6.12.18

सुभाषचंद्र बोस की जीवनी और अनमोल वचन





भारत को अंग्रेजों की दासता से मुक्त कराने वाले क्रांतिकारियों में नेताजी सुभाष चंद्र बोस का नाम प्रथम पंक्ति में आता है वे सच्चे अर्थों में देश पर मर मिटने वाले क्रान्तिवीर थे। उनका जन्म 23 जनवरी 1897 को कटक के विख्यात वकील श्री जानकीनाथ बोस के घर हुआ था, उनकी माता का नाम प्रभावती था। सुभाष चंद्र बोस बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि थे, वह पढ़ने में बहुत होशियार थे। अपने कॉलेज के दिनों में भी छात्र नेता के रूप में उभरे वह बहुत ही प्रतिभाशाली व्यक्ति थे। जब सुभाष चंद्र बोस जी ने अपने देश को ब्रिटिश शासन के अधीन देखा और अंग्रेजों द्वारा अपने देश के नागरिकों पर हो रहे अत्याचारों को देखा तो उनका युवा खून खौल उठा उन्होंने अंग्रेजों को अपने देश से खदेड़ने का संकल्प किया।

उन्होंने देश की आजादी के खातिर भारतीय सिविल सेना जैसी नौकरी से त्यागपत्र दे दिया और आजादी की लड़ाई में कूद पड़े। आजादी को मांगकर नहीं बल्कि छीनकर हासिल करना चाहते थे वे देश के सम्मान स्वाभिमान के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार थे। उन्होंने देश में चल रहे आंदोलन में हिस्सा लिया और अंग्रेजों की नाक में दम कर दिया और जब अंग्रेजों ने स्वाधीनता की ओर बढ़ते उनके कदमों में जंजीरे डालने का प्रयास किया तो वे देश त्याग कर विदेशों की ओर रवाना हो गए। उन्होंने विदेशों में रहते हुए भी देश की स्वाधीनता के लिए संघर्ष जारी रखा। 5 जुलाई 1945 को सुभाष चंद्र बोस ने आजाद हिंद फौज की गठन की विधिवत घोषणा की और उन्होंने सिंगापुर में म्युनिसिपल भवन के सामने आजाद हिंद की सभी पलटनों की संयुक्त परेड का निरीक्षण किया।
इसी अवसर पर उन्होंने दिल्ली चलो और दिल्ली पर अधिकार करो का नारा दिया। उन्होंने देशवासियों को तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा का नारा भी दिया। आजाद हिंद फौज में लगभग 40000 सैनिक थे उनमें 1000 रूसी सैनिकों वाली रानी झांसी रेजिमेंट भी शामिल थी। आजाद हिंद फौज के सर्वोच्च सेनापति बनने के बाद सुभाष चंद्र बोस ने नागरिक वेशभूषा त्याग दी और सैनिक पोशाक पहनने लगे। 25 अक्टूबर 1945 को सुभाष चंद्र बोस ने ब्रिटेन के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी और कई जगह सफलता प्राप्त की, किंतु 5 अगस्त 1945 को हिरोशिमा और 8 अगस्त 1945 को नागासाकी पर हुए परमाणु बम के हमले ने जापान को मित्र राष्ट्रों के सामने घुटने टेकने को मजबूर कर दिया।
इसी के साथ सुभाष चंद्र बोस और आजाद हिंद फौज की आकांक्षाएं दम तोड़ती नजर आने लगी। लेकिन वह अंत तक अंग्रेजों को मुंहतोड़ जवाब देते रहे 27 अगस्त 1945 को अचानक जापान की टोक्यो न्यूज़ एजेंसी ने यह समाचार प्रसारित किया कि विगत 18 अगस्त को श्री सुभाष चंद्र बोस हवाई जहाज की दुर्घटना से बुरी तरह घायल होकर एक अस्पताल में भर्ती हुए थे और उसी रात में संसार से चल बसे। लेकिन अनेक ज्योतिषियों कैप्टन स्वामीनाथ ने तथा गांधी जी ने अपने अनेक भासनो में इस समाचार पर अविश्वास प्रकट किया था। आजादी के इतिहास में अंग्रेजी सरकार से लोहा लेने वाला जिसने अपना संपूर्ण जीवन स्वाधीनता संग्राम की भेंट चढ़ा दिया ऐसे महान देशभक्त को हमारा शत-शत नमन।

नेताजी के अनमोल वचन

*बलिदान कभी व्यर्थ नहीं जाता।नश्वर संसार में हर चीज नष्ट हो जाती है लेकिन विचार आदर्श और सपने कभी खत्म नहीं होते।
*आजादी का मतलब सिर्फ राजनीतिक गुलामी से छुटकारा ही नहीं देश की संपत्ति का समान बंटवारा, जात पात के बंधनों और सामाजिक ऊंच-नीच से मुक्ति तथा संप्रदायिकता वर्धमान धर्मांधता को जड़ से उखाड़ फेंकना ही सच्ची आजादी होगी।
*यदि मनुष्य चाहे तो धरती क्या आकाश तक को बदल सकता है।
*यदि कोई अन्याय या अनुचित काम करने से वास्तविकता की सिद्धि हो सकती है तो ऐसा करना मनुष्य का
दुष्कर्म नहीं कहा जा सकता।यदि कुछ लेना चाहते हो तो कुछ देना सीखो।
*गुलामी दुनिया का सबसे घृणित पाप है।
*मनुष्य का जीवन इसलिए है कि वह बात या चार के खिलाफ लड़े।
*अस्पृश्यता हमारे देश और समाज के मस्तिक पर कलंक है।
*शिक्षित व्यक्ति यदि चरित्रहीन हो तब भी क्या उसे विद्वान कहेंगे? कभी नहीं।
*हिंदी के विरोध का कोई भी आंदोलन राष्ट्र की प्रगति में बाधक है।
*जीवन चाहते हो तो जीवन देना सीखो और याद रखो महानतम गुण अन्याय से संघर्ष करना है चाहे उसके लिए कोई भी कीमत क्यों न चुकानी पड़े।
*तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा।
*इस सनातन नियम को याद रखो तुम कुछ प्राप्त करना चाहो तो अर्पित करना सीखो।
*देश से ही नहीं जो दिल से गुलाम हो गए हो बे कभी आजादी हासिल नहीं कर सकते।
*अपनी ताकत पर भरोसा करो उधार की शक्ति तुम्हारे लिए घातक है|
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22.10.18

चाणक्य नीति


                         



आज से करीब 2300 साल पहले पहले पैदा हुए आचार्य चाणक्य भारतीय राजनीति और अर्थशास्त्र के पहले विचारक माने जाते हैं। पाटलिपुत्र के शक्तिशाली नंद वंश को उखाड़ फेंकने और अपने शिष्य चंदगुप्त मौर्य को बतौर राजा स्थापित करने में आचार्य चाणक्य का अहम योगदान रहा। ज्ञान के केंद्र तक्षशिला विश्वविद्यालय में आचार्य रहे चाणक्य राजनीति के चतुर खिलाड़ी थे और इसी कारण उनकी नीति कोरे आदर्शवाद पर नहीं बल्कि व्यावहारिक ज्ञान पर टिकी है।

आचार्य चाणक्य एक ऐसी महान विभूति थे, जिन्होंने अपनी विद्वत्ता और क्षमताओं के बल पर भारतीय इतिहास की धारा को बदल दिया। मौर्य साम्राज्य के संस्थापक चाणक्य कुशल राजनीतिज्ञ, चतुर कूटनीतिज्ञ, प्रकांड अर्थशास्त्री के रूप में भी विश्वविख्‍यात हुए। इतनी सदियाँ गुजरने के बाद आज भी यदि चाणक्य के द्वारा बताए गए सिद्धांत ‍और नीतियाँ प्रासंगिक हैं तो मात्र इसलिए क्योंकि उन्होंने अपने गहन अध्‍ययन, चिंतन और जीवानानुभवों से अर्जित अमूल्य ज्ञान को, पूरी तरह नि:स्वार्थ होकर मानवीय कल्याण के उद्‍देश्य से अभिव्यक्त किया। वर्तमान दौर की सामाजिक संरचना, भूमंडलीकृत अर्थव्यवस्था और शासन-प्रशासन को सुचारू ढंग से बताई गई ‍नीतियाँ और सूत्र अत्यधिक कारगर सिद्ध हो सकते हैं।आचार्य चाणक्य की महानता सर्वविदित है. चाणक्य ने जीवन के विभिन्न पहलुओं पर अपनी नीतियां लिखी थीं जिन्हें उपयोग में ला कर आप अपनी ज़िन्दगी बदल सकते हैं.
ऐसे ही यदि आप किसी ऑफिस में कार्य करते हैं या फिर किसी तरह की राजनीति में सबसे आगे रहना चाहते हैं तो नीचे दिए गए वचनों को ध्यान से पढ़ें और इन्हें अपनाएं. चाणक्य द्वारा लिखित नीतियों का हिंदी रूपांतरण हमने यहां किया है.
ऑफिस या राजनीति पर चाणक्य के विचार
1. किसी कार्य को शुरू करने से पहले ये तीन सवाल जरूर पूछें.
मैं यह क्यूँ कर रहा हूँ. इसके क्या परिणाम होंगे. क्या यह सफल होगा.
जब आप इन सवालों पर विचार करोगे तभी आप पूरे मन से उस कार्य को कर पाओगे.
2. एक बार किसी कार्य को शुरू कर दो फिर असफलता से क्या डरना. किसी हाल में कार्य रुकना नहीं चाहिए

काम चाहे छोटा हो या बड़ा हो एक बार हाथ में लेने के बाद उसे कभी नहीं छोड़ना चाहिए, अपनी लगन और सामर्थ से उस काम को पूरा करना चाहिए, जैसे शेर अपने पकडे हुए शिकार को कभी नहीं छोड़ता!
3. किसी भी काम के डर और भय को नजदीक मत आने दो अगर यह नजदीक आये तोह इसपर हमला कर दो यानि भय से भागो मत इसका सामना करो।
4. दूसरों की गलतियों से सीखें. आप पूरे जीवन भर अपनी गलतियों से नहीं सीख सकते.
5. सबसे बड़ा गुरुमंत्र – किसी को भी अपने गुप्त राज मत बताओ. ये आपको तबाह कर देगा.
6. किसी भी व्यक्ति को जरूरत से ज्यादा ईमानदार नहीं होना चाहिए क्योंकि सीधे तने वाले पेड़ ही सबसे पहले काटे जाते हैं इसलिए बहुत ज्यादा ईमानदार लोगों को ही सबसे ज्यादा परेशानी और कष्ट उठाने पड़ते हैं।

7.हर मित्रता के पीछे कुछ न कुछ स्वार्थ जरूर छिपा होता है। दुनिया में ऐसी कोई दोस्ती नहीं जिसके पीछे लोगों के अपने हित न छिपे हों, यह कटु सत्य है।
8. अगर कोई सांप जहरीला नहीं है, तब भी उसे फुफकारना नहीं छोड़ना चाहिए। उसी तरह से कमजोर व्यक्ति को भी हर वक्त अपनी कमजोरी का प्रदर्शन नहीं करना चाहिए और कभी अपनी हार नहीं माननी चाहिए।
9. जब तक आपने मन में दृढ निश्चय नहीं किया, आप प्रतियोगिता में नहीं हो.
10. तीन चीज़ों पर दुनिया चलती है. अन्न, जल तथा मधुर वाणी.

11.किसी भी दुष्ट प्रवृत्ति के इंसान की मीठी बातों पर भरोसा कभी नहीं करना चाहिए क्योंकि वो अपने मूल स्वभाव को कभी नहीं छोड़ सकता, जैसे शेर कभी भी हिंसा नहीं छोड़ सकता।
12.जो बीत गया, सो बीत गया, अपने हाथ से कोई गलत काम हो गया हो तो उसकी फिक्र छोड़ते हुए वर्तमान को सलीके से जीकर भविष्य को संवारना चाहिए। हमें बीते समय के बारे में पछतावा नहीं करना चाहिए और न ही भविष्य के बारे में चिंतित होना चाहिए विवेकमान और बुद्धिमान व्यक्ति केवल वर्तमान में जीते हैं ।
13.जैसे दूध में मिला जल भी दूध बन जाता है गुणी व्यक्ति का आश्रय पाकर गुणहीन भी गुणी बन जाता है इसलिए हमेशा गुणी व्यक्तिसे मित्रता करनी चाहिए गुणहीन व्यक्ति से हमेशा दूर ही रहना चाहिए!
14.नीच प्रवृति के लोग दूसरों के दिलों को चोट पहुंचाने वाली, उनके विश्वासों को छलनी करने वाली बातें करते हैं, दूसरों की बुराई कर खुश हो जाते हैं। मगर ऐसे लोग अपनी बड़ी-बड़ी और झूठी बातों के बुने जाल में खुद भी फंस जाते हैं। जिस तरह से रेत के टीले को अपनी बांबी समझकर सांप घुस जाता है और दम घुटने से उसकी मौत हो जाती है, उसी तरह से ऐसे लोग भी अपनी बुराइयों के बोझ तले मर जाते हैं।
15.संकट काल के लिए धन बचाएं। परिवार पर संकट आए तो धन कुर्बान कर दें। लेकिन अपनी आत्मा की हिफाजत हमें अपने परिवार और धन को भी दांव पर लगाकर करनी चाहिए।
16.भाई-बंधुओं की परख संकट के समय और अपनी स्त्री की परख धन के नष्ट हो जाने पर ही होती है। और कष्टों से भी बड़ा कष्ट दूसरो के घर पर रहना है।
17.जिनके मन में सैदव परोपकार की भावना रहती है लोगों की मुसीबतें जल्द ही खत्म हो जाती हैं और उन्हें हर कदम पर यश की प्राप्ति होती है।
18.जीवन में कामयाब होने के लिए  अच्छे मित्रों की जरुरत होती है और ज्यादा कामयाब होने के लिए अच्छे शत्रुओं की  आवश्यकता होती है असंभव शब्द का इस्तेमाल बुजदिल करते हैं। बहादुर और बुद्धिमान व्यक्ति अपना रास्ता खुद बनाते हैं।
19.अगर गलतियों से सीखना है तो दूसरों की गलतियों से सीखो, अपने ही ऊपर प्रयोग करके सिखने से आपकी आयु कम पड़ेगी।
20.जैसे समुद्र में गिरी हुई वस्तु नष्ट हो जाती है वैसे ही जो सुनता नहीं है उससे कही हुई बात भी नष्ट हो जाती है और अजितेन्द्रिय पुरुष का शास्त्र ज्ञान नष्ट हो जाता है- बिना वजह कलह करना मूर्खों का काम है बुद्धिमान लोगों को इससे बचना चाहिए ऐसा करने से वो अनर्थ से बच जातें हैं और अपने जीवन में यश पाते हैं।
परवरिश
जन्म के पांचवे साल तक पुत्र को प्यार करना चाहिये, फिर दस साल तक दंडित करना चाहिये और एक बार जब वह सोलह वर्ष का हो जाए, तब उसे अपना दोस्त बना लेना चाहिये।
भगवान
भगवान मूर्तियों में नहीं है। आपकी अनुभूति आपका इश्वर है। आपकी आत्मा आपका मंदिर है।
इंसान की अच्छाई
फूल की खुशबू केवल हवा की दिशा में जाएगी। लेकिन एक अच्छे इंसान की अच्छाई सब जगह फैलेगी।
सबसे बड़ी ताकत
दुनिया की सबसे बड़ी ताकत पुरुष का विवेक और महिला की सुन्दरता है।

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कबीर के दोहे



पाठकों से निवेदन है कि कुछ दोहों की प्रथम पंक्ति लिंक रूप मे हैं ,उसे क्लिक करने पर आप उस दोहे को संगीत के साथ सुन सकेंगे|



पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय,
ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।


अर्थ : बड़ी बड़ी पुस्तकें पढ़ कर संसार में कितने ही लोग मृत्यु के द्वार पहुँच गए, पर सभी विद्वान न हो सके. कबीर मानते हैं कि यदि कोई प्रेम या प्यार के केवल ढाई अक्षर ही अच्छी तरह पढ़ ले, अर्थात प्यार का वास्तविक रूप पहचान ले तो वही सच्चा ज्ञानी होगा.

साधु ऐसा चाहिए, जैसा सूप सुभाय,
सार-सार को गहि रहै, थोथा देई उड़ाय।


अर्थ : इस संसार में ऐसे सज्जनों की जरूरत है जैसे अनाज साफ़ करने वाला सूप होता है. जो सार्थक को बचा लेंगे और निरर्थक को उड़ा देंगे.

माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर,

कर का मनका डार दे, मन का मनका फेर।

अर्थ : कोई व्यक्ति लम्बे समय तक हाथ में लेकर मोती की माला तो घुमाता है, पर उसके मन का भाव नहीं बदलता, उसके मन की हलचल शांत नहीं होती. कबीर की ऐसे व्यक्ति को सलाह है कि हाथ की इस माला को फेरना छोड़ कर मन के मोतियों को बदलो या फेरो.

धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय,
माली सींचे सौ घड़ा, ॠतु आए फल होय।


अर्थ : मन में धीरज रखने से सब कुछ होता है. अगर कोई माली किसी पेड़ को सौ घड़े पानी से सींचने लगे तब भी फल तो ऋतु आने पर ही लगेगा !


बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय,
जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय।


अर्थ : जब मैं इस संसार में बुराई खोजने चला तो मुझे कोई बुरा न मिला. जब मैंने अपने मन में झाँक कर देखा तो पाया कि मुझसे बुरा कोई नहीं है.


जिन खोजा तिन पाइया, गहरे पानी पैठ,

मैं बपुरा बूडन डरा, रहा किनारे बैठ।

अर्थ : जो प्रयत्न करते हैं, वे कुछ न कुछ वैसे ही पा ही लेते हैं जैसे कोई मेहनत करने वाला गोताखोर गहरे पानी में जाता है और कुछ ले कर आता है. लेकिन कुछ बेचारे लोग ऐसे भी होते हैं जो डूबने के भय से किनारे पर ही बैठे रह जाते हैं और कुछ नहीं पाते.

दोस पराए देखि करि, चला हसन्त हसन्त,
अपने याद न आवई, जिनका आदि न अंत।

अर्थ : यह मनुष्य का स्वभाव है कि जब वह दूसरों के दोष देख कर हंसता है, तब उसे अपने दोष याद नहीं आते जिनका न आदि है न अंत.

अति का भला न बोलना, अति की भली न चूप
अति का भला न बरसना, अति की भली न धूप।

अर्थ : न तो अधिक बोलना अच्छा है, न ही जरूरत से ज्यादा चुप रहना ही ठीक है. जैसे बहुत अधिक वर्षा भी अच्छी नहीं और बहुत अधिक धूप भी अच्छी नहीं है.

मेरा समाज मेरी कहानी


बोली एक अनमोल है, जो कोई बोलै जानि,
हिये तराजू तौलि के, तब मुख बाहर आनि।

अर्थ : यदि कोई सही तरीके से बोलना जानता है तो उसे पता है कि वाणी एक अमूल्य रत्न है। इसलिए वह ह्रदय के तराजू में तोलकर ही उसे मुंह से बाहर आने देता है.

कहत सुनत सब दिन गए, उरझि न सुरझ्या मन.
कही कबीर चेत्या नहीं, अजहूँ सो पहला दिन.


अर्थ : कहते सुनते सब दिन निकल गए, पर यह मन उलझ कर न सुलझ पाया. कबीर कहते हैं कि अब भी यह मन होश में नहीं आता. आज भी इसकी अवस्था पहले दिन के समान ही है.



    हिन्दू कहें मोहि राम पियारा, तुर्क कहें रहमाना,
    आपस में दोउ लड़ी-लड़ी मुए, मरम न कोउ जाना।
अर्थ : कबीर कहते हैं कि हिन्दू राम के भक्त हैं और तुर्क (मुस्लिम) को रहमान प्यारा है. इसी बात पर दोनों लड़-लड़ कर मौत के मुंह में जा पहुंचे, तब भी दोनों में से कोई सच को न जान पाया
कबीर कहा गरबियो, काल गहे कर केस.
ना जाने कहाँ मारिसी, कै घर कै परदेस.
अर्थ : कबीर कहते हैं कि हे मानव ! तू क्या गर्व करता है? काल अपने हाथों में तेरे केश पकड़े हुए है. मालूम नहीं, वह घर या परदेश में, कहाँ पर तुझे मार डाले.
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हर घड़ी ख़ुद से उलझना है मुक़द्दर मेरा-

विशिष्ट कवियों की चयनित कविताओं की सूची (लिंक्स)

स्वप्न झरे फूल से, मीत चुभे शूल से -गोपालदास "नीरज"

वीरों का कैसा हो वसंत - सुभद्राकुमारी चौहान

सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोसिताँ हमारा-अल्लामा इकबाल

उन्हें मनाने दो दीवाली-- डॉ॰दयाराम आलोक

जब तक धरती पर अंधकार - डॉ॰दयाराम आलोक

जब दीप जले आना जब शाम ढले आना - रविन्द्र जैन

सुमन कैसे सौरभीले: डॉ॰दयाराम आलोक

वह देश कौन सा है - रामनरेश त्रिपाठी

किडनी फेल (गुर्दे खराब ) की रामबाण औषधि

बीन भी हूँ मैं तुम्हारी रागिनी भी हूँ -महादेवी वर्मा

मधुर-मधुर मेरे दीपक जल - महादेवी वर्मा

प्रणय-गीत- डॉ॰दयाराम आलोक

गांधी की गीता - शैल चतुर्वेदी

तूफानों की ओर घुमा दो नाविक निज पतवार -शिवमंगलसिंह सुमन

सरहदें बुला रहीं.- डॉ॰दयाराम आलोक

जंगल गाथा -अशोक चक्रधर

मेमने ने देखे जब गैया के आंसू - अशोक चक्रधर

सूरदास के पद

रात और प्रभात.-डॉ॰दयाराम आलोक

घाघ कवि के दोहे -घाघ

मुझको भी राधा बना ले नंदलाल - बालकवि बैरागी

बादल राग -सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"

आओ आज करें अभिनंदन.- डॉ॰दयाराम आलोक

मुहावरे और लोकोक्तियाँ

               



मुहावरा- कोई भी ऐसा वाक्यांश जो अपने साधारण अर्थ को छोड़कर किसी विशेष अर्थ को व्यक्त करे उसे मुहावरा कहते हैं।

लोकोक्ति- लोकोक्तियाँ लोक-अनुभव से बनती हैं। किसी समाज ने जो कुछ अपने लंबे अनुभव से सीखा है उसे एक वाक्य में बाँध दिया है। ऐसे वाक्यों को ही लोकोक्ति कहते हैं। इसे कहावत, जनश्रुति आदि भी कहते हैं।
मुहावरा और लोकोक्ति में अंतर- मुहावरा वाक्यांश है और इसका स्वतंत्र रूप से प्रयोग नहीं किया जा सकता। लोकोक्ति संपूर्ण वाक्य है और इसका प्रयोग स्वतंत्र रूप से किया जा सकता है। जैसे-‘होश उड़ जाना’ मुहावरा है। ‘बकरे की माँ कब तक खैर मनाएगी’ लोकोक्ति है।
कुछ प्रचलित मुहावरे-
1. अंग संबंधी मुहावरे-
1. अंग छूटा- (कसम खाना) मैं अंग छूकर कहता हूँ साहब, मैने पाजेब नहीं देखी।
2. अंग-अंग मुसकाना-(बहुत प्रसन्न होना)- आज उसका अंग-अंग मुसकरा रहा था।
3. अंग-अंग टूटना-(सारे बदन में दर्द होना)-इस ज्वर ने तो मेरा अंग-अंग तोड़कर रख दिया।
4. अंग-अंग ढीला होना-(बहुत थक जाना)- तुम्हारे साथ कल चलूँगा। आज तो मेरा अंग-अंग ढीला हो रहा है।

2. अक्ल-संबंधी मुहावरे-

1. अक्ल का दुश्मन-(मूर्ख)- वह तो निरा अक्ल का दुश्मन निकला।
2. अक्ल चकराना-(कुछ समझ में न आना)-प्रश्न-पत्र देखते ही मेरी अक्ल चकरा गई।
3. अक्ल के पीछे लठ लिए फिरना (समझाने पर भी न मानना)- तुम तो सदैव अक्ल के पीछे लठ लिए फिरते हो।

4. अक्ल के घोड़े दौड़ाना-(तरह-तरह के विचार करना)- बड़े-बड़े वैज्ञानिकों ने अक्ल के घोड़े दौड़ाए, तब कहीं वे अणुबम बना सके।

3. आँख-संबंधी मुहावरे

1. आँख दिखाना-(गुस्से से देखना)- जो हमें आँख दिखाएगा, हम उसकी आँखें फोड़ देगें।
2. आँखों में गिरना-(सम्मानरहित होना)- कुरसी की होड़ ने जनता सरकार को जनता की आँखों में गिरा दिया।
3. आँखों में धूल झोंकना-(धोखा देना)- शिवाजी मुगल पहरेदारों की आँखों में धूल झोंककर बंदीगृह से बाहर निकल गए।
4. आँख चुराना-(छिपना)- आजकल वह मुझसे आँखें चुराता फिरता है।
5. आँख मारना-(इशारा करना)-गवाह मेरे भाई का मित्र निकला, उसने उसे आँख मारी, अन्यथा वह मेरे विरुद्ध गवाही दे देता।
6. आँख तरसना-(देखने के लालायित होना)- तुम्हें देखने के लिए तो मेरी आँखें तरस गई।
7. आँख फेर लेना-(प्रतिकूल होना)- उसने आजकल मेरी ओर से आँखें फेर ली हैं।
8. आँख बिछाना-(प्रतीक्षा करना)- लोकनायक जयप्रकाश नारायण जिधर जाते थे उधर ही जनता उनके लिए आँखें बिछाए खड़ी होती थी।
9. आँखें सेंकना-(सुंदर वस्तु को देखते रहना)- आँख सेंकते रहोगे या कुछ करोगे भी
10. आँखें चार होना-(प्रेम होना,आमना-सामना होना)- आँखें चार होते ही वह खिड़की पर से हट गई।
11. आँखों का तारा-(अतिप्रिय)-आशीष अपनी माँ की आँखों का तारा है।
12. आँख उठाना-(देखने का साहस करना)- अब वह कभी भी मेरे सामने आँख नहीं उठा सकेगा।
13. आँख खुलना-(होश आना)- जब संबंधियों ने उसकी सारी संपत्ति हड़प ली तब उसकी आँखें खुलीं।
14. आँख लगना-(नींद आना अथवा व्यार होना)- बड़ी मुश्किल से अब उसकी आँख लगी है। आजकल आँख लगते देर नहीं होती।
15. आँखों पर परदा पड़ना-(लोभ के कारण सचाई न दीखना)- जो दूसरों को ठगा करते हैं, उनकी आँखों पर परदा पड़ा हुआ है। इसका फल उन्हें अवश्य मिलेगा।
16. आँखों का काटा-(अप्रिय व्यक्ति)- अपनी कुप्रवृत्तियों के कारण राजन पिताजी की आँखों का काँटा बन गया।

17. आँखों में समाना-(दिल में बस जाना)- गिरधर मीरा की आँखों में समा गया।

4. कलेजा-संबंधी कुछ मुहावरे-

1. कलेजे पर हाथ रखना-(अपने दिल से पूछना)- अपने कलेजे पर हाथ रखकर कहो कि क्या तुमने पैन नहीं तोड़ा।
2. कलेजा जलना-(तीव्र असंतोष होना)- उसकी बातें सुनकर मेरा कलेजा जल उठा।
3. कलेजा ठंडा होना-(संतोष हो जाना)- डाकुओं को पकड़ा हुआ देखकर गाँव वालों का कलेजा ठंढा हो गया।
4. कलेजा थामना-(जी कड़ा करना)- अपने एकमात्र युवा पुत्र की मृत्यु पर माता-पिता कलेजा थामकर रह गए।
5. कलेजे पर पत्थर रखना-(दुख में भी धीरज रखना)- उस बेचारे की क्या कहते हों, उसने तो कलेजे पर पत्थर रख लिया है।

6. कलेजे पर साँप लोटना-(ईर्ष्या से जलना)- श्रीराम के राज्याभिषेक का समाचार सुनकर दासी मंथरा के कलेजे पर साँप लोटने लगा।

5. कान-संबंधी कुछ मुहावरे

1. कान भरना-(चुगली करना)- अपने साथियों के विरुद्ध अध्यापक के कान भरने वाले विद्यार्थी अच्छे नहीं होते।
2. कान कतरना-(बहुत चतुर होना)- वह तो अभी से बड़े-बड़ों के कान कतरता है।
3. कान का कच्चा-(सुनते ही किसी बात पर विश्वास करना)- जो मालिक कान के कच्चे होते हैं वे भले कर्मचारियों पर भी विश्वास नहीं करते।
4. कान पर जूँ तक न रेंगना-(कुछ असर न होना)-माँ ने गौरव को बहुत समझाया, किन्तु उसके कान पर जूँ तक नहीं रेंगी।

5. कानोंकान खबर न होना-(बिलकुल पता न चलना)-सोने के ये बिस्कुट ले जाओ, किसी को कानोंकान खबर न हो।


मेरी सामाजिक कहानी



6. नाक-संबंधी कुछ मुहावरे

1. नाक में दम करना-(बहुत तंग करना)- आतंकवादियों ने सरकार की नाक में दम कर रखा है।
2. नाक रखना-(मान रखना)- सच पूछो तो उसने सच कहकर मेरी नाक रख ली।
3. नाक रगड़ना-(दीनता दिखाना)-गिरहकट ने सिपाही के सामने खूब नाक रगड़ी, पर उसने उसे छोड़ा नहीं।
4. नाक पर मक्खी न बैठने देना-(अपने पर आँच न आने देना)-कितनी ही मुसीबतें उठाई, पर उसने नाक पर मक्खी न बैठने दी।

5. नाक कटना-(प्रतिष्ठा नष्ट होना)- अरे भैया आजकल की औलाद तो खानदान की नाक काटकर रख देती है।

7. मुँह-संबंधी कुछ मुहावरे-

1. मुँह की खाना-(हार मानना)-पड़ोसी के घर के मामले में दखल देकर हरद्वारी को मुँह की खानी पड़ी।
2. मुँह में पानी भर आना-(दिल ललचाना)- लड्डुओं का नाम सुनते ही पंडितजी के मुँह में पानी भर आया।
3. मुँह खून लगना-(रिश्वत लेने की आदत पड़ जाना)- उसके मुँह खून लगा है, बिना लिए वह काम नहीं करेगा।
4. मुँह छिपाना-(लज्जित होना)- मुँह छिपाने से काम नहीं बनेगा, कुछ करके भी दिखाओ।
5. मुँह रखना-(मान रखना)-मैं तुम्हारा मुँह रखने के लिए ही प्रमोद के पास गया था, अन्यथा मुझे क्या आवश्यकता थी।
6. मुँहतोड़ जवाब देना-(कड़ा उत्तर देना)- श्याम मुँहतोड़ जवाब सुनकर फिर कुछ नहीं बोला।
7. मुँह पर कालिख पोतना-(कलंक लगाना)-बेटा तुम्हारे कुकर्मों ने मेरे मुँह पर कालिख पोत दी है।
8. मुँह उतरना-(उदास होना)-आज तुम्हारा मुँह क्यों उतरा हुआ है।
9. मुँह ताकना-(दूसरे पर आश्रित होना)-अब गेहूँ के लिए हमें अमेरिका का मुँह नहीं ताकना पड़ेगा।
10. मुँह बंद करना-(चुप कर देना)-आजकल रिश्वत ने बड़े-बड़े अफसरों का मुँह बंद कर रखा है।

8. दाँत-संबंधी मुहावरे

1. दाँत पीसना-(बहुत ज्यादा गुस्सा करना)- भला मुझ पर दाँत क्यों पीसते हो? शीशा तो शंकर ने तोड़ा है।
2. दाँत खट्टे करना-(बुरी तरह हराना)- भारतीय सैनिकों ने पाकिस्तानी सैनिकों के दाँत खट्टे कर दिए।
3. दाँत काटी रोटी-(घनिष्ठता, पक्की मित्रता)- कभी राम और श्याम में दाँत काटी रोटी थी पर आज एक-दूसरे के जानी दुश्मन है।

9. गरदन-संबंधी मुहावरे

1. गरदन झुकाना-(लज्जित होना)- मेरा सामना होते ही उसकी गरदन झुक गई।
2. गरदन पर सवार होना-(पीछे पड़ना)- मेरी गरदन पर सवार होने से तुम्हारा काम नहीं बनने वाला है।
3. गरदन पर छुरी फेरना-(अत्याचार करना)-उस बेचारे की गरदन पर छुरी फेरते तुम्हें शरम नहीं आती, भगवान इसके लिए तुम्हें कभी क्षमा नहीं करेंगे।

10. गले-संबंधी मुहावरे-

1. गला घोंटना-(अत्याचार करना)- जो सरकार गरीबों का गला घोंटती है वह देर तक नहीं टिक सकती।
2. गला फँसाना-(बंधन में पड़ना)- दूसरों के मामले में गला फँसाने से कुछ हाथ नहीं आएगा।
3. गले मढ़ना-(जबरदस्ती किसी को कोई काम सौंपना)- इस बुद्धू को मेरे गले मढ़कर लालाजी ने तो मुझे तंग कर डाला है।
4. गले का हार-(बहुत प्यारा)- तुम तो उसके गले का हार हो, भला वह तुम्हारे काम को क्यों मना करने लगा।
11. सिर-संबंधी मुहावरे-
1. सिर पर भूत सवार होना-(धुन लगाना)-तुम्हारे सिर पर तो हर समय भूत सवार रहता है।
2. सिर पर मौत खेलना-(मृत्यु समीप होना)- विभीषण ने रावण को संबोधित करते हुए कहा, ‘भैया ! मुझे क्या डरा रहे हो ? तुम्हारे सिर पर तो मौत खेल रही है‘।
3. सिर पर खून सवार होना-(मरने-मारने को तैयार होना)- अरे, बदमाश की क्या बात करते हो ? उसके सिर पर तो हर समय खून सवार रहता है।
4. सिर-धड़ की बाजी लगाना-(प्राणों की भी परवाह न करना)- भारतीय वीर देश की रक्षा के लिए सिर-धड़ की बाजी लगा देते हैं।
5. सिर नीचा करना-(लजा जाना)-मुझे देखते ही उसने सिर नीचा कर लिया।

12. हाथ-संबंधी मुहावरे-

1. हाथ खाली होना-(रुपया-पैसा न होना)- जुआ खेलने के कारण राजा नल का हाथ खाली हो गया था।
2. हाथ खींचना-(साथ न देना)-मुसीबत के समय नकली मित्र हाथ खींच लेते हैं।
3. हाथ पे हाथ धरकर बैठना-(निकम्मा होना)- उद्यमी कभी भी हाथ पर हाथ धरकर नहीं बैठते हैं, वे तो कुछ करके ही दिखाते हैं।
4. हाथों के तोते उड़ना-(दुख से हैरान होना)- भाई के निधन का समाचार पाते ही उसके हाथों के तोते उड़ गए।
5. हाथोंहाथ-(बहुत जल्दी)-यह काम हाथोंहाथ हो जाना चाहिए।
6. हाथ मलते रह जाना-(पछताना)- जो बिना सोचे-समझे काम शुरू करते है वे अंत में हाथ मलते रह जाते हैं।
7. हाथ साफ करना-(चुरा लेना)- ओह ! किसी ने मेरी जेब पर हाथ साफ कर दिया।
8. हाथ-पाँव मारना-(प्रयास करना)- हाथ-पाँव मारने वाला व्यक्ति अंत में अवश्य सफलता प्राप्त करता है।
9. हाथ डालना-(शुरू करना)- किसी भी काम में हाथ डालने से पूर्व उसके अच्छे या बुरे फल पर विचार कर लेना चाहिए।

13. हवा-संबंधी मुहावरे

1. हवा लगना-(असर पड़ना)-आजकल भारतीयों को भी पश्चिम की हवा लग चुकी है।
2. हवा से बातें करना-(बहुत तेज दौड़ना)- राणा प्रताप ने ज्यों ही लगाम हिलाई, चेतक हवा से बातें करने लगा।
3. हवाई किले बनाना-(झूठी कल्पनाएँ करना)- हवाई किले ही बनाते रहोगे या कुछ करोगे भी ?
4. हवा हो जाना-(गायब हो जाना)- देखते-ही-देखते मेरी साइकिल न जाने कहाँ हवा हो गई ?

14. पानी-संबंधी मुहावरे-

1. पानी-पानी होना-(लज्जित होना)-ज्योंही सोहन ने माताजी के पर्स में हाथ डाला कि ऊपर से माताजी आ गई। बस, उन्हें देखते ही वह पानी-पानी हो गया।
2. पानी में आग लगाना-(शांति भंग कर देना)-तुमने तो सदा पानी में आग लगाने का ही काम किया है।
3. पानी फेर देना-(निराश कर देना)-उसने तो मेरी आशाओं पर पानी पेर दिया।
4. पानी भरना-(तुच्छ लगना)-तुमने तो जीवन-भर पानी ही भरा है।

15. कुछ मिले-जुले मुहावरे

1. अँगूठा दिखाना-(देने से साफ इनकार कर देना)-सेठ रामलाल ने धर्मशाला के लिए पाँच हजार रुपए दान देने को कहा था, किन्तु जब मैनेजर उनसे मांगने गया तो उन्होंने अँगूठा दिखा दिया।
2. अगर-मगर करना-(टालमटोल करना)-अगर-मगर करने से अब काम चलने वाला नहीं है। बंधु !
3. अंगारे बरसाना-(अत्यंत गुस्से से देखना)-अभिमन्यु वध की सूचना पाते ही अर्जुन के नेत्र अंगारे बरसाने लगे।
4. आड़े हाथों लेना-(अच्छी तरह काबू करना)-श्रीकृष्ण ने कंस को आड़े हाथों लिया।
5. आकाश से बातें करना-(बहुत ऊँचा होना)-टी.वी.टावर तो आकाश से बाते करती है।
6. ईद का चाँद-(बहुत कम दीखना)-मित्र आजकल तो तुम ईद का चाँद हो गए हो, कहाँ रहते हो ?
7. उँगली पर नचाना-(वश में करना)-आजकल की औरतें अपने पतियों को उँगलियों पर नचाती हैं।
8. कलई खुलना-(रहस्य प्रकट हो जाना)-उसने तो तुम्हारी कलई खोलकर रख दी।
9. काम तमाम करना-(मार देना)- रानी लक्ष्मीबाई ने पीछा करने वाले दोनों अंग्रेजों का काम तमाम कर दिया।
10. कुत्ते की मौत करना-(बुरी तरह से मरना)-राष्ट्रद्रोही सदा कुत्ते की मौत मरते हैं।
11. कोल्हू का बैल-(निरंतर काम में लगे रहना)-कोल्हू का बैल बनकर भी लोग आज भरपेट भोजन नहीं पा सकते।
12. खाक छानना-(दर-दर भटकना)-खाक छानने से तो अच्छा है एक जगह जमकर काम करो।
13. गड़े मुरदे उखाड़ना-(पिछली बातों को याद करना)-गड़े मुरदे उखाड़ने से तो अच्छा है कि अब हम चुप हो जाएँ।
14. गुलछर्रे उड़ाना-(मौज करना)-आजकल तुम तो दूसरे के माल पर गुलछर्रे उड़ा रहे हो।
15. घास खोदना-(फुजूल समय बिताना)-सारी उम्र तुमने घास ही खोदी है।
16. चंपत होना-(भाग जाना)-चोर पुलिस को देखते ही चंपत हो गए।
17. चौकड़ी भरना-(छलाँगे लगाना)-हिरन चौकड़ी भरते हुए कहीं से कहीं जा पहुँचे।
18. छक्के छुडा़ना-(बुरी तरह पराजित करना)-पृथ्वीराज चौहान ने मुहम्मद गोरी के छक्के छुड़ा दिए।
19. टका-सा जवाब देना-(कोरा उत्तर देना)-आशा थी कि कहीं वह मेरी जीविका का प्रबंध कर देगा, पर उसने तो देखते ही टका-सा जवाब दे दिया।
20. टोपी उछालना-(अपमानित करना)-मेरी टोपी उछालने से उसे क्या मिलेगा?
21. तलवे चाटने-(खुशामद करना)-तलवे चाटकर नौकरी करने से तो कहीं डूब मरना अच्छा है।
22. थाली का बैंगन-(अस्थिर विचार वाला)- जो लोग थाली के बैगन होते हैं, वे किसी के सच्चे मित्र नहीं होते।
23. दाने-दाने को तरसना-(अत्यंत गरीब होना)-बचपन में मैं दाने-दाने को तरसता फिरा, आज ईश्वर की कृपा है।
24. दौड़-धूप करना-(कठोर श्रम करना)-आज के युग में दौड़-धूप करने से ही कुछ काम बन पाता है।
25. धज्जियाँ उड़ाना-(नष्ट-भ्रष्ट करना)-यदि कोई भी राष्ट्र हमारी स्वतंत्रता को हड़पना चाहेगा तो हम उसकी धज्जियाँ उड़ा देंगे।
26. नमक-मिर्च लगाना-(बढ़ा-चढ़ाकर कहना)-आजकल समाचारपत्र किसी भी बात को इस प्रकार नमक-मिर्च लगाकर लिखते हैं कि जनसाधारण उस पर विश्वास करने लग जाता है।
27. नौ-दो ग्यारह होना-(भाग जाना)- बिल्ली को देखते ही चूहे नौ-दो ग्यारह हो गए। 28. फूँक-फूँककर कदम रखना-(सोच-समझकर कदम बढ़ाना)-जवानी में फूँक-फूँककर कदम रखना चाहिए।
29. बाल-बाल बचना-(बड़ी कठिनाई से बचना)-गाड़ी की टक्कर होने पर मेरा मित्र बाल-बाल बच गया।
30. भाड़ झोंकना-(योंही समय बिताना)-दिल्ली में आकर भी तुमने तीस साल तक भाड़ ही झोंका है।
31. मक्खियाँ मारना-(निकम्मे रहकर समय बिताना)-यह समय मक्खियाँ मारने का नहीं है, घर का कुछ काम-काज ही कर लो

32. माथा ठनकना-(संदेह होना)- सिंह के पंजों के निशान रेत पर देखते ही गीदड़ का माथा ठनक गया।
33. मिट्टी खराब करना-(बुरा हाल करना)-आजकल के नौजवानों ने बूढ़ों की मिट्टी खराब कर रखी है।
34. रंग उड़ाना-(घबरा जाना)-काले नाग को देखते ही मेरा रंग उड़ गया।
35. रफूचक्कर होना-(भाग जाना)-पुलिस को देखते ही बदमाश रफूचक्कर हो गए।
36. लोहे के चने चबाना-(बहुत कठिनाई से सामना करना)- मुगल सम्राट अकबर को राणाप्रताप के साथ टक्कर लेते समय लोहे के चने चबाने पड़े।
37. विष उगलना-(बुरा-भला कहना)-दुर्योधन को गांडीव धनुष का अपमान करते देख अर्जुन विष उगलने लगा।
38. श्रीगणेश करना-(शुरू करना)-आज बृहस्पतिवार है, नए वर्ष की पढाई का श्रीगणेश कर लो।
39. हजामत बनाना-(ठगना)-ये हिप्पी न जाने कितने भारतीयों की हजामत बना चुके हैं।
40. शैतान के कान कतरना-(बहुत चालाक होना)-तुम तो शैतान के भी कान कतरने वाले हो, बेचारे रामनाथ की तुम्हारे सामने बिसात ही क्या है ?
41. राई का पहाड़ बनाना-(छोटी-सी बात को बहुत बढ़ा देना)- तनिक-सी बात के लिए तुमने राई का पहाड़ बना दिया।


कुछ प्रचलित लोकोक्तिया

1. अधजल गगरी छलकत जाए-(कम गुण वाला व्यक्ति दिखावा बहुत करता है)- श्याम बातें तो ऐसी करता है जैसे हर विषय में मास्टर हो, वास्तव में उसे किसी विषय का भी पूरा ज्ञान नहीं-अधजल गगरी छलकत जाए।
2. अब पछताए होत क्या, जब चिड़ियाँ चुग गई खेत-(समय निकल जाने पर पछताने से क्या लाभ)- सारा साल तुमने पुस्तकें खोलकर नहीं देखीं। अब पछताए होत क्या, जब चिड़ियाँ चुग गई खेत।
3. आम के आम गुठलियों के दाम-(दुगुना लाभ)- हिन्दी पढ़ने से एक तो आप नई भाषा सीखकर नौकरी पर पदोन्नति कर सकते हैं, दूसरे हिन्दी के उच्च साहित्य का रसास्वादन कर सकते हैं, इसे कहते हैं-आम के आम गुठलियों के दाम।
4. ऊँची दुकान फीका पकवान-(केवल ऊपरी दिखावा करना)- कनॉटप्लेस के अनेक स्टोर बड़े प्रसिद्ध है, पर सब घटिया दर्जे का माल बेचते हैं। सच है, ऊँची दुकान फीका पकवान।
5. घर का भेदी लंका ढाए-(आपसी फूट के कारण भेद खोलना)-कई व्यक्ति पहले कांग्रेस में थे, अब जनता (एस) पार्टी में मिलकर काग्रेंस की बुराई करते हैं। सच है, घर का भेदी लंका ढाए।
6. जिसकी लाठी उसकी भैंस-(शक्तिशाली की विजय होती है)- अंग्रेजों ने सेना के बल पर बंगाल पर अधिकार कर लिया था-जिसकी लाठी उसकी भैंस।
7. जल में रहकर मगर से वैर-(किसी के आश्रय में रहकर उससे शत्रुता मोल लेना)- जो भारत में रहकर विदेशों का गुणगान करते हैं, उनके लिए वही कहावत है कि जल में रहकर मगर से वैर।
8. थोथा चना बाजे घना-(जिसमें सत नहीं होता वह दिखावा करता है)- गजेंद्र ने अभी दसवीं की परीक्षा पास की है, और आलोचना अपने बड़े-बड़े गुरुजनों की करता है। थोथा चना बाजे घना।

9. दूध का दूध पानी का पानी-(सच और झूठ का ठीक फैसला)- सरपंच ने दूध का दूध,पानी का पानी कर दिखाया, असली दोषी मंगू को ही दंड मिला।

10. दूर के ढोल सुहावने-(जो चीजें दूर से अच्छी लगती हों)- उनके मसूरी वाले बंगले की बहुत प्रशंसा सुनते थे किन्तु वहाँ दुर्गंध के मारे तंग आकर हमारे मुख से निकल ही गया-दूर के ढोल सुहावने।
11. न रहेगा बाँस, न बजेगी बाँसुरी-(कारण के नष्ट होने पर कार्य न होना)- सारा दिन लड़के आमों के लिए पत्थर मारते रहते थे। हमने आँगन में से आम का वृक्ष की कटवा दिया। न रहेगा बाँस, न बजेगी बाँसुरी।
12. नाच न जाने आँगन टेढ़ा-(काम करना नहीं आना और बहाने बनाना)-जब रवींद्र ने कहा कि कोई गीत सुनाइए, तो सुनील बोला, ‘आज समय नहीं है’। फिर किसी दिन कहा तो कहने लगा, ‘आज मूड नहीं है’। सच है, नाच न जाने आँगन टेढ़
13. बिन माँगे मोती मिले, माँगे मिले न भीख-(माँगे बिना अच्छी वस्तु की प्राप्ति हो जाती है, माँगने पर साधारण भी नहीं मिलती)- अध्यापकों ने माँगों के लिए हड़ताल कर दी, पर उन्हें क्या मिला ? इनसे तो बैक कर्मचारी अच्छे रहे, उनका भत्ता बढ़ा दिया गया। बिन माँगे मोती मिले, माँगे मिले न भीख।
14. मान न मान मैं तेरा मेहमान-(जबरदस्ती किसी का मेहमान बनना)-एक अमेरिकन कहने लगा, मैं एक मास आपके पास रहकर आपके रहन-सहन का अध्ययन करूँगा। मैंने मन में कहा, अजब आदमी है, मान न मान मैं तेरा मेहमान।
15. मन चंगा तो कठौती में गंगा-(यदि मन पवित्र है तो घर ही तीर्थ है)-भैया रामेश्वरम जाकर क्या करोगे ? घर पर ही ईशस्तुति करो। मन चंगा तो कठौती में गंगा।
16. दोनों हाथों में लड्डू-(दोनों ओर लाभ)- महेंद्र को इधर उच्च पद मिल रहा था और उधर अमेरिका से वजीफा उसके तो दोनों हाथों में लड्डू थे।
17. नया नौ दिन पुराना सौ दिन-(नई वस्तुओं का विश्वास नहीं होता, पुरानी वस्तु टिकाऊ होती है)- अब भारतीय जनता का यह विश्वास है कि इस सरकार से तो पहली सरकार फिर भी अच्छी थी। नया नौ दिन, पुराना नौ दिन।
18. बगल में छुरी मुँह में राम-राम-(भीतर से शत्रुता और ऊपर से मीठी बातें)- साम्राज्यवादी आज भी कुछ राष्ट्रों को उन्नति की आशा दिलाकर उन्हें अपने अधीन रखना चाहते हैं, परन्तु अब सभी देश समझ गए हैं कि उनकी बगल में छुरी और मुँह में राम-राम है।
19. लातों के भूत बातों से नहीं मानते-(शरारती समझाने से वश में नहीं आते)- सलीम बड़ा शरारती है, पर उसके अब्बा उसे प्यार से समझाना चाहते हैं। किन्तु वे नहीं जानते कि लातों के भूत बातों से नहीं मानते।
20. सहज पके जो मीठा होय-(धीरे-धीरे किए जाने वाला कार्य स्थायी फलदायक होता है)- विनोबा भावे का विचार था कि भूमि सुधार धीरे-धीरे और शांतिपूर्वक लाना चाहिए क्योंकि सहज पके सो मीठा होय।

21. साँप मरे लाठी न टूटे-(हानि भी न हो और काम भी बन जाए)- घनश्याम को उसकी दुष्टता का ऐसा मजा चखाओ कि बदनामी भी न हो और उसे दंड भी मिल जाए। बस यही समझो कि साँप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे।
22. अंत भला सो भला-(जिसका परिणाम अच्छा है, वह सर्वोत्तम है)- श्याम पढ़ने में कमजोर था, लेकिन परीक्षा का समय आते-आते पूरी तैयारी कर ली और परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की। इसी को कहते हैं अंत भला सो भला।
23. चमड़ी जाए पर दमड़ी न जाए-(बहुत कंजूस होना)-महेंद्रपाल अपने बेटे को अच्छे कपड़े तक भी सिलवाकर नहीं देता। उसका तो यही सिद्धान्त है कि चमड़ी जाए पर दमड़ी न जाए।
24. सौ सुनार की एक लुहार की-(निर्बल की सैकड़ों चोटों की सबल एक ही चोट से मुकाबला कर देते है)- कौरवों ने भीम को बहुत तंग किया तो वह कौरवों को गदा से पीटने लगा-सौ सुनार की एक लुहार की।
25. सावन हरे न भादों सूखे-(सदैव एक-सी स्थिति में रहना)- गत चार वर्षों में हमारे वेतन व भत्ते में एक सौ रुपए की बढ़ोत्तरी हुई है। उधर 25 प्रतिशत दाम बढ़ गए हैं-भैया हमारी तो यही स्थिति रही है कि सावन हरे न भादों सूखे।

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17.10.18

खाती समाज के गौत्र और इतिहास



 

जाति इतिहासविद डॉ.दयाराम आलोक का मत है कि चंद्रवंशी खाती समाज श्री सहस्त्रबाहु(शहस्त्रर्जुन ) के पुत्र है,भगवान जगदीश समाज के इष्टदेव हैं, कुलदेवी महागौरी अष्टमी है, कुलदेव भैरव देव और आराध्य देव भोले शंकर है, खाती समाज पर भगवान परशुराम जी का आशीर्वाद है.इस जाती के लोग सुन्दर और गोर वर्ण अर्थात गोरे चिट्टे होते है.क्षत्रिय खाती समाज जम्मू कश्मीर के अभेपुर और नभेपुर के मूल निवासी है.आज भी चंद्रवंशी लोग हिमालय क्षेत्र केसर की खेती करते हैं.
समाज1200 वर्ष पहले से ही कश्मीर से पलायन करने लग गया था और भारत के अन्य राज्यों में बसने लग गया था।सम कालीन राजा के आदेश से समाज को राज्य छोड़ना पड़ा था। खाती समाज के लोग बहुत ही धनि और संपन्न थे, उच्च शिक्षा को महत्त्व दिया जाता था।
   चंद्रवंशी खाती समाज के सैनिक भी सेना का सञ्चालन करते थे।विजय से खुश होकर किलजी ने समाज को मालव पर राज करने को कहा परन्तु समाज के वरिष्ट लोगो ने सोच विचार कर निर्णय लिया, इस तरह कश्मीर से आने के बाद 35 वर्ष तक समाज मांडवगड़ में रहा इसके बाद आगे बढ़ कर महेश्वर जिसे महिष्मतिपूरी कहते थे वहां आकर रहने लगे |महेश्वर चंद्रवंशी खाती समाज के पूर्वज शहस्त्रार्जुन की राजधानी थी।आज भी महेश्वर में सहस्त्रबाहु का विशाल मंदिर बना हे जिसका सञ्चालन कलचुरी समाज करता हे।
महेश्वर में 45 वर्षो तक रहने क बाद वह से इंदौर,उज्जैन,देवास,धार,सांवेर,रतलाम,सीहोर,भोपाल,आदि जिलो में बसते चले गए और खाती पटेल कहलाये।
मालवा में खाती समाज के पूर्वजो ने 444 गांव बसाये जिनकी पटेली की वसियत भी उनके नाम रही।
खाती समाज का गौरवपूर्ण इतिहास रहा हे समाज के कुल 105 गोत्र हे जिसमे से 84 गोत्र मध्य प्रदेश में हे और प्रदेश के 16 जिलो में फेले हुए हे और 1250 गांवो में निवास करते हे।


खाती समाज के गोत्र 

खाती समाज मे निम्न गौत्र प्रचलित हैं-
1 भंवरसिया (Bhanvrasiya)
2 बोर्दिया (Dordiya)
3 गुन्घोडिया (Gunghodiya)
4 ननधारिया (Kanodhariya)
5 कण्ठगरिया (Kanthgariya)
6 धनबरदाय (Dhanbardaya)
7 अज्वास्य (Ajvasya)
8 ननदिया (Nanodiya)
9 बाघोदारया (Baghodaraya)
10 आंसवारिया (Aansavariya)
11 वजन्य देवाय (Vajenya-Devaya)
12 चिक्लोद मान्य (Chiklod-Manya)
13 मंगरोलिया (Mangroliya)
14 किरतपुरिया (Kiratpuriya)
15 सलोनाराय (Salonaraya)
16 विरोट्या (Virotya)
17 छिबड़िया (Chhibadiya)
18 कुरंदनस्य (Kurandansya)
19 संभत हेडिया (Sumbhat-Hediya)
20 दलोंड्रिया (Dalodriya)
21 इन्द्रिय (Indriya)
22 विरोठिया (Virothiya)
23 वरसखीरिया (Varaskhiriya)
24 इच्छावरिया (Icchhavariya)
25 आकासोदिया (Aakasodiya)
26 ताजपुरिया (Tajpuriya)
27 संदोरन्य (Sandoranya)
28 उछोड़िया (Uchodiya)
29 अलवण्या (Alvanya)
30 देवतारया (Devtaraya)
31 भैसोदिया (Bhaisodiya)
32 मण्डलवड़िया (Mandalavdiya)
33 गोळ्या (Golya)
34 जगोठिया (Jagothiya)
35 केलोडिया (Kelodiya)
36 रुदड़िया (Rudadiya)
37 पार्सवडिया (Parsavdiya)
38 देवदालिया (Devdaliya)
39 भादरिया (Bhaderiya)
40 कनसिया (Kanasiya)
41 बींजलिया (Binjaliya)
42 सोठड़िया (Sothadiya)
43 सवासिया (Savasiya)
44 सोनानिया (Sonaniya)
45 सूतिया (Soothiya)
46 सिसोदिया (Sisodiya)
47 शिवदासिया (Shivdasiya)
48 सरोजिया (Sarojiya)
49 सग्वलिया (Sagwaliya)
50 रिनोदिया (Rinodiya)
51 रणवासिया (Ranvasiya)
52 भड़लावड़िया (Bhadlavdiya)
53 भठुरिया (Bhathuriya)
54 भैसरोदिया (Bhaisrodiya)
55 भैसानिया (Bhaisaniya)
56 भदोड़िया (Bhdodiya)
57 भमोरिया (Bhamoriya)
58 बिनरोटिया (Binrotiya)
59 बीजलपुरिया (Bijalpuriya)
60 बिलावलिया (Bilavliya)
61 बडबडोदिया (Badbadodiya)
62 सिरसोडिया (Sirsodiya)
63 बबुलडिया (Babuldiya)
64 बरनवाया (Baranvaya)
65 बरनासिया (Barnasiya)
66 पंचोरिया (Panchoriya)
67 धनोरिया (Dhnoriya)
68 देवथलिया (Devthliya)
69 देथलिया (Dethliya)
70 ठेंगलिया (Thengliya)
71 तुमड़िया ,तोमर (Tumdiya,tomar)
72 तंडिया (Tamdiya)
73 तिलवडिया (Tilavdiya)
74 ठीकरोडिया (Thikrodiya)
75 डिंगरोडिया (Dingrodiya)
76 झलवाया (Jhalvaya)
77 जवारिया (Javariya)
78 जमलिया ,जमले (Jamliya/Jamle)
79 कामोठिया (Kaamothiya)
80 जमगोड़िया (Jamgodiya)
81 जलोदिया (Jalodiya)
82 चौरसिया (Chourasiya)
83 चंदवासिया (Chandvasiya)
84 ग्वालिया (Gavaliya)
85 गुरवादिया (Guravadiya)
86 गिड़गिड़ाया (Gidgidaya)
87 गिरितिया (Kiritiya)
88 खिरबाड़ोदिया (Khirbadodiya)
89 खचरोडिया (Khachrodiya)
90 खरलीय (Kharaliya)
91 खेवसिया (Khevasiya)
92 खजुरिया (Khajuriya)
93 केलिया (Keliya)
94 कुलखंडिया (Kulkhandiya)
95 कसया (Kasanya)
96 करंजिया (Karanjiya)
97 कसुन्दरिया (Kasundariya)
98 कल्मोदिया (Kalmodiya)
99 करनावडिया (Karnavdiya)
100 उपलवड़िया (Uplavdiya)
101 ितवदिया (Itavdiya)
102 अकोलिया (Akoliya)
103 अम्लवड़िया (Amlavdiya)
104 अलेरिया (Aleriya)
105 अजनावडिया(Ajnavdiya)

Disclaimer: इस  content में दी गई जानकारी Internet sources, Digital News papers, Books और विभिन्न धर्म ग्रंथो के आधार पर ली गई है. Content को अपने बुद्धी विवेक से समझे

15.10.18

बगलामुखी माता नलखेड़ा (मध्य प्रदेश)का विश्वप्रसिद्ध मंदिर





विश्व के सर्वाधिक प्राचीन बगलामुखी मंदिर नलखेड़ा (मध्य प्रदेश) में माता बगलामुखी के दरबार में भारी भीड़ है इन दिनों।
यह स्थान (मां बगलामुखी शक्ति पीठ) नलखेड़ा में नदी के किनारे स्थित है। यहां मां बगलामुखी की स्वयंभू प्रतिमा है। यह शमशान क्षेत्र में स्थित हैं। कहा जाता है कि इसकी स्थापना महाभारत युद्ध के 12 वें दिन स्वयं धर्मराज युधिष्ठिर ने भगवान श्री कृष्ण के निर्देशानुसार की थी। देवी बगलामुखी तंत्र की देवी है।
तंत्र साधना में सिद्धि प्राप्त करने के लिए पहले देवी बगलामुखी को प्रसन्न करना पड़ता है। धर्म ग्रंथों के अनुसार वैशाख शुक्ल अष्टमी को मां बगलामुखी की जयंती मनाई जाती है। भारत में मां बगलामुखी के तीन ही प्रमुख ऐतिहासिक मंदिर माने गए हैं जो क्रमश: दतिया (मध्यप्रदेश), कांगड़ा (हिमाचल) तथा नलखेड़ा में हैं।


कौन है बगलामुखी मां

मां बगलामुखी जी आठवीं महाविद्या हैं। इनका प्रकाट्य स्थल गुजरात के सौरापट क्षेत्र में माना जाता है। हल्दी रंग के जल से इनका प्रकट होना बताया जाता है। इसलिए, हल्दी का रंग पीला होने से इन्हें पीताम्बरा देवी भी कहते हैं। इनके कई स्वरूप हैं। इस महाविद्या की उपासना रात्रि काल में करने से विशेष सिद्धि की प्राप्ति होती है। इनके भैरव महाकाल हैं।
मां बगलामुखी स्तंभव शक्ति की अधिष्ठात्री हैं अर्थात यह अपने भक्तों के भय को दूर करके शत्रुओं और उनके बुरी शक्तियों का नाश करती हैं। मां बगलामुखी का एक नाम पीताम्बरा भी है इन्हें पीला रंग अति प्रिय है इसलिए इनके पूजन में पीले रंग की सामग्री का उपयोग सबसे ज्यादा होता है. देवी बगलामुखी का रंग स्वर्ण के समान पीला होता है अत: साधक को माता बगलामुखी की आराधना करते समय पीले वस्त्र ही धारण करना चाहिए।
प्राचीन तंत्र ग्रंथों में दस महाविद्याओं का उल्लेख मिलता है। उनमें से एक है बगलामुखी। मां भगवती बगलामुखी का महत्व समस्त देवियों में सबसे विशिष्ट है।विश्व में इनके सिर्फ तीन ही महत्वपूर्ण प्राचीन मंदिर हैं, जिन्हें सिद्धपीठ कहा जाता है। उनमें से एक है नलखेड़ा में 'मां बगलामुखी
मंदिर'। भारत में मां बगलामुखी के तीन ही प्रमुख ऐतिहासिक मंदिर माने गए हैं जो क्रमश: दतिया (मध्यप्रदेश), कांगड़ा (हिमाचल) तथा 



नलखेड़ा जिला शाजापुर (मध्यप्रदेश) में हैं। तीनों का अपना अलग-अलग महत्व है।
मध्यप्रदेश में तीन मुखों वाली त्रिशक्ति माता बगलामुखी का यह मंदिर शाजापुर तहसील नलखेड़ा में लखुंदर नदी के किनारे स्थित है। द्वापर युगीन यह मंदिर अत्यंत चमत्कारिक है। यहां देशभर से शैव और शाक्त मार्गी साधु-संत तांत्रिक अनुष्ठान के लिए आते रहते हैं।



इस मंदिर में माता बगलामुखी के अतिरिक्त माता लक्ष्मी, कृष्ण, हनुमान, भैरव तथा सरस्वती भी विराजमान हैं। इस मंदिर की स्थापना महाभारत में विजय पाने के लिए भगवान कृष्ण के निर्देश पर महाराजा युधि‍ष्ठिर ने की थी। मान्यता यह भी है कि यहां की बगलामुखी प्रतिमा स्वयंभू है।
यह बहुत ही प्राचीन मंदिर है। सन् 1815 में इस मंदिर का जीर्णोद्धार किया गया था। इस मंदिर में लोग अपनी मनोकामना पूरी करने या किसी भी क्षेत्र में विजय प्राप्त करने के लिए यज्ञ, हवन या पूजन-पाठ कराते हैं।

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18.9.18

तेली,राठौर ,साहू समाज की जानकारी

                 
 

  तेली परंपरागत रूप से भारत, पाकिस्तान और नेपाल में तेल पेरने और बेचने वाली जाति है। सदस्य या तो हिंदू या मुस्लिम हो सकते हैं; मुस्लिम तेली को रोशंदर या तेली मलिक कहते हैं। तेलिया को हिंदू धर्म में वैश्य (वरदान) से संबंधित माना जाता है।कुछ विशेष स्थानों के लोग अपने को क्षत्रियो से सम्बंधित करते हैं, जबकि पुराणों में इन्हें वैश्य वर्ग में ही वर्णित किया है। तेली जाति का उल्लेख प्राचीन ग्रंथो और प्रचलित कहानियो में भी मिलता है जिससे पता चलता है की ये वैश्यों की अति पुरानी जाती है। इस जाती के लोग काफी सभ्रांत और शिक्षित होते थे। इनका समाज में काफी सम्मानित स्थान होता था। बंगाल में, तेली को वैश्य के रूप में माना जाता है, साथ ही अन्य व्यापारी और बैंकरों जैसे सुवर्णमानिक, गांधीवादी, साहा, वैश्य वर्ण आदि नामो से जाना जाता इनका मुख्य व्यवसाय खाद्य तेल गुड़ और कृषि कार्य आदि था। राजस्थान में, तेली का क्षत्रिय (योद्धा) का दर्जा है |मोदी को तेली समाज के गर्व के रूप में पेश किया जाना चाहिए|मोदी घांची समुदाय से आते हैं जिसकी पहचान गुजरात में तेली जाति की है।हालांकि हमलोग के यहां अतीत में कई महापुरुष हुए लेकिन वर्तमान समय में मोदीजी सबसे बड़े लीडर हैं।' प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के छोटे भाई प्रहलाद मोदी ने देश के तेली समुदाय के लोगों से अनुरोध किया है कि वो अपने नाम के आगे ‘मोदी’ लिखें। तैलिक साहू समाज की अखिल भारतीय युवक-युवती परिचय सम्मेलन को रविवार को संबोधित करते हुए प्रहलाद ने कहा कि मैं जब से यहां आया हूं तब से एक ही बात सुन रहा हूं कि देश का गौरव, समाज का गौरव नरेंद्र मोदी हैं। लेकिन हम सब तेली समाज के सदस्य अपने नाम के आगे ‘मोदी’ लिखने के लिए तैयार क्यों नहीं होते। उन्होंने कहा कि हमारे तेली समाज के नेताओं ने अपनी-अपनी रोटियां सेंकने के लिए हमारी पहचान साहू, चौहान, परमार, राठौड़ और जैसवाल जैसी विभिन्न जातियों के रूप में कर रखी है।

 प्रहलाद ने कहा कि कर्मादेवी तेली थीं, कर्मादेवी के हम बच्चे हैं और हम तेली है, हम मोदी हैं। आज से ही तय करें कि हम हमारे नाम की शुरुआत मोदी से करें। उन्होंने बताया कि अगर हम मोदी के नाम से अपना परिचय शुरू करें तो मैं मानता हूं कि हिन्दुस्तान में हमारे तेली समाज की आबादी 14 करोड़ हो जाएगी। फिर भी हम बंटे हुए हैं, गुटबाजी में हैं और ये राजनीतिक पार्टियां हमें बेवकूफ बनाती हैं। इसीलिए हमें एक होना है। प्रहलाद ने कहा कि जब तक हम लोग हमारा परिचय एक नहीं करेंगे, तब तक राजनीतिक पार्टियां हमारा दुरुपयोग करती रहेंगी। अगर हमें इस दुरुपयोग से बचना है, हमें अपने समाज को राष्ट्रीय अखाड़ा नहीं बनाना है, तो हमें अपनी पहचान एक करनी होगी। उन्होंने कहा कि पाटीदार और राजपूतों में भी तेली समाज की तरह विभिन्न उप जातियां हैं, लेकिन उनके परिचय की राष्ट्रीय पहचान क्रमश: पाटीदार और राजपूत हैं। कई वर्ष पहले शायद स्व. दिनबंधु साहू जी के समय या अखिल भारतीय साहू वैश्य महासभा ने एक निर्णय लिया था। तेली जाति कि जितनी भी उप-जातियाँ ( शाखायेँ ) देश मे हैँ वे सब लोग साहू शब्द का उपयोग करेँ । जिससे देश मे सब कि एक पहचान बनेगी । केसरिया झण्डे पर उडते हुए गरुड जी का चित्र रहेगा .
साहू समाज के झंडे पर पक्षीराज गरुड जी का चित्र होने कि अवधारणा ये है कि , जगत के पालन करता भगवन विष्णू भगवन जी को माना जाता है और हम लोग वैश्य होने के कारण लक्ष्मी जी के उपासक हैं , इसलिए गरुड़ जी का चित्र झंडे पर लगाते हैं l तेली जाति के देव न्याय के देवता शनि देव हैँ और उनका वाहन गीध है l कई लोँगोँ कि शंका थी गरुड जी ही क्योँ का समाधान हो गया होगा । " कई वर्ष पहले शायद स्व. दिनबंधु साहू जी के समय या अखिल भारतीय साहू वैश्य महासभा ने एक निर्णय लिया था। तेली जाति कि जितनी भी उप-जातियाँ (शाखायेँ) देश मे हैँ वे सब लोग साहू शब्द का उपयोग करेँ । जिससे देश मे सब कि एक पहचान बनेगी । केसरिया झण्डे पर उडते हुए गरुड जी का चित्र रहेगा "। देश की आजादी में तेली (साहू) समाज को अहम योगदान रहा है। देश को जब-जब जरूरत पड़ी तेली समाज में जनमें महापुरुषाें ने अपनी कुर्बानी दी है। यह बात रविवार को नगर के तुवन ग्राउंड पर मां रूपाबाई साहू धर्मशाला ट्रस्ट और साहू समाज की ओर से आयोजित समाज के नवनिर्वाचित सभासदों के सम्मान-समारोह में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भाई प्रहलाद दामोदर दास मोदी ने कही। इस दौरान उन्होंने महात्मा गांधी को भी तेली समाज का बताया। समारोह में प्रहलाद ने किसी का नाम लिए बगैर ही विपक्षी दलों को आड़े हाथों लिया। उन्होंने कहा कि जब देश भ्रष्टाचार एवं परिवारवाद की खाई में डूब रहा था तब तेली समाज ने देश को बचाने का काम किया। उन्होंने कहा कि देश की आजादी में तेली समाज की बड़ी भूमिका रही है। प्रहलाद मोदी ने कहा कि जब-जब देश को जरूरत पड़ी तब-तब तेली समाज में जनमें महापुरषाें ने अपनी कुर्बानी दी है। कार्यक्रम में उन्होंने तेली समाज के इतिहास के बारे में बताते हुए कहा कि जब महाराणा प्रताप सिंह हताश हो गए थे तब देश भक्ति की भावना से प्रेरित तेली समाज के भामाशाह ने हिंदुओं को बचाने का काम किया था। मगध नरेश का अभिमान (घमंड) भी चंद्रगुप्त मौर्य ने तोड़ा था। देश में आजादी की मुहिम जगाने वाले मोहनदास कमरचंद गांधी जी को भी तेली समाज से वास्ता रखने वाला बताया। उन्होंने कार्यक्रम में साहू समाज के नवनिर्वाचित सभासदों को शील्ड व श्रीफल देकर सम्मान भी किया। इससे पहले गायिका ऋचा पुरोहित ने स्वागत गीत प्रस्तुत किया। कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि के तौर पर सदर विधायक रामरतन कुशवाहा, पालिकाध्यक्ष रजनी साहू, भाजपा जिलाध्यक्ष रमेश सिंह लोधी व सांसद प्रतिनिधि प्रदीप चौबे, भावना सुरेश साहू मौजूद रहे। इस मौके पर घनश्याम साहू, बाबा कांशीराम साहू, नारायण दास साहू, पर्वतलाल साहू, छक्कीलाल साहू, आशाराम साहू, रामसेवक साहू, डा. श्रीराम साहू, डा. दीपक चौबे, भगवतदयाल सिंधी, बब्बूराजा बुंदेला, प्रभात दीक्षित उपस्थित रहे। अध्यक्षता रामगोपाल साहू व संचालन सत्यनारायण साहू व रामस्वरूप साहू ने संयुक्त रूप से किया।
 Disclaimer: इस  content में दी गई जानकारी Internet sources, Digital News papers, Books और विभिन्न धर्म ग्रंथो के आधार पर ली गई है. Content को अपने बुद्धी विवेक से समझे
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21.8.18

केवट,निषाद,मांझी ,मल्लाह जाती का इतिहास

                                       






निषाद जाति भारतवर्ष की मूल एवं प्राचीनतम जातियों में से एक हैं। रामायणकाल में निषादों की अपनी अलग सत्ता एवं संस्कृति थी, एवं निषाद एक जाति नहीं बल्कि चारों वर्ण से अलग "पंचम वर्ण" के नाम से जाना जाता था। आदिकवि महर्षि बाल्मीकि, विश्वगुरू महर्षि वेद व्यास, भक्त प्रह्लाद और रामसखा महाराज श्रीगुहराज निषाद जैसे महान आत्माओं ने इस जाति सुशोभित किया है। स्वतंत्रता आन्दोलन में भी इस समुदाय के शूरवीरों ने बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया, लेकिन आज इस समुदाय के लोंगो में वैचारिक भिन्नता के कारण समुदाय का विकास अवरुद्ध सा हो गया है। उप-जाति, कुरी, गौत्र के आधार पर समुदाय का विखंडन हो रहा है, फलतः समुदाय के सामाजिक, धार्मिक आर्थिक एवं राजनैतिक मान-मर्यादा में ह्रास हो रहा है। इसी वैचारिक भिन्नता का उन्मूलन एवं उप-जाति, कुरी, गौत्र के आधार सामाजिक विखराव को रोकने हेतु एक प्रयास किया जा रहा है।

हम राजा निषादराज के वंशज है जिन्होंने भगवान् राम जी के पिता राजा दशरथ को युद्ध मैं तेरह बार हराया और जीत कर उनका राज वापिस कर दिया था हमारा राजा कितना दयालु था ? आज भगवान् राम की पूजा होती है और अब इतिहास मैं राजा निषादराज जी को सेवक के रूप मैं बताया जाता है ? जब भगवान् राम वनवास जा रहे थे तो केवट जी ने अपनी नाव से गंगा पार करवाई और जब केवट जी ने उतराई मांगी तो उन्होंने कहा की वापिस आने पर मिलेगे लेकिन वनवास से लौटने के बाद राम जी ने मिलना भी ठीक नही समझा ?हम राजा एकलव्य के वंशज है जिन्होंने धूर्त चालक द्रोणाचार्य को अपना अंगूठा दान मैं दे दिया था अब चाहे एकलव्य जी की नादानी समझो या गुरु भक्ति ? अब कलयुग मैं मछुआ समाज को राजनेता बेबकुफ़ बना रहे है समाजवादी पार्टी सत्रह जातियों के आरक्षण के नाम पर गुमराह करती रही मायावती जी मछुआ आरक्षण का खुलकर विरोध करती है कांग्रेस बात करना नही चाहती भा ज पा मछुआरा प्रकोष्ट बना कर हमारी घेरावंदी कर रही है ?
                                                         



माझी जाति का तात्पर्य नाव चलाने वाले से है। मल्लाह, केवट, नाविक इसके पर्यायवाची हैं। ये विश्वास करते हैं कि इनके पूर्वज पहले गंगा के तटों पर या वाराणसी अथवा इलाहाबाद में रहते थे। बाद में यह जाति मध्य प्रदेश के शहडोल, रीवा, सतना, पन्ना, छतरपुर और टीकमगढ़ ज़िलों में आकर बस गयी। सन 1981 की जनगणना के अनुसार मध्य प्रदेश में माझी समुदाय की कुल जनसंख्या 11,074 है। इनके बोलचाल की भाषा बुन्देली है। ये देवनागरी लिपि का उपयोग करते हैं। ये सर्वाहारी होते हैं तथा मछली, बकरा एवं सुअर का गोश्त खाते हैं। इनका मुख्य भोजन चावल, गेंहु, दाल सरसों तिली महुआ के तेल से बनता है। इनके गोत्र कश्यप, सनवानी, चौधरी, तेलियागाथ, कोलगाथ हैं। मल्लाह भारतवर्ष की यह एक आदिकालीन मछुआरा 
जाति है। मल्लाह जाति मूल रूप से हिन्दू धर्म से सम्बंधित है। यह आखेटक अर्थात शिकारी जाति है। इनका उल्लेख महाभारत एवं रामायण जैसे भारत के प्राचीन धार्मिक ग्रन्थों में मिलता है। यह जाति प्राचीनकाल से जल जंगल और ज़मीन पर आश्रित है। वर्णव्यवस्थानुसार यह जाति वैश्य श्रेणी के अंतर्गत आती है। चूँकि यह जाति मुख्यत: जल से सम्बंधित व्यवसाय कर अपना जीवनयापन करते चले आए हैं, इस लिए मल्लाह, "मछुआरा" ,केवट\बिन्द ,निषाद की ही कई उप-जातियों में से एक हैं।
भारतवर्ष आर्थिक कारोबारी तरक्की में जितना मल्लाह समाज का हाथ है अन्य जाति का नही है। आज तक भारत ने तीन राज देखे हैं प्रथम राज भारत पर आर्यों ने किया दूसरा राज मुलगोनों ने तीसरा राज अंग्रेजों ने किया लेकिन जहारों लाखों साल पूर्व दुनिया के इतिहास में केवट राज निषाद जी (मल्लाह) ने धर्म (हिनू) भगवान श्री राम जी को वनवास काल के दौरान अपनी ओत, जोत दोनों वक्त नदी पार कराई, सतयुग से लेकर आज तक यही काम कर रही है यह । यह जाति धीरे धीरे दनियों किनारे खाली पडी जमीन में तरबुज, खरबुजा, ककडी, लोकी खेती उगाने लगी वहीं कुछ लोग मछली पकड कर अपने परिवार का पालन पोशन करने लगे। वही गरीब अमीर, राजाओ की पुत्रियों की शादी में दुल्हन की डोली दुल्हे वर के घर पहुंचाने लगे यह र्का 800 वर्षों तक चला लेकिन इतिहास के पन्नों में एक भी मामला आपको ऐसा नहीं मिलेगा कि किसी (मल्लाह) कहार ने किसी की डोली लूट ली। इस तरह भारत के अलग अलग क्षत्रों में मल्लाह जाति को अलग अलग नाम से पुकारा जाने लगा जैसे मल्लाह, केवट, निषाद, महागीर, मांझी, यमुना प्रत्र, मछुआरा, कश्यप आदि के नाम से पुकारा जाने लगा। राजा भतके के राज के दौरान मल्लाह जाति को बडी इज्जत मिलजी थी। मल्लाह के अलावा नावघाट, मछुली पकडना, डोली उठाना जैसे काम कर कर अपना गुजारा करते जहां राजा कि सेना नहीं निकल सकती व मल्लाह को बसाकर नाव नाव (कश्तीे) से सेना को पार करते। एक दूसरे शहरों के व्यापारी भी नाव से माल लाने लेजाने का कार्य करते थे उसके बाद मुगलों के राज में पाीपत के प्रथम युदध के लिए है तालिबान से बहादुर शाह अब्दाली की सेा यमुना पर रूक गयी, पानी यमुना में अधिक था अब्दाली द्वारा खानी बश्ती (वर्तमान रामडा-तहसील) कैराना। जनपद शामली (मु. नगर, उत्तर प्रदेश) मल्लाह बश्ती में मल्लाह तैराकों की मदद से सेना के लिए रास्ता निकाला। युदघ में जीतने के बाद अब्दाली ने मल्लाह जाती के लिए रेत-खनन, नाव घाट, मछली, दनियों की पडी जमीन कर मुक्त कर फ्री खेती कर घाट लगाना आरक्षित कर दिया जो कि अब्दाली के द्वारा लिखित में दिया गया जो कि रामडा नि. मल्लाह के पास था लेकिन गांव में बाड आने के कारण वह गुम होगया फिर अंग्रजों के राज के दौरान मल्लाह जाीि के तैराकों कश्ती लगाने वालों की मांग बढी।अंग्रेजों द्वारा पानी के जहाजों का कार्य लगभग इन जाति के लोगों पर चलता कहीं कहीं तो कश्ती चलाने वालों को अच्छी नोकरी पद मिल जाते थे करीब 150 वर्ष पूर्व उ. प्र. के मु. नगर जनपद कैराना के पास मवी हैदरपुर गांव बुन्डा मल्लाह को उनकी बहादुरी के किस्से दूर दूर तक मशहूर थे बुन्डा मल्लाह अपने दौर के बतरीन निशानेबाज थे गहरे पानी से दूर से आभास कर के ापनी मं अपनी बन्दूक की गोली से मगर (नाकू) मार देते थे जिस से खुश होकर अंग्रेज सरकान ने उन्हें मजिस्टेट की पदवी दी थी। 12 ग्रामों को इनाम में दे दिया था इस दौर में भी मल्लाह जाति की बहुत इज्जत थी रेत खनन, मछली पकडने, नाव घाट, डोली उठाना, दनियों की खाली पडी जमीन मुफत खेती के लिए आरक्षित रहा। फिर देश की आजादी के लिए अंग्रेजों से लडाई चली तो मल्लाह जाति के लोगों का योगदान कम नहीं रहा। उत्तर प्रदेश, मु. नगर के ग्राम रामडा (पूर्व में मल्लाह बश्ती) के बरकत मल्लाह आदि ने पंडित जवार लाल नहरू, लाल बहादुर शास्त्री कोअपनी नाव दनियों को पार तारने के साथ साथ ही स्वतन्त्रता सैनानियों की दनियों में सुक्षित नदियां पार कराई। फिर 15.8.1947 में देश आजाद हुआ चारों ओर खुशियां थीं। नई आजादी के साथ नई उम्मीद थी लेकिन पंडित जी के प्रथम प्रधान मन्त्री बनने के बाद से लेकर 1990 तक उत्तर प्रदेश सरकान के या अन्य राज्य सरकान ने जो भी नाव घाट, पुंछी, मछली पालन, रेत खनन, दनियों की जमीन तरबुज, खरबुजा, ककडी आदि के की निलामी मल्लाह या मछुआ समुदाय की जातियाकें के व्यक्ति के नाम निलामी की रकम देकर छोडे जाने लगी। इसके साथ लाखों जहारों साल से चल रही फ्री पटरे योजना पैसों में छोडी जाने लगी लेकिन 1990 दशक के बाद रेत खनन माफिया के नेताओं के साथ बहुत मोटी धनराशी कमाने लगे और धीरे धीरे मल्लाह जाति के लोग पहले कश्ती घाट फिर रेत खनन, नदियों की जमीन में तालाबों पर हर तरह के माफियों अधिकारियों, नेताओं की मिली भगत से मल्लाह को कहीं धन की बल से डरा धमकाकर इन कार्यों से दूर कर दिया गया और नेता माफिया द्वारा नदियों का सीना चीरकर अवैध रेत खनन करते रहे। नाव घाट पर कब्जा कर लिया, तालाब समाप्त कर दिये गए, गोता खोर भी अन्य जातियों के लगने लगा अब बेरोजगार मल्लाह जाति के लोग खाना बदोशों की तरह इधर उधर रोजगार की तलाश में फिरने लगे, भुखमरी आने के कारण अपने बच्चों को पढाने से कोई नेता समाज की तरफ नहीं देखता। आज भगवान श्री राम के देश में भगवान को नदी पार कराने वाले देश आर्थि तंगी व्यापार में बढाने वालों को राम के ही देश में उनके अधिकारों को एक शाजिश के तहत समाप्त कर दिया गया। पिछले 68 वर्षों में मल्लाह जाति के लोगों पर जितने जुल्म अत्याचार हुए हैं किसी जाति पर नहीं। जहां भारत का संविधान यह कहता है कि आरक्षण का लाभ जाति धर्म के आधार पर नहीं बल्कि पिछडेपन के आधार पर मिलता है तो मेरा दावा है कोई सरकार सर्वे करालो या कुछ भी कर लो मल्लाह जाति, मछुआ समुदाय की इस जाति के लोग भूमीहीन है। गरीबी सबसे ज्यादा है रोजगार नहीं । शिक्षा में पिछड गया कि समाज की मुख्यधारा में इनकी हालत दलितों से भी कहीं ज्यादा खराब है। क्या राम के देश भारत का संविधान मल्लाह व मछुआ समुदाय कि जातियों के साथ इंसाफ नहीं करेगा। बस हर सरकार हर पार्टी ने हमें वोटों के रूप में देखा है बस अब मेरी मल्लाह जाति के सभी व मछुआ समुदाये कि जाति के लोगों से निवेदन है कि आप धर्मों में न बट कर केवल जाति को दखें, मल्लाह, केवट, निषाद अन्य उप जाति चाहे वह हिन्दू धर्म या इस्लाम, सिख, इसाई धर्म से तालुक क्यू न रखती है बस हमारे लिए वह भाई है जिस तरह और जातियों में धर्म नहीं जाति बेश पर अपने अधिकारों की लडाई लड रही है हम भी एक होकर मछुआ समुदाय की सभी उपजातियों के अधिकारेां के लिए संघर्ष करें। इस लिए हमारी समीति के द्वारा अनेक मांगी रखी गयी हैं कृपया उन पर विचार विमर्ष कर हमें अपने सुझाव भेंजें। ... मल्लाह फन्ड की स्थापना मल्लाह फन्ड की स्थापना कराने का मकसद यह है कि समिती के बैंक खाते में जो भी चन्दा इकटठा होगा उस चन्दे से आप और हम सब जानते हैं कि अगर हमारे भाई की मौत होजाय तो हमारी बहने इद्द्त में 4 माह दस दिन बैठ जाती लेकिन 80 प्रतिशत ऐसे हालत आती है कि वह बहुत मजबूर होती इस तरह के मामलों को देखकर हमने मल्लाह फंड की स्थापना करने की जरूरत महसूस की। फन्ड देने वालों की कमेटी ग्राम वाई होगी। किसी प्रकार का भेदभाव नहीं होगा। ज्यादा जरूरतमंद होने पर कमेटी उसका चयन करेगी जिसे ज्यादा जरूरत समझेगी। आप सब का कोई भी इन्सान इसका मेम्बर बन सकता है जिसे हर महीने दान करना। हर साल या कभी भी साल में एक बार समिती का हिसाब किता होगा। उस वक्त आप कोई भी किसी तरह का हिसाब ले सकते हैं। लाभार्थी का चयनः 1. जवान लडकियों की शादी में मदद करना 2. इद्द्त में बैठी अपनी जरूरतमंद बहनों की मदद करना 3. गम्भीर बिमारी में मदद करना 4. गरीब परिवार के बच्चों को किताबें व स्कूल फीस भरना 5. हाई एजुकेशन पढ रहे गरीब बच्चों के दाखिले में मदद एवं फीस भरना 6. विकलंग बच्चों को टाईसिकल आदि सामान देना 7. सिलाई कढाई के सेटर खुलवाना 8. समाज के गरीब बच्चों का काम सीखाने वालों को मिस्त्री, दुकान खुलावाने में मदद करना अपील प्रिय प्यारे दोस्तों एवं अजीज साथियों आपको जानकर खुशी होगी कि मछुआ समुदाय की सभी उप जातियों मल्लाह समाज की रोजगार, समस्याओं, आरक्षन मांगें सरकार तक पहुंचाने के लिए केवट मल्लाह एकता सेवा समिती का का गठन किया गया जिसके बाद समिती को उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा मान्यता दिनांक .......... दी गई जिस का रजिस्टशन संखया अधिनिया 1860 के अन्तर्गत रजिस्टशन संख्या 364 है एक वर्ष समिती ने 1000 पत्र भारत के सभी राज्यों के मुख्य मंत्रियों, भारत सरकार के सभी मंत्रीयों, प्रधान मंत्री महोदय, सभी पार्टियों के अध्यक्षों को मल्लाह जाति की मूल समस्याओं से अवगत कराया है जिस का हमें फायदा हुआ है। जो योजना हमारे समाज को मिलनी चाहिए थी उनकी जानकारी हमें नहीं थी यह जाकारी हमें विभिन्न राज्य सरकारों ने उपलब्ध करादी है जैसे मल्लाह समाज को कल्याण कारी संस्था के सदस्यों के लिए मछुआ आवास कल्याण योजना, दुर्घटना बिमा योजना, मछली पालन आदि। इन सभी योजनाओं की जानकारी आप तक पहुंचान ही हमारा प्रयास है। हम और बुदधीजिवयों बडे बुजुर्ग लोग मानते हैं कि यह सत्य है कि दुनिया की सबसे बडी जाति को आज भूखे मरने कि कगार पर है जिसकी सबसे बडी वजह है समाज के लोगों का रोजगार ना होना, हमारे समाज के लोग खाना बदोश की तरह यहां घर पर रहते हैं मलहा रोजगार के लिए देश की गंगा, यमुना नदी पर तरबूज, खरबुजा की फसल लगाने के लिए चले जाते हैं जिस वजह से आज तक अपने बच्चों को यह पढाने में सक्षम नहीं, जहारों लाखों सालों से नदियोें के तट पर बसी यह जाति हर सरकार से अपने लिए उम्मीद करती है। क्या आपको पता है दुनिया का पहला आदमी जिसने भारत की खोज की थी (पता लगाया था) वह कौन था वह व्यक्ति दक्षिण अफ्रीका का रहने वाला मल्लाह पुत्र वासकोडीगामा था हां भाइयों मल्लाह जाति के इस व्यक्ति ने दुनिया के लिए भारत की खोज की अपनी नाव के जरिये अपने राजा से अनुदान लेकर यह खोज की थी। लाखों साल पहले भगवान रामचन्द्र को वनवास के दौरान बिना किसी के नदी पार कराने वाला भी केवट राज निषाद जी मल्लाह जाति के ही थे। इस्लाम धर्म के हिसाब से इस्लाम धर्म के प्रचार के लिए 1 लाख 24 हजार पेगम्बर आए जिस में से एक पेग्म्बर थे जहरत नुह अलैहिस्सलाम, धार्मिक ग्रंथों के हिसाब से जो उनकी नाव में चढ गया जिवित रह गया वरना दुनिया में कोई जिवीत नहीं बचा वह आप की मल्लाह जाति से ताल्लुक रखते थे। नूह की कश्‍ती (नौका) को खोजने और उसे देखने के लिए सदियों से लोग बैचेन रहे हैं। मगर इस किस्से के बारे में 1950 से पहले कोई सबूत ऐसा नही था जो ये तय कर सके कि वाकई नूह की जलप्रलय जैसी घटना पुथ्वी पर हुयी थी ।
बिहार सरकार ने मल्लाह, निषाद और नोनिया जाति को अनुसूचित जन जाति में शामिल करने का नीतिगत फैसला कर लिया है. राज्य कैबिनेट की शनिवार को हुई बैठक में इसे मंजूरी दी गयी. मल्लाह, निषाद (बिंद, बेलदार, चांई, तियर, खुलवट, सुरिहया, गोढी, वनपर व केवट) व नोनिया जाति को इनके आर्थिक, राजनीतिक, शैक्षणिक व रोजगर में पिछड़ेपन को देखते हुए बिहार की अनुसूचित जन जाति की सूची में शामिल करने की अनुशंसा केंद्र सरकार को भेजने का निर्णय लिया गया.

एक दिन पहले राजधानी में निषाद जाति को अनुसूचित जन जाति में शामिल किये जाने की मांग को लेकर कर रहे प्रदर्शन पर पुलिस ने लाठियां चटकायी थीं. सरकार के इस फैसले से तकरीबन एक करोड़ से अधिक की आबादी को अनुसूचित जन जाति को मिलने वाली सुविधाओं का लाभ मिलेगा. अरसे से निषाद , मल्लाह और नोनिया जाति को अनुसूचित जाति में शामिल किये जाने की मांग उठ रही थी. इसके पहले सरकार ने लोहार जाति को अनुसूचित जाति में और तेली, तमोली और चौरसिया जाति को अति पिछड़ी जाति में शामिल करने की मंजूरी दी .
राज्य कैबिनेट की बैठक में प्रदेश के सभी मंदिरों की बाउंड्री कराये जाने का फैसला लिया गया. मंदिरों की सुरक्षा के लिए सरकार ने यह कदम उठाया है. बहुमूल्य धातू या मूर्ति की सुरक्षा के लिए डीएम को ऐसे मंदिरों को चिन्हित करने का अधिकार दिया गया है. डीएम की रिपोर्ट पर भवन निर्माण विभाग चारदीवारी करायेगा.
कैबिनेट ने बिहार पंचायत प्रारंभिक शिक्षक नियोजन एवं सेवा शर्त नियमावली 2015 और बिहार नगर प्रारंभिक शिक्षक 2015 नियोजन एवं सेवा शर्त नियामवली में संशोधन कर दक्षता परीक्षा में फेल शिक्षकों को एक और मौका देने का निर्णय लिया गया. इसके नियोजन प्रक्रिया आसान की गयी है. अब सीधे आवेदन लेने के बाद कैंप से ही नियुक्ति पत्र बाटा जा सकेगा. कैबिनेट ने अप्रशिक्षित नियोजित शिक्षकों को सवैतनिक प्रशिक्षण दिया जायेगा.
कैबिनेट ने जेल मैनुअल को बदलाव किया है. खाने में महीने के दो-दो दिन रात्रि में चिकेन और मछली दिये जायेंगे. इसके साथ ही प्रतिदिन शाम में एक कप चाय कैदियों को दी जायेगी. 1983 के बाद जेल कैदियों का भाजन चार्ट में पहली बार बदलाव किया गया है. अब तक प्रति बंदी पचास रुपये भोजन पर खर्च किये जाते थे. अब बेहतर भोजन के लिए 88 रुपये 38 पैसे प्रति बंदी प्रति दिन खर्च होगा. सुबह में नाश्ते में अलग अलग दिन अलग -अलग व्यंजन दिये जायेंगे. पहले इस पर सालाना 44 करोड़ खर्च होता था. नये प्रावधान के मुताबिक प्रति वर्ष 74 करोड़ खर्च हाेगा.
लाठी भूल कर नीतीश को बधाई : मुकेश
पटना. निषाद विकास संघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष मुकेश सहनी ने निषाद, मल्लाह और उनकी उप जातियों को अनुसूचित जनजाति में शामिल किये जाने के कैबिनेट के फैसले पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को बधाई दी है. प्रभात खबर से बातचीत में मुकेश साहनी ने कहा कि यह हमारे आंदोलन का नतीजा है कि सरकार को झुकना पड़ा. उन्होंने कहा कि हमने इसके लिए लाठी खाये, लेकिन सरकार के इस फैसले से लाठी से पिटाई का दर्द हम भूल कर सीएम को बधाई देते हैं.
उन्होंने कहा कि हम अपने संगठन की ओर से भी सीएम को धन्यवाद देते हैं. सरकार ने बड़ा कदम उठाया है. यह पूछे जाने पर कि आपकी मांगें पूरी हो गयी हैं, अब विधानसभा चुनाव में आप जदयू गंठबंधन को सपोर्ट करेंगे, मुकेश ने कहा, हम लोग चुनाव में अब सोच समझ कर निर्णय लेंगे. अभी सिर्फ प्रस्ताव ही पास किया गया है. जमीन पर निर्णय को उतरने में देर होगी.
लेकिन, सरकार ने पहला कदम उठाया है. शुक्रवार को लाठियों से पीटे जाने के बाद आंख मूंद कर हम एक पक्षीय निर्णय लेने वाले थे. अब जो भी निर्णय लेंगे आंख खोल कर लेंगे.
भाजपा के प्रति साफ्ट कार्नर पर मुकेश सहनी ने कहा शुक्रवार को सरकार ने पीटा और भाजपा व एनडीए ने मरहम लगाया. सुशील मोदी थाने पर आकर मिले. अब नीतीश ने मार का मुआवजा दे दिया है. इसलिए हम अभी कोई राजनीतिक निर्णय नहीं लेंगे, आने वाले दिनों में सोच समझ कर फैसला करेंगे.
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