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21.1.22

खारोल ,बेलदार समाज का इतिहास:Beldar ,kharol samaj history





खारोल समाज का इतिहास परिश्रम, सेवा, और समर्पण से जुड़ा हुआ है. खारोल समाज के बारे में कुछ खास बातेंः
खारोल समाज ऐतिहासिक रूप से नमक बनाने का काम करता था.
राजस्थानी भाषा में खार शब्द का मतलब कपास होता है.
खारोल समाज के लोग मेवाड़ी बोली बोलते हैं.
खारोल समाज की कुलदेवी मां शाकंभरी हैं.
खारोल समाज के लोग राजपूत वंश से हैं.
कहा जाता है कि खारोल समाज के लोग दिल्ली से अजमेर चले गए थे.
खारोल समाज के बारे में कुछ और खास बातेंः
खारोल समाज के लोग अपने सांस्कृतिक मूल्यों और परंपराओं का संरक्षण करते हैं.
खारोल समाज के लोग नवाचार और आधुनिकता को भी अपनाते हैं.
खारोल समाज के लोग शिक्षा के महत्व को समझते हैं.
खारोल समाज के लोग बच्चों के उज्जवल भविष्य के लिए मिलकर काम करते हैं.
खारोल (KHAROL)जाति एक हिन्दू राजपूत समाज की एक जाति है ।
*वर्तमान में व्यवसाय *
वर्तमान में इनका मुख्य व्यवसाय कृषि है
खारोल(kharol) जाति द्वारा अपने मुख्य व्यवसाय को छोड़ने का मुख्य कारण अग्रेजी हुकमत के कारण भारत मे अग्रेजो का शासन उनकी ही सरकार थी । तब अग्रेजो ने नमक पर अधिक टैक्स लगा दिया और नमक बनाना या बेचना एक अपराध हो गया था जिसके कारण खारोल अपना व्यवसाय को छोड़कर कृषि व्यवसाय को अपना लिया
राजपूत होने के वावजूद इन्हें खारोल(kharol) क्यो कहा जाता है ?
खारोल(kharol) कोई जाति नही । खारोल(kharol) एक पहचान है जो नमक व खार से मिली है
राजपूत होने के कारण कुछ तो सत्ता चलते,कुछ सेनाओ को संभालते थे, कुछ अपना व्यवसाय चलते थे ,कुछ अन्य काम करते थे । व्यवसाय के अन्दर खार व नमक का एक व्यवसाय था । जो मारवाड़ की खारी जमीन से नमक बनाने का व्यवसाय किया करते थे । खार व नमक का व्यवसाय करने के कारण इन्हें खारवाल कहा जाने लगा और उनकी अलग ही पहचान बन गयी खारवाल । खारवाल से इन्हें समय के साथ साथ खारोल कहने लगे गए । वर्तमान में इन्हें खारोल(kharol) (खारवाल) के नाम से
जाना जाता है ।


बेलदार (Beldar) समाज  भारत में पाई जाने वाली एक जाति है. ऐतिहासिक रूप से यह एक खानाबदोश जाति है.पारंपरिक रूप से यह उत्तरी भारत के मूल निवासी हैं, लेकिन अब यह देश के विभिन्न भागों में निवास कर रहे हैं. यह ओड समुदायों के समान है, जो पश्चिमी भारत के मूल निवासी हैं. यह केवट समुदाय के साथ एक वंश का होने का दावा भी करते हैं, इस तरह से खुद को ओड कहते हैं. यह समुदाय पूरी तरह से भूमिहीन है. पारंपरिक रूप से यह राजमिस्त्री का काम करते हैं. जीवन यापन के लिए यह फल और सब्जी बेचने तथा ईट भट्ठों में भी काम करते हैं. उत्तर प्रदेश में यह अभी भी मुख्य रूप से अपने राजमिस्त्री का काम करते हैं और निर्माण उद्योग (Construction Industry) में कार्यरत हैं. महाराष्ट्र में यह राजमिस्त्री के साथ-साथ काफी संख्या में ईट भट्ठों में ईट बनाने का कार्य करते हैं. उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश में इन्हें अनुसूचित जाति (Scheduled Caste, SC) के रूप में वर्गीकृत किया गया है. मूल रूप से यह उत्तरी भारत के निवासी हैं. यह उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश में निवास करते हैं. 2011 की जनगणना में, उत्तर प्रदेश में इनकी कुल जनसंख्या 1,89,614 दर्ज की गई थी. महाराष्ट्र में यह मुख्य रूप से औरंगाबाद, नासिक, भीड, पुणे, अमरावती, अकोला, वाशिम, यवतमाल, अहमदनगर, सोलापुर, कोल्हापुर, सांगली, सतारा, रत्नागिरी और मुंबई जिलों में पाए जाते हैं. बेलदार समुदाय के लोग यह दावा करते हैं कि लगभग 5 शताब्दी पहले वह राजस्थान से आकर महाराष्ट्र में बस गए. बेलदार समाज अनेक कुलो में विभाजित है, जिनमें प्रमुख हैं-खरोला, गोराला, चपुला, छपावर, जेलवार, जाजुरे, नरौरा, तुसे, दवावर, पन्नेवार, फातारा, महोर, बसनीवार, बहर होरवार और उदयनवार. यह हिंदी, मराठी और बेलदारी भाषा बोलते हैं. आपस में यह बेलदारी भाषा बोलते हैं, जबकि बाहरी लोगों के साथ मराठी और हिंदी भाषा बोलते हैं.
 Disclaimer: Is content में दी गई जानकारी Internet sources, Digital News papers, Books और विभिन्न धर्म ग्रंथो के आधार पर ली गई है. Content को अपने बुद्धी विवेक से समझे