Raja rantidev katha लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
Raja rantidev katha लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

26.10.17

दया की प्रतिमूर्ति राजा रंतीदेव की कथा:Raja rantidev katha





रघुवंश में एक संस्कृति नाम के परम प्रतापी राजा थे | उनके गुरु और रन्तिदेव नामक दो पुत्र थे | रन्तिदेव दया के मूर्तिमान स्वरूप थे | उनका एकमात्र लक्ष्य था -संसार के सभी प्राणियों के दुःख का निदान | वह भगवान से प्रार्थना करते हुए कहते थे “मै आपसे अष्टसिद्धि या मोक्ष की भी कामना नही करता |मेरी आपसे इतनी ही प्रार्थना है कि समस्त प्राणियों के अन्त:करण में स्थित होकर मै ही उनके दुखो को भोग लू ,जिससे सब दुःख रहित हो जाए “|
इसलिए महाराज रन्तिदेव यही सोचते थरहते थे कि मेरे माध्यम से दीनो का उपकार कैसे हो , मै दुखी प्राणियों के दुःख किस प्रकार दूर करू | अंत: उनके द्वार से कोई भी याचक कभी निराश नही लौटता था | यह सबकी यथेष्ट सेवा करते थे इसलिए उनका यश सम्पूर्ण भूमंडल पर फ़ैल गया | संसार की वस्तुए चाहे कितनी ही अधिक ना हो , उन्हें निरंतर खर्च करने पर के न एक दिन समाप्त हो ही जाती है |
महाराज रन्तिदेव का राजकोष भी दीन को बांटते बांटते एक दिन खाली हो गया | यहा तक कि उनके पास खाने के लिए मुट्ठी भर अन्न भी नही रहा | वह अपने परिवार के साथ जंगल में निकल गये | एक बार उन्हें अन्न की कौन कहे , पीने के लिए जल की एक बूंद भी नही मिली | परिवार सहित बिना कुछ खाए पीये 48 दिन हो गये
भगवान की कृपा से 49वे दिन महाराज रन्तिदेव को कही से खीर ,हलवा और जल प्राप्त हुआ | भगवान का स्मरण करके वह उसे अपने परिवार में वितरित करना ही चाहते थे कि अचानक एक ब्राह्मण देव आ गये | उन्होंने कहा “राजन ! मै भूख से अत्यंत व्याकुल हु | कृपया मुझे भोजन देकर तृप्ति प्रदान करे |” महाराज ने ब्राह्मण को बड़े ही सत्कार से भोजन कराया और ब्राह्मण देव संतुष्ट होकर और राजा को आशीर्वाद देकर चले गये |
महाराज ने बचा हुआ अन्न अपने परिवार में वितरित करने के लिए सोचा | इतने में एक निर्धन आकर अन्न की याचना करने लगा | महाराज ने उसे भी तृप्त कर दिया | तदन्तर एक व्यक्ति कई कुत्तो के साथ वहा आया और बोला “महाराज ! मै और मेरे ये कुत्ते अत्यंत भूखे है | हमे अन्न देकर हमारी आत्मा को तृप्त करे “|
महाराज रन्तिदेव अपनी भूख प्यास भूल गये और बचा हुआ सारा अन्न उस व्यक्ति को दे दिया | अब उनके पास मात्र एक व्यक्ति की प्यास बुझाने लायक जल शेष था | महाराज उस जल को अपने परिवार में बांटकर पीना चाहते थे कि तभी एक चांडाल ने उनके पास आकर जल की याचना की | महाराज ने प्रसन्नतापूर्वक वह जल भी उसे पिलाकर तृप्त कर दिया |
वास्तव में ब्राह्मण ,निर्धन और चंडाल के वेश में स्वयं भगवान विष्णु ,ब्रह्मा और महेश जी महाराज की परीक्षा की परीक्षा लेने आये थे | प्राणीमात्र पर दया के कारण महाराज रन्तिदेव को अपने परिवार सहित योगियों के लिए दुर्लभ भगवान का परम धाम प्राप्त हुआ | भगवान अपने अंशभुत जीवो से प्रेम करने वालो पर ही अधिक संतुष्ट होते है |संसार में समस्त प्राणी भगवान के ही विभिन्न रूप है जो भगवत बुद्धि से सबकी सेवा करते है वे दुस्तर संसार सागर में सहज ही तर जाते है |
***************