त्रेतायुग में राक्षसों का बहुत आतंक था। जब भी कोई ऋषि यज्ञ करते तो राक्षस आकर उनके यज्ञ कुंड में मांस के टुकड़े, रक्त डाल देते। ऋषि जब परेशान हो गए तब वह वरिष्ठ ऋषि विश्वामित्र के पास पहुंचे।
उस समय ऋषि विश्वामित्र अयोध्या के राजकुमारों प्रभु श्रीराम और लक्ष्मण को आयुध शिक्षा दे रहे थे। उन्होंने ऋषियों से कहा, 'आप अपना यज्ञ कीजिए हम आपके यज्ञ की रक्षा करेंगे।
इस तरह वो दोनों युगल राजकुमार यक्ष की रक्षा करने लगे और ऋषि अपने यज्ञ को पूरा करने लगे। लेकिन तभी वहां एक विशाल शरीर और कुरूप चेहरे वाली एक राक्षसी ताड़का आई। आनंद रामायण के अनुसार ताड़का पहले एक सुंदर अप्सरा थी। वह सुकेतु यक्ष की पुत्री थी।
लेकिन एक बार जब उसने तप करते हुए ऋषि अगस्त्य को सताया, तब उनके शाप से वह कुरूप राक्षसी ताड़का बन गई। उससे एक राक्षस से विवाह भी किया। जिससे उसके दो पुत्र मारीच और सुबाहु हुए
ऋषि अगस्त्य ने ताड़का से कहा था, 'जब त्रेतायुग में श्रीराम आएंगे। उनके तीर से तुम्हारे प्राण निकलेंगे। तभी तुम्हारा उद्धार होगा। उसी समय तुम्हारा शरीर दिव्य रूप धारण कर स्वर्ग की ओर प्रस्थान करेगा।'
प्रभु श्रीराम ने एक ही तीर में ताड़का को मार दिया। इसके बाद ताड़का सुंदर अप्सरा के रूप में बदल गई। उसने प्रभु को प्रणाम किया और स्वर्ग की ओर चली गई। इसके बाद प्रभु श्रीराम अपने अनुज और गुरु के साथ आगे की ओर गए।
जहां उन्हें मारीच से हुई। वह भी ऋषियों को यज्ञ करते समय परेशान कर रहा था। प्रभु राम के एक बाण से ही मारीज चार सौ कोस दूरी पर चला गया। वहीं उन्होंने दूसरी बाण में सुबाहु को भी मार दिया।
इस तरह विश्वामित्र के सानिध्य में उन्होंने राक्षसों को परेशान करने वाले दैत्यों का सर्वनाश कर उनका विश्वास और ऋषियों का आशीर्वाद लिया।
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