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18.12.22

धोबी ,रजक जाती का इतिहास:Dhobi jati ka Itihas





धोबी शब्द की व्युत्पत्ति धावन या धोने से मानी जाती है। रजक (धोबी) रीषि कश्यप के वंशज है जिन्हे कपडे धोने का कार्य करने को सोपा ग्या था और यही कारण है की धोबी (रजक) का गोत्र कश्यप है। जो मुल रूप से सूर्यवंशी है। अन्य पिछड़ा वर्ग और अनुसूचित जाति में उन्हें सम्मिलित किया गया है।
धोबी जाति का इतिहास, धोने से जुड़ा हुआ है. धोबी जाति के लोग कपड़े धोने का काम करते हैं. धोबी जाति के लोगों को रजक भी कहा जाता है. धोबी जाति के लोगों के बारे में कुछ खास बातेंः
धोबी जाति के लोगों का गोत्र कश्यप है.
धोबी जाति के लोग मूल रूप से सूर्यवंशी हैं.
धोबी जाति के लोगों को अन्य पिछड़ा वर्ग और अनुसूचित जाति में रखा गया है.
महाराष्ट्र में धोबी जाति के लोगों को परित के नाम से भी जाना जाता है.
दक्षिण भारत में धोबी जाति के लोगों को राजाका या धोबा के नाम से भी जाना जाता है.
मुस्लिम धोबी जाति के लोग पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में पाए जाते हैं.
बिहार में धोबी जाति के लोगों को अनुसूचित जाति में रखा गया है.
धोबी जाति के लोग भारत के अलावा नेपाल, बांग्लादेश, पाकिस्तान, और श्रीलंका में भी पाए जाते हैं.

धोबी,रजक समाज का इतिहास 

रजक समाज के लोग भारत देश के विभिन्न प्रांतो मे आर्यो के आक्रमण से पहले से रहते चले आ रहे हैं . आर्यों के  आक्रमण से पहले  धोबी ,रजक समाज के लोग अन्य मूलनिवासीयो की तरह खेती और पशु पालन का काम किया करते थे लेकिन आर्यो ने अपने बेहतर हथियारो और घोड़ो के बल पर  भारत के मूलनीवासीयो को अपना घर बार खेती बाड़ी छोड़ कर जंगल मे रहने के लिए मजबूर कर दिया. स्वाभिमानी मूलनीवासीयो ने सेकडो सालो तक आर्यो से हार नही मानी और वे अपने पशु धन और खेती के लिए आर्यो से लड़ते रहे. आर्यो ने उन्हे राक्षस, दैत्य, दानव इत्याति नाम दिए और उनकी पराजय की झूठी कहानिया लिखी जो आज ब्राह्मण धर्म  के ग्रंथ बन गये है.
मूलनीवासीयो और आर्यो की लड़ाई सेकडो सालो तक चलती रही और धीरे धीरे आर्यो को यह समझ आने लगा की   लड़ाई कर के मूलनीवासीयो को हराया नही जा सकता इसलिए उन्होने अंधविशवास का सहारा लिया और देवी देवताओ के नाम पर मूलनीवासीयो को डराना शुरू कर दिया. भोले भाले   लोग कपटी ब्राह्माणो  की चाल को ना समझ सके और धीरे धीरे उनके झाँसे मे आगये .
 
 
ब्राह्मणों ने मूलनीवासीयो मे फुट डालने के लिए और हमेशा के लिए उन्हे दबाकर रखने के लिए जाती प्रथा को शुरू किया और अपने हिसाब से अपने हित के लिए सारे काम मूलनिवासियो मे बाँट दिए और उनमे उंच  नीच का भाव भर दिया ताकि वे खुद एक दूसरे से उपर नीचे के लिए लड़ते रहे और ब्राह्मण और क्षत्रिय राज करते रहे. यह आज तक चला आ रहा है.
 डॉ. दयाराम आलोक के अनुसार, रजक समाज का उद्भव  उन मूल निवासियों से हुआ जिन्हें लोगों को पाप मुक्त करने का काम सौंपा गया था। शुरुआत में, यह काम बहुत सम्मानजनक था, और लोग अपनी शुद्धि और मुक्ति के लिए रजक समाज के लोगों के घर जाते थे।उनके मतानुसार, रजक समाज के लोग लोगों को पाप मुक्त करने के लिए घर का पानी छिड़ककर उन्हें पवित्र और पाप मुक्त कर देते थे। लेकिन धीरे-धीरे, रजक समाज की इज्जत बढ़ने लगी, और ब्राह्मणों को लगा कि उनसे गलती हो गई है।इसके परिणामस्वरूप, ब्राह्मणों ने रजक समाज के लोगों का तिरस्कार करना शुरू कर दिया, झूठी कहानियां लिखकर और लोगों को भड़काकर। सदियों बाद, रजक समाज के लोगों को पाप मुक्ति दाता से कपड़े धोने वाला बनाकर रख दिया गया।
  यह डॉ. आलोक के शोध और अध्ययन पर आधारित है, जो जाति इतिहास के क्षेत्र में एक प्रमुख विद्वान हैं। उनके अनुसार, रजक समाज के लोगों का तिरस्कार करना एक ऐतिहासिक गलती है जिसे सुधारने की आवश्यकता है
लेकिन आज सभी मूलनीवासीयो की तरह रजक समाज के लोग भी पढ़ लिख गये है और ब्राह्माणों  की चाल को समझ गये है . वे ये समझ गये है कि  वे किसी से कम नही है और कुछ भी कर सकते है. जो काम उन्हे बेइज़्ज़त करने के लिए उन पर थोपा गया था आज वो काम छोड़कर डाक्टर इंजिनियर कलेक्टर बन रहे है. 

Disclaimer: इस content में दी गई जानकारी Internet sources, Digital News papers, Books और विभिन्न धर्म ग्रंथो के आधार पर ली गई है. Content को अपने बुद्धी विवेक से समझे|

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