30.10.19

मुसलमानों में भी होती हैं जातियां,क्या है मुस्लिम जाति व्यवस्था?:musalman samaj me jatiyan


कई जानकारों ने भारत में ऊंची जाति के मुसलमानों को चार प्रमुख समूहों में बांटा था जो कि सैयद, शेख, मुग़ल और पठान के नाम से जाने जाते हैं.
यह सच है कि इस्लाम में किसी भी जातिगत भेदभाव के लिए जगह नहीं. हालांकि हिंदुस्तानी मुसलमानों में जाति व्यवस्था देखने को मिलती है. मगर आमतौर पर बड़ी राजनीतिक पार्टियां मुसलमानों की जातीय व्यवस्था, फिरक़े और दूसरे समूहों की राजनीति को कहने-सुनने से कतराती रही हैं. मुसलमानों में जाति व्यवस्था का मामला साल 1936 में ही अंग्रेजों के सामने आ गया था, इसके बाद से लगातार काका कालेकर समिति, मंडल कमीशन और सच्चर कमेटी की रिपोर्ट में भी इस पर तफसील से चर्चा की गई है.
बता दें कि मुसलमानों की जाति व्यवस्था पर 1960 में ग़ौस अंसारी ने 'मुस्लिम सोशल डिवीजन इन इंडिया' नाम की एक किताब लिखी थी. इसमें ग़ौस ने उत्तर भारत में मुसलमानों को चार प्रमुख समूहों में बांटा था- सैयद, शेख, मुग़ल और पठान. हालांकि मुसलमानों ने भी हिंदू जाति व्यवस्था की तरह ही एक सिस्टम अपना लिया जो तीन स्तरों पर काम करता है:



कौन हैं अशराफ, अजलाफ और अरजाल?
इस व्यवस्था में सैयद ख़ुद को इसमें सबसे ऊपर रखते हैं और ख़ुद को पैग़ंबर मोहम्मद साहब के खानदान से जुड़ा बताते हैं. दूसरे नंबर पर हैं शेख, जो ख़ुद को पैग़ंबर मोहम्मद के क़बीले 'क़ुरैश' से संबंधित बताते हैं. इनमें सिद्दीक़ी, फारुख़ी और अब्बास कुलनाम नाम इस्तेमाल करने वाले लोग हैं. तीसरे पर मुग़ल हैं, जो बाबर के नेतृत्व में भारत आए थे. चौथे नंबर पर पठान हैं जो पश्तो बोलते हैं और फिलहाल पाकिस्तान-अफ़ग़ानिस्तान के पख़्तूनखा इलाक़े से माने जाते हैं. बहरहाल. इसके अलावा हिंदुओं की तरह ही एक जातीय व्यवस्था भी है, जहां अशराफ, अजलाफ और अरजाल नाम की तीन श्रेणियां हैं.
1. अशराफ़: ख़ुद को भारत के बाहर की नस्लों जैसे अफगान, अरब, पर्शियन या तुर्क बताने वाले
मुग़ल, पठान, सैयद, शेख
2. भारतीय ऊंची जातियों से कन्वर्ट:
मुस्लिम राजपूत
3. अजलाफ: भारतीय गैर-सवर्ण जातियों से कन्वर्ट
दर्जी, धोबी, धुनिया, गद्दी, फाकिर, हज्जाम (नाई), जुलाहा, कबाड़िया, कुम्हार, कंजरा, मिरासी, मनिहार, तेली
4. अरजाल: भारतीय दलित जातियों से कन्वर्ट
हलालखोर, भंगी, हसनती, लाल बेगी, मेहतर, नट, गधेरी





ग़ौस अंसारी के अलावा इम्तियाज़ अहमद ने भी 1978 में 'कास्ट एंड सोशल स्टार्टिफिकेशन अमंग द मुस्लिम्स' में बताया था कि कैसे इस्लाम क़ुबूल करने के बावजूद हिंदू जातीय संरचना ज्यों के त्यों मुस्लिम समाज में भी जगह पा गई.
सोशियोलॉजिस्ट एमएन श्रीनिवासन भी मानते हैं कि भारत या दक्षिण एशिया में मौजूद जाति व्यवस्था इतनी मज़बूत थी कि कई बाहर से आए धर्मों ने इसे न चाहते हुए भी अपना लिया. हिंदू धर्म से इस्लाम में आने वाले सामान्य जीवन में इस जाति व्यवस्था के इतने आदी थे तो मुसलमान होने के बाद भी इन्हें इस सिस्टम को मानते रहने में दिक्कत महसूस नहीं हुई.




कई जातियां जैसे- आतिशबाज़, बढ़ई, भांड, भातिहारा, भिश्ती, धोबी, मनिहार, दर्जी हिंदुओं और मुसलमानों में एक जैसी हैं. ग़ौस ने बताया कि सैयद और शेख आमतौर सबसे ऊपर माने जाते हैं और धर्म से जुड़े कामों की ज़िम्मेदारी भी इनकी ही होती है. मुग़लों और पठानों को क़रीब-क़रीब हिंदुओं की क्षत्रिय जातियों की तरह ही समझा जाता रहा है. इसके अलावा ग़ौस ने ओबीसी मुस्लिम और दलित मुस्लिम को - क्लीन ऑक्युपेशनल कास्ट और नॉन-क्लीन ऑक्युपेशनल कास्ट में बांटा है. क्लीन ऑक्युपेशनल कास्ट में हिंदुओं की ओबीसी जातियों से आए लोग हैं जबकि नॉन-क्लीन ऑक्युपेशनल कास्ट में दलित जातियों से मुस्लिम समाज में आए लोग हैं. हालांकि दलित मुसलमानों को अभी भी एससी रिजर्वेशन हासिल नहीं हो पाया है.
दलित मुस्लिमों को ओबीसी रिज़र्वेशन क्यों ?
एससी कमीशन के सदस्य योगेंद्र पासवान इसकी तस्दीक करते हैं कि फिलहाल दलित मुसलमानों को रिजर्वेशन हासिल नहीं है. हालांकि ऐसी 30 जातियों को ओबीसी रिज़र्वेशन का फ़ायदा ज़रूर मिलता है. बता दें कि ब्रिटिश राज में ही मुस्लिम दलितों को हिंदू दलितों की तरह सरकारी योजनाओं में प्रोत्साहन और रिज़र्वेशन देने जैसी बहस शुरू हो गई थी. सच्चर कमीशन की रिपोर्ट के मुताबिक़ 1936 में जब अंग्रेजों के सामने ये मामला गया तो एक इंपीरियल ऑर्डर के तहत सिख, बौद्ध, मुस्लिम और ईसाई दलितों को बतौर दलित मान्यता दी गई लेकिन इन्हें हिंदू दलितों को मिलने वाले फ़ायदों से महरूम कर दिया गया. 1950 में आज़ाद भारत के संविधान में भी व्यवस्था यही रही. हालांकि 1956 में सिख दलितों और 1990 में नव-बौद्धों को दलितों में शामिल तो कर लिया गया पर मुस्लिम दलित जातियों को मंडल कमीशन की सिफ़ारिशें लागू होने के बाद ओबीसी लिस्ट में ही जगह मिल पाई.



काका कालेलकर कमीशन (1955) ने क्या कहा ?
इस कमीशन ने 2399 पिछड़ी जातियों की एक लिस्ट बनाई थी जिनमें से 837 जातियों को 'अति पिछड़ा' की श्रेणी में रखा गया था. कमीशन ने पिछड़ी जातियों की इस सूची में न सिर्फ़ हिंदू ओबीसी बल्कि मुस्लिम ओबीसी जातियों को भी जगह दी थी. कमीशन ने इन जातियों को पिछड़ा तो माना, लेकिन मुसलमानों और ईसाइयों में मौजूद इन जातियों के साथ जातिगत भेदभाव होता है, इसे मानने से इनकार कर दिया था. कमीशन ने माना कि पिछड़ापन है लेकिन ये भी कहा कि जाति आधारित क़ानूनी व्यवस्था या ऐसी कोई सिफ़ारिश इन धर्मों में भी इस 'अनहेल्दी प्रैक्टिस' को बढ़ावा दे सकती है.
मंडल कमीशन (1980) ने क्या कहा ?
इस कमीशन ने अपनी रिपोर्ट में देश की 3743 जातियों को ओबीसी लिस्ट में शामिल किया था. कमीशन ने माना कि जातिगत भेदभाव सिर्फ़ हिंदुओं तक सीमित नहीं बल्कि मुस्लिम, सिख और ईसाइयों में भी है. कमीशन ने अपनी रिपोर्ट में 82 मुस्लिम जातियों को ओबीसी में जगह दी थी. दलितों से जो मुसलमान बने उन्हें 'अरजाल' और ओबीसी जातियों से मुसलमान बने लोगों को 'अजलाफ' की श्रेणी में रखा गया था. हालांकि कमीशन ने सिफारिश की कि 'अरजाल' को एससी कैटेगरी में फ़ायदा मिलना चाहिए. साथ ही इन्हें एमबीसी (मोस्ट बैकवर्ड कास्ट) कैटेगरी में शामिल कर दिया. इसी के बाद से मुस्लिम जातियों को ओबीसी आरक्षण का लाभ मिलने लगा. बाद में सच्चर कमेटी रिपोर्ट में भी माना गया कि मुस्लिम ओबीसी में ग़रीबी सबसे ज़्यादा है. सोशल इंडीकेटर्स जैसे कुपोषण, हाउसहोल्ड और सामजिक पिछड़ेपन के मामले में भी मुस्लिम ओबीसी की हालत देश में हिंदू दलितों से भी बदतर है.
ओबीसी-दलित मुस्लिम नुकसान में
युसूफ कहते हैं कि पसमांदा मुसलमान तो लगातार एक चक्रव्यूह में फंसा है. लगातार 'इस्लाम खतरे में' रहता है जिसके बदले ओबीसी-दलित मुसलमानों को अपने मुद्दों पर बोलने से रोका जाता रहा है. हिंदू दलितों को जब आबादी के हिसाब से रिजर्वेशन मिला है तो मुस्लिमों को इससे महरूम क्यों रखा जा रहा है. अभी कुछ सालों से 'हिंदू' भी खतरे में हैं तो मुसलमानों से उम्मीद की जाती है कि वो एकजुट रहें और इसी नाम पर मुस्लिम समाज का पिछड़ा तबका लगातार ठगा जाता है. जबकि सच तो ये है कि मुस्लिम भी अन्य समुदायों की तरह वोट करते हैं और 2014 में यूपी में एक भी सीट न आना ये साबित करता है.
ऑल इंडिया मिल्ली काउंसिल के एमए खालिद कहते हैं, '2019 में मुस्लिमों को अपनी स्ट्रैटिजी बदलनी होगी और अपने विकल्प खुले रखने होंगे.' बता दें कि 2014 लोकसभा चुनावों में बीजेपी ने अपनी रणनीति में सिर्फ जीतने वाले उम्मीदवारों को टिकट देने और मुस्लिम वोटों को बांटने का फैसला किया था. बीजेपी की रिकॉर्ड जीत ने मुसलमानों को टिकट देने वाली पार्टियों का सूपड़ा साफ़ कर दिया. ऐसे में मुस्लिम सांसदों की संख्या लगातार कम होते जाने के पीछे ठोस वजह गैर-बीजेपी पार्टियों की मुस्लिमों को लेकर सीमित सोच का नतीजा है.
Disclaimer: इस  content में दी गई जानकारी Internet sources, Digital News papers, Books और विभिन्न धर्म ग्रंथो के आधार पर ली गई है. Content को अपने बुद्धी विवेक से समझे
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26.10.19

मीणा जाति समाज की जानकारी और गौत्रानुसार कुलदेवी:Meena caste history





मीणा इतिहास एक परिचय..
मीणा जाति मूल रूप से भारत के राजस्थान राज्य में निवास करने वाली एक जऩजाति है। मीणा जाति भारतवर्ष की प्राचीनतम पांच सबसे बडी जनजातियों में से एक मानी जाती है ।
*वेद पुराणों के अनुसार मीणा जाति मत्स्य(मीन) भगवान की वंशज है। पुराणों के अनुसार चैत्र शुक्ला तृतीया को कृतमाला नदी के जल से मत्स्य भगवान प्रकट हुए थे। इस दिन को मीणा समाज जहां एक ओर मत्स्य जयन्ती के रूप में मनाया जाता है वहीं दूसरी ओर इसी दिन संम्पूर्ण राजस्थान में गणगौर का त्योहार बड़ी धूम धाम से मनाया जाता है।*
मीणा जाति का गणचिह्न मीन (मछली) था। मछली को संस्कृत में मत्स्य कहा जाता है। प्राचीनकाल में मीणा जाति के राजाओं के हाथ में वज्र तथा ध्वजाओं में मत्स्य का चिह्न अंकित होता था, इसी कारण से प्राचीनकाल में मीणा जाति को मत्स्य माना गया।
प्राचीन ग्रंथों में मत्स्य जनपद का स्पष्ट उल्लेख है जिसकी राजधानी विराट नगर थी, जो अब जयपुर वैराठ है। इस मस्त्य जनपद में अलवर, भरतपुर एवं जयपुर के आस-पास का क्षेत्र शामिल था। आज भी मीणा लोग इसी क्षेत्र में बहुत अधिक संख्या में रहते हैं।
मीणा जाति के भाटों(जागा) के अनुसार मीणा जाति में 12 पाल, 32 तड़ एवं 5248 गौत्र हैं। मूलतः मीना एक सत्तारूढ़ [जाति] थे, और मत्स्य, यानी, राजस्थान या मत्स्य संघ के शासक थे, लेकिन उनका पतन स्य्न्थिअन् साथ आत्मघात से शुरू हुआ और पूरा जब ब्रिटिश सरकार ने उन्हें राजपूतों के साथ मिलकर "आपराधिक जाति" में डाल दिया था। यह कार्रवाई, राजस्थान में राजपूत राज्य के साथ उनके गठबंधन के समर्थन में लिया गया निर्णय थी |
राजा आम्बेर (जयपुर) सहित राजस्थान के प्रमुख भागों के प्रारंभिक शासक थे। पुस्तक 'संस्कृति और भारतीय जातियों की एकता "RS Mann द्वारा में कहा गया है कि मीना, राजपूतों के समान एक क्षत्रिय जाति के रूप में मानी जाती हे परंतु इतिहास में उल्लेख बहुत कम किया गया हैै।
प्राचीन समय में राजस्थान मे मीना वंश के राजाओ का शासन था। मीणा राज्य मछली (राज्य) कहा जाता था। संस्कृत में मत्स्य राज्य का ऋग्वेद में उल्लेख किया गया था. बाद में भील और मीना, विदेशी लोगों से जो कि सिंध्, हेप्थलिते या अन्य मध्य एशियाई गुटों के साथ आये थे, से मिश्रित हुए।
मीना मुख्य रूप से मीन भगवान और (शिव) की पुजा करते थे/हैं। *मीनाओ मे कई अन्य हिंदू जातिओं की तुलना में महिलाओं के लिए बेहतर अधिकार रहे हैं। विधवाओं और तलाकशुदा का पुनर्विवाह एक आम बात है* और इसेअच्छी तरह से अपने समाज में स्वीकार कर लिया है। इस तरह के अभ्यास वैदिक सभ्यता का हिस्सा हैं।
आक्रमण के वर्षों के दौरान, और १८६८ के भयंकर अकाल में, तबाह के तनाव के तहत कै समुह बने। एक परिणाम के रूप मे भूखे परिवारों को जाति और ईमानदारी का संदेह का परित्याग करने के लिए पशु चोरी और उन्हें खाने के लिए मजबूर होना पडा।.
*विषय सूची*
1 वर्ग
2 मीणा जाति के प्रमुख राज्य निम्नलिखित थे
3 मीणा राजाओं द्वारा निर्मित प्रमुख किले
4 मीणा राजाओं द्वारा निर्मित प्रमुख बाबड़ियां
5 मीणा राजाओं द्वारा निर्मित प्रमुख मंदिर :
*१-मीणा जाति प्रमुख रूप से निम्न वर्गों में बंटी हुई है..*
:-जमींदार या पुरानावासी मीणा :-
जमींदार या पुरानावासी मीणा वे हैं जो प्रायः खेती एवं पशुपालन का कार्य बर्षों से करते आ रहे हैं। ये लोग राजस्थान के सवाईमाधोपुर, करौली,दौसा व जयपुर जिले में सर्वाधिक हैं|
*-:चौकीदार या नयाबासी मीणा :-*
चौकीदार या नयाबासी मीणा वे मीणा हैं जो अपनी स्वछंद प्रकृति के कारण चौकीदारी का कार्य करते थे। इनके पास जमींने नहीं थीं, इस कारण जहां इच्छा हुई वहीं बस गए। उक्त कारणों से इन्हें नयाबासी भी कहा जाता है। ये लोग सीकर, झुंझुनू, एवं जयपुर जिले में सर्वाधिक संख्या में हैं।
-:प्रतिहार या पडिहार मीणा :-
इस वर्ग के मीणा टोंक, भीलवाड़ा, तथा बूंदी जिले में बहुतायत में पाये जाते हैं। प्रतिहार का शाब्दिक अर्थ उलट का प्रहार करना होता है। ये लोग छापामार युद्ध कौशल में चतुर थे इसलिये प्रतिहार कहलाये।
-:रावत मीणा :-
रावत मीणा अजमेर, मारवाड़ में निवास करते हैं। रावत एक उपाधी थी जो बहादुरी के लिये दी जाती थी!
-:भील मीणा :-
ये लोग सिरोही, उदयपुर, बांसवाड़ा, डूंगरपुर एवं चित्तोड़गढ़ जिले में प्रमुख रूप से निवास करते हैं।
२-मीणा जाति के प्रमुख राज्य :-
खोहगंग का चांदा राजवंश,
मांच का सीहरा राजवंश,
गैटोर तथा झोटवाड़ा के नाँढला राजवंश,
आमेर का सूसावत राजवंश,
नायला का राव बखो [beeko] देवड़वाल (द॓रवाल) राजवंश,
नहाण का गोमलाडू राजवंश,
रणथम्भौर का टाटू राजवंश,
नाँढ़ला का राजवंश,
बूंदी का उषारा एवम् मोटिश राजवंश,
मेवाड़ का मीणा राजवंश,
माथासुला ओर नरेठका ब्याड्वाल
झान्कड़ी अंगारी (थानागाजी) का सौगन मीना राजवंश!
*प्रचीनकाल में मीणा जाति का राज्य राजस्थान में चारों ओर फ़ैला हुआ था!*
३-मीणा राजाओं द्वारा निर्मित प्रमुख किले :-
तारागढ़ का किला बूंदी,
आमागढ़ का किला,
हथरोई का किला,
खोह का किला,
जमवारामगढ़ का किला,
४-मीणा राजाओं द्वारा निर्मित प्रमुख बाबड़ियां:-
भुली बाबड़ी ग्राम सरजोली,
मीन भग्वान राणी जी की बावड़ी बूंदी बावदी, सरिस्का, अल्वर
पन्ना मीणा की बाबड़ी, आमेर
खोहगंग की बाबड़ी,जयपुर
मीणा राजा चन्द की आभानेरी चाँद बावड़ी
५-मीणा राजाओं द्वारा निर्मित प्रमुख मंदिर :-
दांत माता का मंदिर, जमवारामगढ़- सीहरा मीणाओं की कुल देवी,
शिव मंदिर, नई का नाथ, बांसखो,जयपुर
बांकी माता का मंदिर, रायसर,जयपुर-ब्याडवाल मीणाओं की कुलदेवी,
बाई का मंदिर, बड़ी चौपड़, जयपुर
आशावरी माता का मंदिर, चूलगिरी की पहाड़ी की तलहटी में, पुराना घाट, खाँनिया सरकारी स्कूल के पिछे , जयपुर - नाँढला (बडगोती) मीणा समाज की कुलदेवी,
ज्वालादेवी का मंदिर, जोबनेर, जयपुर टोडा महादेव का मंदिर, टोडामीणा, जमवारामगढ़, जयपुर
सेवड माता का मंदिर, मीन भगवान का मंदिर, मलारना चौड़,सवाई माधोपुर (राजस्थान) मीन भगवान का मंदिर, चौथ का बरवाड़ा, सवाई माधोपुर (राजस्थान)
मीन भगवान का मंदिर, खुर्रा, लालसोट, दौसा (राजस्थान)
इतिहास प्रसिद्द पूरात्वविद स्पेन निवासी फादर हेरास ने 1940- 1957 तक सिन्धु सभ्यता पर खोज व शोद्द कार्य किया 1957 में उनके शोद्द पत्र मोहन जोदड़ो के लोग व भूमि शोद्द पत्र संख्या-4 में लिखा है* मोहन जोदड़ो सभ्यता के समय यह प्रदेश चार भागो में विभक्त था जिनमे एक प्रदेश मीनाद था जिसे संस्कृत साहित्य में मत्स्य नाम दिया गया और साथ ही यह भी लिखा की *मीना (मीणा) आर्यों और द्रविड़ो से पूर्व बसा मूल आदिवासी समुदाय था जो ऋग्वेद काल के मत्स्यो के पूर्वज है जिसका गण चिह्न मछली (मीन) था* ।
इस *मीना समुदाय का प्राचीनतम उल्लेख ऋग्वेद में किया गया है वहा लिखा है ये लोग बड़े वीर पराक्रमी और शूरवीर है* पर आर्य राजा सुदास के शत्रु है इसका ही उल्लेख डिस्ट्रिक गजेटियर बूंदी 1964 के पृष्ट -29 पर भी किया गया है; *हरमनगाइस ने अपनी पुस्तक द आर्ट एण्ड आर्चिटेक्चर ऑफ़ बीकानेर के पृष्ट -98 पर मीणा समुदाय की प्राचीनता का उल्लेख करते हुए लिखा है की मीना आदिवासी लोग मत्स्य लोगो के वंसज है जो आर्यों की और से लडे राजा सुदास से पराजित हुए और महाभारत के युद्द में मत्स्य जनपद के शासक के रूप में शामिल हुई | महाभारत युद्द में हुई क्षति से ये बिखर गए छोटे छोटे अनेक राज्य अस्तित्व में आ गए जिनमे इनका पूर्व का कर्द राज्य गढ़ मोरा महाभारत काल में जिसका शासक ताम्र ध्वज थे मोरी वंश प्रसिद्द हुवा जिसका राजस्थान में अंतिम शासक चित्तोड़ के मान मोर हुए जिसे बाप्पा रावल ने मारकर गुहिलोतो का राज्य स्थापित किया जो आगे जाकर सिसोदिया कहलाया |
मोरी (मोर्य) साम्राज्य के अंत और गुप्त सामराज्य के समय अनेक छोटे छोटे राज्य हो गए मेर, मेव और मीना कबीलाई मेवासो के रूप में अस्तित्व में आये .उत्तर से आने वाली आक्रमण करी जातियों ने इनको काफी क्षति पहुचाई .शेष बचे गणराज्यो को समुद्रगुप्त ने कर्द राज्य बनाया उस समय मेरवाडा में मेर मेवाड़ में मेव और ढूढाड में मीना काबिज थे हर्ष वर्धन के समय उसके अधीन रहे |
हर्ष वर्धन के अंत के बाद पुन जोर पकड़ा | कई राज्य बने कमजोर थे उन्होंने ताकत अर्जित करी | *वरदराज विष्णु को हीदा मीणा लाया था दक्षिण से आमेर रोड पर परसराम द्वारा के पिछवाड़े की डूंगरी पर विराजमान वरदराज विष्णु की एतिहासिक मूर्ति को साहसी सैनिक हीदा मीणा दक्षिण के कांचीपुरम से लाया था। मूर्ति लाने पर मीणा सरदार हीदा के सम्मान में सवाई जयसिंह ने रामगंज चौपड़ से सूरजपोल बाजार के परकोटे में एक छोटी मोरी का नाम हीदा की मोरी रखा। उस मोरी को तोड़ अब चौड़ा मार्ग बना दिया लेकिन लोगों के बीच यह जगह हीदा की मोरी के नाम से मशहूर है।
देवर्षि श्री कृष्णभट्ट ने ईश्वर विलास महाकाव्य में लिखा है, कि *कलयुग के अंतिम अश्वमेध यज्ञ* केलिए जयपुर आए वेदज्ञाता रामचन्द्र द्रविड़, सोमयज्ञ प्रमुखा व्यास शर्मा, मैसूर के हरिकृष्ण शर्मा, यज्ञकर व गुणकर आदि विद्वानों ने महाराजा को सलाह दी थी कि कांचीपुरम में आदिकालीन विरदराज विष्णु की मूर्ति के बिना यज्ञ नहीं हो सकता हैं। यह भी कहा गया कि द्वापर में धर्मराज युधिष्ठर इन्हीं विरदराज की पूजा करते था। जयसिंह ने कांचीपुरम के राजा से इस मूर्ति को मांगा लेकिन उन्होंने मना कर दिया। तब जयसिंह ने साहसी हीदा को कांचीपुरम से मूर्ति जयपुर लाने का काम सौंपा। हीदा ने कांचीपुरम में मंदिर के सेवक माधवन को विश्वास में लेकर मूर्ति लाने की योजना बना ली। कांचीपुरम में विरद विष्णु की रथयात्रा निकली तब हीदा ने सैनिकों के साथ यात्रा पर हमला बोला और विष्णु की मूर्ति जयपुर ले आया। इसके साथ आया माधवन बाद में माधवदास के नाम से मंदिर का महंत बना।
अष्टधातु की बनी सवा फीट ऊंची विष्णु की मूर्ति के बाहर गण्शोमध्ययुगीन इतिहास प्राचीन समय मे मीणा राजा आलन सिंह ने, एक असहाय राजपूत माँ और उसके बच्चे को उसके दा बच्चे, ढोलाराय को दिल्ली भेजा, मीणा राज्य का प्रतिनिधित करने के लिए। राजपूत ने इस् एहसान के लिए आभार मे राजपूत सणयन्त्रकारिओ ने दीवाली पर पुरखो को पानी देते समय निहत्थे मीनाओ पर हमला करके मीनाओ की लाशे बिछा दि, उस समय मीना पित्र तर्पन रस्में कर रहे थे मीनाओ को उस् समय निहत्था होना होता था। जलाशयों को"जो मीनाऔ के मृत शरीर के साथ भर गये। ] और इस प्रकार कछवाहा राजपूतों ने खोगओन्ग पर विजय प्राप्त की थी, सबसे कायर हर्कत और राजस्थान के इतिहास में शर्मनाक।
एम्बर के कछवाहा राजपूत शासक भारमल हमेशा नह्न मीना राज्य पर हमला करता था, लेकिन बहादुर बड़ा मीणा के खिलाफ सफल नहीं हो सका। अकबर ने राव बड़ा मीना को कहा था,अपनी बेटी कि शादी उससे करने के लिए। बाद में भारमल ने अपनी बेटी जोधा की शादी अकबर से कर दि। तब अकबर और भारमल की संयुक्त सेना ने बड़ा हमला किया और मीना राज्य को नस्त कर दिया। मीनाओ का खजाना अकबर और भारमल के बीच साझा किया गया था। भारमल ने एम्बर के पास जयगढ़ किले में खजाना रखा ।
-:कुछ अन्य महत्वपूर्ण तथ्य:-
कर्नल जेम्स- टॉड के अनुसार कुम्भलमेर से अजमेर तक की पर्वतीय श्रृंखला के अरावली अंश परिक्षेत्र को मेरवाड़ा कहते है । मेर+ वाड़ा अर्थात मेरों का रहने का स्थान । कतिपय इतिहासकारों की राय है कि " मेर " शब्द से मेरवाड़ा बना है ।
यहां यह भी सवाल खड़ा होता है कि क्या मेर ही रावत है । कई इतिहासकारो का कहना है किसी समय यहां विभिन्न समुदायो के समीकरण से बनी 'रावत' समुदाय का बाहुल्य रहा है जो आज भी है । रावत एक उपाधी थी जो बहादुर लोगो को दी जाती थी! कहा यह भी जाता है कि यह समुदाय परिस्थितियों और समय के थपेड़ों से संघर्ष करती कतिपय झुंझारू समुदायों से बना एक समीकरण है ।
सुरेन्द्र अंचल अजमेर का मानना है कि रावत ही मीणा है या यो कह लें कि मीणाओ मे से ही रावत वर्ग है । रावत और राजपूतो में परस्पर विवाह सम्बन्ध के उदाहरण मुश्किल से हि मिल पाए । जबकि रावतों और मीणाओ के विवाह होने के अनेक उदाहरण आज भी है ।
श्री प्रकाश चन्द्र मेहता ने अपनी पुस्तक " आदिवासी संस्कृति व प्रथाएं के पृष्ठ 201 पर लिखा है कि मेवात मे मेव मीणा व मेरवाड़ा में मेर मीणाओं का वर्चस्व था।
महाभारत के काल का मत्स्य संघ की प्रशासनिक व्यवस्था लौकतान्त्रिक थी जो मौर्यकाल में छिन्न- भिन्न हो गयी और इनके छोटे-छोटे गण ही आटविक (मेवासा ) राज्य बन गये । चन्द्रगुप्त मोर्य के पिता इनमे से ही थे । समुद्रगुप्त की इलाहाबाद की प्रशस्ति मे आ...टविक ( मेवासे ) को विजित करने का उल्लेख मिलता है राजस्थान व गुजरात के आटविक राज्य मीना और भीलो के ही थे इस प्रकार वर्तमान ढूंढाड़ प्रदेश के मीना राज्य इसी प्रकार के विकसित आटविक राज्य थे ।
वर्तमान हनुमानगढ़ के सुनाम कस्बे में मीनाओं के आबाद होने का उल्लेख आया है कि *सुल्तान मोहम्मद तुगलक ने सुनाम व समाना के विद्रोही जाट व मीनाओ के संगठन ' मण्डल ' को नष्ट करके मुखियाओ को दिल्ली ले जाकर मुसलमान बना दिया ( E.H.I, इलियट भाग- 3, पार्ट- 1 पेज 245 ) इसी पुस्तक में अबोहर में मीनाओ के होने का उल्लेख है (पे 275 बही) इससे स्पष्ट है कि मीना प्राचीनकाल से सरस्वती के अपत्यकाओ में गंगा नगर हनुमानगढ़ एवं अबोहर- फाजिल्का मे आबाद थे ।
रावत एक उपाधि थी जो महान वीर योध्दाओ को मिलती थी जो सम्मान सूचक मानी जाती थी मुस्लिम आक्रमणो के समय इनमे से काफी को मुस्लिम बना...या गया अतः मेर मेरात मेहर मुसमानो मे भी है ॥
17 जनवरी 1917 में मेरात और रावत सरदारो की राजगढ़ ( अजमेर ) में महाराजा उम्मेद सिह शाहपूरा भीलवाड़ा और श्री गोपाल सिह खरवा की सभा मेँ सभी लोगो ने मेर मेरात मेहर की जगह रावत नाम धारण किया । इसके प्रमाण के रूप में 1891 से 1921 तक के जनसंख्या आकड़े देखे जा सकते है 31 वर्षो मे मेरो की संख्या में 72% की कमी आई है वही रावतो की संख्या में 72% की बढोत्तर हुई है । गिरावट का कारण मेरो का रावत नाम धारण कर लेना है ।
सिन्धुघाटी के प्राचीनतम निवासी मीणाओ का अपनी शाखा मेर, महर के निकट सम्बन्ध पर प्रकाश डालते हुए कहा जा सकता है कि -- *सौराष्ट्र (गुजरात ) के पश्चिमी काठियावाड़ के जेठवा राजवंश का राजचिन्ह मछली के तौर पर अनेक पूजा स्थल " भूमिलिका " पर आज भी देखा जा सकता है इतिहासकार जेठवा लोगो को मेर( महर, रावत) समुदाय का माना जाता है जेठवा मेरों की एक राजवंशीय शाखा थी जिसके हाथ में राजसत्ता होती थी
(I.A 20 1886 पेज नः 361) कर्नल टॉड ने मेरों को मीना समुदाय का एक भाग माना है (AAR 1830 VOL- 1) आज भी पोरबन्दर काठियावाड़ के महर समाज के लोग उक्त प्राचीन राजवंश के वंशज मानते है अतः हो ना हो गुजरात का महर समाज भी मीणा समाज का ही हिस्सा है ।
फादर हैरास एवं सेठना ने सुमेरियन शहरों में सभ्यता का प्रका फैलाने वाले सैन्धव प्रदेश के मीना लोगो को मानते है । इस प्राचीन आदिम निवासियों की सामुद्रिक दक्षता देखकर मछलि ध्वजधारी लोगों को नवांगुतक द्रविड़ो ने मीना या मीन नाम दिया* मीलनू नाम से मेलुहा का समीकरण उचित जान पड़ता है मि *स्टीफन ने गुजरात के कच्छ के मालिया को मीनाओ से सम्बन्धीत बताया है दूसरी ओर गुजरात के महर भी वहां से सम्बन्ध जोड़ते है । कुछ महर समाज के लोग अपने आपको हिमालय का मूल मानते है उसका सम्बन्ध भी मीनाओ से है हिमाचल में मेन(मीना) लोगो का राज्य था । स्कन्द में शिव को मीनाओ का राजा मीनेश कहा गया है ।
हैरास सिन्धुघाटी लिपी को प्रोटो द्रविड़ियन माना है उनके अनुसार भारत का नाम मौहनजोदड़ो के समय सिद था इस सिद देश के चार भाग थे जिनमें एक मीनाद अर्थात मत्स्य देश था । फाद हैरास ने एक मोहर पर मीना जाती का नाम भी खोज निकाला । उनके अनुसार मोहनजोदड़ो में राजतंत्र व्यवस्था थी । एक राजा का नाम " मीना " भी मुहर पर फादर हैरास द्वारा पढ़ा गया ( डॉ॰ करमाकर पेज न॰ 6) अतः कहा जा सकता है कि मीना जाति का इतिहास बहुत प्राचीन है इस विशाल समुदाय ने देश के विशाल क्षेत्र पर शासन किया और इससे कई जातियो की उत्पत्ती हुई और इस समुदाय के अनेक टूकड़े हुए जो किसी न किसी नाम से आज भी मौजुद है ।
आज भी 10-11 हजार मीणा लोग फौज में है *बुदी का उमर गांव पूरे देश मे एक अकेला मीणो का गांव है जिसमें 7000 की जनसंख्या मे से 2500 फौजी है* टोंक बूंन्दी जालौर सिरोही मे से मीणा लोग बड़ी संख्या मे फौज मे है। उमर गांव के लोगो ने प्रथम व द्वीतिय विश्व युध्द लड़कर शहीद हुए थे *शिवगंज के नाथा व राजा राम मीणा को उनकी वीरता पर उस समय का परमवीर चक्र जिसे विक्टोरिया चक्र कहते थे मिला था जो उनके वंशजो के पास है । आजादी के समय भारत में तीन मीणा बटालियने थी पर दूर्भावनावश खत्म कर दी गई थी!
तूंगा (बस्सी) के पास जयपुर नरेश प्रतापसिंह और माधजी सिन्धिया मराठा के बीच 1787 मे जो स्मरणिय युध्द हुआ उसमें प्रमुख भूमिका मीणो की रही जिसमे मराठे इतिहास मे पहली बार जयपुर के राजाओ से प्राजित हुए थे वो भी मीणाओ के कारण इस युध्द में राव चतुर और पेमाजी की वीरता प्रशंसनीय रही । उन्होने चार हजार मराठो को परास्त कर मीणाओ ने अपना नाम अमर कर दिया । तूँगा के पास अजित खेड़ा पर जयराम का बास के वीरो ने मराठो को हराया इसके बदले जयराम का बास की जमीन व जयपुर खजाने मे पद दिया गया ।
सम्माननीय वीर इमानदार कर्तव्यनिष्ठ मीणा बंधुवर, आपसे मेरा व्यक्तिगत आग्रह है कि आप समाज हित में जनजाति की लड़ाई व अशिक्षा दूर करने के लिए अभियान के तहत छात्रावासो के निर्माण कार्यो मैं सहयोग अवश्य करें, इस हेतु किसी अन्य बंधुवर का इंतजार नहीं करें, (क्योंकि कोई अन्य व्यक्ति आपसे कहेगा या आपके पास आएगा इसका इंतजार किया तो कोई भी सामाजिक कार्य नहीं हो सकता है) !
अतः आप सहयोग करें एवं अपने बंधुओं से सहयोग कराएं तो ही यह सामाजिक कार्य संभव है !
🚨आपको ईश्वर ने किसी महान उद्देश्य से मानव जीवन देकर अन्य करोड़ो जीव-जंतुओं से श्रेष्ठ बनाकर यह अपेक्षा की है कि आप अन्य सभी के हितों की रक्षा करेंगे और मानवता अर्थात समाज सेवा को सर्वोपरि स्थान देंगे।
राजस्थान के मीणा समाज में कुल मिलाकर 5248 गोत है, उनमें से कुछ गोत / surnames
A
Auraj औराज
Aamroo आमरू

B
Beflawat बैफ़लावत
Bagdi बागड़ी
Bagodiya बागोडिया
Bagranya बगरान्या
Bainada बैनाडा
Bajota बजोटा
Bakala बाकला
Barwal बारवाल
Bargoti बड़गोती
Barld बल्ड़
Basanwal बासनवाल
Byadwal ब्याडवाल
Bhodna भोदना
Bhorawat भौरावत or bhorayat भौरायत
Banskhowa बांसखोवा
Bhakand भाकंड
Bandwal बान्डवाल
Bamnawat बामनावत
Bankliya बांकलिया
Buriya बूरियाल
Benade बेनाडे
Bhabhla भाभला
Bhonda भोन्डा
Bohra / bahure बोहरा / बहुरे
Balot बालोत
Bunas बूनस
Buriya बूरिया
Banskho बांसखो
Beelwal बीलवाल
Bail बेल
Bundas बूंदस
Besar बेसर
Bhaskar भास्कर
Bhabhrya भाभर्या

C
cholak छोलक
chedwal छेड़वाल
chandwal छान्डवाल
chanda चांदा
chawal छावल
chhanwal छानवाल
channavat छन्नावत
chirawat छिरावत
chitach छिताच
chhapola छापोला
charnawat चर्नावत
charawadiya चारावंड्या
choriya छोरिया
charawat छरावत
chandwara चंन्दवारा
chandadiya चंदाड्या
chaudhari चौधरी
chetriya चेत्रीया
chorasya चोरस्या
chandrawat चंन्द्रावत
choolwal चुलवाल
chorawat छोरावत
chookleda चोकलेडा
chungada चुंगडा

D
dagal डागल
dhyawana ध्यावणा
dewana देवणा
devadwal देवदवाल
dovwal डोबवाल
domala डुमाला
domela डुमेला
dewanda देवंदा
dhanawat धनावत
dundya दुन्ध्या
dhankariya ढाकर्या
dudawat दुडावत
didawat दिदावत
dedwal डेडवाल
dakriya डाकर्या
dadarwal डाडरवाल
dechalwal डेचरवाल
damachya दमाच्या
dondaga दोन्डगा
duwanya दुवाण्या
dugarwal डुगरवाल
donawat दोनावत
dhaigal डहंगळ
dechalwal डेचरवाल
dhawaniya धावण्या
dhurwal धुरवाल
dhakal डाकल
damriya दामर्या
dussawat दुसावत
dheerawat धिरावत
dawer डावर

F
faneta फानेटा
farwa फार्वा

G
gohli गोसली
gomladoo गोमलाडू
gothwal गोठवाल
gunawat घुनावत
ghusinga घुसिंगा
gahlot गहलोत
goliya गोलिया
Golwal गोलवाल
govli गवली
goyali गोयली
gorwad गोरवाड
ghumariya घुमार्या
ghusrawat घुस्रावत
goththulगोठल
ghodeta घोडटा
gorni घोर्णी

H
hazari हजारी
hatwal हटवाल
hadchoor हाडचोर

J
Jundia जून्दिया
jaif जैफ
jhirval झिरवाल
jagarwal जगरवाल
jeejarh जिजर्ह
joharwal जोहरवाल
jharwal झारवाल
jhamuhre झामूर्हे
jakhiwal जखिवाल
jareda जारेडा
jorwad जोरवाड
jorwal / jarwal जोरवाल / जारवाल
jorawat जुरावत
jurdiya जुर्डीया
junwal / jonwal जुनवाल / जोनवाल
jendera जेन्डेरा
jalodiya जलोड्या
jhajhra झाझरा
janera जानेरा

K
kanwat कांवत
kankas कांकस
khoda खोड़ा
kholwal खोलवाल
kotwadya कोटवाड्या
kunwaliya कुनवालिया
khokaar खोक्कर
kahite काहीटे
khora खोरा
khata खाटा
kakroda काकरोडा
kawadiya कवाडीया
kathumariya कठूमार्या
kankarwal काकरवाल
kanwatiya कन्वाट्या
kantiya कान्तिया
kokra कोकरा
kotwar कोटवार
kotwadiya कोटवाड्या
kotwada कोटवाडा
kotwal कोटवाल
kalot कलोत
kumrawat कुमरावत
kudaliya कुडालिया
kajodiya कजोडीया
katrawat कतरावत
khorwal खोरवाल
khani खाणी
khatla खाटला
kunjlot कुंजलोत
kotawariya कोटवारिया
kanriwal कनरीवाल
kanetiya कानेटीया
kuwal कुवल
kiwad किवड
kanet कानेत
kawaliya कवाल्या
khandal खंडल
khokhalwar खोकरवार
Khaneda खानेडा

L
lotan लोटण
lalsotya लालसोट्या
luckwads लुकवाड
lukwal लकवाल
lodhwal लोदवाल
lookhdiya लुखडिया
lakhnauta लखनौटा
luhar meena लुहार मीणा
lakhnawat लखनावत

M
mandar मंदार
myal म्याळ
mehar मेहर
marmat मरमट
machya मच्या
motis मोटीस
mewal मेवाळ
mimrot मिमरोट
mandawat मंडावत
madhaiya मांधिया
manatwal मनतवाल
mainawat मैनावत
mandal मांडल
mandar मंदार
marag मारग
mothiya मोठ्या
mothu मोठू
morajhwal मोर्झवाल
morjal मोर्झाल
marwadiya मारवाड़्या
mohsal मोहसल
moja मोझा
mohnot मोहनोत
muradiya मुर्हाड्या
mandiya मांड्या

N
naurawat नौरावत
nareda नार्हेडा
nandla नांढला
naananiya नानानिया
neemrot निमरोट
naglod नागलोद
nimroth निमरोठ
naugara नौगरा
nakwal नकवाल
neemwal निमवाल
nathawat नाथावत
newla नेवला
nai meena नाई मीणा / नाईमण्या
neemawat निमावत

P
pawadi पबड़ी
pokhriya पोखरिया
perwa पेरवा
perwal पेरवाल
poonjlot पुंजलोत
panwar पंवार
parihar परिहार
pakar पाकळ
pratihar प्रतिहार
pyara प्यारा
parala पारला
purawat पुरावत

R
rajalwal राजलवाल
rankala रांकळा
rajarwal राजरवाल
Reknot रेकनोत
rodiya रोडीया

S
susawat सुसावत
sattawan सत्तावन
sawara सवारा
singhal सिंघल
sirra सिर्हा
sonet सोनेत
singhalwal सिंघलवाल
seeswal सिसवाल
sogan सोगण
sewariya सेवरिया
sapawat सपावत
sulaniya सुलाण्या
siwal सिवल
soorwal सुरवाल
simal सिमल
sandoora संदुरा
seelwar सिलवार
shahar सहर
saharia सहारीया
seenam सिनम
Sisodiya शिसोड्या
Sastiya साष्टीया

T
tatu टाटू
thanwal थानवाल
thahgal थंघल
thoorwar थोरवार
teelan तिलान
tatar तातर
tatwara टटवारा
tatunya तटाण्या
tamri तामरी
tazi ताजी

U
ussara उषारा



Z
zurawat झुरावत

मीणा जाती की गौत्रानुसार कुलदेवी 
गोत्र- बैफलावत,
कुलदेवी :- पालीमाता पीठ नांगल (लालसोट) दौसा ।

गोत्र - छाण्डवाल
कुलदेवी: पपलाज माता लालसोट को भी मानते है ।

गोत्र - महर,
कुलदेवी - घटवासन माता, स्थान:- गुढा चन्द्रजी तह॰ टोडाभीभ करौली ।

गोत्र -जगरवाल
कुलदेवी - अरहाई माता

गोत्र - टाटू
कुलदेवी- बरवासन स्थान:- सपोटरा करौली

गोत्र- चांदा
कुलदेवी - बाण माता(आसावरी) स्थान:- खो गंग (खो नागोरियान झालाना पहाड़ी) जयपुर

गोत्र - माणतवाल
कुलदेवी - जीणमाता(जयंति देवी) स्थान:- हर्ष पहाड़ी (रेवासा) दाता रामगढ़ सीकर

गौत्र - बारवाल(बारवाड़)
कुलदेवी - चौथ माता, स्थान :- चौथ का बरवाड़ा सवाई माधोपुर

गोत्र - मरमट
कुलदेवी - दुगाय (दुर्गामाता) माता स्थान :- गुढ़ा बरथल तह॰ निवाई जि॰ टौंक । मलारना चौड़ बौली सवाई माधोपुर में भी है ।
गोत्र - जोरवाल जारवाळ
कुलदेवी - ब्रह्माणी माता (प्याली माता) स्थान :-आमेर पहाड़ी जयपुर,पल्लु(हनुमान गढ़), मण्डावरी दौसा ।
गौत्र - ब्याडवाल, गोमलाडू
कुलदेवी - बांकी माता, स्थान :- माताशुला रायसर तह॰ जमुवारामगढ़ जयपुर
गोत्र - नायी मीना (नायमण्या), ककरोड़ा
कुलदेवी - नारायणी माता स्थान:- बरवा की पहाड़ी नारायणी धाम तह॰ राजगढ़ अलवर
गोत्र - सुसावत
कुलदेवी - अम्बा माता स्थान:-आमेर पहाड़ी जयपुर
गोत्र - बैन्दाड़ा
कुलदेवी - आशोजाई माता (चंड माता) स्थान :- चतरपुरा तह॰ सांभरलेक जयपुर
गोत्र- खोडा
कुलदेवी - सेवाद माता village chitanu, tehsil amer, distt.l Jaipur
गोत्र :- उषहारा(उसारा)
कुलदेवी :- बीजासण माता, स्थान :- बीजासण पहाड़ी तह॰ इन्द्रगढ़ जिला बुंदी
गोत्र - चरणावत
कुलदेवी - कैला माता स्थान - कैला पहाड़ी तह॰ सपोटरा करौली । अब कैला माता को टाटू आदि अन्य गोत्र भी मानने लग गये ।
jef - badhasan mata alwar ko mante hai...
गोत्र - शहर, सहरिया
कुलदेवी - गुमानो माता, स्थान - इन्दौर मध्यप्रदेश
गोत्र - मांदड़
कुलदेवी - खुर्रा माता स्थान - गांव खुर्रा मण्डावरी लालसोट दौसा
गौत्र - डोबवाल,
कुलदेवी - खलकाई माता, स्थान - गांव डोब तह॰ लालसोट जि॰ दौसा ।
गोत्र - कटारा
कुलदेवी - धराल माता, स्थान - गांव निठारा की पाल त॰ सराड़ा जि॰ उदयपुर ।
गौत्र - पारगी, नटरावत, टौरा, मन्दलावत, चरणावत
कुलदेवी - काली माता (कालका), स्थान - निठाऊवा (बांसवाड़ा), कालीसिंध के किनारे (पीपलदा), दिगोद कोटा ।
गौत्र - हरमोर(कलासुआ)
कुलदेवी - जावर माता, स्थान - जावर माइन्स उदयपुर ।
गौत्र - घुणावत,
कुलदेवी - लाखोड माता, स्थान - गांव पीलोदा तह॰ गंगापुर सीटी जि॰ सवाई माधोपुर ।
गोत्र - गोली
कुलदेवी - चामुंडा देवी village tigriya, bamanavash

गौत्र - मेवाल
कुलदेवी - मैणसी (आसावरी) स्थान - कूकस खोरा मेवाल दिल्ली रोड़ आमेर जयपुर । पहले अनासन देवी को भी पूजा था ।
गोत्र - करेलवाल
कुलदेवी - ईट माता, स्थान - बुढ़ादित दिगोद कोटा ।
गोत्र - कोटवार ,कोटवाल,कोटवाड़, घुणावत
कुलदेवी - मोरा माता (चन्द्रगुप्त मौर्य की मा का नाम मोरा था) स्थान -रायसाना गढ़मोरा करौली, गांव घुमणा के घुणावतो ने भी मोरा माता का मंदिर बना रखा है वैसे उनकी कुलदेवी लहकोड़ माता है अतः तरूण जी आप वहां जाए और माता का दर्शन करें आपके गोत्र का बड़ा गांव बिलौना कला लालसोट रोड़ और कमालपुरा जो गढ़मोरा के पास है ये काफी बड़े गांव है यहां से आपको और जानकारी मिल सकती है । घुणावत बाद में लहकोड़ माता गांव पीलेदा त॰ गंगापुर सीटी सवाई माधोपुर को भी मानने लग गये ।
गोत्र - सिहरा
कुलदेवी - दन्त माता
गोत्र - मंडाल, मान्ड्या
कुलदेवी - जुग्निया माता
स्थान :- मंडलगढ, भिलवाडा
गोत्र - जार्हेडा
कुलदेवी - बिर्ताई माता
प्रमुख गोत्रो के धराड़ी कुल वृक्ष
[आदिवासी मीणा गोत्र] [निर्धारित कुल वृक्ष]
[आदिवासी मीणा गोत्र] [निर्धारित कुल वृक्ष]
बैफ्लावत,
महर,
झरवाल,
ध्यावना,
सुलानिया,
खोड़ा,
टाटू,
बडगोती,
जाल,
सिहरा,
सेहरा,
सिरा,
सीमल
बैनाडा,
चिता(कुदाल्या),
मानतवल,
वनवाल,
छान्दवाल
== पीपल
सुसावत(खरगोश का शिकार नहीं करते),
सत्तावन
खेजड़ा,
गोमलाडू,
नीमवाल,
करेलवाल,
ढूंचा/दमाच्या आशापाला
== (अशोक)
ब्याडवाल,
केमर
मरमट,
झाऊ,
डोबवाल,
सरस,
मीमरोट,
कदम,
बासंवाल,
मंद्लावत
== बड़
जिन्देडा,
चांदा
केम/गांदल,
देवाना/देवंदा/देवन्द
केर
कटारा,
पारगी,
हरमोर,
खराड़ी,
डामोर,
बांसखोवा,
बांस
मोरडा/मोर,
मौर्य,
ताजी
मोर (पक्षी)
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