पिंजारा समाज, जिसे मंसूरी (Mansoori) भी कहा जाता है, भारत में एक मुस्लिम समुदाय है जो मुख्य रूप से महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान और मध्य प्रदेश के कुछ हिस्सों में पाया जाता है. पिंजारा समुदाय का मुख्य व्यवसाय कपास को धुनना, खोलना और साफ करना है.
पिंजारा समाज का इतिहास और उत्पत्ति:
पिंजारा समाज का इतिहास सदियों पुराना है.
कुछ इतिहासकारों के अनुसार, पिंजारा शब्द संस्कृत शब्द "वान" या "वणिक" से आया है, जिसका अर्थ है "व्यापारी" या "वनवासी".
कुछ अन्य लोगों के अनुसार, यह शब्द फ़ारसी शब्द "विरंजन" से आया है, जिसका अर्थ है "सफ़ाई करने वाला".
कुछ पिंजारा समुदाय के लोग मानते हैं कि वे राजपूतों की एक शाखा हैं जो बाद में मुस्लिम बन गए.
औरंगजेब के शासनकाल में, कुछ पिंजारों ने इस्लाम धर्म अपना लिया और बुनाई और कपड़ा बनाने का काम शुरू कर दिया.
बादशाह शहाबुद्दीन गौरी ने भी कुछ हिंदुओं को जबरन मुसलमान बनाया, जिन्हें गोरी पठान कहा जाने लगा, और इनमें से कुछ बाद में पिंजारा समुदाय में शामिल हो गए.
पिंजारा समाज की विशेषताएं:
पिंजारा समुदाय के लोग हिन्दू और मुस्लिम दोनों हो सकते हैं.
पिंजारा महिलाएं पुरुषों के बराबर काम करती हैं और व्यवसाय में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं.
वे कपास खरीदती हैं, उसे धुनती हैं, और उससे बिस्तर, तकिया, कंबल आदि बनाती हैं.
पिंजारा महिलाएं अपनी कमाई का हिसाब रखती हैं और उसे अपनी मर्जी से खर्च करती हैं.
कुछ पिंजारा महिलाएं अब ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि कार्यों में भी संलग्न हैं.
पिंजारा समुदाय में विवाह:
पिंजारा समुदाय में विवाह, समुदाय के भीतर ही होते हैं.
विवाहों में, लड़के और लड़कियों की सहमति का सम्मान किया जाता है.
विवाहों में, लड़के और लड़कियों के माता-पिता भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं.
पिंजारा समुदाय की वर्तमान स्थिति:
पिंजारा समुदाय के लोग आज भी अपने पारंपरिक व्यवसाय को जारी रखे हुए हैं, लेकिन कुछ लोग अन्य व्यवसायों में भी शामिल हो गए हैं.
पिंजारा समुदाय के लोग शिक्षा और जागरूकता के महत्व को समझ रहे हैं और अपने बच्चों को शिक्षित करने के लिए प्रयास कर रहे हैं.
पिंजारा समुदाय के लोग सामाजिक और आर्थिक रूप से आगे बढ़ने के लिए संगठित हो रहे हैं और अपने अधिकारों के लिए आवाज उठा रहे हैं.
पिंजारा किस धर्म को मानते हैं?
यह इस्लाम धर्म को मानते हैं. यह हिंदी, मारवाड़ी, मराठी, कन्नड़ और उर्दू भाषा बोलते हैं. इस समुदाय के ज्यादातर लोग हाल के दिनों तक किसी सरनेम का प्रयोग नहीं करते थे. हालांकि, अब इस समुदाय के अधिकांश खान, पठान आदि उपनामों को लगाने लगे हैं. जबकि अन्य मशहूर फारसी सूफी संत मंसूर अल हल्लाज, जो खुद भी एक बुनकर थे, के नाम पर मंसूरी उपनाम का प्रयोग करते हैं.
यह इस्लाम धर्म को मानते हैं. यह हिंदी, मारवाड़ी, मराठी, कन्नड़ और उर्दू भाषा बोलते हैं. इस समुदाय के ज्यादातर लोग हाल के दिनों तक किसी सरनेम का प्रयोग नहीं करते थे. हालांकि, अब इस समुदाय के अधिकांश खान, पठान आदि उपनामों को लगाने लगे हैं. जबकि अन्य मशहूर फारसी सूफी संत मंसूर अल हल्लाज, जो खुद भी एक बुनकर थे, के नाम पर मंसूरी उपनाम का प्रयोग करते हैं.
जाति इतिहासविद डॉ . दयाराम आलोक के मतानुसार बादशाह शाहबुद्दीन गौरी ने कुछ हिंदुओं को बलपूर्वक मुसलमान बनाया था। ये लोग गौरी पठान कहलाने लगे . पिंजारा जाति के अधिकांश रीति रिवाज हिंदुओंसे मिलते जुलते हैं.इनमे विधवा विवाह प्रचलित है। गांवों मे रहने वाले पिंजारा समाज के लोग खेती का धंधा कर रहे हैं। इनका पहनावा हिंदुओं जैसा ही है। अधिकांश लोग सरनेम का प्रयोग नहीं करते हैं लेकिन हाल ही मे ये लोग पठान ,खान उपनामों का प्रयोग करने लगे हैं। कुछ लोग मंसूरी उपनाम लेकर चल रहे हैं। इनकी स्त्रियाँ हिन्दुओ जैसी लगती हैं. पाजामा बहुत कम पहनती हैं . पुरुष धोती कमीज पहनते हैं. पिंजारा समाज के लोगों की गोत्र हिन्दू क्षत्रियों जैसी हैं जैसे देवड़ा चौहान,भाटी,सोलंकी,पड़िहार,राठौड आदि . इससे विदित होता है कि पिंजारा समाज किसी समय हिन्दू क्षत्रिय समाज के अंग थे.
पिंजारा समाज का इतिहास
पिंजारा समाज मूल रूप से फारस (ईरान) और अफगानिस्तान के रहने वाले थे. यह समुदाय कपास की खेती और उद्योगों के व्यवसाय के उद्देश्य के लिए अफगानिस्तान और फारस से भारत आया था, और यहां आकर बस गया. बता दें कि तब भारत और पाकिस्तान में बंटवारा नहीं हुआ था. इसीलिए यह समुदाय भारत और पाकिस्तान दोनों देशों में पाया जाता है. इस समुदाय की उत्पत्ति स्थानीय धर्मांतरित लोगों और विदेशियों से हुई है जो मुख्य रूप से फारस अफगानिस्तान और बाहर के अन्य क्षेत्रों से आकर भारतीय उपमहाद्वीप में बस गए. यहां आकर यह पारंपरिक रूप से कपास की खेती और व्यवसाय में शामिल हो गए. कुछ पिंजारा जो इस्लाम में धर्मांतरित होने से उत्पन्न हुए थे, इस बात का दावा करते हैं कि वह मूल रूप से राजपूत वंश के हैं. ऐतिहासिक तथ्यों के अनुसार, वह राजा रण सिंह के शासन के दौरान राजस्थान से गुजरात आए थे और यही आकर बस गए.
आज भी इनमें राजपूतों के समान राव, देवड़ा, चौहान, भाटी वंश पाए जाते हैं. कुछ इतिहासकारों का मत है कि यह समुदाय का संबंध मूल रूप से अफगानिस्तान से है. इनमें से कुछ राजपूतों से धर्मांतरित मुसलमान हैं. लेकिन उन्हें हिंदू समाज में धूना कहा जाता था. मैसूर राज्य के शासक टीपू सुल्तान और अंग्रेजी गायक और गीतकार जैन मलिक का संबंध इसी समुदाय से है.
Disclaimer: इस लेख में दी गई जानकारी Internet sources, Digital News papers, Books और विभिन्न धर्म ग्रंथो के आधार पर ली गई है. Content को अपने बुद्धी विवेक से समझे।
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