14.5.24

रोहिल्ला क्षत्रिय समाज का इतिहास और गोत्र सूची



गौरवशाली इतिहास के कुछ स्वर्णाक्षर (रोहिला क्षत्रिय)

भारत वर्ष का क्षेत्रफल 42,02,500 वर्ग किलोमीटर था। रोहिला साम्राज्य 25,000 वर्ग किमी 10,000 वर्गमील में फैला हुआ था। रोहिला, राजपूतों का एक गोत्र, कबीला (परिवार) या परिजन- समूह है जो कठेहर – रोहिलखण्ड के शासक एंव संस्थापक थे। मध्यकालीन भारत में बहुत से राजपूत लड़ाकों को रोहिला की उपाधि से विभूषित किया गया। उनके वंशज आज भी रोहिला परिवारों में पाए जाते हैं। रोहिले- राजपूत प्राचीन काल से ही सीमा- प्रांत, मध्य देश (गंगा- यमुना का दोआब), पंजाब, काश्मीर, गुजरात, राजस्थान, मध्य प्रदेश में शासन करते रहे हैं। जबकि मुस्लिम-रोहिला साम्राज्य अठारहवी शताब्दी में इस्लामिक दबाव के पश्चात् स्थापित हुआ। मुसलमानों ने इसे उर्दू में रूहेलखण्ड कहा। 1702 से 1720 ई तक रोहिलखण्ड में रोहिले राजपूतों का शासन था। जिसकी राजधानी बरेली थी। रोहिले राजपूतों के महान शासक राजा इन्द्रगिरी ने रोहिलखण्ड की पश्चिमी सीमा पर सहारनपुर में एक किला बनवाया। जिसे प्राचीन रोहिला किला कहा जाता है। सन 1801 ई में रोहिलखण्ड को अंग्रेजों ने अपने अधिकार में ले लिया था। हिन्दू रोहिले-राजपुत्रों द्वारा बनवाए गये इस प्राचीन रोहिला किला को 1806 से 1857 के मध्य कारागार में परिवर्तित कर दिया गया था। इसी प्राचीन- रोहिला- किला में आज सहारनपुर की जिला- कारागार है। सहारन राजपूतों का एक गोत्र है, जो रोहिले राजपूतों में पाया जाता है। यह सूर्य वंश की एक प्रशाखा है जो राजा भरत के पुत्र तक्षक के वंशधरों से प्रचालित हुई थी। फिरोज तुगलक के आक्रमण के समय थानेसर (वर्तमान में हरियाणा में स्थित) का राजा सहारन ही था।
दिल्ली में गुलाम वंश के समय रोहिलखण्ड की राजधानी रामपुर में राजा रणवीर सिंह कठेहरिया (काठी कोम, निकुम्भ वंश, सूर्यवंश रावी नदी के काठे से विस्थापित कठगणों के वंशधर) का शासन था। इसी रोहिले राजा रणवीर सिंह ने तुगलक के सेनापति नसीरुद्दीन चंगेज को हराया था। खंड क्षत्रिय राजाओं से सम्बंधित है, जैसे भरतखंड, बुंदेलखंड, विन्धयेलखंड, रोहिलखंड, कुमायुखंड, उत्तराखंड आदि। प्राचीन भारत की केवल दो भाषाएं संस्कृत व प्राकृत (सरलीकृत संस्कृत) थी। रोहिल प्राकृत और खंड संस्कृत के शब्द हैं जो क्षत्रिय राजाओं के प्रमाण हैं। इस्लामिक नाम है दोलताबाद, कुतुबाबाद, मुरादाबाद, जलालाबाद, हैदराबाद, मुबारकबाद, फैजाबाद, आदि। रोहिले राजपूतों की उपस्थिति के प्रमाण हैं। योधेय गणराज्य के सिक्के, गुजरात का (1445 वि. ) का शिलालेख (रोहिला मालदेव के सम्बन्ध में), मध्यप्रदेश में स्थित रोहिलखंड रामपुर में राजा रणवीर सिंह के किले के खंडहर, रानी तारादेवी सती का मंदिर, पीलीभीत में राठौर रोहिलो (महिचा- प्रशाखा) की सतियों के सतियों के मंदिर, सहारनपुर का प्राचीन रोहिला किला, मंडोर का शिलालेख, बड़ौत में स्थित राजा रणवीर सिंह रोहिला मार्ग
  जोधपुर का शिलालेख, प्रतिहार शासक हरीशचंद्र को मिली रोहिल्लाद्व्यंक की उपाधि, कई अन्य राजपूतों के वंशो को प्राप्त उपाधियां, पृथ्वीराज रासो, आल्हाखण्ड – काव्यव, सभी राजपूत वंशो में पाए जाने वाले प्रमुख गोत्र। अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा भारत द्वारा प्रकाशित पावन ग्रन्थ क्षत्रिय वंशाणर्व (रोहिले क्षत्रियों का राज्य रोहिलखण्ड का पूर्व नाम पांचाल व मध्यप्रदेश), वर्तमान में अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा से अखिल भारतीय रो. क्ष. वि. परिषद को संबद्धता प्राप्त होना, वर्तमान में भी रोहिलखण्ड (संस्कृत भाषा में) क्षेत्र का नाम यथावत बने रहना, अंग्रेजों द्वारा भी उत्तर रेलवे को रोहिलखण्ड – रेलवे का नाम देना जो बरेली से देहरादून तक सहारनपुर होते हुए जाती थी, वर्तमान में लाखों की संख्या में पाए जाने वाले रोहिला-राजपूत, रोहिले-राजपूतों के सम्पूर्ण भारत में फैले हुए कई अन्य संगठन अखिल भारतीय स्तर पर राजपूत रत्न रोहिला शिरोमणि डा. कर्णवीर सिंह द्वारा संगठित एक अखिल भारतीय रोहिला क्षत्रिय विकास परिषद (सम्बद्ध अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा) पंजीकरण संख्या – 545, आदि। पानीपत की तीसरी लड़ाई (रोहिला वार) में रोहिले राजपूत- राजा गंगासहाय राठौर (महेचा) के नेतृत्व में मराठों की ओर से अफगान आक्रान्ता अहमदशाह अब्दाली व रोहिला पठान नजीबदौला के विरुद्ध लड़े व वीरगति पाई। इस मराठा युद्ध में लगभग एक हजार चार सौ रोहिले राजपूत वीरगति को प्राप्त हुए।
  प्रथम स्वतंत्रता संग्राम 1857 में भी रोहिले राजपूतों ने अपना योगदान दिया, ग्वालियर के किले में रानी लक्ष्मीबाई को हजारों की संख्या में रोहिले राजपूत मिले, इस महायज्ञ में स्त्री पुरुष सभी ने अपने गहने, धन आदि एकत्र कर झांसी की रानी के साथ अंग्रेजों के विरुद्ध आवाज उठाने के लिए सम्राट बहादुरशाह- जफर तक पहुंचाए। अंग्रेजों ने ढूंढ-ढूंढ कर उन्हें काट डाला जिससे रोहिले राजपूतों ने अज्ञातवास की शरण ली। राजपूतों की हार के प्रमुख कारण थे हाथियों का प्रयोग, सामंत प्रणाली व आपसी मतभेद, ऊंचे व भागीदार कुल का भेदभाव (छोटे व बड़े की भावना) आदि। सम्वत 825 में बप्पा रावल चित्तौड़ से विधर्मियों को खदेड़ता हुआ ईरान तक गया। बप्पा रावल से समर सिंह तक 400 वर्ष होते हैं, गह्लौतों का ही शासन रहा। इनकी 24 शाखाएं हैं। जिनके 16 गोत्र (बप्पा रावल के वंशधर) रोहिले राजपूतों में पाए जाते हैं। चितौड़ के राणा समर सिंह (1193 ई.) की रानी पटना की राजकुमारी थी इसने 9 राजा, 1 रावत और कुछ रोहिले साथ लेकर मौ. गोरी के गुलाम कुतुबद्दीन का आक्रमण रोका और उसे ऐसी पराजय दी कि कभी उसने चितौड़ की ओर नहीं देखा। रोहिला शब्द क्षेत्रजनित, गुणजनित व मूल पुरुष नाम-जनित है। यह गोत्र जाटों में भी रूहेला, रोहेला, रूलिया, रूहेल, रूहिल, रूहिलान नामों से पाया जाता है। रूहेला गोत्र जाटों में राजस्थान व उ. प्र. में पाया जाता है। रोहेला गोत्र के जाट जयपुर में बजरंग बिहार ओर ईनकम टैक्स कालोनी टौंक रोड में विद्यमान है। झुनझुन, सीकर, चुरू, अलवर, बाडमेर में भी रोहिला गोत्र के जाट विद्यमान हैं। उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर जिले में रोहेला गोत्र के जाटों के बारह गाँव हैं। महाराष्ट्र में रूहिलान गोत्र के जाट वर्धा में केसर व खेड़ा गांव में विद्यमान हैं। मुगल सम्राट अकबर ने भी राजपूत राजाओं को विजय प्राप्त करने के पश्चात् रोहिला-उपाधि से विभूषित किया था, जैसे राव, रावत, महारावल, राणा, महाराणा, रोहिल्ला, रहकवाल आदि। रोहिला-राजपूत समाज, क्षत्रियों का वह परिवार है जो सरल ह्रदयी, परिश्रमी, राष्ट्रप्रेमी, स्वधर्मपरायण, स्वाभिमानी व वर्तमान में अधिकांश अज्ञातवास के कारण साधनविहीन है। 40 प्रतिशत कृषि कार्य से, 30 प्रतिशत श्रम के सहारे व 30 प्रतिशत व्यापार व लघु उद्योगों के सहारे जीवन यापन कर रहे हैं। इनके पूर्वजों ने हजारों वर्षों तक अपनी आन, मान, मर्यादा की रक्षा के लिए बलिदान दिए हैं और अनेको आक्रान्ताओं को रोके रखने में अपना सर्वस्व मिटाया है। गणराज्य व लोकतंत्रात्मक व्यवस्था को सजीव बनाये रखने की भावना के कारण वंश परंपरा के विरुद्ध रहे, करद राज्यों में भी स्वतंत्रता बनाये रखी। कठेहर रोहिलखण्ड की स्थापना से लेकर सल्तनत काल की उथल पुथल, मार काट, दमन चक्र तक लगभग आठ सौ वर्ष के शासन काल के पश्चात् 1857 के ग़दर के समय तक रोहिले राजपूतों ने राष्ट्रहित में बलिदान दिये हैं। क्रूर काल के झंझावालों से संघर्ष करते हुए क्षत्रियों का यह रोहिला परिवार बिखर गया है, इस समाज की पहचान के लिए भी आज स्पष्टीकरण देना पड़ता है। कैसा दुर्भाग्य है? यह क्षत्रिय वर्ग का। जो अपनी पहचान को भी टटोलना पड़ रहा है। परन्तु समय के चक्र में सब कुछ सुरक्षित है। इतिहास के दर्पण में थिरकते चित्र, बोलते हैं, अतीत झांकता है, सच सोचता है कि उसके होने के प्रमाण धुंधले-धुंधले से क्यों हैं? हे- क्षत्रिय तुम धन्य हो, पहचानों अपने प्रतिबिम्बों को –
क्षत्रिय एकता का बिगुल फंूक, सब धुंधला धुंधला छंटने दो।

हो अखंड भारत के राजपुत्र, खण्ड खण्ड में न सबको बंटने दो।।

रोहिल्ला क्षत्रिय समाज की गोत्र सूची 

रोहिल्ला उपाधि - शूरवीर, अदम्य - साहसी विशेष युद्ध कला में प्रवीण, उच्च कुलीन सेनानायको, और सामन्तों को उनके गुणों के अनुरूप क्षत्रिय वीरों को तदर्थ उपाधि से विभूषित किया जाता था - जैसे - रावत - महारावत, राणा, रूहॆला, ठाकुर, नेगी, रावल, रहकवाल, रोहिल्ला, समरलछन्द, लखमीर,(एक लाख का नायक) आदि। इसी आधार पर उनके वंशज भी आज तक (क्षत्रियों) के सभी गोत्रों में पाए जाते हैं।

रोहिलखण्ड से विस्थापित इन रोहिला परिवारों में क्षत्रिय परम्परा के कुछ प्रमुख गोत्र हैं :-

रोहिला, रूहेला, ठैँगर,ठहित, रोहिल, रावल, द्रोहिया, रल्हन, रूहिलान, रौतेला , रावत,लोहारिया

वो क्षत्रिय वंश जिन को रोहिल्ला उपाधि से नवाजा गया

यौधेय, योतिक, जोहिया, झोझे, पेशावरी

पुण्डीर, पांडला, पंढेर, पुन्ड़ेहार, पुंढीर, पुंडाया

चौहान, जैवर, जौडा, चाहल, चावड़ा, खींची, गोगद, गदाइया, सनावर, क्लानियां, चिंगारा, चाहड बालसमंद, बहरासर, बराबर, चोहेल, चेहलान, बालदा, बछ्स (वत्स), बछेर, चयद, झझोड, चौपट, खुम्ब, जांघरा, जंगारा, झांझड,शाण

निकुम्भ, कठेहरिया, कठौरा, कठैत, कलुठान, कठपाल, कठेडिया, कठड, काठी, कठ, पालवार

राठौर, महेचा, महेचराना, रतनौता, बंसूठ जोली, जोलिए, बांकटे, बाटूदा, थाथी, कपोलिया, खोखर, अखनौरिया ,लोहमढ़े, मसानिया

बुन्देला, उमट, ऊमटवाल

भारतवंशी, भारती, गनान

नागवंशी, बटेरिया, बटवाल, बरमटिया

परमार, जावडा, लखमरा, मूसला, मौसिल, भौंसले, बसूक, जंदडा, पछाड़, पंवारखा, मौन

तोमर, तंवर, मुदगल, देहलीवाल, किशनलाल, सानयाल, सैन, सनाढय,बंदरीया

गहलौत, कूपट, पछाड़, थापा, ग्रेवाल, कंकोटक, गोद्देय, पापडा, नथैड़ा, नैपाली, लाठिवाल, पानिशप, पिसोण्ड, चिरडवाल, नवल, चरखवाल, साम्भा, पातलेय, पातलीय, छन्द (चंड), क्षुद्रक,(छिन्ड, इन्छड़, नौछड़क), रज्जडवाल, बोहरा, जसावत, गौर, मलक, मलिक, कोकचे, काक

कछवाहा, कुशवाहा, कोकच्छ, ततवाल, बलद, मछेर

सिसौदिया, ऊँटवाड़ या ऊँटवाल, भरोलिया, बरनवाल, बरनपाल, बहारा

खुमाहड, अवन्ट, ऊँट, ऊँटवाल

सिकरवार, रहकवाल, रायकवार, ममड, गोदे

सोलंकी, गिलानिया, भुन, बुन, बघेला, ऊन, (उनयारिया)

बडगूजर, सिकरवार, ममड़ा, पुडिया

कश्यप, काशब, रावल, रहकवाल

यदु, मेव, छिकारा, तैतवाल, भैनिवाल, उन्हड़, भाटटी बनाफरे, जादो, बागड़ी, सिन्धु, कालड़ा, सारन, छुरियापेड, लखमेरिया, चराड, जाखड़, सेरावत, देसवाल।
रोहि्ला क्षत्रियों में ऊंटवाल गोत्र चंद्रवंशी एवं सूर्यवंशी दोनों में पाए जाते हैं सूर्यवंशी ऊंटवाल गोत्र मेवाड़ के गहलोत सिसोदिया घराने से हैं और चंद्रवंशी ऊंटवाल जैसलमेर के भाटी घराने से है।
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