थालंकारों की रचना मं वैचित्र्य में आनंद मानने की वृत्ति कार्यरत रहती हैं। भावाभिव्यंजन, न्यूनाधिकारिणी तथा तर्कना नामक मनोवृत्तियों के आधार पर अर्थालंकारों का गठन होता है।
विशेष -
ध्वन्यालोक में "अनन्ता हि वाग्विकल्पा:" कहकर अलंकारों की अगणेयता की ओर संकेत किया गया है। दंडी ने "ते चाद्यापि विकल्प्यंते" कहकर इनकी नित्य संख्यवृद्धि का ही निर्देश किया है। तथापि विचारकों ने अलंकारों को शब्दालंकार, अर्थालंकार, रसालंकार, भावालंकार, मिश्रालंकार, उभयालंकार तथा संसृष्टि और संकर नामक भेदों में बाँटा है। इनमें प्रमुख शब्द तथा अर्थ के आश्रित अलंकार हैं। यह विभाग अन्वयव्यतिरेक के आधार पर किया जाता है। जब किसी शब्द के पर्यायवाची का प्रयोग करने से पंक्ति में ध्वनि का वही चारुत्व न रहे तब मूल शब्द के प्रयोग में शब्दालंकार होता है और जब शब्द के पर्यायवाची के प्रयोग से भी अर्थ की चारुता में अंतर न आता हो तब अर्थालंकार होता है। सादृश्य आदि को अलंकारों के मूल में पाकर पहले पहले उद्भट ने विषयानुसार, कुल 44 अलंकारों को छह वर्गों में विभाजित किया था, किंतु इनसे अलंकारों के विकास की भिन्न अवस्थाओं पर प्रकाश पड़ने की अपेक्षा भिन्न प्रवृत्तियों का ही पता चलता है। वैज्ञानिक वर्गीकरण की दृष्टि से तो रुद्रट ने ही पहली बार सफलता प्राप्त की है। उन्होंने वास्तव, औपम्य, अतिशय और श्लेष को आधार मानकर उनके चार वर्ग किए हैं। वस्तु के स्वरूप का वर्णन वास्तव है। इसके अंतर्गत 23 अलंकार आते हैं। किसी वस्तु के स्वरूप की किसी अप्रस्तुत से तुलना करके स्पष्टतापूर्वक उसे उपस्थित करने पर औपम्यमूलक 21 अलंकार माने जाते हैं। अर्थ तथा धर्म के नियमों के विपर्यय में अतिशयमूलक 12 अलंकार और अनेक अर्थोंवाले पदों से एक ही अर्थ का बोध करानेवाले श्लेषमूलक 10 अलंकार होते हैं।
अलंकार को दो भागों में विभाजित किया गया है:-
शब्दालंकार- शब्द पर आश्रित अलंकार
अर्थालंकार- अर्थ पर आश्रित अलंकार
शब्दालंकार - ये शब्द पर आधारित होते हैं ! प्रमुख शब्दालंकार हैं - अनुप्रास , यमक , शलेष , पुनरुक्ति , वक्रोक्ति आदि !

अर्थालंकार -

ये अर्थ पर आधारित होते हैं ! प्रमुख अर्थालंकार हैं - उपमा , रूपक , उत्प्रेक्षा, प्रतीप , व्यतिरेक , विभावना , विशेषोक्ति ,अर्थान्तरन्यास , उल्लेख , दृष्टान्त, विरोधाभास , भ्रांतिमान आदि !
उभयालंकार- उभयालंकार शब्द और अर्थ दोनों पर आश्रित रहकर दोनों को चमत्कृत करते हैं!
शब्दालंकार के भाग

1- अनुप्रास -

जहां किसी वर्ण की अनेक बार क्रम से आवृत्ति हो वहां अनुप्रास अलंकार होता है ! जैसे -
भूरी -भूरी भेदभाव भूमि से भगा दिया ।
' भ ' की आवृत्ति अनेक बार होने से यहां अनुप्रास अलंकार है !

2- यमक -


जहाँ कोई शब्द एक से अधिक बार प्रयुक्त हो और उसके अर्थ अलग -अलग हों वहाँ यमक अलंकार होता है ! जैसे -
सजना है मुझे सजना के लिए ।
यहाँ पहले सजना का अर्थ है - श्रृंगार करना और दूसरे सजना का अर्थ - नायक शब्द दो बार प्रयुक्त है ,अर्थ अलग -अलग हैं ! अत: यमक अलंकार है !

3- शलेष -

जहाँ कोई शब्द एक ही बार प्रयुक्त हो , किन्तु प्रसंग भेद में उसके अर्थ एक से अधिक हों , वहां शलेष अलंकार है ! जैसे -
रहिमन पानी राखिए बिन पानी सब सून ।
पानी गए न ऊबरै मोती मानस चून ।।
यहाँ पानी के तीन अर्थ हैं - कान्ति , आत्म - सम्मान और जल ! अत: शलेष अलंकार है , क्योंकि पानी शब्द एक ही बार प्रयुक्त है तथा उसके अर्थ तीन हैं !
अर्थालंकार के भाग

1- उपमा -

जहाँ गुण , धर्म या क्रिया के आधार पर उपमेय की तुलना उपमान से की जाती है
जैसे -
हरिपद कोमल कमल से ।
हरिपद ( उपमेय )की तुलना कमल ( उपमान ) से कोमलता के कारण की गई ! अत: उपमा अलंकार है !

2- रूपक -


जहाँ उपमेय पर उपमान का अभेद आरोप किया जाता है ! जैसे -
अम्बर पनघट में डुबो रही ताराघट उषा नागरी ।
आकाश रूपी पनघट में उषा रूपी स्त्री तारा रूपी घड़े डुबो रही है ! यहाँ आकाश पर पनघट का , उषा पर स्त्री का और तारा पर घड़े का आरोप होने से रूपक अलंकार है !

3- उत्प्रेक्षा -

उपमेय में उपमान की कल्पना या सम्भावना होने पर उत्प्रेक्षा अलंकार होता है !
जैसे -
मुख मानो चन्द्रमा है ।
यहाँ मुख ( उपमेय ) को चन्द्रमा ( उपमान ) मान लिया गया है ! यहाँ उत्प्रेक्षा अलंकार है !
इस अलंकार की पहचान मनु , मानो , जनु , जानो शब्दों से होती है !

4- विभावना -

जहां कारण के अभाव में भी कार्य हो रहा हो , वहां विभावना अलंकार है !जैसे -
बिनु पग चलै सुनै बिनु काना ।
वह ( भगवान ) बिना पैरों के चलता है और बिना कानों के सुनता है ! कारण के अभाव में कार्य होने से यहां विभावना अलंकार है !

5- भ्रान्तिमान -

उपमेय में उपमान की भ्रान्ति होने से और तदनुरूप क्रिया होने से भ्रान्तिमान अलंकार होता है ! जैसे -
नाक का मोती अधर की कान्ति से , बीज दाड़िम का समझकर भ्रान्ति से,
देखकर सहसा हुआ शुक मौन है, सोचता है अन्य शुक यह कौन है ?
यहां नाक में तोते का और दन्त पंक्ति में अनार के दाने का भ्रम हुआ है , यहां भ्रान्तिमान अलंकार है !

6- सन्देह -

जहां उपमेय के लिए दिए गए उपमानों में सन्देह बना रहे तथा निशचय न हो सके, वहां सन्देह अलंकार होता है !जैसे -
सारी बीच नारी है कि नारी बीच सारी है ।
सारी ही की नारी है कि नारी की ही सारी है ।

व्यतिरेक अलंकार

जहां कारण बताते हुए उपमेय की श्रेष्ठता उपमान से बताई गई हो , वहां व्यतिरेक अलंकार होता है !जैसे -
का सरवरि तेहिं देउं मयंकू । चांद कलंकी वह निकलंकू ।।
मुख की समानता चन्द्रमा से कैसे दूं ? चन्द्रमा में तो कलंक है , जबकि मुख निष्कलंक है !

8- असंगति -

कारण और कार्य में संगति न होने पर असंगति अलंकार होता है ! जैसे -
हृदय घाव मेरे पीर रघुवीरै ।
घाव तो लक्ष्मण के हृदय में हैं , पर पीड़ा राम को है , अत: असंगति अलंकार है !

9- प्रतीप -

प्रतीप का अर्थ है उल्टा या विपरीत । यह उपमा अलंकार के विपरीत होता है । क्योंकि इस अलंकार में उपमान को लज्जित , पराजित या हीन दिखाकर उपमेय की श्रेष्टता बताई जाती है ! जैसे -
सिय मुख समता किमि करै चन्द वापुरो रंक ।
सीताजी के मुख ( उपमेय )की तुलना बेचारा चन्द्रमा ( उपमान )नहीं कर सकता । उपमेय की श्रेष्टता प्रतिपादित होने से यहां प्रतीप अलंकार है !

10- दृष्टान्त -

जहां उपमेय , उपमान और साधारण धर्म का बिम्ब -प्रतिबिम्ब भाव होता है,जैसे-
बसै बुराई जासु तन ,ताही को सन्मान ।
भलो भलो कहि छोड़िए ,खोटे ग्रह जप दान ।।
यहां पूर्वार्द्ध में उपमेय वाक्य और उत्तरार्द्ध में उपमान वाक्य है ।इनमें ' सन्मान होना ' और ' जपदान करना ' ये दो भिन्न -भिन्न धर्म कहे गए हैं । इन दोनों में बिम्ब -प्रतिबिम्ब भाव है । अत: दृष्टान्त अलंकार है !

11- अर्थान्तरन्यास -

जहां सामान्य कथन का विशेष से या विशेष कथन का सामान्य से समर्थन किया जाए , वहां अर्थान्तरन्यास अलंकार होता है ! जैसे -
जो रहीम उत्तम प्रकृति का करि सकत कुसंग ।
चन्दन विष व्यापत नहीं लपटे रहत भुजंग ।।

12- विरोधाभास -

जहां वास्तविक विरोध न होते हुए भी विरोध का आभास मालूम पड़े , वहां विरोधाभास अलंकार होता है ! जैसे -
या अनुरागी चित्त की गति समझें नहीं कोइ ।
ज्यों -ज्यों बूडै स्याम रंग त्यों -त्यों उज्ज्वल होइ ।।
यहां स्याम रंग में डूबने पर भी उज्ज्वल होने में विरोध आभासित होता है , परन्तु वास्तव में ऐसा नहीं है । अत: विरोधाभास अलंकार है !

13- मानवीकरण -

जहां जड़ वस्तुओं या प्रकृति पर मानवीय चेष्टाओं का आरोप किया जाता है , वहां मानवीकरण अलंकार है ! जैसे
फूल हंसे कलियां मुसकाई ।
यहां फूलों का हंसना , कलियों का मुस्कराना मानवीय चेष्टाएं हैं , अत: मानवीकरण अलंकार है!

14- अतिशयोक्ति -

अतिशयोक्ति का अर्थ है - किसी बात को बढ़ा -चढ़ाकर कहना । जब काव्य में कोई बात बहुत बढ़ा -चढ़ाकर कही जाती है तो वहां अतिशयोक्ति अलंकार होता है !जैसे -
लहरें व्योम चूमती उठतीं ।
यहां लहरों को आकाश चूमता हुआ दिखाकर अतिशयोक्ति का विधान किया गया है !

15- वक्रोक्ति -

जहां किसी वाक्य में वक्ता के आशय से भिन्न अर्थ की कल्पना की जाती है , वहां वक्रोक्ति अलंकार होता है !
- इसके दो भेद होते हैं - (1 ) काकु वक्रोक्ति (2) शलेष वक्रोक्ति ।

16- काकु वक्रोक्ति -

वहां होता है जहां वक्ता के कथन का कण्ठ ध्वनि के कारण श्रोता भिन्न अर्थ लगाता है । जैसे -
मैं सुकुमारि नाथ बन जोगू ।

17- शलेष वक्रोक्ति -

जहां शलेष के द्वारा वक्ता के कथन का भिन्न अर्थ लिया जाता है ! जैसे -
को तुम हौ इत आये कहां घनस्याम हौ तौ कितहूं बरसो ।
चितचोर कहावत हैं हम तौ तहां जाहुं जहां धन है सरसों ।।

18- अन्योक्ति -

अन्योक्ति का अर्थ है अन्य के प्रति कही गई उक्ति । इस अलंकार में अप्रस्तुत के माध्यम से प्रस्तुत का वर्णन किया जाता है ! जैसे -
नहिं पराग नहिं मधुर मधु नहिं विकास इहि काल ।
अली कली ही सौं बिध्यौं आगे कौन हवाल ।।
यहां भ्रमर और कली का प्रसंग अप्रस्तुत विधान के रूप में है जिसके माध्यम से राजा जयसिंह को सचेत किया गया है , अत: अन्योक्ति अलंकार है !
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22.3.23

हिंदी साहित्य में नयी कविता:Hindi sahitya me Nai Kavita




 कविता – 1953 ई.से प्रारंभ 


नयी कविता अनेक अर्थों में प्रयोगवाद का विकास मानी जाती है। उसने प्रयोग की अनेक उपलब्धियों को आत्मसात् किया है। ऐतिहासिक दृष्टि से नयी कविता ’दूसरा सप्तक’ (1951) के बाद की कविता को कहा जाता है।

जहाँ तक ’नयी कविता’ के नामकरण का प्रश्न है तो ’नई कविता’ नाम भी अज्ञेय द्वारा ही दिया गया है। सन् 1952 ई. में पटना रेडियो से उन्होंने इसकी घोषणा की थी।

लक्ष्मीकांत वर्मा के अनुसार नयी कविता(nayi kavita) मूलतः 1953 ई. में ’नये पत्ते’ के प्रकाशन के साथ विकसित हुई

जगदीश गुप्त तथा रामस्वरूप चतुर्वेदी के संपादन में प्रकाशित होने वाले संकलन ’नई कविता’ (1954 ई.) में सर्वप्रथम अपने समस्त संभावित प्रतिमानों के साथ प्रकाश में आयी।

1954 ई. में प्रयाग के ’साहित्य सहयोग’ नामक सहकारी संस्थान ने नयी कविता का प्रकाशन किया। इसी नई काव्यधारा को उन प्रतिमानों को लेकर विकसित किया गया, जो तत्कालीन भाव-बोध को वहन करते हुए सर्वथा नयी दृष्टि के साथ अवतरित हो रहे थे। नयी कविता(nayi kavita) का मूल स्रोत उस युग-सत्य और युग यथार्थ में निहित है।

प्रयोगवाद के अनेक कवियों ने प्रयोग को ही कविता का साध्य मान लिया इसलिए 1950 ई. के बाद एक समय प्रयोगवादी कहे जाने वाले कवियों ने ही प्रयोगवाद को नयी कविता की उदार और सहज अन्तर्धारा में विलयित कर दिया।

नयी कविता ने स्वातंत्र्योत्तर भारतीय जीवन आौर व्यक्ति की संश्लिष्ट जीवन-परिस्थितियों का रचनात्मक साक्षात्कार किया।
नयी कविता की विशेषताएँ/ प्रवृतियाँ – Characteristics of a nayi kavitaयथार्थ के प्रति उन्मुक्त दृष्टि
अहं के प्रति सजगता और व्यक्तित्व की खोज
नयी कविता लघुमानव की अवधारणा का सूत्रपात करती है।
नयी कविता आधुनिक भावबोध की कविता है।
निरर्थकता बोध आधुनिक भावबोध की एक स्थिति है।
अभिव्यक्ति की स्वछंद प्रवृत्ति।
आधुनिक यथार्थ से द्रवित व्यंग्यात्मक दृष्टि
क्षणवाद
नई कविता में चार तत्त्व प्रमुख हैं –वर्जना और कुंठा से मुक्ति
क्षणवाद
अनुभूति की सच्चाई
बुद्धिमूलक यथार्थवादी दृष्टि
नई कविता की प्रमुख कवि एवं रचनाएँ
सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ’अज्ञेय’
भग्नदूत (1933), चिन्ता (1942), इत्यलम् (1946),
हरी घास पर क्षण भर (1949), बावन अहेरी (1954), इंद्रधनुष रौदे हुए थे (1957), अरी ओ करुणा प्रभामय (1959), आँगन के पार द्वार (1961), पूर्वा (1965), सुनहले शैवाल (1966), कितनी नावों में कितनी बार (1967), क्योंकि मैं उसे जानता हूँ (1969), सागर मुद्रा (1970), पहले मैं सन्नाटा बुनता हूँ (1973), महावृक्ष के नीचे (1977), नदी की बाँक छाया (1981), ऐसा कोई घर आपने देखा है (1986)।

प्रमुख कविताएँ – (1) असाध्यवीणा, (2) कलगी बाजरे की, (3) साँप (4) नदी के द्वीप (5) यह दीप अकेला।
गजानन माघव ’मुक्तिबोध’

(1) चाँद का मुँह टेढ़ा है (1964), (2) भूरि-भूरि खाक
धूल (1980 ई.)

प्रमुख कविताएँ-अंधेरे में, ब्रह्मराक्षस, अंतःकरण का आयतन आदि।

गिरिजा कुमार माथुर

(1) मंजीर (1941), (2) नाश और निर्माण (1946), (3) धूप के धान, (4) शिला पंख चमकीले (5) छाया मत छूना, (6) भीतरी नदी की यात्रा (1975), (7) अभी कुछ और (8) साक्षी रहे वर्तमान, (9) पृथ्वी कल्प

प्रभाकर माचवे

(1) मेपल (2) स्वप्नभंग, (3) अनुक्षण।
भारतभूषण अग्रवाल

(1) छवि के बंधन (2) जागते रहो (3) मुक्ति मार्ग (4) ओ अप्रस्तुत मन (5) अनुपस्थिति लोग (6) कागज के फूल (7) उतना वह सूरज है (8) अग्निलीक (1976)

शमशेर बहादुर सिंह

(1) कुछ कविताएँ (1959), (2) कुछ और कविताएँ (1961), (3) चुका भी हूँ मैं नहीं (1975), (4) इतने अपने आप (1980), (5) उदिता अभिव्यक्ति का संघर्ष (1980), (6) बातें बोलेगी (1981), (7) काल तुमसे होङ है मेरी (1988), (8) कहीं बहुत दूर से सुन रहा हूँ (1995), (9) सुकून की तलाश (1998)।

केदारनाथ सिंह

(1) अभी बिल्कुल अभी (1976), (2) जमीन पक रही है (1976), (3) अकाल में सारस (1976), (4) यहाँ से देखो (2005), (5) बाघ (2005), (6) उत्तर कबीर और अन्य कविताएँ (2005), तालस्टाय और साईकिल (1995)।

कुँवर नारायण

(1) चक्रव्यूह (1956), (2) परिवेश हम-तुम (1961), (3) आमने-सामने (1979), (4) कोई दूसरा नहीं (1993), (5) आत्मजयी (प्रबन्धकाव्य, 1965), (6) वाजश्रवा के बहाने (प्रबंध काव्य 2008), (7) इन दिनों (2002)।
भवानी प्रसाद मिश्र

(1) गीत फरोश (1953), (2) चकित है दुःख (1968), (3) अंधेरी कविताएँ (1968), (4) गांधी पंचशती (1969), (5) बुनी हुई रस्सी (1971), (6) खुशबू के शिलालेख (1973), (7) व्यक्तिगत (1973), (8) अंतर्गत (1979), (9) अनाम तुम आते हो (1979), (10) परिवर्तन जिए (1976), (11) इद्नमम् (1977), (12) त्रिकाल संध्या (1978), (13) शरीर, कविता, फसलें और फूल (1980), (14) मानसरोवर दिन (1981), (15) सम्प्रति (1982), (16) नीली रेखा तक (1984), (17) तूस की आग (1985), (18) कालजयी (खण्ड काव्य-1980)

प्रमुख कविताएँ- (1) कमल के फूल (2) सतपूङा के जंगल (3) वाणी की दीनता, (4) गीत फरोश (5) टूटने का सुख।

रामविलास शर्मा

(1) रूप तरंग (1956), (2) सदियों के सोए जाग उठे (1988), (3) बुद्ध वैराग्य तथा प्रारंभिक कविताएँ (1997)।

रघुवीर सहाय

(1) सीढ़ियों पर धूप में (1960), (2) आत्महत्या के विरुद्ध (1967), (3) हँसी हँसी जल्दी हँसो (1975), (4) लोग भूल गए हैं (1982), (5) कुछ पते कुछ चिट्ठियाँ (1989), (6) एक समय था।

विजयदेव नारायण साही

(1) साखी (2) मछलीघर (3) संवाद तुमसे।

हरिनारायण व्यास

(1) मृग और तृष्णा, (2) त्रिकोण पर सूर्याेदय, (3) बरगद के चिकने पत्ते।
नरेश मेहता

(1) वन पाखी सुनो (1957), (2) बोलने दो चीङों को (1961), (3) मेरा समर्पित एकांत (1963), (4) पिछले दिनों नंगे पेरों, (5) चैत्या, (6) उत्सवा (1979), (7) संशय की एक रात (प्रबंध काव्य-1962), (8) महाप्रस्थान (1964), (9) प्रवाद पर्व (1977), (10) शबरी (1977), (11) अरण्य, (12) आखिरी समुद्र से तात्पर्य, (13) प्रार्थना पुरुष (1985)।

सर्वेश्वर दयाल सक्सेना

(1) काठ की खंटियाँ (1959), (2) बाँस का पुल (1963), (3) एक सूनी नाव (1966), (4) गर्म हवाएँ (1966), (5) कुआनी नदी (1973), (6) जंगल का दर्द (1976), (7) खूँटियों पर टंगे लोग (1982), (8) क्या कहकर पुकारूँ (9) कोई मेरे साथ चले।

धर्मवीर भारती

(1) ठण्डा लोहा (1952), (2) अंधा युग (1955), (3) कनुप्रिया (1957), (4) सात गीत वर्ष (1957), (5) देशांतर।

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उपर्युक्त कवियों से संबंधित महत्त्वपूर्ण तथ्य:

⇒ अज्ञेय अस्तित्ववाद में आस्था रखने वाले कवि है।

⇒ ’असाध्यवीणा’ अज्ञेय की प्रमुख कृति है, इसका मूल भाव ’अहं का विसर्जन’ ’समर्पण की भावना’ है। इसका कथानक चीनी-जापानी कथा ओकाकुरा से प्रभावित है।

नदी के द्वीप में व्यक्ति, संस्कृति और समाज तीनों के अस्तित्व की बात की गई है।
नदी के द्वीप के प्रतीकद्वीप – व्यक्ति/शिशु

नदी – परंपरा/माँ

भूखण्ड – समाज/पिता

⇒ मुक्तिबोध की ’अंधेरे में’ कविता का प्रथम प्रकाशन ’कल्पना’ पत्रिका में 1964 में ’आशंका के द्वीप’ ’अंधेरे में’ नाम से हुआ।

⇒ मुक्तिबोध ने ’अंधेरे में’ कविता की रचना फैंटेसी में की है।

शमशेर बहादुर सिंह के अनुसार –
’’यह कविता देश के आधुनिक जन इतिहास का स्वतंत्रता पूर्व और पश्चात् का एक दहकता इस्पाती दस्तावेज है।’’

नामवर सिंह के अनुसार ’अंधेरे में’ कविता ’अस्मिता की खोज’ है।

रामविलास शर्मा ने ’अंधेरे में’ कविता को ’आरक्षित जीवन की कविता’ कहा है।

रामस्वरूप चतुर्वेदी ने लिखा है-’चाँद का मुँह टेढ़ा है’ एक बङे कलाकार की स्कैच-बुक लगता है।’

⇒ मुक्तिबोध पर टालस्टाय, बर्ग साॅ और माक्र्सवाद का स्पष्ट प्रभाव है।

⇔ शमशेर बहादुर को मलजय ने ’मूड्स का कवि’ कहा है।

⇒ शमशेर बहादुर सिंह के अनुसार – ’टेक्नीक में एजरा पाउंड शायद मेरा सबसे बङा आदर्श बन गया था।’

⇔ रामचन्द्र तिवारी ने शमशेर बहादुर के गद्य को ’हिन्दी का जातीय गद्य’ कहा है।

⇒ भवानी प्रसाद मिश्र को ’सहजता का कवि’ कहा जाता है।

⇔ भवानी प्रसाद मिश्र को ’हिन्दी कविता का गांधी’ कहा जाता है।
प्रयोगवादी/नई कविता के प्रमुख कवियों की महत्त्वपूर्ण काव्य पंक्तियाँ –

यह दीप अकेला स्नेह भरा
है गर्व भरा मदमाता
पर इसको भी पंक्ति दे दो

किन्तु हम हैं द्वीप।
हम धारा नहीं है,
स्थिर समर्पण है हमारा हम सदा से द्वीप है स्त्रोतास्विनी के।

साँप! तुम सभ्य तो हुए नहीं
नगर में बसना भी तुम्हें नहीं आया
तब कैसे सीखा डँसना-विष कहाँ पाया

मौन भी अभिव्यक्ति है
जितना तुम्हारा सच है
उतना ही कहो

भोर का बाबरा अहेरी
पहले बिछाता है आलोक को
लाल-लाल कनिया

वही परिचित दो आँखे ही
चिर माध्यम है
सब आँखों से सब दर्दों से
मेरे लिए परिचय का

ये उपनाम मैले हो गये हैं
देवता इन प्रतीकों से कर गए है कूच

एक तीक्ष्ण अपांग से कविता उत्पन्न हो जाती है
एक चुंबन से प्रणय फलीभूत हो जाता है।

’मुझे स्मरण है
और चित्र/प्रत्येक स्तब्ध, विजङित करता है मुझे
सुनता हूँ मैं

आ, मुझे भुला
तू उतर बीन के तारों में
अपने से गा/अपने को गा
अपने खग कुल को मुखरित कर

राजकुमुट सहसा हलका हो आया था
मानो हो फूल सिरिस का
ईष्र्या, महत्त्वकांक्षा, द्वेष, चाटुता
सभी पुराने झङ गये

हरी तलहटी में, छोटे की ओट, ताल पर
बंधे समय, वन-पशुओं की नानाविध
आतुर-तृप्त पुकारे
गर्जन, धुर्धर, चीख, भूँक, हुक्का
चिचिराहट है
मुक्तिबोध

मुझे भ्रम होता है कि प्रत्येक वाणी में महाकाव्य-पीङा है।

ओ मेरे आदर्शवादी मन
ओ मरे सिद्वान्तवादी मन

बहुत-बहुत ज्यादा लिया
दिया बहुत-बहुत कम
मर गया देश, अरे, जीवित रह गए तुम

अब अभिव्यक्ति के सारे खतरे, उठाने होंगे
तोङने होगें मठ और गढ़ सभी

कविता कहने की आदत नहीं, पर कह दूँ
वर्तमान समाज चल नहीं सकता
पूँजी से जुङा हुआ हृदय बदल नहीं सकता

खोजता हूँ पठार, पर्वत, समुद्र
जहाँ मिल सके मुझे
मेरी वह खोई हुई
परम अभिव्यक्ति अनिवार
आत्म-संभवा।
शमशेर बहादुर सिंह

एक पीली शाम
पतझर का जरा अटका हुआ पत्ता

बात बोलेगी, हम नहीं
भेद खोलेगी, बात ही

चूका भी हूँ मैं नहीं
कहाँ किया मैंने प्रेम अभी

घिर आया समय का रथ कहीं
ललिता से मढ़ गया है राग।

हाँ, तुम मुझसे प्रेम करो
जैबे मछलियाँ लहरों से करती है।

दोपहर बाद की धूप-छाँह में खङी
इंतजार की ठेलेगाङियाँ
जैसे मेरी पसलियाँ
खाली बोरे सूजों से रफू किये जा रहे हैं।

भूलकर जब राह-जब जब राह भटका मैं
तुम्हीं झलके हो महाकवि
सघन तम की आँख बन मेरे लिए।
भवानी प्रसाद मिश्र

जी हाँ हुजूर, मैं गीत बेचता हूँ
मैं तरह-तरह के गीत बेचता हूँ
मैं किसिम किसिम के गीत बेचता हूँ।

सतपुङा के घने जंगल
नींद में डूबे हुए से
उँघते अनमने जंगल।

टुटने का सुख
बहुत सारे बंधनों को आज झटका लग रहा है
टूट जायेंगे कि मुझको आज खटका लग रहा है।

फूल लाया हूँ कमल के
क्या करूँ इनका
छोङ दूँ
हो जाए जी हल्का
रघुवीर सहाय

राष्ट्रगान में भला कौन वह भारत भाग्य विधाता है
फटा सुथन्ना पहले, जिसका गुन हरचरना गाता है

मैं अपनी एक मूर्ति बनाता हूँ
और एक ढ़हाता हूँ
और आप कहते हैं कि कविता की है।

कितना अच्छा था छायावाद
एक दुःख लेकर वह गान देता था
कितना कुशल था प्रगतिवादी
हर दुःख का कारण पहचान लेता था

खबर हमको पता है हमारा आतंक है
हमने बनाई है
फिर वो लिखते हैं
खबर वातानुकूलित कक्ष में तय कर रही होगी
करेगा कौन रामू के तले की भूमि पर कब्जा

लोग भूल जाते हैं
अत्याचारी का चेहरा मुस्काने पर

भीङ में मैल खोरी गंध मिली
⇔भीङ में आदिम मूर्खता की गंध मिली
भीङ में नहीं मिली मुझे मेरी गंध

क्रांतिकारी लेखक को आशा है
कि औरों पर उसका अविश्वास
उसको तो उसके जीवन में
एक बङा आदमी बना देगा।
सर्वेश्वर दयाल सक्सेना

लोकतंत्र को जूते की तरह
लाठी में लटकाए
भागे जा रहे हैं सभी
सीना फुलाए

मैं नया कवि हूँ
इसी से जानता हूँ
सत्य की चोट बहुत गहरी होती हे

लीक पर चले जिनके
चरण दुर्बल और हारे हैं
हमें तो हमारी यात्रा से बने
ऐसे अनिर्मित पंथ प्यारे हैं
केदार नाथ सिंह

मैंने जब भी सोचा
मुझे रामचन्द्र शुक्ल की मूँछे याद आई

मैं पूरी ताकत के साथ
शब्दों को फेंकना चाहता हूँ।
साठोत्तरी कविता

सन् 1960 ई. के बाद लघु पत्रिकाओं की बाढ़ आ गई तथा प्रत्येक लघु पत्रिका की छत्रछाया में कोई-न-कोई नये वाद अथवा काव्यान्दोलन पनपने लगे। जो आन्दोलन अपेक्षाकृत अधिक स्थिर एवं सुदृढ़ हो पाए, वे निम्न हैं –
⇒ निषेध मूलक
⇔संघर्ष मूलक
⇒ आस्थामूलक
निषेधमूलक वर्ग में उन काव्यान्दोलनों को समाहित किया जाता है, जिन्हांेने परंपरागत सामाजिक, नैतिक और सांस्कृतिक मूल्यों का निषेध करते हुए घोर व्यक्तिवाद, उच्शृंखल यौनवाद एवं नग्न भोगवाद को प्रश्रय दिया।
संघर्ष मूलक वर्ग के आन्दोलनों में सामाजिक, आर्थिक, एवं राजनीतिक परिस्थितियों के प्रति असंतोष तथा आक्रोश व्यक्त करते हुए उनके विरोध में संघर्ष का आह्वान किया गया।
आस्थामूलक वर्ग के आन्दोलनों में परंपरागत मूल्यों को स्वीकारते हुए उनकी पुनः प्रतिष्ठा पर जोर दिया गया।
प्रमुख काव्यांदोलन एवं प्रवर्तक
काव्यांदोलन प्रवर्तक
अकविता श्याम परमार
बीट पीढ़ी राजकमल चौधरी
अस्वीकृत कविता श्रीराम शुक्ल
आज की कविता हरीश मादानी
प्रतिबद्ध/वाम कविता डाॅ. परमानन्द श्रीवास्तव
सहज कविता डाॅ. रवीन्द्र भ्रमर
ताजी कविता लक्ष्मीकांत वर्मा
समकालीन कविता डाॅ. विशम्भरनाथ उपाध्याय
कैप्सूल/सूत्र कविता डाॅ. ओंकारनाथ त्रिपाठी
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19.3.23

गायत्री शक्तिपीठ शामगढ़ का विडियो:Gayatri Shakti peeth Shamgarh video

गायत्री शक्ति पीठ शामगढ़ का मनोरम दृश्य 
                                   


मंदसौर,झालावाड़ ,आगर,नीमच,रतलाम जिलों के


मन्दिरों,गौशालाओं ,मुक्ति धाम हेतु

साहित्य मनीषी

डॉ.दयाराम जी आलोक

शामगढ़ का

संकल्पित दान -अनुष्ठान 

साथियों,

शामगढ़ नगर अपने दानशील व्यक्तियों के लिए जाना जाता रहा है| शिव हनुमान मंदिर,मुक्तिधाम ,गायत्री शक्तिपीठ आदि संस्थानों के जीर्णोद्धार और कायाकल्प के लिए यहाँ के नागरिकों ने मुक्तहस्त दान समर्पित किया है|
परमात्मा की असीम अनुकंपा और कुलदेवी माँ नागणेचिया के आशीर्वाद और प्रेरणा से डॉ.दयारामजी आलोक द्वारा आगर,मंदसौर,झालावाड़ ,कोटा ,झाबुआ जिलों के चयनित मंदिरों और मुक्तिधाम में निर्माण/विकास / बैठने हेतु सीमेंट बेंचें/ दान देने का अनुष्ठान प्रारम्भ किया है|
मैं एक सेवानिवृत्त अध्यापक हूँ और अपनी 5 वर्ष की कुल पेंशन राशि दान करने का संकल्प लिया है| इसमे वो राशि भी शामिल रहेगी जो मुझे google कंपनी से नियमित प्राप्त होती रहती है| खुलासा कर दूँ कि मेरी 5 वेबसाईट हैं और google उन पर विज्ञापन प्रकाशित करता है| विज्ञापन से होने वाली आय का 68% मुझे मिलता है| यह दान राशि और सीमेंट बेंचें पुत्र डॉ.अनिल कुमार राठौर "दामोदर पथरी अस्पताल शामगढ़ "के नाम से समर्पित हो रही हैं|


 

  शामगढ़ की गायत्री शक्तिपीठ मे गुरु पूर्णिमा पर्व पर संस्थान से जुड़े सैंकड़ों परिवारों का सहभोज आयोजित किया गया| इस संस्थान को साहित्य मनीषी ,समाज सेवी डॉ.दयाराम जी आलोक के आदर्शों से प्रेरित पुत्र डॉ.अनिल कुमार राठौर 9826795656 ,दामोदर पथरी चिकित्सालय शामगढ़ द्वारा नव निर्माण कार्यों हेतु 51 हजार रुपये तथा गायत्री शक्ति पीठ के अंतर्गत संचालित ज्ञान मंदिर हेतु भी 51 हजार रुपये का दान दिया गया|यह शक्तिपीठ  डिम्पल चौराहे के पास सगोरिया रोड पर स्थित है| रमेशजी राठौर आशुतोष संस्थान के मुख्य प्रबंधक हैं| यह संस्थान स्वास्थ्यकारी जूस  सेंटर  भी चलता है| जिसमे कई प्रकार के फलों के रस सहजता से लागत मूल्य पर उपलब्ध हैं| 

सूचना-जो भी व्यक्ति  इस मन्दिर   के  फोटो या विडियो  ९९२६५२४८५२ पर whatsap से भेजेंगे  वे फोटो उनके नाम के साथ पोस्ट किये जायेंगे. 

ग्राम लसुडिया तेहसील गरोठ जिला मंदसौर में दामोदर पथरी अस्पताल शामगढ़ द्वारा बैंच- व्यवस्था

श्री राम मन्दिर लसुडिया का अनुपम दृश्य
                                                      


मंदसौर,झालावाड़ ,आगर,नीमच,रतलाम  जिलों  के


मन्दिरों,गौशालाओं ,मुक्ति धाम हेतु

साहित्य मनीषी

डॉ.दयाराम जी आलोक

शामगढ़ का

अभिनव  दान -अनुष्ठान 

साथियों,

शामगढ़ नगर अपने दानशील व्यक्तियों के लिए जाना जाता रहा है| शिव हनुमान मंदिर,मुक्तिधाम ,गायत्री शक्तिपीठ आदि संस्थानों के जीर्णोद्धार और कायाकल्प के लिए यहाँ के नागरिकों ने मुक्तहस्त दान समर्पित किया है|
परमात्मा की असीम अनुकंपा और कुलदेवी माँ नागणेचिया के आशीर्वाद और प्रेरणा से डॉ.दयारामजी आलोक द्वारा आगर,मंदसौर,झालावाड़ ,कोटा ,झाबुआ जिलों के चयनित मंदिरों और मुक्तिधाम में निर्माण/विकास / बैठने हेतु सीमेंट बेंचें/ दान देने का अनुष्ठान प्रारम्भ किया है|
मैं एक सेवानिवृत्त अध्यापक हूँ और अपनी 5 वर्ष की कुल पेंशन राशि दान करने का संकल्प लिया है| इसमे वो राशि भी शामिल रहेगी जो मुझे google कंपनी से नियमित प्राप्त होती रहती है| खुलासा कर दूँ कि मेरी 6  वेबसाईट हैं और google उन पर विज्ञापन प्रकाशित करता है| विज्ञापन से होने वाली आय का 68% मुझे मिलता है| यह दान राशि और सीमेंट बेंचें पुत्र डॉ.अनिल कुमार राठौर "दामोदर पथरी अस्पताल शामगढ़ "के नाम से समर्पित हो रही हैं|  

 साहित्य मनीषी डॉ. दयाराम आलोक का परिचय सुनिए इसी लिंक में 


श्री राम मंदिर लसुड़ीया तेहसील गरोठ का विडिओ 

17501/-  की  (5 बेंच+ 2001/- नकद  दान)


श्री राम मंदिर लसु डिया  मे 5 बेंच लगीं 20/12/2022 


गोविंद  जी पंवार  टेलर गारिया खेड़ी  ने यह विडिओ अपनी आवाज मे बनाया 




राम मंदिर लसूडीया के विकास हेतु 2000 रुपये दुर्गा शंकर जी पुजारी को  फोन पे किए 



सूचना-जो भी व्यक्ति  इस मुक्तिधाम  के  फोटो या विडियो  ९९२६५२४८५२ पर whatsap से भेजेंगे  वे फोटो उनके नाम के साथ पोस्ट किये जायेंगे. 

श्री भवानी शंकरजी चौहान टेलर 89896-92699 का सूझाव

मंदिर के मुख्य पुजारी दुर्गा शंकर जी बैरागी हैं|

श्री राम मंदिर ग्राम लसूड़ीया तहसील गरोठ बहुत ही सुंदर है और दीवारों पर देवी देवताओं के बहुत ही आकर्षक चित्र बनाए हुए हैं| साहित्य मनीषी डॉ .दयाराम जी आलोक के आदर्शों से प्रेरित पुत्र डॉ.अनिल कुमार जी राठौर ,दामोदर पथरी अस्पताल शामगढ़ द्वारा इस मंदिर के प्रांगण मे दर्शनार्थियों के बैठने कि सुविधा हेतु 5 सीमेंट बेंच और मंदिर के विकास के लिए 2000 हजार रुपये भेंट किए| मंदिर के मुख्य पुजारी दुर्गा शंकर जी बैरागी हैं| मंदिर मे बेंच और शिलालेख लगाने का प्रस्ताव भवानी शंकर जी चौहान का है| यह विडिओ गारिया खेड़ी निवासी गोविंद जी पंवार ने अपनी आवाज मे बनाया है|

डॉ.अनिल कुमार दामोदर 98267-95656 s/o डॉ.दयाराम जी आलोक 99265-24852, दामोदर पथरी अस्पता  शामगढ़ 98267-95656  द्वारा श्री राम  मंदिर लसूडीया हेतु दान सम्पन्न 20/12/2022 
........


बालाजी मन्दिर बालोदा MP// शामगढ़ वृत्त के देवालय//दामोदर हॉस्पिटल शामगढ़ द्वारा बैंच व्यवस्था

                                         


 मंदसौर,झालावाड़ ,आगर,नीमच,रतलाम  जिलों  के


मन्दिरों,गौशालाओं ,मुक्ति धाम हेतु

साहित्य मनीषी

डॉ.दयाराम जी आलोक

शामगढ़ का

अनूठा दान-अनुष्ठान


साथियों,

शामगढ़ नगर अपने दानशील व्यक्तियों के लिए जाना जाता रहा है| शिव हनुमान मंदिर,मुक्तिधाम ,गायत्री शक्तिपीठ आदि संस्थानों के जीर्णोद्धार और कायाकल्प के लिए यहाँ के नागरिकों ने मुक्तहस्त दान समर्पित किया है|
परमात्मा की असीम अनुकंपा और कुलदेवी माँ नागणेचिया के आशीर्वाद और प्रेरणा से डॉ.दयारामजी आलोक द्वारा आगर,मंदसौर,झालावाड़ ,कोटा ,झाबुआ जिलों के चयनित मंदिरों और मुक्तिधाम में निर्माण/विकास / बैठने हेतु सीमेंट बेंचें/ दान देने का अनुष्ठान प्रारम्भ किया है|
मैं एक सेवानिवृत्त अध्यापक हूँ और अपनी 5 वर्ष की कुल पेंशन राशि दान करने का संकल्प लिया है| इसमे वो राशि भी शामिल रहेगी जो मुझे google कंपनी से नियमित प्राप्त होती रहती है| खुलासा कर दूँ कि मेरी 6 वेबसाईट हैं और google उन पर विज्ञापन प्रकाशित करता है| विज्ञापन से होने वाली आय का 68% मुझे मिलता है| यह दान राशि और सीमेंट बेंचें पुत्र डॉ.अनिल कुमार राठौर "दामोदर पथरी अस्पताल शामगढ़ "के नाम से समर्पित हो रही हैं| 

साहित्य मनीषी डॉ. दयाराम आलोक का परिचय सुनिए इसी लिंक में 



बालोदा मंदसौर जिले का चम्बल नदी के पास बस हुआ छोटा सा गाँव है| इस गाँव मे बालाजी का मंदिर है| यह मंदिर स्थानीय और आस पास के ग्रामीण अञ्चल के आस्थावान हिन्दू लोगों के लिए हनुमान जी के प्रति अपनी श्रद्धा भक्ति प्रदर्शित करने का धर्म स्थल है| इस मंदिर के लिए यात्रा करने के लिए शामगढ़,गरोठ ,सुवासरा ,मंदसौर से बसें उपलब्ध हो जाती हैं| मंदिर मे दर्शनार्थियों के बैठने की सुविधा हेतु समाज सेवी डॉ. दयाराम जी आलोक 9926524852 के आदर्शों से प्रेरित पुत्र डॉ. अनिल कुमार राठौर ,दामोदर पथरी चिकित्सालय 9826795656 ,शामगढ़ द्वारा 4 सीमेंट बेंच और 1501/- नकद दान समर्पित किया गया है|


भारत के मन्दिरों और मुक्ति धाम हेतु शामगढ़ के समाजसेवी  द्वारा दान की विस्तृत श्रृंखला 

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5.3.23

गायत्री शक्तिपीठ शामगढ़ को डॉ. दयाराम जी आलोक का एक लाख दो हजार रूपये का दान .

                                          

गायत्री शक्ति पीठ शामगढ़ में विकास एवं निर्माण हेतु 

साहित्य मनीषी  डॉक्टर दयाराम जी आलोक द्वारा 

५१ -५१ हजार के दो दान समर्पित किये गए.




मंदसौर,झालावाड़ ,आगर,नीमच,रतलाम  जिलों  के


मन्दिरों,गौशालाओं ,मुक्ति धाम हेतु

साहित्य मनीषी

डॉ.दयाराम जी आलोक

शामगढ़ का

अनूठा दान-अनुष्ठान


साथियों,

शामगढ़ नगर अपने दानशील व्यक्तियों के लिए जाना जाता रहा है| शिव हनुमान मंदिर,मुक्तिधाम ,गायत्री शक्तिपीठ आदि संस्थानों के जीर्णोद्धार और कायाकल्प के लिए यहाँ के नागरिकों ने मुक्तहस्त दान समर्पित किया है|
परमात्मा की असीम अनुकंपा और कुलदेवी माँ नागणेचिया के आशीर्वाद और प्रेरणा से डॉ.दयारामजी आलोक द्वारा आगर,मंदसौर,झालावाड़ ,कोटा ,झाबुआ जिलों के चयनित मंदिरों और मुक्तिधाम में निर्माण/विकास / बैठने हेतु सीमेंट बेंचें/ दान देने का अनुष्ठान प्रारम्भ किया है|
मैं एक सेवानिवृत्त अध्यापक हूँ और अपनी 5 वर्ष की कुल पेंशन राशि दान करने का संकल्प लिया है| इसमे वो राशि भी शामिल रहेगी जो मुझे google कंपनी से नियमित प्राप्त होती रहती है| खुलासा कर दूँ कि मेरी 6 वेबसाईट हैं और google उन पर विज्ञापन प्रकाशित करता है| विज्ञापन से होने वाली आय का 68% मुझे मिलता है| यह दान राशि और सीमेंट बेंचें पुत्र डॉ.अनिल कुमार राठौर "दामोदर पथरी अस्पताल शामगढ़ "के नाम से समर्पित हो रही हैं| 

 साहित्य मनीषी डॉ. दयाराम आलोक का परिचय सुनिए इसी लिंक में 


                                                                  

शामगढ़ गायत्री शक्तिपीठ के ज्ञान मंदिर हेतु

51 हजार रु. का प्रथम दान

गायत्री शक्ति पीठ शामगढ़ के अंतर्गत ज्ञानमंदिर के उदघाटन का विडियो



विडियो गुरु पूर्णिमा गायत्री शक्ति पीठ शामगढ़  3/7/2023 



गायत्री शक्तिपीठ का दृश्य

                                                  
                                                                   

ज्ञान मंदिर मे शिलालेख लगाया गया

                                                 



(यह 51 हजार का नकद दान डॉ. अनिल कुमार राठौर की

                                                               


स्वर्गीय मातुश्री श्रीमति शान्ति देवी धर्मपत्नी डॉ.दयाराम जी आलोक की पुण्य स्मृति में समर्पित )



डॉ.अनिल कुमार दामोदर s/o डॉ.दयाराम जी आलोक 99265-24852 , दामोदर पथरी अस्पताल शामगढ़ 98267-95656 द्वारा गायत्री शक्तिपीठ के अंतर्गत ज्ञान मंदिर हेतु 51 हजार का प्रथम दान समर्पित 




साहित्य मनीषी डॉ. दयाराम आलोक का परिचय सुनिए इसी लिंक में 
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शामगढ़ की गायत्री शक्तिपीठ हेतु

                     
                   
विकास और निर्माण कार्य के लिए 


51 हजार रुपये का दूसरा दान समर्पित

शामगढ़ गायत्री शक्तिपीठ का विडियो



मोहन लाल जी जोशी 95888-27033 गायत्री के प्रखर प्रवक्ता की प्रेरणा



राजू जी छाबड़ा ९४२५९-७८५८४ का सुझाव



गायत्री शक्तिपीठ का प्रबंधन रमेशजी राठौर आशुतोष-99264-26499 करते हैं.


डॉ.अनिल कुमार दामोदर s/o डॉ.दयाराम जी आलोक 99265-24852 ,दामोदर पथरी अस्पताल शामगढ़ 98267-95656 द्वारा गायत्री शक्ति पीठ शामगढ़ हेतु 51 हज़ार का दूसरा नक़द दान सम्पन्न




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किडनी फेल (गुर्दे खराब ) की रामबाण औषधि

किडनी फेल रोगी का डाईट चार्ट और इलाज

प्रोस्टेट ग्रंथि बढ़ने से पेशाब रुकावट की कारगर हर्बल औषधि

सिर्फ आपरेशन नहीं ,किडनी की पथरी की १००% सफल हर्बल औषधि

मैं बढ़ा ही जा रहा हूँ-शिवमंगल सिंह 'सुमन

सरहदें बुला रहीं.- डॉ॰दयाराम आलोक

हम पंछी उन्मुक्त गगन के-शिवमंगल सिंह 'सुमन'

सूरदास के पद

रात और प्रभात.-डॉ॰दयाराम आलोक

साँसो का हिसाब -शिव मंगल सिंग 'सुमन"

राम की शक्ति पूजा -सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"

गांधी के अमृत वचन हमें अब याद नहीं - डॉ॰दयाराम आलोक

बिहारी कवि के दोहे

रात और प्रभात.-डॉ॰दयाराम आलोक

कबीर की साखियाँ - कबीर

सरहदें बुला रहीं.- डॉ॰दयाराम आलोक

बीती विभावरी जाग री! jai shankar prasad

हिमाद्रि तुंग श्रृंग से प्रबुद्ध शुद्ध भारती

उन्हें मनाने दो दीवाली-- डॉ॰दयाराम आलोक

रश्मिरथी - रामधारी सिंह दिनकर

सुदामा चरित - नरोत्तम दास

यह वासंती शाम -डॉ.आलोक

तुमने मेरी चिर साधों को झंकृत और साकार किया है.- डॉ॰दयाराम आलोक

स्वप्न झरे फूल से, मीत चुभे शूल से ,गोपालदास "नीरज"

गायत्री शक्तिपीठ शामगढ़ मे बालकों को पुरुष्कार वितरण

कुलदेवी का महत्व और जानकारी



4.3.23

मुक्ति धाम शिवना तट मंदसौर/डॉ.आलोक साहब द्वारा १८ बैंच भेंट/Tradition of donation to Mukti Dham and temples


       मंदसौर के मुक्तिधाम में 51 हजार दान का शिलालेख                            


मंदसौर,झालावाड़ ,आगर,नीमच,रतलाम  जिलों  के


मन्दिरों,गौशालाओं ,मुक्ति धाम हेतु

साहित्य मनीषी

डॉ.दयाराम जी आलोक

शामगढ़ का

अनूठा दान-अनुष्ठान


साथियों,

शामगढ़ नगर अपने दानशील व्यक्तियों के लिए जाना जाता रहा है| शिव हनुमान मंदिर,मुक्तिधाम ,गायत्री शक्तिपीठ आदि संस्थानों के जीर्णोद्धार और कायाकल्प के लिए यहाँ के नागरिकों ने मुक्तहस्त दान समर्पित किया है|
परमात्मा की असीम अनुकंपा और कुलदेवी माँ नागणेचिया के आशीर्वाद और प्रेरणा से डॉ.दयारामजी आलोक द्वारा आगर,मंदसौर,झालावाड़ ,कोटा ,झाबुआ जिलों के चयनित मंदिरों और मुक्तिधाम में निर्माण/विकास / बैठने हेतु सीमेंट बेंचें/ दान देने का अनुष्ठान प्रारम्भ किया है|
मैं एक सेवानिवृत्त अध्यापक हूँ और अपनी 5 वर्ष की कुल पेंशन राशि दान करने का संकल्प लिया है| इसमे वो राशि भी शामिल रहेगी जो मुझे google कंपनी से नियमित प्राप्त होती रहती है| खुलासा कर दूँ कि मेरी 6 वेबसाईट हैं और google उन पर विज्ञापन प्रकाशित करता है| विज्ञापन से होने वाली आय का 68% मुझे मिलता है| यह दान राशि और सीमेंट बेंचें पुत्र डॉ.अनिल कुमार राठौर "दामोदर पथरी अस्पताल शामगढ़ "के नाम से समर्पित हो रही हैं| 


मंदसौर मे शिवना के किनारे 
मुक्तिधाम के लिए 51 हजार की 18 बेंच भेंट.

Video of Bench donation to mukti dham Mandsaur 

                                                
   मंदसौर मुक्तिधाम का एक दृश्य  
     
मंदसौर मुक्तिधाम मे शांतिलाल जी अध्यक्ष  और जवाहर लाल जी सचिव के साथ दान दाता डॉ. दयारामजी आलोक व पुत्र  डॉ.अनिल कुमारजी राठौर  का चित्र



मुक्ति धाम मंदसौर  के श्रद्धांजलि हाल  में १८ बैंच लगीं 


    मंदसौर के मुक्तिधाम मे  डॉ.अनिलकुमार राठौर की 


मातुश्री  शांति देवी w/o डॉ.दयाराम जी आलोक की स्मृति में 18 बेंच लगी
                                                           
जवाहर लालजी जैन मुक्तिधाम समिति के सचिव हैं. 

शांतिलालजी बड़जात्या 94259 23534 समिति के अध्यक्ष हैं.

मुक्ति धाम मंदसौर में शमशान समिति के पदाधिकारी कर्मचारी मानव की अंतिम सेवा कर अदा कर रहे इंसानियत का फर्ज समाज सेवी व शमशान समिति के पदाधिकारी श्री शांतिलाल जी बडजात्या मंदसौर में मानव की अंतिम सेवा कर अदा कर रहे इंसानियत का फर्ज |श्री सुनील जी बंसल दे रहे पिछले 25 वर्षों से नी स्वार्थ सेवा निरंतर कर रहे है। कोरो ना काल में शमशान समिति के माध्यम से कर्मचारी नगर पालिका कर्मी के सहयोग से करवा रहे अंतिम संस्कार की सभी तैयारी मृतकों के परिजनों को दुःख की घड़ी में करते है मदद जो लोग मुक्ति धाम से उनके परिजनो की अस्तिया हरिद्वार नहीं ले जा पाते उनकी मदद कर उनकी व कई लावारिश अस्थियों को हर वर्ष करते है गंगा जी में विधि विधान से प्रवाहित |

डॉ.अनिल कुमार दामोदर s/o डॉ.दयाराम जी आलोक 99265-24852 ,दामोदर पथरी अस्पताल शामगढ़ 98267-95656 द्वारा मंदसौर के मुक्तिधाम हेतु  दान सम्पन्न 


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