30.7.19

संकट हरण हनुमान प्रश्नावली यंत्र:sankat haran hanuman prashnavali





हमारे हिन्दू धर्म ग्रंथो में कई तरह के यंत्र(चक्र)के बारे में बताया गया हैं जिनकी सहायता से हम अपने मन में उठ रहे सवाल, हमारे जीवन में आने वाली कठिनाइयों आदि का समाधान पा सकते है। हम अब तक आपको श्रीगणेश प्रश्नावली यंत्र और नवदुर्गा प्रश्नावली चक्र के बारे में बता चुके है आज हम आपको बताएँगे हनुमान प्रश्नावली चक्र के बारे में।




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प्रयोग विधि :-
जिसे भी अपने प्रश्नों का उत्तर चाहिए वे स्नान आदि कर साफ वस्त्र धारण करे और पांच बार ऊँ रां रामाय नम:मंत्र का जप करने के बाद 11 बार ऊँ हनुमते नम:मंत्र का जप करे। इसके बाद आंखें बंद हनुमानजी का स्मरण करते हुए प्रश्नावली चक्र पर कर्सर घुमाते हुए रोक दें। जिस कोष्ठक(खाने) पर कर्सर रुके, उस कोष्ठक में लिखे अंक को देखकर अपने प्रश्न का उत्तर देखें। कोष्ठकों के अंकों के अनुसार फलादेश

1- आपका कार्य शीघ्र पूरा होगा।

2- आपके कार्य में समय लेगगा। मंगलवार का व्रत करें।

3- प्रतिदिन हनुमान चालीसा का पाठ करें तो कार्य शीघ्र पूरा होगा।

4- कार्य पूर्ण नहीं होगा।

5- कार्य शीघ्र होगा, किंतु अन्य व्यक्ति की सहायता लेनी पड़ेगी।

6- कोई व्यक्ति आपके कार्यों में रोड़े अटका रहा है, बजरंग बाण का पाठ करें।

7- आपके कार्य में किसी स्त्री की सहायता अपेक्षित है।

8- आपका कार्य नहीं होगा, कोई अन्य कार्य करें।

9- कार्यसिद्धि के लिए यात्रा करनी पड़ेगी।

10- मंगलवार का व्रत रखें और हनुमानजी को चोला चढ़ाएं, तो मनोकामना पूर्ण होगी।

11- आपकी मनोकामना शीघ्र पूरी होगी। सुंदरकांड का पाठ करें।

12- आपके शत्रु बहुत हैं। कार्य नहीं होने देंगे।

13- पीपल के वृक्ष की पूजा करें। एक माह बाद कार्य सिद्ध होगा।

14- आपको शीघ्र लाभ होने वाला है। मंगलवार को गाय को गुड़-चना खिलाएं।

15- शरीर स्वस्थ रहेगा, चिंताएं दूर होंगी।

16- परिवार में वृद्धि होगी। माता-पिता की सेवा करें और रामचरितमानस के बालकाण्ड का पाठ करें।

17- कुछ दिन चिंता रहेगी। ऊँ हनुमते नम: मंत्र की प्रतिदिन एक माला का जप करें।

18- हनुमानजी के पूजन एवं दर्शन से मनोकामना पूर्ण होगी।

19- आपको व्यवसाय द्वारा लाभ होगा। दक्षिण दिशा में व्यापारिक संबंध बढ़ाएं।

20- ऋण से छुटकारा, धन की प्राप्ति तथा सुख की उपलब्धि शीघ्र होने वाली है। हनुमान चालीसा का पाठ करें।

21- श्रीरामचंद्रजी की कृपा से धन मिलेगा। श्रीसीताराम के नाम की पांच माला रोज करें।

22- अभी कठिनाइयों का सामाना करना पड़ेगा पर अंत में विजय आपकी होगी।

23- आपके दिन ठीक नहीं है। रोजाना हनुमानजी का पूजन करें। मंगलवार को चोला चढ़ाएं। संकटों से मुक्ति मिलेगी।

24- आपके घर वाले ही विरोध में हैं। उन्हें अनुकूल बनाने के लिए पूर्णिमा का व्रत करें।

25- आपको शीघ्र शुभ समाचार मिलेगा।

26- हर काम सोच-समझकर करें।

27- स्त्री पक्ष से आपको लाभ होगा। दुर्गासप्तशती का पाठ करें।

28- अभी कुछ महीनों तक परेशानी है।

29- अभी आपके कार्य की सिद्धि में विलंब है।

30- आपके मित्र ही आपको धोखा देंगे। सोमवार का व्रत करें।

31- संतान का सुख प्राप्त होगा। शिव की आराधना करें व शिवमहिम्नस्तोत्र का पाठ करें।

32- आपके दुश्मन आपको परेशान कर रहे हैं। रोज पार्थिव शिवलिंग का पूजन कर शिव ताण्डवस्तोत्र का पाठ करें। सोमवार को ब्राह्मण को भोजन कराएं।

33- कोई स्त्री आपको धोखा देना चाहती है, सावधान रहें।

34- आपके भाई-बंधु विरोध कर रहे हैं। गुरुवार को व्रत रखें।

35- नौकरी से आपको लाभ होगा। पदोन्नति संभव है, पूर्णिमा को व्रत रख कथा कराएं।

36- आपके लिए यात्रा शुभदायक रहेगी। आपके अच्छे दिन आ गए हैं।

37- पुत्र आपकी चिंता का कारण बनेगा। रोज राम नाम की पांच माला का जप करें।

38- आपको अभी कुछ दिन और परेशानी रहेगी। यथाशक्ति दान-पुण्य और कीर्तन करें।

39- आपको राजकार्य और मुकद्मे में सफलता मिलेगी। श्रीसीताराम का पूजन करने से लाभ मिलेगा।

40- अतिशीघ्र आपको यश प्राप्त होगा। हनुमानजी की उपासना करें और रामनाम का जप करें।

41- आपकी मनोकामना पूर्ण होगी।

42- समय अभी अच्छा नहीं है।

43- आपको आर्थिक कष्ट का सामना करना पड़ेगा।

44- आपको धन की प्राप्ति होगी।

45- दाम्पत्य सुख मिलेगा।

46- संतान सुख की प्राप्ति होने वाली है।

47- अभी दुर्भाग्य समाप्त नहीं हुआ है। विदेश यात्रा से अवश्य लाभ होगा।

48- आपका अच्छा समय आने वाला है। सामाजिक और व्यवसायिक क्षेत्र में लाभ मिलेगा।

49- आपका समय बहुत अच्छा आ रहा है। आपकी प्रत्येक मनोकामना पूर्ण होगी।

17.7.19

इस्लाम से पहिले अरब जगत मे हिन्दू संस्कृति का अस्तित्व था





इराक का एक पुस्तक है जिसे इराकी सरकार ने खुद छपवाया था। इस किताब में 622 ई से पहले के अरब जगत का जिक्र है। आपको बता दें कि ईस्लाम धर्म की स्थापना इसी साल हुई थी। किताब में बताया गया है कि मक्का में पहले शिवजी का एक विशाल मंदिर था जिसके अंदर एक शिवलिंग थी जो आज भी मक्का के काबा में एक काले पत्थर के रूप में मौजूद है। पुस्तक में लिखा है कि मंदिर में कविता पाठ और भजन हुआ करता था।
प्राचीन अरबी काव्य संग्रह गंथ ‘सेअरूल-ओकुल’ के 257वें पृष्ठ पर हजरतमोहम्मद से 2300 वर्ष पूर्व एवं ईसा मसीह से 1800 वर्ष पूर्व पैदा हुए लबी-बिन-ए-अरव्तब-बिन-ए-तुरफा ने अपनी सुप्रसिद्ध कविता में भारत भूमि एवं वेदों को जो सम्मान दिया है, वह इस प्रकार है-
“अया मुबारेकल अरज मुशैये नोंहा मिनार हिंदे।

व अरादकल्लाह मज्जोनज्जे जिकरतुन।1।

वह लवज्जलीयतुन ऐनाने सहबी अरवे अतुन जिकरा।

वहाजेही योनज्जेलुर्ररसूल मिनल हिंदतुन।2।

यकूलूनल्लाहः या अहलल अरज आलमीन फुल्लहुम।

फत्तेबेऊ जिकरतुल वेद हुक्कुन मालन योनज्वेलतुन।3।

वहोबा आलमुस्साम वल यजुरमिनल्लाहे तनजीलन।

फऐ नोमा या अरवीयो मुत्तवअन योवसीरीयोनजातुन।4।

जइसनैन हुमारिक अतर नासेहीन का-अ-खुबातुन।

व असनात अलाऊढ़न व होवा मश-ए-रतुन।5।”

अर्थात-(1) हे भारत की पुण्य भूमि (मिनार हिंदे) तू धन्य है, क्योंकि ईश्वर ने अपने ज्ञान के लिए तुझको चुना। (2) वह ईश्वर का ज्ञान प्रकाश, जो चार प्रकाश स्तम्भों के सदृश्य सम्पूर्ण जगत् को प्रकाशित करता है, यह भारतवर्ष (हिंद तुन) में ऋषियों द्वारा चार रूप में प्रकट हुआ। 

(3) और परमात्मा समस्त संसार के मनुष्यों को आज्ञा देता है कि वेद, जो मेरे ज्ञान है, इनकेअनुसार आचरण करो।
(4) वह ज्ञान के भण्डार साम और यजुर है, जो ईश्वर ने प्रदान किये। इसलिए, हे मेरे भाइयों! इनको मानो, क्योंकि ये हमें मोक्ष का मार्ग बताते है।
(5) और दो उनमें से रिक्, अतर (ऋग्वेद, अथर्ववेद) जो हमें भ्रातृत्व की शिक्षा देते है, और जो इनकी शरण में आ गया, वह कभी अन्धकार को प्राप्त नहीं होता।
इस्लाम मजहब के प्रवर्तक मोहम्मद स्वयं भी वैदिक परिवार में हिन्दू के रूप में जन्में थे, और जब उन्होंने अपने हिन्दू परिवार की परम्परा और वंश से संबंध तोड़ने और स्वयं को पैगम्बर घोषित करना निश्चित किया, तब संयुक्त हिन्दू परिवार छिन्न-भिन्न हो गया और काबा में स्थित महाकाय शिवलिंग (संगेअस्वद) के रक्षार्थ हुए युद्ध में पैगम्बर मोहम्मद के चाचाउमर-बिन-ए-हश्शाम को भी अपने प्राण गंवाने पड़े। उमर-बिन-ए-हश्शाम का अरबमें एवं केन्द्र काबा (मक्का) में इतना अधिक सम्मान होता था कि सम्पूर्ण अरबी समाज, जो कि भगवान शिव के भक्त थे एवं वेदों के उत्सुक गायक तथा हिन्दू देवी-देवताओं के अनन्य उपासक थे, उन्हें अबुल हाकम अर्थात ‘ज्ञान का पिता’ कहते थे। बाद में मोहम्मद के नये सम्प्रदाय ने उन्हें ईर्ष्यावश अबुलजिहाल ‘अज्ञान का पिता’ कहकर उनकी निन्दा की।
जब मोहम्मद ने मक्का पर आक्रमण किया, उस समय वहाँ बृहस्पति, मंगल, अश्विनीकुमार, गरूड़, नृसिंह की मूर्तियाँ प्रतिष्ठित थी। साथ ही एक मूर्ति वहाँ विश्वविजेता महाराजा बलि की भी थी, और दानी होने की प्रसिद्धि से उसका एक हाथ सोने का बना था। ‘Holul’ के नाम से अभिहित यह मूर्ति वहां इब्राहम और इस्माइल की मूर्त्तियों के बराबर रखी थी। मोहम्मद ने उन सब मूर्त्तियों को तोड़कर वहां बने कुएं में फेंक दिया, किन्तु तोड़े गये शिवलिंग का एक टुकडा आज भी काबा में सम्मानपूर्वक न केवल प्रतिष्ठित है, वरन् हज करने जाने वाले मुसलमान उस काले (अश्वेत) प्रस्तर खण्ड अर्थात ‘संगे अस्वद’ को आदर मान देते हुए चूमते है।
प्राचीन अरबों ने सिन्ध को सिन्ध ही कहा तथा भारतवर्ष के अन्य प्रदेशों को हिन्द निश्चित किया। सिन्ध से हिन्द होने की बात बहुत ही अवैज्ञानिक है। इस्लाम मत के प्रवर्तक मोहम्मद के पैदा होने से 2300 वर्ष पूर्व यानि लगभग 1800 ईश्वी पूर्व भी अरब में हिंद एवं हिंदू शब्द का व्यवहार ज्यों कात्यों आज ही के अर्थ में प्रयुक्त होता था।

अरब की प्राचीन समृद्ध संस्कृति वैदिक थी तथा उस समय ज्ञान-विज्ञान, कला-कौशल, धर्म-संस्कृति आदि में भारत (हिंद) के साथ उसके प्रगाढ़ संबंध थे। हिंद नाम अरबों को इतना प्यारा लगा कि उन्होंने उस देश के नाम पर अपनी स्त्रियों एवं बच्चों के नाम भी हिंद पर रखे।
अरबी काव्य संग्रह ग्रंथ ‘ से अरूल-ओकुल’ के 253वें पृष्ठ पर हजरत मोहम्मद के चाचा उमर-बिन-ए-हश्शाम की कविता है जिसमें उन्होंने हिन्दे यौमन एवं गबुल हिन्दू का प्रयोग बड़े आदर से किया है। ‘उमर-बिन-ए-हश्शाम’ की कविता नई दिल्ली स्थित मन्दिर मार्ग पर श्री लक्ष्मीनारायण मन्दिर (बिड़लामन्दिर) की वाटिका में यज्ञशाला के लाल पत्थर के स्तम्भ (खम्बे) पर कालीस्याही से लिखी हुई है, जो इस प्रकार है -
” कफविनक जिकरा मिन उलुमिन तब असेक ।

कलुवन अमातातुल हवा व तजक्करू ।1।

न तज खेरोहा उड़न एललवदए लिलवरा ।

वलुकएने जातल्लाहे औम असेरू ।2।

व अहालोलहा अजहू अरानीमन महादेव ओ ।

मनोजेल इलमुद्दीन मीनहुम व सयत्तरू ।3।

व सहबी वे याम फीम कामिल हिन्दे यौमन ।

व यकुलून न लातहजन फइन्नक तवज्जरू ।4।

मअस्सयरे अरव्लाकन हसनन कुल्लहूम ।

नजुमुन अजा अत सुम्मा गबुल हिन्दू ।5।

अर्थात् –(1) वह मनुष्य, जिसने सारा जीवन पाप व अधर्म में बिताया हो, काम, क्रोध में अपने यौवन को नष्ट किया हो। 

(2) यदि अन्त में उसको पश्चाताप हो, और भलाई की ओर लौटना चाहे, तो क्या उसका कल्याण हो सकता है ? (3) एक बार भी सच्चे हृदय से वह महादेव जी की पूजा करे, तो धर्म-मार्ग में उच्च से उच्चपद को पा सकता है। (4) हे प्रभु ! मेरा समस्त जीवन लेकर केवल एक दिन भारत (हिंद) के निवास का दे दो, क्योंकि वहां पहुंचकर मनुष्य जीवन-मुक्त हो जाता है।
 (5) वहां की यात्रा से सारे शुभ कर्मो की प्राप्ति होती है, और आदर्शगुरूजनों (गबुल हिन्दू) का सत्संग मिलता है।