11.7.16

आर्य कौन है ? who is arya

               आर्य कौन है ? who is arya


मनुष्य, पशु, पक्षी, वृक्ष आदि भिन्न-भिन्न जातियाँ है। जिन जीवों की उत्पत्ति एक समान होती है वे एक ही जाति के होते है। अत: मनुष्य एक जाति है। जाति रूप से तो मनुष्यों में कोई भेद नहीं होता है परंतु गुण, कर्म, स्वभाव व व्यवहार आदि में भिन्नता होती है। कर्म के भेद से मनुष्यजाति(mankind) में दो भेद होते है १ आर्य २ दस्यु। दो सगे भाई आर्य और दस्यु हो सकते है। वेद(ved) में कहा है “विजानह्याय्यान्ये च दस्यव:” अर्थात आर्य और दस्युओं का विशेष ज्ञान रखना चाहिए। निरुक्त आर्य को सच्चा ईश्वर पुत्र से संबोधित करता है। वेद मंत्रों में सत्य, अहिंसा, पवित्रता आदि गुणों को धारण करने वाले को आर्य कहा गया है और सारे संसार को आर्य बनाने का संदेश दिया गया है। वेद कहता है “कृण्वन्तो विश्वमार्यम” अर्थात सारे संसार को आर्य बनावों। वेद में आर्य (श्रेष्ठ मनुष्यों) को ही पदार्थ दिये जाने का विधान किया गया है – “अहं भूमिमददामार्याय” अर्थात मैं आर्यों को यह भूमि देता हूँ। इसका अर्थ यह हुआ कि आर्य परिश्रम से अपना कल्याण करता हुआ, परोपकार(philanthropy) वृत्ति से दूसरों को भी लाभ पहुंचवेगा जबकि दस्यु दुष्ट स्वार्थी सब प्राणियों को हानि ही पहुंचाएगा। अत: दुष्ट को अपनी भूमि आदि संपत्ति नहीं दिये जाने चाहिए चाहे वह अपना पुत्र ही क्यों न हो।
आर्य कौन है ? who is arya
बाल्मीकी रामायण में समदृष्टि रखने वाले और सज्जनता से पूर्ण श्री रामचन्द्र (shri ram) जी को स्थान-स्थान पर ‘आर्य’ व “आर्यपुत्र” कहा गया है। विदुरनीति में धार्मिक को, चाणक्यनीति में गुणीजन को, महाभारत में श्रेष्ठबुद्धि वाले को व श्रीकृष्ण जी को “आर्यपुत्र” तथा गीता में वीर को ‘आर्य’ कहा गया है। महर्षि दयानन्द सरस्वती जी ने आर्य शब्द की व्याख्या (meaning of arya) में कहा है कि “जो श्रेष्ठ स्वभाव, धर्मात्मा, परोपकारी, सत्य-विद्या आदि गुणयुक्त और आर्यावर्त (aryavart) देश में सब दिन से रहने वाले हैं उनको आर्य कहते है।”
आर्य संज्ञा वाले व्यक्ति किसी एक स्थान अथवा समाज में नहीं होते, अपितु वे सर्वत्र पाये जाते है। सच्चा आर्य वह है जिसके व्यवहार से सभी(प्राणिमात्र) को सुख मिलता है, जो इस पृथ्वी पर सत्य, अहिंसा, परोपकार, पवित्रता आदि व्रतों का विशेष रूप से धारण करता है।
आर्यों का आदि देश :-
प्रश्न :- मनुष्यों की आदि सृष्टि किस स्थल में हुई ?
उत्तर :- त्रिविष्टप अर्थात जिस को ‘तिब्बत’ (Tibet) कहते है।
प्रश्न :- आदि सृष्टि में एक जाति थी वा अनेक ?
उत्तर :- एक मनुष्य जाति थी। पश्चात ‘विजानह्याय्यान्ये च दस्यव:’ यह ऋग्वेद का वचन है। श्रेष्ठों का नाम आर्य, विद्वानों का देव और दुष्टों के दस्यु अर्थात डाकू, मूर्ख नाम होने से आर्य और दस्यु दो हुए। ‘उत शूद्रे उतार्ये’ अथर्ववेद वचन। आर्यों में पूर्वोक्त कथन से ब्राह्मण, क्षत्रीय, वैश्य और शूद्र चार भेद हुए। मूर्खों का नाम शूद्र और अनार्य अर्थात अनाड़ी तथा विद्वानों का आर्य हुआ।
प्रश्न :- फिर वे यहाँ कैसे आए ?
उत्तर :- जब आर्य और दस्युओं में अर्थात विद्वान (जो देव) व अविद्वान (असुर), उन में सदा लड़ाई बखेड़ा हुआ करता, जब बहुत उपद्रव होने लगा तब आर्य लोग सब भूगोल में उत्तम इस भूमि के खण्ड को जानकार यहीं आकर बसे। इसी से इस देश का नाम ‘आर्यावर्त’ हुआ।
प्रश्न :- आर्यावर्त की अवधि कहाँ तक है ?
उत्तर :- मनुस्मृति के अनुसार –
उत्तर में हिमालय, दक्षिण में विन्ध्याचल, पूर्व और पश्चिम में समुद्र। हिमालय की मध्यरेखा से दक्षिण और पहाड़ों के भीतर और रामेश्वर पर्यन्त विन्ध्याचल के भीतर जीतने देश है उन सब को आर्यावर्त इसलिए कहते है कि यह आर्यावर्त देव अर्थात विद्वानों ने बसाया और आर्यजनों के निवास करने से आर्यावर्त कहाया है। उनकी कल्पना है कि “सिंधु” अथवा “इन्दु” शब्द से हिन्दू बन गया, अत: यहाँ के निवासियों को हिन्दू कहना ठीक है। यह बात अप्रामाणिक है। प्रथम तो उनके मत से ही सिद्ध है कि हिन्दू नाम पड़ने से पूर्व कोई और नाम अवश्य था। दूसरे सिन्धु और इन्दु नाम आज भी वैसे ही बने हुए है। अत: इस मत में कुछ भी सार नहीं। हिन्दू नाम विदेशियों (मुस्लिमों) ने दिया और हमने उसको वैसे ही मान लिया जैसे अंग्रेजों ने “इंडिया” और “इंडियन” नाम दिया। इतना ही नहीं, अंग्रेजों ने हमें “नेटिव” शब्द से पुकारा और हम नेटिव कहलाने में गर्व करने लगे, जबकि नेटिव का अर्थ दास है। इसी प्रकार हिन्दू शब्द का अर्थ काला, काफिर, लुच्चा, वहशी, दगाबाज, बदमाश और चोर आदि है।फारसी, अरबी व उर्दू आदि के उपलब्ध शब्दकोश गयासुल्लोहात, करिमुल्लोहात, लोहातफिरोजी आदि में हिन्दू के अर्थ को आप सभी ढूंढ लेना। कई बार हम कह देते है कि यदि यह कार्य में नहीं कर पाया तो मेरा नाम बदल देना। अर्थात जब हम किसी काम के नहीं रहते तब लोग हमारा नाम बदल देते है। हमारे तो तीन-तीन नाम बदले गए है, फिर भी कहते है कि गर्व से कहो हम हिन्दू है। यह बड़े अपमान का विषय है। अत: इस मत को दूर से ही छोड़ देना चाहिए।
कोई सज्जन कह सकता है कि नाम को लेकर विवाद करना ठीक नहीं, नाम कैसा ही हो, काम अच्छा होना चाहिए। यह बात सुनने में अच्छी लगती हो परंतु ठीक बिलकुल भी नहीं। नाम का पदार्थ पर विशेष प्रभाव पड़ता है। ऋषि दयानन्द (maharishi dayanand) ने एक बार किसी सज्जन का नाम सुनकर कहा था कि “कर्मभ्रष्ट तो हो गए परंतु नामभ्रष्ट तो न बनो।” जिस प्रकार भारत के नाम के साथ भारतीय राष्ट्र की परंपरा आँखों के सामने दिखाई से देने लगती है वैसे ही आर्य नाम के श्रवण मात्र से प्राचीन काल की सारी ऐतिहासिक झलक हमारे सामने आ जाती है। यह मानसिक भाव है, परंतु कर्म पर मन का पूर्ण प्रभाव पड़ता है।
यदि आर्य नाम को छोड़ अन्य हिन्दू आदि नाम स्वीकार कर लेते हैं तो आर्यत्व व सारा परंपरागत इतिहास (Traditional History) समाप्त हो जाता है। इसी कारण विदेशी लोग पराधीन देश की नाम आदि परम्पराएँ नष्ट कर देते व बदल देते है, जिससे पराधीन राष्ट्र अपने पुराने गौरव को भूल जावे। इतिहास की स्मृति से मनुष्य फिर खड़ा हो जाता है व पराधीनता की बेड़ियों को काटकर स्वतंत्र बन जाता है। यह सब नाम व इतिहास के कारण ही संभव हो पता है। अत: हमें सर्वत्र प्रयोग करना चाहिए कि हम “आर्य” है, “आर्यावर्त” हमारा राष्ट्र है। आर्यों का भूतअत्यंत उज्जवल (extremely bright) रहा है, हमें उसी पर फिर पहुँचना है। इसी प्रकार हमें अपना, अपने राष्ट्र और अपनी भाषा के नाम का भी सुधार कर लेना चाहिए। हमारे महापुरुषों ने सदैव कहा है कि “हमें हठ, दुराग्रह व स्वार्थ को त्यागकर सत्य (truth) को अपनाने में सर्वदा तैयार रहना चाहिए।” वैदिक प्रैस से साभार