कविता – 1953 ई.से प्रारंभ
नयी कविता अनेक अर्थों में प्रयोगवाद का विकास मानी जाती है। उसने प्रयोग की अनेक उपलब्धियों को आत्मसात् किया है। ऐतिहासिक दृष्टि से नयी कविता ’दूसरा सप्तक’ (1951) के बाद की कविता को कहा जाता है।
जहाँ तक ’नयी कविता’ के नामकरण का प्रश्न है तो ’नई कविता’ नाम भी अज्ञेय द्वारा ही दिया गया है। सन् 1952 ई. में पटना रेडियो से उन्होंने इसकी घोषणा की थी।
लक्ष्मीकांत वर्मा के अनुसार नयी कविता(nayi kavita) मूलतः 1953 ई. में ’नये पत्ते’ के प्रकाशन के साथ विकसित हुई
जगदीश गुप्त तथा रामस्वरूप चतुर्वेदी के संपादन में प्रकाशित होने वाले संकलन ’नई कविता’ (1954 ई.) में सर्वप्रथम अपने समस्त संभावित प्रतिमानों के साथ प्रकाश में आयी।
1954 ई. में प्रयाग के ’साहित्य सहयोग’ नामक सहकारी संस्थान ने नयी कविता का प्रकाशन किया। इसी नई काव्यधारा को उन प्रतिमानों को लेकर विकसित किया गया, जो तत्कालीन भाव-बोध को वहन करते हुए सर्वथा नयी दृष्टि के साथ अवतरित हो रहे थे। नयी कविता(nayi kavita) का मूल स्रोत उस युग-सत्य और युग यथार्थ में निहित है।
प्रयोगवाद के अनेक कवियों ने प्रयोग को ही कविता का साध्य मान लिया इसलिए 1950 ई. के बाद एक समय प्रयोगवादी कहे जाने वाले कवियों ने ही प्रयोगवाद को नयी कविता की उदार और सहज अन्तर्धारा में विलयित कर दिया।
नयी कविता ने स्वातंत्र्योत्तर भारतीय जीवन आौर व्यक्ति की संश्लिष्ट जीवन-परिस्थितियों का रचनात्मक साक्षात्कार किया।
नयी कविता की विशेषताएँ/ प्रवृतियाँ – Characteristics of a nayi kavitaयथार्थ के प्रति उन्मुक्त दृष्टि
अहं के प्रति सजगता और व्यक्तित्व की खोज
नयी कविता लघुमानव की अवधारणा का सूत्रपात करती है।
नयी कविता आधुनिक भावबोध की कविता है।
निरर्थकता बोध आधुनिक भावबोध की एक स्थिति है।
अभिव्यक्ति की स्वछंद प्रवृत्ति।
आधुनिक यथार्थ से द्रवित व्यंग्यात्मक दृष्टि
क्षणवाद
नई कविता में चार तत्त्व प्रमुख हैं –वर्जना और कुंठा से मुक्ति
क्षणवाद
अनुभूति की सच्चाई
बुद्धिमूलक यथार्थवादी दृष्टि
नई कविता की प्रमुख कवि एवं रचनाएँ
सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ’अज्ञेय’
भग्नदूत (1933), चिन्ता (1942), इत्यलम् (1946),
हरी घास पर क्षण भर (1949), बावन अहेरी (1954), इंद्रधनुष रौदे हुए थे (1957), अरी ओ करुणा प्रभामय (1959), आँगन के पार द्वार (1961), पूर्वा (1965), सुनहले शैवाल (1966), कितनी नावों में कितनी बार (1967), क्योंकि मैं उसे जानता हूँ (1969), सागर मुद्रा (1970), पहले मैं सन्नाटा बुनता हूँ (1973), महावृक्ष के नीचे (1977), नदी की बाँक छाया (1981), ऐसा कोई घर आपने देखा है (1986)।
प्रमुख कविताएँ – (1) असाध्यवीणा, (2) कलगी बाजरे की, (3) साँप (4) नदी के द्वीप (5) यह दीप अकेला।
गजानन माघव ’मुक्तिबोध’
(1) चाँद का मुँह टेढ़ा है (1964), (2) भूरि-भूरि खाक
धूल (1980 ई.)
प्रमुख कविताएँ-अंधेरे में, ब्रह्मराक्षस, अंतःकरण का आयतन आदि।
गिरिजा कुमार माथुर
(1) मंजीर (1941), (2) नाश और निर्माण (1946), (3) धूप के धान, (4) शिला पंख चमकीले (5) छाया मत छूना, (6) भीतरी नदी की यात्रा (1975), (7) अभी कुछ और (8) साक्षी रहे वर्तमान, (9) पृथ्वी कल्प
प्रभाकर माचवे
(1) मेपल (2) स्वप्नभंग, (3) अनुक्षण।
भारतभूषण अग्रवाल
(1) छवि के बंधन (2) जागते रहो (3) मुक्ति मार्ग (4) ओ अप्रस्तुत मन (5) अनुपस्थिति लोग (6) कागज के फूल (7) उतना वह सूरज है (8) अग्निलीक (1976)
शमशेर बहादुर सिंह
(1) कुछ कविताएँ (1959), (2) कुछ और कविताएँ (1961), (3) चुका भी हूँ मैं नहीं (1975), (4) इतने अपने आप (1980), (5) उदिता अभिव्यक्ति का संघर्ष (1980), (6) बातें बोलेगी (1981), (7) काल तुमसे होङ है मेरी (1988), (8) कहीं बहुत दूर से सुन रहा हूँ (1995), (9) सुकून की तलाश (1998)।
केदारनाथ सिंह
(1) अभी बिल्कुल अभी (1976), (2) जमीन पक रही है (1976), (3) अकाल में सारस (1976), (4) यहाँ से देखो (2005), (5) बाघ (2005), (6) उत्तर कबीर और अन्य कविताएँ (2005), तालस्टाय और साईकिल (1995)।
कुँवर नारायण
(1) चक्रव्यूह (1956), (2) परिवेश हम-तुम (1961), (3) आमने-सामने (1979), (4) कोई दूसरा नहीं (1993), (5) आत्मजयी (प्रबन्धकाव्य, 1965), (6) वाजश्रवा के बहाने (प्रबंध काव्य 2008), (7) इन दिनों (2002)।
भवानी प्रसाद मिश्र
(1) गीत फरोश (1953), (2) चकित है दुःख (1968), (3) अंधेरी कविताएँ (1968), (4) गांधी पंचशती (1969), (5) बुनी हुई रस्सी (1971), (6) खुशबू के शिलालेख (1973), (7) व्यक्तिगत (1973), (8) अंतर्गत (1979), (9) अनाम तुम आते हो (1979), (10) परिवर्तन जिए (1976), (11) इद्नमम् (1977), (12) त्रिकाल संध्या (1978), (13) शरीर, कविता, फसलें और फूल (1980), (14) मानसरोवर दिन (1981), (15) सम्प्रति (1982), (16) नीली रेखा तक (1984), (17) तूस की आग (1985), (18) कालजयी (खण्ड काव्य-1980)
प्रमुख कविताएँ- (1) कमल के फूल (2) सतपूङा के जंगल (3) वाणी की दीनता, (4) गीत फरोश (5) टूटने का सुख।
रामविलास शर्मा
(1) रूप तरंग (1956), (2) सदियों के सोए जाग उठे (1988), (3) बुद्ध वैराग्य तथा प्रारंभिक कविताएँ (1997)।
रघुवीर सहाय
(1) सीढ़ियों पर धूप में (1960), (2) आत्महत्या के विरुद्ध (1967), (3) हँसी हँसी जल्दी हँसो (1975), (4) लोग भूल गए हैं (1982), (5) कुछ पते कुछ चिट्ठियाँ (1989), (6) एक समय था।
विजयदेव नारायण साही
(1) साखी (2) मछलीघर (3) संवाद तुमसे।
हरिनारायण व्यास
(1) मृग और तृष्णा, (2) त्रिकोण पर सूर्याेदय, (3) बरगद के चिकने पत्ते।
नरेश मेहता
(1) वन पाखी सुनो (1957), (2) बोलने दो चीङों को (1961), (3) मेरा समर्पित एकांत (1963), (4) पिछले दिनों नंगे पेरों, (5) चैत्या, (6) उत्सवा (1979), (7) संशय की एक रात (प्रबंध काव्य-1962), (8) महाप्रस्थान (1964), (9) प्रवाद पर्व (1977), (10) शबरी (1977), (11) अरण्य, (12) आखिरी समुद्र से तात्पर्य, (13) प्रार्थना पुरुष (1985)।
सर्वेश्वर दयाल सक्सेना
(1) काठ की खंटियाँ (1959), (2) बाँस का पुल (1963), (3) एक सूनी नाव (1966), (4) गर्म हवाएँ (1966), (5) कुआनी नदी (1973), (6) जंगल का दर्द (1976), (7) खूँटियों पर टंगे लोग (1982), (8) क्या कहकर पुकारूँ (9) कोई मेरे साथ चले।
धर्मवीर भारती
(1) ठण्डा लोहा (1952), (2) अंधा युग (1955), (3) कनुप्रिया (1957), (4) सात गीत वर्ष (1957), (5) देशांतर।
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उपर्युक्त कवियों से संबंधित महत्त्वपूर्ण तथ्य:
⇒ अज्ञेय अस्तित्ववाद में आस्था रखने वाले कवि है।
⇒ ’असाध्यवीणा’ अज्ञेय की प्रमुख कृति है, इसका मूल भाव ’अहं का विसर्जन’ ’समर्पण की भावना’ है। इसका कथानक चीनी-जापानी कथा ओकाकुरा से प्रभावित है।
नदी के द्वीप में व्यक्ति, संस्कृति और समाज तीनों के अस्तित्व की बात की गई है।
नदी के द्वीप के प्रतीकद्वीप – व्यक्ति/शिशु
नदी – परंपरा/माँ
भूखण्ड – समाज/पिता
⇒ मुक्तिबोध की ’अंधेरे में’ कविता का प्रथम प्रकाशन ’कल्पना’ पत्रिका में 1964 में ’आशंका के द्वीप’ ’अंधेरे में’ नाम से हुआ।
⇒ मुक्तिबोध ने ’अंधेरे में’ कविता की रचना फैंटेसी में की है।
शमशेर बहादुर सिंह के अनुसार –
’’यह कविता देश के आधुनिक जन इतिहास का स्वतंत्रता पूर्व और पश्चात् का एक दहकता इस्पाती दस्तावेज है।’’
नामवर सिंह के अनुसार ’अंधेरे में’ कविता ’अस्मिता की खोज’ है।
रामविलास शर्मा ने ’अंधेरे में’ कविता को ’आरक्षित जीवन की कविता’ कहा है।
रामस्वरूप चतुर्वेदी ने लिखा है-’चाँद का मुँह टेढ़ा है’ एक बङे कलाकार की स्कैच-बुक लगता है।’
⇒ मुक्तिबोध पर टालस्टाय, बर्ग साॅ और माक्र्सवाद का स्पष्ट प्रभाव है।
⇔ शमशेर बहादुर को मलजय ने ’मूड्स का कवि’ कहा है।
⇒ शमशेर बहादुर सिंह के अनुसार – ’टेक्नीक में एजरा पाउंड शायद मेरा सबसे बङा आदर्श बन गया था।’
⇔ रामचन्द्र तिवारी ने शमशेर बहादुर के गद्य को ’हिन्दी का जातीय गद्य’ कहा है।
⇒ भवानी प्रसाद मिश्र को ’सहजता का कवि’ कहा जाता है।
⇔ भवानी प्रसाद मिश्र को ’हिन्दी कविता का गांधी’ कहा जाता है।
प्रयोगवादी/नई कविता के प्रमुख कवियों की महत्त्वपूर्ण काव्य पंक्तियाँ –
यह दीप अकेला स्नेह भरा
है गर्व भरा मदमाता
पर इसको भी पंक्ति दे दो
किन्तु हम हैं द्वीप।
हम धारा नहीं है,
स्थिर समर्पण है हमारा हम सदा से द्वीप है स्त्रोतास्विनी के।
साँप! तुम सभ्य तो हुए नहीं
नगर में बसना भी तुम्हें नहीं आया
तब कैसे सीखा डँसना-विष कहाँ पाया
मौन भी अभिव्यक्ति है
जितना तुम्हारा सच है
उतना ही कहो
भोर का बाबरा अहेरी
पहले बिछाता है आलोक को
लाल-लाल कनिया
वही परिचित दो आँखे ही
चिर माध्यम है
सब आँखों से सब दर्दों से
मेरे लिए परिचय का
ये उपनाम मैले हो गये हैं
देवता इन प्रतीकों से कर गए है कूच
एक तीक्ष्ण अपांग से कविता उत्पन्न हो जाती है
एक चुंबन से प्रणय फलीभूत हो जाता है।
’मुझे स्मरण है
और चित्र/प्रत्येक स्तब्ध, विजङित करता है मुझे
सुनता हूँ मैं
आ, मुझे भुला
तू उतर बीन के तारों में
अपने से गा/अपने को गा
अपने खग कुल को मुखरित कर
राजकुमुट सहसा हलका हो आया था
मानो हो फूल सिरिस का
ईष्र्या, महत्त्वकांक्षा, द्वेष, चाटुता
सभी पुराने झङ गये
हरी तलहटी में, छोटे की ओट, ताल पर
बंधे समय, वन-पशुओं की नानाविध
आतुर-तृप्त पुकारे
गर्जन, धुर्धर, चीख, भूँक, हुक्का
चिचिराहट है
मुक्तिबोध
मुझे भ्रम होता है कि प्रत्येक वाणी में महाकाव्य-पीङा है।
ओ मेरे आदर्शवादी मन
ओ मरे सिद्वान्तवादी मन
बहुत-बहुत ज्यादा लिया
दिया बहुत-बहुत कम
मर गया देश, अरे, जीवित रह गए तुम
अब अभिव्यक्ति के सारे खतरे, उठाने होंगे
तोङने होगें मठ और गढ़ सभी
कविता कहने की आदत नहीं, पर कह दूँ
वर्तमान समाज चल नहीं सकता
पूँजी से जुङा हुआ हृदय बदल नहीं सकता
खोजता हूँ पठार, पर्वत, समुद्र
जहाँ मिल सके मुझे
मेरी वह खोई हुई
परम अभिव्यक्ति अनिवार
आत्म-संभवा।
शमशेर बहादुर सिंह
एक पीली शाम
पतझर का जरा अटका हुआ पत्ता
बात बोलेगी, हम नहीं
भेद खोलेगी, बात ही
चूका भी हूँ मैं नहीं
कहाँ किया मैंने प्रेम अभी
घिर आया समय का रथ कहीं
ललिता से मढ़ गया है राग।
हाँ, तुम मुझसे प्रेम करो
जैबे मछलियाँ लहरों से करती है।
दोपहर बाद की धूप-छाँह में खङी
इंतजार की ठेलेगाङियाँ
जैसे मेरी पसलियाँ
खाली बोरे सूजों से रफू किये जा रहे हैं।
भूलकर जब राह-जब जब राह भटका मैं
तुम्हीं झलके हो महाकवि
सघन तम की आँख बन मेरे लिए।
भवानी प्रसाद मिश्र
जी हाँ हुजूर, मैं गीत बेचता हूँ
मैं तरह-तरह के गीत बेचता हूँ
मैं किसिम किसिम के गीत बेचता हूँ।
सतपुङा के घने जंगल
नींद में डूबे हुए से
उँघते अनमने जंगल।
टुटने का सुख
बहुत सारे बंधनों को आज झटका लग रहा है
टूट जायेंगे कि मुझको आज खटका लग रहा है।
फूल लाया हूँ कमल के
क्या करूँ इनका
छोङ दूँ
हो जाए जी हल्का
रघुवीर सहाय
राष्ट्रगान में भला कौन वह भारत भाग्य विधाता है
फटा सुथन्ना पहले, जिसका गुन हरचरना गाता है
मैं अपनी एक मूर्ति बनाता हूँ
और एक ढ़हाता हूँ
और आप कहते हैं कि कविता की है।
कितना अच्छा था छायावाद
एक दुःख लेकर वह गान देता था
कितना कुशल था प्रगतिवादी
हर दुःख का कारण पहचान लेता था
खबर हमको पता है हमारा आतंक है
हमने बनाई है
फिर वो लिखते हैं
खबर वातानुकूलित कक्ष में तय कर रही होगी
करेगा कौन रामू के तले की भूमि पर कब्जा
लोग भूल जाते हैं
अत्याचारी का चेहरा मुस्काने पर
भीङ में मैल खोरी गंध मिली
⇔भीङ में आदिम मूर्खता की गंध मिली
भीङ में नहीं मिली मुझे मेरी गंध
क्रांतिकारी लेखक को आशा है
कि औरों पर उसका अविश्वास
उसको तो उसके जीवन में
एक बङा आदमी बना देगा।
सर्वेश्वर दयाल सक्सेना
लोकतंत्र को जूते की तरह
लाठी में लटकाए
भागे जा रहे हैं सभी
सीना फुलाए
मैं नया कवि हूँ
इसी से जानता हूँ
सत्य की चोट बहुत गहरी होती हे
लीक पर चले जिनके
चरण दुर्बल और हारे हैं
हमें तो हमारी यात्रा से बने
ऐसे अनिर्मित पंथ प्यारे हैं
केदार नाथ सिंह
मैंने जब भी सोचा
मुझे रामचन्द्र शुक्ल की मूँछे याद आई
मैं पूरी ताकत के साथ
शब्दों को फेंकना चाहता हूँ।
साठोत्तरी कविता
सन् 1960 ई. के बाद लघु पत्रिकाओं की बाढ़ आ गई तथा प्रत्येक लघु पत्रिका की छत्रछाया में कोई-न-कोई नये वाद अथवा काव्यान्दोलन पनपने लगे। जो आन्दोलन अपेक्षाकृत अधिक स्थिर एवं सुदृढ़ हो पाए, वे निम्न हैं –
⇒ निषेध मूलक
⇔संघर्ष मूलक
⇒ आस्थामूलक
निषेधमूलक वर्ग में उन काव्यान्दोलनों को समाहित किया जाता है, जिन्हांेने परंपरागत सामाजिक, नैतिक और सांस्कृतिक मूल्यों का निषेध करते हुए घोर व्यक्तिवाद, उच्शृंखल यौनवाद एवं नग्न भोगवाद को प्रश्रय दिया।
संघर्ष मूलक वर्ग के आन्दोलनों में सामाजिक, आर्थिक, एवं राजनीतिक परिस्थितियों के प्रति असंतोष तथा आक्रोश व्यक्त करते हुए उनके विरोध में संघर्ष का आह्वान किया गया।
आस्थामूलक वर्ग के आन्दोलनों में परंपरागत मूल्यों को स्वीकारते हुए उनकी पुनः प्रतिष्ठा पर जोर दिया गया।
प्रमुख काव्यांदोलन एवं प्रवर्तक
काव्यांदोलन प्रवर्तक
अकविता श्याम परमार
बीट पीढ़ी राजकमल चौधरी
अस्वीकृत कविता श्रीराम शुक्ल
आज की कविता हरीश मादानी
प्रतिबद्ध/वाम कविता डाॅ. परमानन्द श्रीवास्तव
सहज कविता डाॅ. रवीन्द्र भ्रमर
ताजी कविता लक्ष्मीकांत वर्मा
समकालीन कविता डाॅ. विशम्भरनाथ उपाध्याय
कैप्सूल/सूत्र कविता डाॅ. ओंकारनाथ त्रिपाठी
नयी कविता अनेक अर्थों में प्रयोगवाद का विकास मानी जाती है। उसने प्रयोग की अनेक उपलब्धियों को आत्मसात् किया है। ऐतिहासिक दृष्टि से नयी कविता ’दूसरा सप्तक’ (1951) के बाद की कविता को कहा जाता है।
जहाँ तक ’नयी कविता’ के नामकरण का प्रश्न है तो ’नई कविता’ नाम भी अज्ञेय द्वारा ही दिया गया है। सन् 1952 ई. में पटना रेडियो से उन्होंने इसकी घोषणा की थी।
लक्ष्मीकांत वर्मा के अनुसार नयी कविता(nayi kavita) मूलतः 1953 ई. में ’नये पत्ते’ के प्रकाशन के साथ विकसित हुई
जगदीश गुप्त तथा रामस्वरूप चतुर्वेदी के संपादन में प्रकाशित होने वाले संकलन ’नई कविता’ (1954 ई.) में सर्वप्रथम अपने समस्त संभावित प्रतिमानों के साथ प्रकाश में आयी।
1954 ई. में प्रयाग के ’साहित्य सहयोग’ नामक सहकारी संस्थान ने नयी कविता का प्रकाशन किया। इसी नई काव्यधारा को उन प्रतिमानों को लेकर विकसित किया गया, जो तत्कालीन भाव-बोध को वहन करते हुए सर्वथा नयी दृष्टि के साथ अवतरित हो रहे थे। नयी कविता(nayi kavita) का मूल स्रोत उस युग-सत्य और युग यथार्थ में निहित है।
प्रयोगवाद के अनेक कवियों ने प्रयोग को ही कविता का साध्य मान लिया इसलिए 1950 ई. के बाद एक समय प्रयोगवादी कहे जाने वाले कवियों ने ही प्रयोगवाद को नयी कविता की उदार और सहज अन्तर्धारा में विलयित कर दिया।
नयी कविता ने स्वातंत्र्योत्तर भारतीय जीवन आौर व्यक्ति की संश्लिष्ट जीवन-परिस्थितियों का रचनात्मक साक्षात्कार किया।
नयी कविता की विशेषताएँ/ प्रवृतियाँ – Characteristics of a nayi kavitaयथार्थ के प्रति उन्मुक्त दृष्टि
अहं के प्रति सजगता और व्यक्तित्व की खोज
नयी कविता लघुमानव की अवधारणा का सूत्रपात करती है।
नयी कविता आधुनिक भावबोध की कविता है।
निरर्थकता बोध आधुनिक भावबोध की एक स्थिति है।
अभिव्यक्ति की स्वछंद प्रवृत्ति।
आधुनिक यथार्थ से द्रवित व्यंग्यात्मक दृष्टि
क्षणवाद
नई कविता में चार तत्त्व प्रमुख हैं –वर्जना और कुंठा से मुक्ति
क्षणवाद
अनुभूति की सच्चाई
बुद्धिमूलक यथार्थवादी दृष्टि
नई कविता की प्रमुख कवि एवं रचनाएँ
सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ’अज्ञेय’
भग्नदूत (1933), चिन्ता (1942), इत्यलम् (1946),
हरी घास पर क्षण भर (1949), बावन अहेरी (1954), इंद्रधनुष रौदे हुए थे (1957), अरी ओ करुणा प्रभामय (1959), आँगन के पार द्वार (1961), पूर्वा (1965), सुनहले शैवाल (1966), कितनी नावों में कितनी बार (1967), क्योंकि मैं उसे जानता हूँ (1969), सागर मुद्रा (1970), पहले मैं सन्नाटा बुनता हूँ (1973), महावृक्ष के नीचे (1977), नदी की बाँक छाया (1981), ऐसा कोई घर आपने देखा है (1986)।
प्रमुख कविताएँ – (1) असाध्यवीणा, (2) कलगी बाजरे की, (3) साँप (4) नदी के द्वीप (5) यह दीप अकेला।
गजानन माघव ’मुक्तिबोध’
(1) चाँद का मुँह टेढ़ा है (1964), (2) भूरि-भूरि खाक
धूल (1980 ई.)
प्रमुख कविताएँ-अंधेरे में, ब्रह्मराक्षस, अंतःकरण का आयतन आदि।
गिरिजा कुमार माथुर
(1) मंजीर (1941), (2) नाश और निर्माण (1946), (3) धूप के धान, (4) शिला पंख चमकीले (5) छाया मत छूना, (6) भीतरी नदी की यात्रा (1975), (7) अभी कुछ और (8) साक्षी रहे वर्तमान, (9) पृथ्वी कल्प
प्रभाकर माचवे
(1) मेपल (2) स्वप्नभंग, (3) अनुक्षण।
भारतभूषण अग्रवाल
(1) छवि के बंधन (2) जागते रहो (3) मुक्ति मार्ग (4) ओ अप्रस्तुत मन (5) अनुपस्थिति लोग (6) कागज के फूल (7) उतना वह सूरज है (8) अग्निलीक (1976)
शमशेर बहादुर सिंह
(1) कुछ कविताएँ (1959), (2) कुछ और कविताएँ (1961), (3) चुका भी हूँ मैं नहीं (1975), (4) इतने अपने आप (1980), (5) उदिता अभिव्यक्ति का संघर्ष (1980), (6) बातें बोलेगी (1981), (7) काल तुमसे होङ है मेरी (1988), (8) कहीं बहुत दूर से सुन रहा हूँ (1995), (9) सुकून की तलाश (1998)।
केदारनाथ सिंह
(1) अभी बिल्कुल अभी (1976), (2) जमीन पक रही है (1976), (3) अकाल में सारस (1976), (4) यहाँ से देखो (2005), (5) बाघ (2005), (6) उत्तर कबीर और अन्य कविताएँ (2005), तालस्टाय और साईकिल (1995)।
कुँवर नारायण
(1) चक्रव्यूह (1956), (2) परिवेश हम-तुम (1961), (3) आमने-सामने (1979), (4) कोई दूसरा नहीं (1993), (5) आत्मजयी (प्रबन्धकाव्य, 1965), (6) वाजश्रवा के बहाने (प्रबंध काव्य 2008), (7) इन दिनों (2002)।
भवानी प्रसाद मिश्र
(1) गीत फरोश (1953), (2) चकित है दुःख (1968), (3) अंधेरी कविताएँ (1968), (4) गांधी पंचशती (1969), (5) बुनी हुई रस्सी (1971), (6) खुशबू के शिलालेख (1973), (7) व्यक्तिगत (1973), (8) अंतर्गत (1979), (9) अनाम तुम आते हो (1979), (10) परिवर्तन जिए (1976), (11) इद्नमम् (1977), (12) त्रिकाल संध्या (1978), (13) शरीर, कविता, फसलें और फूल (1980), (14) मानसरोवर दिन (1981), (15) सम्प्रति (1982), (16) नीली रेखा तक (1984), (17) तूस की आग (1985), (18) कालजयी (खण्ड काव्य-1980)
प्रमुख कविताएँ- (1) कमल के फूल (2) सतपूङा के जंगल (3) वाणी की दीनता, (4) गीत फरोश (5) टूटने का सुख।
रामविलास शर्मा
(1) रूप तरंग (1956), (2) सदियों के सोए जाग उठे (1988), (3) बुद्ध वैराग्य तथा प्रारंभिक कविताएँ (1997)।
रघुवीर सहाय
(1) सीढ़ियों पर धूप में (1960), (2) आत्महत्या के विरुद्ध (1967), (3) हँसी हँसी जल्दी हँसो (1975), (4) लोग भूल गए हैं (1982), (5) कुछ पते कुछ चिट्ठियाँ (1989), (6) एक समय था।
विजयदेव नारायण साही
(1) साखी (2) मछलीघर (3) संवाद तुमसे।
हरिनारायण व्यास
(1) मृग और तृष्णा, (2) त्रिकोण पर सूर्याेदय, (3) बरगद के चिकने पत्ते।
नरेश मेहता
(1) वन पाखी सुनो (1957), (2) बोलने दो चीङों को (1961), (3) मेरा समर्पित एकांत (1963), (4) पिछले दिनों नंगे पेरों, (5) चैत्या, (6) उत्सवा (1979), (7) संशय की एक रात (प्रबंध काव्य-1962), (8) महाप्रस्थान (1964), (9) प्रवाद पर्व (1977), (10) शबरी (1977), (11) अरण्य, (12) आखिरी समुद्र से तात्पर्य, (13) प्रार्थना पुरुष (1985)।
सर्वेश्वर दयाल सक्सेना
(1) काठ की खंटियाँ (1959), (2) बाँस का पुल (1963), (3) एक सूनी नाव (1966), (4) गर्म हवाएँ (1966), (5) कुआनी नदी (1973), (6) जंगल का दर्द (1976), (7) खूँटियों पर टंगे लोग (1982), (8) क्या कहकर पुकारूँ (9) कोई मेरे साथ चले।
धर्मवीर भारती
(1) ठण्डा लोहा (1952), (2) अंधा युग (1955), (3) कनुप्रिया (1957), (4) सात गीत वर्ष (1957), (5) देशांतर।
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उपर्युक्त कवियों से संबंधित महत्त्वपूर्ण तथ्य:
⇒ अज्ञेय अस्तित्ववाद में आस्था रखने वाले कवि है।
⇒ ’असाध्यवीणा’ अज्ञेय की प्रमुख कृति है, इसका मूल भाव ’अहं का विसर्जन’ ’समर्पण की भावना’ है। इसका कथानक चीनी-जापानी कथा ओकाकुरा से प्रभावित है।
नदी के द्वीप में व्यक्ति, संस्कृति और समाज तीनों के अस्तित्व की बात की गई है।
नदी के द्वीप के प्रतीकद्वीप – व्यक्ति/शिशु
नदी – परंपरा/माँ
भूखण्ड – समाज/पिता
⇒ मुक्तिबोध की ’अंधेरे में’ कविता का प्रथम प्रकाशन ’कल्पना’ पत्रिका में 1964 में ’आशंका के द्वीप’ ’अंधेरे में’ नाम से हुआ।
⇒ मुक्तिबोध ने ’अंधेरे में’ कविता की रचना फैंटेसी में की है।
शमशेर बहादुर सिंह के अनुसार –
’’यह कविता देश के आधुनिक जन इतिहास का स्वतंत्रता पूर्व और पश्चात् का एक दहकता इस्पाती दस्तावेज है।’’
नामवर सिंह के अनुसार ’अंधेरे में’ कविता ’अस्मिता की खोज’ है।
रामविलास शर्मा ने ’अंधेरे में’ कविता को ’आरक्षित जीवन की कविता’ कहा है।
रामस्वरूप चतुर्वेदी ने लिखा है-’चाँद का मुँह टेढ़ा है’ एक बङे कलाकार की स्कैच-बुक लगता है।’
⇒ मुक्तिबोध पर टालस्टाय, बर्ग साॅ और माक्र्सवाद का स्पष्ट प्रभाव है।
⇔ शमशेर बहादुर को मलजय ने ’मूड्स का कवि’ कहा है।
⇒ शमशेर बहादुर सिंह के अनुसार – ’टेक्नीक में एजरा पाउंड शायद मेरा सबसे बङा आदर्श बन गया था।’
⇔ रामचन्द्र तिवारी ने शमशेर बहादुर के गद्य को ’हिन्दी का जातीय गद्य’ कहा है।
⇒ भवानी प्रसाद मिश्र को ’सहजता का कवि’ कहा जाता है।
⇔ भवानी प्रसाद मिश्र को ’हिन्दी कविता का गांधी’ कहा जाता है।
प्रयोगवादी/नई कविता के प्रमुख कवियों की महत्त्वपूर्ण काव्य पंक्तियाँ –
यह दीप अकेला स्नेह भरा
है गर्व भरा मदमाता
पर इसको भी पंक्ति दे दो
किन्तु हम हैं द्वीप।
हम धारा नहीं है,
स्थिर समर्पण है हमारा हम सदा से द्वीप है स्त्रोतास्विनी के।
साँप! तुम सभ्य तो हुए नहीं
नगर में बसना भी तुम्हें नहीं आया
तब कैसे सीखा डँसना-विष कहाँ पाया
मौन भी अभिव्यक्ति है
जितना तुम्हारा सच है
उतना ही कहो
भोर का बाबरा अहेरी
पहले बिछाता है आलोक को
लाल-लाल कनिया
वही परिचित दो आँखे ही
चिर माध्यम है
सब आँखों से सब दर्दों से
मेरे लिए परिचय का
ये उपनाम मैले हो गये हैं
देवता इन प्रतीकों से कर गए है कूच
एक तीक्ष्ण अपांग से कविता उत्पन्न हो जाती है
एक चुंबन से प्रणय फलीभूत हो जाता है।
’मुझे स्मरण है
और चित्र/प्रत्येक स्तब्ध, विजङित करता है मुझे
सुनता हूँ मैं
आ, मुझे भुला
तू उतर बीन के तारों में
अपने से गा/अपने को गा
अपने खग कुल को मुखरित कर
राजकुमुट सहसा हलका हो आया था
मानो हो फूल सिरिस का
ईष्र्या, महत्त्वकांक्षा, द्वेष, चाटुता
सभी पुराने झङ गये
हरी तलहटी में, छोटे की ओट, ताल पर
बंधे समय, वन-पशुओं की नानाविध
आतुर-तृप्त पुकारे
गर्जन, धुर्धर, चीख, भूँक, हुक्का
चिचिराहट है
मुक्तिबोध
मुझे भ्रम होता है कि प्रत्येक वाणी में महाकाव्य-पीङा है।
ओ मेरे आदर्शवादी मन
ओ मरे सिद्वान्तवादी मन
बहुत-बहुत ज्यादा लिया
दिया बहुत-बहुत कम
मर गया देश, अरे, जीवित रह गए तुम
अब अभिव्यक्ति के सारे खतरे, उठाने होंगे
तोङने होगें मठ और गढ़ सभी
कविता कहने की आदत नहीं, पर कह दूँ
वर्तमान समाज चल नहीं सकता
पूँजी से जुङा हुआ हृदय बदल नहीं सकता
खोजता हूँ पठार, पर्वत, समुद्र
जहाँ मिल सके मुझे
मेरी वह खोई हुई
परम अभिव्यक्ति अनिवार
आत्म-संभवा।
शमशेर बहादुर सिंह
एक पीली शाम
पतझर का जरा अटका हुआ पत्ता
बात बोलेगी, हम नहीं
भेद खोलेगी, बात ही
चूका भी हूँ मैं नहीं
कहाँ किया मैंने प्रेम अभी
घिर आया समय का रथ कहीं
ललिता से मढ़ गया है राग।
हाँ, तुम मुझसे प्रेम करो
जैबे मछलियाँ लहरों से करती है।
दोपहर बाद की धूप-छाँह में खङी
इंतजार की ठेलेगाङियाँ
जैसे मेरी पसलियाँ
खाली बोरे सूजों से रफू किये जा रहे हैं।
भूलकर जब राह-जब जब राह भटका मैं
तुम्हीं झलके हो महाकवि
सघन तम की आँख बन मेरे लिए।
भवानी प्रसाद मिश्र
जी हाँ हुजूर, मैं गीत बेचता हूँ
मैं तरह-तरह के गीत बेचता हूँ
मैं किसिम किसिम के गीत बेचता हूँ।
सतपुङा के घने जंगल
नींद में डूबे हुए से
उँघते अनमने जंगल।
टुटने का सुख
बहुत सारे बंधनों को आज झटका लग रहा है
टूट जायेंगे कि मुझको आज खटका लग रहा है।
फूल लाया हूँ कमल के
क्या करूँ इनका
छोङ दूँ
हो जाए जी हल्का
रघुवीर सहाय
राष्ट्रगान में भला कौन वह भारत भाग्य विधाता है
फटा सुथन्ना पहले, जिसका गुन हरचरना गाता है
मैं अपनी एक मूर्ति बनाता हूँ
और एक ढ़हाता हूँ
और आप कहते हैं कि कविता की है।
कितना अच्छा था छायावाद
एक दुःख लेकर वह गान देता था
कितना कुशल था प्रगतिवादी
हर दुःख का कारण पहचान लेता था
खबर हमको पता है हमारा आतंक है
हमने बनाई है
फिर वो लिखते हैं
खबर वातानुकूलित कक्ष में तय कर रही होगी
करेगा कौन रामू के तले की भूमि पर कब्जा
लोग भूल जाते हैं
अत्याचारी का चेहरा मुस्काने पर
भीङ में मैल खोरी गंध मिली
⇔भीङ में आदिम मूर्खता की गंध मिली
भीङ में नहीं मिली मुझे मेरी गंध
क्रांतिकारी लेखक को आशा है
कि औरों पर उसका अविश्वास
उसको तो उसके जीवन में
एक बङा आदमी बना देगा।
सर्वेश्वर दयाल सक्सेना
लोकतंत्र को जूते की तरह
लाठी में लटकाए
भागे जा रहे हैं सभी
सीना फुलाए
मैं नया कवि हूँ
इसी से जानता हूँ
सत्य की चोट बहुत गहरी होती हे
लीक पर चले जिनके
चरण दुर्बल और हारे हैं
हमें तो हमारी यात्रा से बने
ऐसे अनिर्मित पंथ प्यारे हैं
केदार नाथ सिंह
मैंने जब भी सोचा
मुझे रामचन्द्र शुक्ल की मूँछे याद आई
मैं पूरी ताकत के साथ
शब्दों को फेंकना चाहता हूँ।
साठोत्तरी कविता
सन् 1960 ई. के बाद लघु पत्रिकाओं की बाढ़ आ गई तथा प्रत्येक लघु पत्रिका की छत्रछाया में कोई-न-कोई नये वाद अथवा काव्यान्दोलन पनपने लगे। जो आन्दोलन अपेक्षाकृत अधिक स्थिर एवं सुदृढ़ हो पाए, वे निम्न हैं –
⇒ निषेध मूलक
⇔संघर्ष मूलक
⇒ आस्थामूलक
निषेधमूलक वर्ग में उन काव्यान्दोलनों को समाहित किया जाता है, जिन्हांेने परंपरागत सामाजिक, नैतिक और सांस्कृतिक मूल्यों का निषेध करते हुए घोर व्यक्तिवाद, उच्शृंखल यौनवाद एवं नग्न भोगवाद को प्रश्रय दिया।
संघर्ष मूलक वर्ग के आन्दोलनों में सामाजिक, आर्थिक, एवं राजनीतिक परिस्थितियों के प्रति असंतोष तथा आक्रोश व्यक्त करते हुए उनके विरोध में संघर्ष का आह्वान किया गया।
आस्थामूलक वर्ग के आन्दोलनों में परंपरागत मूल्यों को स्वीकारते हुए उनकी पुनः प्रतिष्ठा पर जोर दिया गया।
प्रमुख काव्यांदोलन एवं प्रवर्तक
काव्यांदोलन प्रवर्तक
अकविता श्याम परमार
बीट पीढ़ी राजकमल चौधरी
अस्वीकृत कविता श्रीराम शुक्ल
आज की कविता हरीश मादानी
प्रतिबद्ध/वाम कविता डाॅ. परमानन्द श्रीवास्तव
सहज कविता डाॅ. रवीन्द्र भ्रमर
ताजी कविता लक्ष्मीकांत वर्मा
समकालीन कविता डाॅ. विशम्भरनाथ उपाध्याय
कैप्सूल/सूत्र कविता डाॅ. ओंकारनाथ त्रिपाठी
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