26.10.17

दया की प्रतिमूर्ति राजा रंतीदेव की कथा:Raja rantidev katha





रघुवंश में एक संस्कृति नाम के परम प्रतापी राजा थे | उनके गुरु और रन्तिदेव नामक दो पुत्र थे | रन्तिदेव दया के मूर्तिमान स्वरूप थे | उनका एकमात्र लक्ष्य था -संसार के सभी प्राणियों के दुःख का निदान | वह भगवान से प्रार्थना करते हुए कहते थे “मै आपसे अष्टसिद्धि या मोक्ष की भी कामना नही करता |मेरी आपसे इतनी ही प्रार्थना है कि समस्त प्राणियों के अन्त:करण में स्थित होकर मै ही उनके दुखो को भोग लू ,जिससे सब दुःख रहित हो जाए “|
इसलिए महाराज रन्तिदेव यही सोचते थरहते थे कि मेरे माध्यम से दीनो का उपकार कैसे हो , मै दुखी प्राणियों के दुःख किस प्रकार दूर करू | अंत: उनके द्वार से कोई भी याचक कभी निराश नही लौटता था | यह सबकी यथेष्ट सेवा करते थे इसलिए उनका यश सम्पूर्ण भूमंडल पर फ़ैल गया | संसार की वस्तुए चाहे कितनी ही अधिक ना हो , उन्हें निरंतर खर्च करने पर के न एक दिन समाप्त हो ही जाती है |
महाराज रन्तिदेव का राजकोष भी दीन को बांटते बांटते एक दिन खाली हो गया | यहा तक कि उनके पास खाने के लिए मुट्ठी भर अन्न भी नही रहा | वह अपने परिवार के साथ जंगल में निकल गये | एक बार उन्हें अन्न की कौन कहे , पीने के लिए जल की एक बूंद भी नही मिली | परिवार सहित बिना कुछ खाए पीये 48 दिन हो गये
भगवान की कृपा से 49वे दिन महाराज रन्तिदेव को कही से खीर ,हलवा और जल प्राप्त हुआ | भगवान का स्मरण करके वह उसे अपने परिवार में वितरित करना ही चाहते थे कि अचानक एक ब्राह्मण देव आ गये | उन्होंने कहा “राजन ! मै भूख से अत्यंत व्याकुल हु | कृपया मुझे भोजन देकर तृप्ति प्रदान करे |” महाराज ने ब्राह्मण को बड़े ही सत्कार से भोजन कराया और ब्राह्मण देव संतुष्ट होकर और राजा को आशीर्वाद देकर चले गये |
महाराज ने बचा हुआ अन्न अपने परिवार में वितरित करने के लिए सोचा | इतने में एक निर्धन आकर अन्न की याचना करने लगा | महाराज ने उसे भी तृप्त कर दिया | तदन्तर एक व्यक्ति कई कुत्तो के साथ वहा आया और बोला “महाराज ! मै और मेरे ये कुत्ते अत्यंत भूखे है | हमे अन्न देकर हमारी आत्मा को तृप्त करे “|
महाराज रन्तिदेव अपनी भूख प्यास भूल गये और बचा हुआ सारा अन्न उस व्यक्ति को दे दिया | अब उनके पास मात्र एक व्यक्ति की प्यास बुझाने लायक जल शेष था | महाराज उस जल को अपने परिवार में बांटकर पीना चाहते थे कि तभी एक चांडाल ने उनके पास आकर जल की याचना की | महाराज ने प्रसन्नतापूर्वक वह जल भी उसे पिलाकर तृप्त कर दिया |
वास्तव में ब्राह्मण ,निर्धन और चंडाल के वेश में स्वयं भगवान विष्णु ,ब्रह्मा और महेश जी महाराज की परीक्षा की परीक्षा लेने आये थे | प्राणीमात्र पर दया के कारण महाराज रन्तिदेव को अपने परिवार सहित योगियों के लिए दुर्लभ भगवान का परम धाम प्राप्त हुआ | भगवान अपने अंशभुत जीवो से प्रेम करने वालो पर ही अधिक संतुष्ट होते है |संसार में समस्त प्राणी भगवान के ही विभिन्न रूप है जो भगवत बुद्धि से सबकी सेवा करते है वे दुस्तर संसार सागर में सहज ही तर जाते है |
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25.10.17

भारतीय इतिहास के प्रमुख युद्धों की जानकारी



भारतीय इतिहास के प्रमुख युद्ध कब, कहाँ और किसके बीच लडे गए, आइये इसकी जानकारी प्राप्त करें, और अपनी प्राचीन धरोहर से परिचित हो सके |
भारतीय सभ्यता और संस्कृति हमेशा यही सिखाती रही है कि “सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे संत निरामया” |
फलस्वरूप भारत द्वारा इस धरती के किसी भी पडोसी मुल्क पर कभी भी आक्रमण या युद्ध का प्रयास नहीं किया गया | हमेशा से ही बाहरी लोगों ने हम पर आक्रमण किए और हमें गुलाम बनाया है | अपनी संस्कृति का पालन करते हुवे हमने तो हमेशा से यही दुहाई दी है कि हमें कोई भी गलत काम नहीं करना चाहिए क्योंकि गलत करनी का हिसाब परम पिता परमेश्वर करेगा |
आइये आज हिसाब करें भारतीय इतिहास के प्रमुख युद्ध जो हमपर विदेशी आक्रान्ताओं द्वारा थोपे गए थे |
ईसा पूर्व भारतीय इतिहास के प्रमुख युद्ध
1. हाईडेस्पीज का युद्ध(326)- सिकंदर और पंजाब के राजा पोरस के बीच जिसमे सिकंदर की विजय हुई |
2. कलिंग की लड़ाई (261) -सम्राट अशोक ने कलिंग पर आक्रमण किया था और युद्ध के रक्तपात से विचलित होकर उन्होंने युद्ध न करने की कसम खाई |
ईस्वी काल के भारतीय इतिहास के प्रमुख युद्ध
1. सिंध की लड़ाई (712)- मोहम्मद कासिम ने अरबों की सत्ता स्थापित की |
2. तराईन का प्रथम युद्ध (1191) – मोहम्मद गौरी और पृथ्वी राज चौहान के बीच हुआ था | चौहान की विजय हुई |
3. तराईन का द्वितीय युद्ध (1192) – मोहम्मद गौरी और पृथ्वी राज चौहान के बीच| इसमें मोहम्मद गौरी की विजय हुई |
4. चंदावर का युद्ध (1194) – इसमें मुहम्मद गौरी ने कन्नौज के राजा जयचंद को हराया
4. चंदावर का युद्ध (1194) – इसमें मुहम्मद गौरी ने कन्नौज के राजा जयचंद को हराया |
5. पानीपत का प्रथम युद्ध (1526) -मुग़ल शासक बाबर और इब्राहीम लोधी के बीच |
6. खानवा का युद्ध (1527) – इसमें बाबर ने राणा सांगा को पराजित किया |
7. घाघरा का युद्ध (1529) -इसमें बाबर ने महमूद लोदी के नेतृत्व में अफगानों को हराया |


8. चौसा का युद्ध (1539)– इसमें शेरशाह सूरी ने हुमायु को हराया |
9. कन्नौज /बिलग्राम का युद्ध (1540) – इसमें फिर से शेरशाह सूरी ने हुमायूँ को हराया व भारत छोड़ने पर मजबूर किया |
10. पानीपत का द्वितीय युद्ध (1556) -अकबर और हेमू के बीच |
11. तालीकोटा का युद्ध (1565)- इस युद्ध से विजयनगर साम्राज्य का अंत हो गया क्यूंकि बीजापुर, बीदर,अहमदनगर व गोलकुंडा की संगठित सेना ने लड़ी थी |
12. हल्दी घाटी का युद्ध (1576)- अकबर और राणा प्रताप के बीच, इसमें राणा प्रताप की हार हुई |
13. प्लासी का युद्ध (1757)- अंग्रेजो और सिराजुद्दौला के बीच, जिसमे अंग्रेजो की विजय हुई और भारत में अंग्रेजी शासन की नीव पड़ी |
14. वांडीवाश का युद्ध (1760)- अंग्रेजो और फ्रांसीसियो के बीच, जिसमे फ्रांसीसियो की हार हुई |
15. पानीपत का तृतीय युद्ध (1761)- अहमदशाह अब्दाली और मराठो के बीच | जिसमे फ्रांसीसियों की हार हुई |
 

16. बक्सर का युद्ध (1764)- अंग्रेजो और शुजाउद्दौला, मीर कासिम एवं शाह आलम द्वितीय की संयुक्त सेना के बीच | अंग्रेजो की विजय हुई | अंग्रेजो को भारत वर्ष में सर्वोच्च शक्ति माना जाने लगा |

17. प्रथम मैसूर युद्ध (1767-69)- हैदर अली और अंग्रेजो के बीच, जिसमे अंग्रेजो की हार हुई |
18. द्वितीय मैसूर युद्ध (1780-84)- हैदर अली और अंग्रेजो के बीच, जो अनिर्णित छूटा |
19. तृतीय आंग्ल मैसूर युद्ध (1790)- टीपू सुल्तान और अंग्रेजो के बीच लड़ाई संधि के द्वारा समाप्त हुई |
20. चतुर्थ आंग्ल मैसूर युद्ध (1799)- टीपू सुल्तान और अंग्रेजो के बीच , टीपू की हार हुई और मैसूर शक्ति का पतन हुआ |
21. चिलियान वाला युद्ध (1849)- ईस्ट इंडिया कंपनी और सिखों के बीच हुआ था जिसमे सिखों की हार हुई |

22. भारत चीन सीमा युद्ध(1962)- चीनी सेना द्वारा भारत के सीमा क्षेत्रो पर आक्रमण | कुछ दिन तक युद्ध होने के बाद एकपक्षीय युद्ध विराम की घोषणा | भारत को अपनी सीमा के कुछ हिस्सों को छोड़ना पड़ा |
23. भारत पाक युद्ध (1965)- भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध जिसमे पाकिस्तान की हार हुई | भारत पाकिस्तान के बीच शिमला समझौता हुआ |
24. भारत पाक युद्ध (1971)- भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध जिसमे पाकिस्तान की हार हुई | फलस्वरूप बांग्लादेश एक स्वतन्त्र देश बना |
25. कारगिल युद्ध (1999)- जम्मू एवं कश्मीर के द्रास और कारगिल क्षेत्रो में पाकिस्तानी घुसपैठियों को लेकर हुए युद्ध में पुनः पाकिस्तान को हार का सामना करना पड़ा और भारतीयों को जीत मिली |
उपर्युक्त वर्णित सभी युद्ध हमारे भारतीय इतिहास के प्रमुख युद्ध का सिलसिलेवार वर्णन है | इनसे हमें हमारे इतिहास की जानकारी मिलती है और ये हमें अपने भविष्य के लिए तैयार रहने की प्रेरणा देते हैं |







23.10.17

भारतीय इतिहास के महत्वपूर्ण प्रश्न और उनके उतार




1. चीनी यात्री ह्नेनसांग सर्वप्रथम किस भारतीय राज्य पहुँचा—
उत्तर: कपिशा
2. सर्वप्रथम भारतवर्ष का जिक्र किस अभिलेखा में मिला है—
उत्तर: हाथी गुंफा अभिलेख में
3. अभिलेखों का अध्ययन क्या कहलाता है—
उत्तर: इपीग्राफी
4. सिंधु सभ्यता के लोग किस क्षेत्र के निवासी थे—
उत्तर: भूमध्यसागरीय
5. गौतम बुद्ध ने अपने उपदेश सबसे अधिक किस स्थान पर दिए —
उत्तर: श्रावस्ती में
6. सिकंदर किसका शिष्य था—
उत्तर: अरस्तू का
7. सिकंदर का सेनापति कौन था —
उत्तर: सेल्यूकस निकेटर
8. पुष्यमित्र किस धर्म का समर्थक था—
उत्तर: ब्राह्मण धर्म का
9. बेसनगर में स्थित गरुण स्तंभ का निर्माण किसने कराया—
उत्तर: हेलियोडोर ने
10. ‘गार्गी संहिता’ क्या है—
उत्तर: ज्योतिष ग्रंथ

11. ‘गार्गी संहिता’ की रचना किसने की—
उत्तर: कात्यायन ने
12. कुषाण वंश की स्थापना किसने की—
उत्तर: कुजुला कडफिसेस
13.कनिष्क को शासन कब प्राप्त हुआ—
उत्तर: 78 ई.
14. भारत में शिलालेखों का प्रचलन किसने कराया—
उत्तर: अशोक ने
भारत का प्राचीन इतिहास
15. पुराणों में अशोक को क्या कहा गया है—
उत्तर: अशोक वर्धन
16. ‘भरहूत स्तूप’ का निर्माण किसने कराया—
उत्तर: पुष्यमित्र शुंग ने
17. रेशम बनाने की तकनीक का अविष्कार सर्वप्रथम किस देश में हुआ—
उत्तर: चीन में
18. गुप्त वंश का संस्थापक कौन था—
उत्तर: श्रीगुप्त
19. मंदिर बनाने की कला का जन्म किस काल में हुआ—
उत्तर: गुप्त काल में
20. भारतीय इतिहास का कौन-सा स्त्रोत प्राचीन भारत के व्यापारिक
मार्गों पर मौन है—
उत्तर: मिलिंद पान्हो

21. सर्वप्रथम भारत को इंडिया किसने कहा—
उत्तर: यूनानवासियों ने
22. मेगास्थनीज ने अपनी पुस्तक इंडिका में किसके शासनकाल का वर्णनकिया है—
उत्तर: चंद्रगुप्त मौर्य
23. ‘प्रिय दर्शिका’ नामक संस्कृत ग्रंथ की रचना किस शासक ने की—
उत्तर: हर्षवर्धन ने
24. नागनंदा’ नामक संस्कृतनटक की रचना किस शासक ने की
उत्तर: हर्षवर्धन ने
25. अजंता की गुफा किस धर्म से संबंधित है—
उत्तर: बौद्ध धर्म से
26. सुरदर्शन झील का पुर्नोद्धार किसने कराया—
उत्तर: स्कंधगुप्त ने
27. पुष्यभूति वंश की स्थापना किसने की—
उत्तर: पुष्यभूतिवर्धन
28. पुष्यभूति वंश का सबसे प्रतापी राजा कौन था—
उत्तर: हर्षवर्धन
29. हर्षवर्धन गद्दी पर कब बैठा
उत्तर: 606 ई.
30. हर्षवर्धन के समय नालंदा विश्वविद्यालय का कुलपति कौन था—
उत्तर: शीलभद्र

31. किस अभिलेख में हर्षवर्धन को परमेश्वर कहा गया है—
उत्तर: मधुबन व बाँसखेड़ा अभिलेखों में
32. कश्मीर का इतिहास किस ग्रंथ में है—
उत्तर: राजतरंगिणी
"" 33. राजतरंगिणी नामक ग्रंथ किसने लिखा—
उत्तर: कल्हण ने
34. एरण अभिलेख का संबंध किस शासक से है
उत्तर: भानुगुप्त से
35. चीनी यात्री फाह्यान किसके शासन काल में भारत आया—
उत्तर: चंद्रगुप्त द्वितीय
ये देश कितना भी तरक्की कर ले, लेकिन लोग
मुड़ने से पहले इंडिकेटर की जगह हाथ ही देंगे
36. भारतीय संस्कृति का स्वर्ण युग किस युग को कहा जाता है—
उत्तर: गुप्त युग को
37. ‘सेतुबंध’ की रचना किस वंश के शासक ने की—
उत्तर: वाकाटक
38. किस गुप्तकालीन शासक को कविराज कहा गया है —
उत्तर: समुद्रगुप्त
39. कोकार्कोट वंश की स्थापना किसने की—
उत्तर: दुर्लभर्वन
40. ‘अवंतिनगर’ नामक नगर को किस शासक ने बसाया—
उत्तर: अवंतिवर्मन ने

41. कार्कोट वंश के बाद किस वंश का उदय हुआ—
उत्तर: उत्पल वंश
42. सर्वप्रथम हर्षवर्धन ने कन्नौज में बौ धर्म सभा का आयोजन कब किया—
उत्तर: 643 ई.
43. हर्षवर्धन की मृत्यु के पश्चात् कन्नौज पर किसका शासन हुआ—
उत्तर: यशोवर्मन
44. गुप्त वंश के किस शासक ने ‘महाधिराज’ की उपाधि धारण की—
उत्तर: चंद्रगुप्त प्रथम ने
प्राचीन भारत का इतिहास:-
45. गुप्तवंश की स्थापना कब हुई—
उत्तर: 319 ई.
ये अखबार बेचने वालों की फेंकने की ऐसी आदत पडी हैं कि..सामने खडे हो तब भी साले पकडायेंगे नहीं फेक कर ही देंगे !!
46. गुप्त वंश की स्थापना किसने की—
उत्तर: चंद्रगुप्त I द्वारा
47. ह्नेनसांग की रचना की क्या नाम है
उत्तर: सी-यू- की
48. कौन-सा गुप्त शासक भारतीय नेपोलियन के नाम से प्रसिद्ध था—
उत्तर: समुद्रगुप्त
49. कालीदास द्वारा रचित ‘मालविकाग्निमित्र’ नाटक का नायक कौन था—
उत्तर: अग्निमित्र
50. स्कंदगुप्त को किस लेख से ‘शक्रोपम’ कहा गया है—
उत्तर: कहौमस्तम लेख

51. गुप्त काल के सबसे लोकप्रिय देवता कौन थे—
उत्तर: विष्णु
52. दिल्ली में स्थित ‘लौह स्तंभ’ किस सदी में निर्मित हुआ—
उत्तर: चौथी सदी में
53. ‘अमरकोष’ नामक ग्रंथ की रचना किसने की और वे किस शासक से जुड़ेथे—
उत्तर: अमर सिंह ने,चंद्रगुप्त II से
54. हरिषेण किसका राजदरबारी कवि था—
उत्तर: समुद्रगुप्त का
54. गुप्त काल की सोने की मुद्रा को क्या कहा जाता था—
उत्तर: दीनार
55. ‘कुमारसंभव’ महाकाव्य को किसने रचा—
उत्तर: कालीदास
56. नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना किस युग में हुई—
उत्तर: गुप्त युग में
57. गुप्त युग में भू-राजस्व की दर क्या थी—
उत्तर: उपज का छठा भाग
58. नगरों का क्रमिक पतन किस युग की विशेषता थी—
उत्तर: गुप्त युग की
59. फाह्यान द्वारा लिखित ग्रंथ ‘फो-कुओ-की’ में किसका वर्णन मिलता है—
उत्तर: बौद्ध धर्म के सिद्धांतों का
60. किस वंश के शासकों ने मंदिरों और ब्राह्मणों को सबसे अधिक ग्रामअनुदान में दिए—
उत्तर: गुप्त वंश

61. महरौली स्थित लौह स्तंभ किसकी स्मृति में है
उत्तर: चंद्रगुप्त II
62. समुद्रगुप्त की सैनिक उपलब्धियों का वर्णन किस अभिलेख में है—
उत्तर: प्रयाग
63. बाल विवाह की प्रथा कब आरंभ हुई—
उत्तर: गुप्त युग में
64. सर्वप्रथम कौन-सा ग्रंथ यूरोपीय भाषा में अनुदित/अनुवादित हुआ—
उत्तर: अभिज्ञान शाकुंतलम्
65. सती प्रथा का प्रथम उल्लेख कहा से मिलता है—
उत्तर: एरण अभिलेख से
66. गुप्तकालीन सिक्कों का सबसे बड़ा ढेर कहाँ से प्राप्त हुआ—
उत्तर: बयाना (भरतपुर)
67. किस गुप्त शासक को नालंदा विश्वविद्यालय का संस्थापक
माना जाता था—
उत्तर: रूपक
68. कालीदास की कौन- सी कृति की गिनती विश्व की सर्वाधिक प्रसिद्ध 100कृतियों में की जाती हैं—
उत्तर: अभिज्ञान शाकुंतलम्
69. गणित की दशमलव प्रणाली के अविष्कार का श्रेय किसे दिया जाता है—
उत्तर: मौर्य युग को

70. किस विद्धान ने गणित को एक पृथक विषय के रूप में स्थापित
किया—
आर्यभट्ट

71. पालघाट मणि अय्यर प्रसिद्ध वादक थे—
उत्तर : मृदंगम के
72. गांधार शैली का संबंध है—
उत्तर : मूर्तिकला
73. सांची के स्तूप किसकी कला तथा मूर्तिकला को निरूपित करते हैं —
उत्तर : बौद्धों की

74. `दयाभाग’ का लेखक कौन था —
उत्तर : जीमूतवाहन
75. `हिन्दी दिवस’ कब मनाया जाता है —
उत्तर : 14 सितम्बर
76. मुहम्मद पैगम्बर के जन्म दिवस पर कौन-सा पर्व मनाया जाता है—
उत्तर : ईद-ए-मिलादुलनवी
77. `खालसा पंथ’ की स्थापना की गयी थी—
उत्तर : गुरू गोविन्द सिंह
78. तीर्थस्थल `कामाख्या’ किस राज्य में है —
उत्तर : असम
79. ताँबे के सिक्के जारी करने वाला प्रथम गुप्त शासक कौन था—
उत्तर: रामगुप्त
80. मिहिरकूल का संबंध किससे था —
उत्तर: हूण से

81. कौन-से गुप्त राजा ने विक्रमाद्वित्य की उपाधि ग्रहण की थी—
उत्तर: चंद्रगुप्त II
82. किस गुप्त शासक ने दक्षिण में 12 राज्यों पर विजय प्राप्त कीउत्तर: समुद्रगुप्त ने
83. ‘सर्वराजोच्छेता’ की उपाधि किसने धारण की—
उत्तर: समुद्रगुप्त ने
84. चंद्रगुप्त प्रथम ने गुप्त संवत् की स्थापना कब की—
उत्तर: 319 ई.
85. गुप्त संवत् एवं शक संवत् में कितना अंतर है—
उत्तर: 241 वर्ष
86. किस वंश के शासकों ने चाँदी की मुद्राओं का प्रचलन किया—
उत्तर: गुप्त वंश के शासकों ने
87. गुप्तकाल में प्रमुख शिक्षा केंद्र कौन-से थे—
उत्तर: पाटलिपुत्र, उज्जयिनी
88. गुप्तवंश का अंतिम शासक कौन था—
उत्तर: विष्णुगुप्त
89. ‘सूर्य सिद्धांत’ नामक ग्रंथ किसने लिखा—
उत्तर :आर्यभट्ट ने
90. नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना कब हुई —
उत्तर: 415-454 ई.

91. संगम काल में कितनी रचनाओं का वर्णन है—
उत्तर: 2289
92. संगम काल की प्रसिद्ध रचना कौन सी थी—
उत्तर: तमिल व्याकरण ग्रंथ तोलकाप्पियम
93. ‘तोलकाप्पियम’ की रचना किसने की—
उत्तर: तोल काप्पियर ने
94. चोल वंश का सबसे प्रसिद्ध शासक कौन-था—
उत्तर: करिकाल
95. करिकाल गद्दी पर कब बैठा—
उत्तर: 190 ई. के लगभग
96. किस चोल वंश के शासक ने उद्योग धंधे व कृषिको प्रोत्साहन दिया—
उत्तर: करिकाल ने
97. मानसून की खोज किसने की—
उत्तर: मिस्त्र के नाविक हिप्पालस ने
98. गुप्तकाल की प्रसिद्ध पुस्तक ‘नवनीतकम्’ का संबंध किस क्षेत्र में है—
उत्तर: चिकित्सा के क्षेत्र से
99. चोल काल में सूती वस्त्र उद्योग का प्रमुख कौन-सा था—
उत्तर: उरैयूर
100. सती होने का प्रमाण प्रथम बार कब मिला—
उत्तर: 510 ई

पाटीदार जाति की जानकारी

साहित्यमनीषी डॉ.दयाराम आलोक से इंटरव्यू

गायत्री शक्तिपीठ शामगढ़ मे बालकों को पुरुष्कार वितरण

कुलदेवी का महत्व और जानकारी

ढोली(दमामी,नगारची ,बारेठ)) जाती का इतिहास

रजक (धोबी) जाती का इतिहास

जाट जाति की जानकारी और इतिहास

किडनी फेल (गुर्दे खराब ) की रामबाण औषधि

किडनी फेल रोगी का डाईट चार्ट और इलाज

प्रोस्टेट ग्रंथि बढ़ने से पेशाब रुकावट की कारगर हर्बल औषधि

सिर्फ आपरेशन नहीं ,किडनी की पथरी की १००% सफल हर्बल औषधि

सायटिका रोग की रामबाण हर्बल औषधि

बांछड़ा जाती की जानकारी

नट जाति की जानकारी

बेड़िया जाति की जानकारी

सांसी जाती का इतिहास

हिन्दू मंदिरों और मुक्ति धाम को सीमेंट बैंच दान का सिलसिला

जांगड़ा पोरवाल समाज की गोत्र और भेरुजी के स्थल

रैबारी समाज का इतिहास ,गोत्र एवं कुलदेवियां

कायस्थ समाज की कुलदेवियाँ

सुनार,स्वर्णकार समाज की गोत्र और कुलदेवी

जैन समाज की कुलदेवियों की जानकारी


चारण जाति की जानकारी और इतिहास

डॉ.दयाराम आलोक का जीवन परिचय

मीणा जाति समाज की जानकारी और गौत्रानुसार कुलदेवी

अलंकार परिचय

हिन्दी व्याकरण , विलोम शब्द (विपरीतार्थक शब्द)

रस के प्रकार और उदाहरण

22.10.17

हिन्दी व्याकरण:तत्सम और तद्भव शब्द





तत्सम - तत्सम (तत् + सम = उसके समान) 

आधुनिक भारतीय भाषाओं में प्रयुक्त ऐसे शब्द जिनको संस्कृत से बिना कोई रूप बदले ले लिया गया है!हिन्दी, बांग्ला, मराठी, गुजराती, पंजाबी, तेलुगू कन्नड, मलयालम,सिंहल आदि में बहुत से शब्द संस्कृत से सीधे ले लिए गये हैं क्योंकि ये सभी भाषाएँ संस्कृत से ही जन्मी हैं। तत्सम शब्दों में समय और परिस्थितियों के कारण कुछ परिवर्तन होने से जो शब्द बने हैं उन्हें तद्भव (तत् + भव = उससे उत्पन्न) कहते हैं।
 भारतीय भाषाओं में तत्सम और तद्भव शब्दों का बाहुल्य है। इसके अलावा इन भाषाओं के कुछ शब्द 'देशज' और अन्य कुछ 'विदेशी' हैं। तद्भव - संस्कृत के जो शब्द प्राकृत, अपभ्रंश, पुरानी हिन्दी आदि से गुजरने के कारण आज परिवर्तित रूप में मिलते हैं, वे तद्भव शब्द कहलाते हैं। तद्भव हिन्दी की एक पत्रिका है। यह पत्रिका हर बार आधुनिक रचनाशीलता पर केन्द्रित एक विशिष्ट संचयन होती है तथा विशुद्ध साहित्यिक सामग्रियों को प्रकाशन में महत्व देती है। ये हिन्दी में प्रयुक्त वो शब्द हैं जिनका जन्म संस्कृत या प्राकृत में हुआ था, लेकिन उनमें काफ़ी ऐतिहासिक बदलाव आया है।
 आभीर -- अहेर धन्नश्रेष्ठी -- धन्नासेठी धैर्य -- धीरज धूम -- धुँआ दंत -- दाँत दद्रु -- दाद दिषांतर -- दिषावर धर्म -- धरम नृत्य -- नाच निर्वाह -- निवाह निम्ब -- नीम नकुल -- नेवला नयन -- नैन नव -- नौ स्नेह -- नेह पक्ष -- पख पथ -- पंथ 
    परीक्षा -- परख पार्ष्व -- पड़ोसी पृष्ठ -- पीठ पुष्कर -- पोखर पूर्ण -- पूरा पंचम -- पाँच पौष -- पूस पूर्व -- पूरब पंचदष -- पंद्रह पक्षी -- पंछी पक्क -- पका पट्टिका -- पाटी प्रकट -- प्रगट वाणिक -- बनिया दौहित्र -- दोहिता देव -- दई पवन -- पौन प्रिय -- पिय पुच्छ -- पूंछ पर्पट -- पापड़ वक -- बगुला बंध्या -- बाँझ वधू -- बहू वंष -- बाँस वद्ध -- बुड्ढ़ा भगिनी -- बहन द्वादष -- बारह विष्ठा -- बींट 
   वृष्चिक -- बिच्छु दीप -- दीया द्विवर -- देवर
    वीण -- वीना रक्षा -- राखी रज्जु -- रस्सी राषि -- रास रिक्त -- रीता लज्जा -- लाज लौहकार -- लुहार लवणता -- लुनाई लेपन -- लीपना सर्सप -- सरसों श्रावण -- सावन लक्ष्मण -- लखन शर्करा -- शक्कर सपत्नी -- सौत स्वर्णकार -- सुनार शूकर -- सुअर शाप -- श्राप
    विकार -- विगाड़ भक्त -- भगत भद्र -- भला भ्रात्जा -- भतीजी भिक्षा -- भीख भ्रमर -- भौरां भ्रू -- भौं भस्म -- भस्मि मित्र -- मीत मेध -- मेह मृत्यु -- मौत मयूर -- मोर मुषल -- मूसल नम्र -- नरम नासिका -- नाक फणि -- फण पद्म -- पदम परखः -- परसों पाष -- फंदा पुहुप -- पुष्प प्रस्वेद -- पसीना 
   मनुष्य -- मानुस महिषि -- भैस मार्ग -- मारग मृत -- घट्ट/मरघट मरीच -- मिर्च रूदन -- रोना ऋक्ष -- रीछ शैया -- सेज शुष्क -- सूखा शृंग -- सींग शिक्षा -- सीख हस्ती -- हाथी हट्ट -- हाट होलिका -- होली हृदय -- हिय हंडी -- हाँड़ी वचन -- बचन व्यथा -- विथा शुक -- सुआ वर्षा -- बरसात विधुत -- बिजली श्याली -- साली श्मषान -- मसान सर्प -- साँप यषोदा -- जसोदा मस्तक -- माथा मुख -- मुँह आर्य -- आरज अनार्य -- अनाड़ी आश्विन -- आसोज आश्चर्य -- अचरज अक्षर -- अच्छर अगम्य -- अगम अक्षत -- अच्छत

    
अक्षय -- आखा अष्टादश -- अठारह अग्नि -- आग आम्रचूर्ण -- अमचूर आमलक -- आँवला अमूल्य -- अमोल अंगुलि -- अँगुरी अक्षि -- आँख अर्क -- आक अट्टालिका -- अटारी अशीति -- अस्सी ईर्ष्या -- ईर्षा उज्ज्वल -- उजला उद्वर्तन -- उबटन 
    उत्साह -- उछाह ऊषर -- ऊसर उलूखल -- ओखली उच्छवास -- उसास किरण -- किरन कटु -- कड़वा कपर्दिका -- कौड़ी कर्तव्य -- करतब कंकण -- कंगन कुपुत्र -- कपूत काष्ठ -- काठ कृष्ण -- किसन कार्तिक -- कातिक कार्य -- कारज कर्म -- काम किंचित -- कुछ कदली -- केला कुक्षि -- कोख केवर्त -- केवट क्षीर -- खीर 
   क्षेत्र -- खेत गायक -- गवैया गर्दभ -- गधा ग्रंथि -- गाँठ गोधूम -- गेहूँ ग्रामीण -- गँवार गोमय -- गोबर गृहिणी -- घरनी धृत -- घी चंद्र -- चाँद चंडिका -- चाँदनी चित्रकार -- चितेरा चतुष्पद -- चौपाया चैत्र -- चैत छिद्र -- छेद यमुना -- जमुना यज्ञोपवीत -- जनेऊ ज्येष्ठ -- जेठ जामाता -- जवाई जिह्वा -- जीभ ज्योति -- जोत यव -- जौ दंष्ट्रा -- दाढ़ तपस्वी -- तपसी त्रीणि -- तीन तुंद -- तोंद स्तन -- धन दधि -- दही दंत धावन -- दातुन 
दीपशलाका -- दीया सलाई
    दीपावली -- दीवाली दृष्टि -- दीठि दूर्वा -- दूब दुग्ध -- दूध द्विप्रहरी -- दुपहरी धरित्री -- धरती धूम -- धुंआ नक्षत्र -- नखत नापित -- नाई निष्ठुर -- निठुर निद्रा -- नींद नयन -- नैन पर्यंक -- पलंग प्रहर -- पहर पंक्ति -- पंगत पक्वान्न -- पकवान पाषाण -- पाहन प्रतिच्छाया -- परछाई पत्र -- पत्ता फाल्गुन -- फागुन वज्रांग -- बजरंग वल्स -- बच्चा/बछड़ा वरयात्रा -- बरात बलीवर्द -- वैल बली वर्द -- वींट विवाह -- ब्याह व्याघ्र -- बाघ भक्त -- भगत 
    भिक्षुक -- भिखारी बुभुक्षित -- भूखा भाद्रपद -- भादौं मक्षिका -- मक्खी मशक -- मच्छर मिष्टान्न -- मिठाई मौक्तिक -- मोती मर्कटी -- मकड़ी मश्रु -- मूँछ राजपुत्र -- राजपूत लौह -- लोहा लवंग -- लौंग लोमशा -- लोमड़ी सप्तशती -- सतसई स्वप्न -- सपना साक्षी -- साखी सौभाग्य -- सुहाग श्वसुर -- ससुर श्यामल -- साँवला श्रेष्ठी -- सेठी शृंगार -- सिंगार हरिद्रा -- हल्दी हास्य -- हँसी
    एला -- इलायची नारिकेल -- नारियल वट -- बड़ अमृत -- अमिय वधू -- बहू अगाणित -- अनगणित अंचल -- आँचल अँगरखा -- अंगरक्षक अज्ञान -- अजान अन्यत्र -- अनत अंधकार -- अँधेरा आषिष् -- असीस अमृत -- अमीय अमावस्या -- अमावस अर्पण -- अरपन अंगुष्ट -- अँगूठा आश्रय -- आसरा अद्य -- आज अर्द्ध -- आधा आलस्य -- आलस अखिल -- आखा अंक -- आँक अम्लिका -- इमली आदित्यवार -- इतवार इक्षु -- ईख इष्टिका -- ईंट उत्साह -- उछाह उच्च -- ऊँचा 
   उलूक -- उल्लू एकत्र -- इकट्ठा कच्छप -- कछुआ क्लेष -- कलेष कर्ण -- कान कज्जल -- काजल कंटक -- काँटा कुमार -- कुँअर कुक्कुर -- कुत्ता कुंभकार -- कुम्हार कष्ठ -- कोढ़ कपाट -- किवाड़ कोष्ठ -- कोठा कूप -- कुआँ कर्पट -- कपड़ा कर्पूर -- कपूर 
  कपोत -- कबूतर कास -- खाँसी क्रूर -- कूर गोस्वामी -- गुसाई गोंदुक -- गेंद ग्राम -- गाँव गोपालक -- ग्वाला गृह -- घर घटिका -- घड़ी गर्मी -- घाम चर्वण -- चबाना चिक्कण -- चिकना चूर्ण -- चूरन चक -- चाक चतुर्विंष -- चौबीस क्षति -- छति छाया -- छाँह क्षीण -- छीन क्षत्रिय -- खत्री खटवा -- खाट यज्ञ -- जग/जज्ञ जन्म -- जनम यति -- जति यूथ -- जत्था जंधा -- जाँध 
   युक्ति -- जुगति ज्योति -- जोत झरन -- झरना जीर्ण -- झीना दंष -- डंका ताम्र -- ताँबा तीक्ष्ण -- तीखा तृण -- तिनका तीर्थ -- तीरथ त्वरित -- तुरंत त्रयोदष -- तेरह स्थल -- थल स्थिर -- थिर द्विपट -- दुपट्टा दुर्बल -- दुबला दुःख -- दुख द्वितीय -- इजा दक्षिण -- दाहिना धूलि -- धूरि धुर् -- धुर


परशुराम जी ने किसलिए 21 बार क्षत्रियों का संहार किया ?






देवता और ब्राह्मण आदि का पालन करने वाले श्रीहरि ने जब देखा की भूमंडल के क्षत्रिय उद्धत स्वभाव के हो गए हैं तो वे उन्हें मारकर पृथ्वी का भार उतारने और सर्वत्र शांति स्थापित करने के लिए जमदग्नि के अंश द्वारा रेणुका के गर्भ से अवतरित हुए
भृगु नंदन परशुराम शस्त्र विद्या के पारंगत विद्वान थे उन दिनों कृतवीर्य का पुत्र राजा अर्जुन भगवान दत्तात्रेय की कृपा से हजार बांहे पाकर समस्त भूमंडल पर राज्य करता था एक दिन वह वन में शिकार खेलने के लिए गया।
वहां वह बहुत थक गया। उस समय जमदग्नि मुनि ने उसे अपने आश्रम पर निमंत्रित किया और कामधेनु के प्रभाव से सब को भोजन कराया राजा ने मुनि से कामधेनु को अपने लिए मांगा किंतु उन्होंने देने से इनकार कर दिया।
तब राजा ने बलपूर्वक मुनि से कामधेनु को छीन लिया यह समाचार पाकर परशुराम जी ने हैहयपुरी में जाकर उसके साथ युद्ध किया और अपने फरसे से उसका मस्तक काट कर उसे रणभूमि में मार गिराया फिर वह कामधेनु को अपने साथ लेकर अपने आश्रम लौट आए एक दिन परशुराम जी जब वन में गए हुए थे तो कृतवीर्य के पुत्रों ने आकर अपने पिता के बेर का बदला लेने के लिए जमदग्नि मुनि को मार डाला। जब परशुराम जी लौटकर आए तो अपने पिता को मारा गया देख उनके मन में बड़ा क्रोध हुआ। तब उन्होंने 21 बार समस्त भूमंडल के क्षत्रियों का संहार किया।फिर कुरुक्षेत्र में 5 कुंड बनाकर वही उन्होंने अपने पितरों का तर्पण किया और सारी पृथ्वी कश्यप मुनि को दान देकर वें महेंद्र पर्वत पर रहने के लिए चले गए।

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