माना जाता है कि गुर्जर संस्कृत शब्द है, जिसका अर्थ शत्रु विनाशक होता है। गुर्जर, गुज्जर, गूजर, गोजर, गुर्जर, गूर्जर और वीर गुर्जर नाम से भी जाना जाता है। प्राचीन महाकवि राजशेखर ने गुर्जरों को रघुकुल-तिलक तथा रघुग्रामिणी कहा है। राजस्थान में गुर्जरों को सम्मान से 'मिहिर' बोलते हैं, जिसका अर्थ 'सूर्य' होता है। गुर्जरों का मूल स्थान गुजरात और राजस्थान माना गया है। इतिहासकार बताते हैं कि मुगल काल से पहले तक लगभग संपूर्ण राजस्थान तथा गुजरात, गुर्जरत्रा (गुर्जरों से रक्षित देश) या गुर्जर-भूमि के नाम से जाना जाता था।
गुर्जर अभिलेखों के अनुसार वे सूर्यवंशी और रघुवंशी हैं। 7वीं से 10वीं शताब्दी के गुर्जर शिलालेखों पर अंकीत सूर्यदेव की कलाकृतियां भी इनके सूर्यवंशी होने की पुष्टि करती करती है। कुछ इतिहासकार कुषाणों को भी गुर्जर मानते हैं। कनिष्क कुषाण राजा था जिसके शिलालेखों पर 'गुसुर' नाम अंकीत है जो गुर्जर की ओर ही इंगित करता है। पौराणिक मान्यता के अनुसार गायत्री माता जो ब्रह्मा जी की अर्धांग्निी थी वह भी गुर्जर थी। नंद बाबा जो भगवान श्रीकृष्ण के पालक पोषक थे, वह भी गुर्जर ही थे।
हरियाणा के जिला सोनीपत में गन्नौर के पास गुर्जर खेड़ी गांव में भी गुर्जर प्रतिहार मूर्तिकला के सैकड़ों नमूने मिले हैं। गुर्जर खेड़ी गांव के पास से किसी जमाने में जमुना नदी गुजरती थी। गुर्जर खेड़ी के दूर-दूर तक फैले हुए खण्डहर इस बात की तसदीक करते हैं कि आज से आठ-नौ सौ साल पहले यहां पर कोई बहुत बड़ा शहर रहा होगा।
आर्यावर्त में गुर्जरों की संख्या सबसे ज्यादा थी। गुर्जर जाति के तीन भाग है पहला लोर गुर्जर दूसरा डाब गुर्जर तीसरा पित्ल्या गुर्जर। हिंदुओं की गुर्जर जाति में लगभग 1400 गौत्र है। मुगल काल में सबसे ज्यादा गुजरों ने मुगलों के विरुद्ध आवाज उठाई थी जिसका परिणाय यह भी हुआ कि गुर्जर जाति के लाखों लोगों को मजबूरन उस काल में धर्म परिवर्तन करना पड़ा। वर्तमान में भारतीय मुसलमानों में गुर्जर जाति के लोगों की संख्या ज्यादा है।
गुर्जर जाति एक परम पूज्य और वीर जाती है जिन्होंने हर काल में आक्रांताओं से हिंदुत्व की रक्षा की है। गुर्जर जाति के पूर्वज पहले गाय चराते थे। गुर्जर जाति में संवत् 968 में भगवान श्री देव महाराज का अवतार हुआ था। देव काल में माता गायत्री ने चेची गोत्र मैं अवतार लिया था। इस राजकाल में पन्ना धाय ने गुर्जरों का गौरव बढ़ाया था। कहते हैं कि छत्रपति शिवाजी महाराज और पृथ्वी राज चौहान के पूर्वज भी गुर्जर थे। यह भी कहते हैं कि गुर्जर जाति में ही भामाशाह पैदा हुए थे जिन्होंने मेवाड़ की रक्षा के लिए अपना सम्पूर्ण धन दिया। 1857 की क्रांति में गुर्जरों की अहम् भूमिका रही थी।
इतिहासकारों में गुर्जरों की उत्पत्ति को लेकर मतभेद है। कुछ इन्हें हूणों का वंशज मानते हैं तो आर्यों की संतान। कुछ इतिहासकरों के अनुसार गुर्जर मध्य एशिया के कॉकेशस क्षेत्र (अभी के आर्मेनिया और जॉर्जिया) से आए आर्य योद्धा थे। यह वे आर्य थे जो कालांतर में अपनी मातृभूमि भारत को छोड़कर बाहर चले गए थे।
गुर्जर मुख्यत: उत्तर भारत, पाकिस्तान, कश्मीर, हिमाचल और अफगानिस्तान में बसे हैं। मध्यप्रदेश में भी लगभग अधिकांश इलाकों मे गुर्जर बसे हैं पर चंबल-मुरैना में इनकी बहुलता है। इसके अलावा निमाड़ और मालवा के कुछ हिस्सों में इनकी खासी तादाद हैं। भारत का गुजरात राज्य, पाकिस्तानी पंजाब का गुजरांवाला जिला और रावलपिंडी जिले का गूजर खान शहर आज भी यहां गुर्जर रहते हैं। गुर्जर लोग पहले राजस्थान में जोधपुर के आस-पास निवास करते थे। इसी कारण लगभग छठी शदी के मध्य राजस्थान का अधिकांश भाग 'गुर्जरन्ना-भूमि' के नाम से जाना था।
मुगल काल में गुर्जरों ने आक्रांताओं से बहुत की जोरदार तरीके से लौहा लिया और लगभग 200 वर्षों तक भारत की भूमि को बचाए रखा। अरब लेखकों के अनुसार गुर्जर उनके सबसे भयंकर शत्रु थे। अगर गुर्जर नहीं होते तो वो भारत पर 12वीं सदी से पहले ही अरब का अधिकार हो जाता।
12वीं सदी के बाद गुर्जरों का पतन होना शुरू हुआ और ये कई शाखाओं में बंट गए। गुर्जर समुदाय से अलग हुई कई जातियां बाद में बहुत प्रभावशाली होकर राजपूत और ब्राह्मण में भी जा मिली। बची हुई शाखाएं गुर्जर कबीलों में बदल गईं और खेती और पशुपालन का काम करने लगी। कालांतर में लगातार हुए आक्रमण और अत्याचार के चलते गुर्जरों को कई स्थानों पर अपना धर्म बदलकर मुसलमान भी होना पड़ा। उत्तर प्रदेश, हिमाचल और जम्मू-कश्मीर में रहने वाले गुर्जरों की स्थिति थोड़ी अलग है, जहां हिंदू और मुसलमान दोनों ही गुर्जर देखे जा सकते हैं जबकि राजस्थान में सारे गुर्जर हिंदू हैं। दूसरी ओर पंजाब में धर्म की रक्षार्थ कुछ गुर्जर सिख भी बने।
5वी सदी में भीनमाल गुर्जर सम्राज्य की राजधानी थी तथा इसकी स्थापना गुर्जरो ने की थी। भरुच का सम्राज्य भी गुर्जरो के अधीन था।छठी से 12वीं सदी में गुर्जर कई जगह सत्ता में थे। गुर्जर-प्रतिहार वंश की सत्ता कन्नौज से लेकर बिहार, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र और गुजरात तक फैली थी। मिहिरभोज को गुर्जर-प्रतिहार वंश का बड़ा शासक माना जाता है और इनकी लड़ाई बंगाल के पाल वंश और दक्षिण-भारत के राष्ट्रकूट शासकों से होती रहती थी। 12वीं सदी के बाद प्रतिहार वंश का पतन होना शुरू हुआ और ये कई हिस्सों में बँट गए जैसे राजपूत वंश (चौहान, सोलांकी, चदीला और परमार)। अरब आक्रान्ताओं ने गुर्जरों की शक्ति तथा प्रशासन की अपने अभिलेखों में भूरि-भूरि प्रशंसा की है।
इतिहासकार बताते हैं कि मुगल काल से पहले तक लगभग पूरा राजस्थान तथा गुजरात, 'गुर्जरत्रा' (गुर्जरो से रक्षित देश) या गुर्जर-भूमि के नाम से जाना जाता था।
अरब लेखकों के अनुसार गुर्जर उनके सबसे भयंकर शत्रु थे। उन्होंने ये भी कहा है कि अगर गुर्जर नहीं होते तो वो भारत पर 12वीं सदी से पहले ही अधिकार कर लेते।
पन्ना धाय जैसी वीरांगना पैदा हुई, जिसने अपने बेटे चन्दन का बलिदान देकर उदय सिंह के प्राण बचाए। बिशालदेव गुर्जर बैसला (अजमेर शहर के संस्थापक) जैसे वफादार दोस्त हुए जिन्होने दिल्ली का शासन तंवर राजाओं को दिलाने में पूरी जी-जान लगा दी। विजय सिंह पथिक जैसे क्रांतिकारी नेता हुए, जो राजा-महाराजा किसानो को लूटा करते थे, उनके खिलाफ आँदोलन चलाकर उन्होंने किसानो को मजबूत किया। मोतीराम बैसला जैसे पराक्रमि हुए जिन्होने मुगलो औऱ जाटो को आगरा में ही रोक दिया।
बलिदान:-
कोतवाल धन सिंह गुर्जर एक स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी और 1857 के महान क्रांतिकारी एवं शहीद थे। 10 मई 1857 को मेरठ में क्रान्ति आरम्भ करने का श्रेय धन सिंह गुर्जर को हैइसलिए 10 मई को हर साल ”क्रान्ति दिवस“ के रूप में मनाया जाता हैं। इस क्रान्ति की शुरूआत करने का श्रेय अमर शहीद कोतवाल धनसिंह गुर्जर को जाता है जिन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ आवाज बुलंद करने की हिम्मत दिखाई थी और उनकी पूरी हुकूमत को नाकों चने चबवा दिए थे।
10 मई 1857 को मेरठ में विद्रोही सैनिकों और पुलिस फोर्स ने अंग्रेजों के विरूद्ध साझा मोर्चा गठित कर क्रान्तिकारी घटनाओं को अंजाम दिया। जैसे ही शहर में ये खबर फैली कि सैनिकों ने विद्रोह कर दिया है आस-पास के गांव के लोग हजारों की तादाद में मेरठ की सदर कोतवाली क्षेत्र में जमा हो गए। इसी कोतवाली में धन सिंह कोतवाल (प्रभारी) के पद पर कार्यरत थे।
धन सिंह कोतवाल एक क्रान्तिकारी की तरह निकलकर सबके सामने आ गए थे। वो पुलिस में उच्च पद पर कार्यरत थे। धन सिंह ने इस भीड़ को एक नेता के तौर पर एक नई दिशा दी जो की अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ थी। धन सिंह के इस कदम की वजह से अंग्रेज उनसे डर गए थे। धन सिंह ने भीड़ के साथ रात 2 बजे मेरठ जेल पर हमला कर दिया। जेल तोड़कर 836 कैदियों को छुड़ा लिया और जेल में आग लगा दी।
जेल से छुड़ाए कैदी भी क्रान्ति में शामिल हो गए। उससे पहले पुलिस फोर्स के नेतृत्व में क्रान्तिकारी भीड़ ने पूरे सदर बाजार और कैंट क्षेत्र में क्रान्तिकारी घटनाओं को अंजाम दिया। रात में ही विद्रोही सैनिक दिल्ली कूच कर गए और विद्रोह मेरठ के देहात में फैल गया। मंगल पाण्डे 8 अप्रैल, 1857 को बैरकपुर, बंगाल में शहीद हो गए थे।छठी सदी के बाद गुर्जरों ने अपनी सत्ता कायम की। 7वीं से 12वीं सदी में गुर्जर अपने चरम पर थे। गुजरात के भीमपाल और उसके वंशज भी गुर्जर ही थे, जिन्होंने अरब आक्रमणकारियों को लगभग 200 साल तक भारतीय सीमा से खदेड़ा। भीनमाल गुर्जर सम्राज्य की राजधानी थी। भरुच का सम्राज्य भी गुर्जरों के अधीन था। गुर्जर-प्रतिहार वंश की सत्ता कन्नौज से लेकर बिहार, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र और गुजरात तक फैली थी। मिहिरभोज को गुर्जर-प्रतिहार वंश का बड़ा शासक माना जाता है और इनकी लड़ाई बंगाल के पाल वंश और दक्षिण-भारत के राष्ट्रकूट शासकों से होती रहती थी।
नवीं शती से लेकर दसवीं शतीं के अंत तक लगभग 200 वर्षों तक मथुरा प्रदेश गुर्जर प्रतीहार-शासन में रहा। इस वंश में मिहिरभोज, महेंन्द्रपाल तथा महीपाल बड़े प्रतापी शासक हुए। उनके समय में लगभग पूरा उत्तर भारत एक ही शासन के अंतर्गत हो गया था। अधिकतर प्रतीहारी शासक वैष्णव या शैव मत को मानते थे। उस समय के लेखों में इन राजाओं को विष्णु, शिव तथा भगवती का भक्त बताया गया है।
भारत में गूजर जम्मू कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, दिल्ली और हरियाणा में भी है.
हिमाचल और जम्मू कश्मीर में जहां गूजरों को अनुसूचित जनजाति का दर्ज़ा दिया गया है वहीं राजस्थान में ये लोग अन्य पिछड़ा वर्ग में आते हैं.
कुछ वर्ष पहले राजस्थान में जाटों को ओबीसी में शामिल किए जाने के बाद से गूजरों में असंतोष है.
नौकरियों में बेहतर अवसर की तलाश में गूजर अब ये माँग कर रहे हैं कि उन्हें राजस्थान में अनुसूचित जनजाति का दर्जा मिले.
हालांकि कुछ पर्यवेक्षकों का मानना है कि राजस्थान के समाज में इनकी स्थिति जनजातियों से कहीं बेहतर है.
प्राचनी काल में युद्ध कला में निपुण रहे गूजर मुख्य रूप से खेती और पशुपालन के व्यवसाय से जुराजपूतों की रियासतों में गूजर अच्छे योद्धा माने जाते थे और इसीलिए भारतीय सेना में अभी भी जुड़े हुए हैं
इतिहास
प्राचीन इतिहास के जानकारों के अनुसार गूजर मध्य एशिया के कॉकेशस क्षेत्र ( अभी के आर्मेनिया और जॉर्जिया) से आए थे लेकिन इसी इलाक़े से आए आर्यों से अलग थे.
कुछ इतिहासकार इन्हें हूणों का वंशज भी मानते हैं.
भारत में आने के बाद कई वर्षों तक ये योद्धा रहे और छठी सदी के बाद ये सत्ता पर भी क़ाबिज़ होने लगे. सातवीं से 12 वीं सदी में गूजर कई जगह सत्ता में थे. इनकी अच्छी ख़ासी संख्या है.
इतिहासकार कहते हैं कि विभिन्न राज्यों के गूजरों की शक्ल सूरत में भी फ़र्क दिखता है.
राजस्थान में इनका काफ़ी सम्मान है और इनकी तुलना जाटों या मीणा समुदाय से एक हद तक की जा सकती है.
उत्तर प्रदेश, हिमाचल और जम्मू-कश्मीर में रहने वाले गूजरों की स्थिति थोड़ी अलग है जहां हिंदू और मुसलमान दोनों ही गूजर देखे जा सकते हैं जबकि राजस्थान में सारे गूजर हिंदू हैं.
मध्य प्रदेश में चंबल के जंगलों में गूजर डाकूओं के गिरोह सामने आए हैं.
समाजशास्त्रियों के अनुसार हिंदू वर्ण व्यवस्था में इन्हें क्षत्रिय वर्ग में रखा जा सकता है लेकिन जाति के आधार पर ये राजपूतों से पिछड़े माने जाते हैं.
पाकिस्तान में गुजरावालां, फैसलाबाद और लाहौर के आसपास इनकी अच्छी ख़ासी संख्या है.
भारत और पाकिस्तान में गूजर समुदाय के लोग ऊँचे ओहदे पर भी पहुँच हैं. इनमें पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति फ़ज़ल इलाही चौधरी और कांग्रेस के दिवंगत नेता राजेश पायलट शामिल हैं.
इतिहासकार बताते हैं कि मुगल काल से पहले तक लगभग पूरा राजस्थान तथा गुजरात, 'गुर्जरत्रा' (गुर्जरो से रक्षित देश) या गुर्जर-भूमि के नाम से जाना जाता था।
अरब लेखकों के अनुसार गुर्जर उनके सबसे भयंकर शत्रु थे। उन्होंने ये भी कहा है कि अगर गुर्जर नहीं होते तो वो भारत पर 12वीं सदी से पहले ही अधिकार कर लेते।
पन्ना धाय जैसी वीरांगना पैदा हुई, जिसने अपने बेटे चन्दन का बलिदान देकर उदय सिंह के प्राण बचाए। बिशालदेव गुर्जर बैसला (अजमेर शहर के संस्थापक) जैसे वफादार दोस्त हुए जिन्होने दिल्ली का शासन तंवर राजाओं को दिलाने में पूरी जी-जान लगा दी। विजय सिंह पथिक जैसे क्रांतिकारी नेता हुए, जो राजा-महाराजा किसानो को लूटा करते थे, उनके खिलाफ आँदोलन चलाकर उन्होंने किसानो को मजबूत किया। मोतीराम बैसला जैसे पराक्रमि हुए जिन्होने मुगलो औऱ जाटो को आगरा में ही रोक दिया।
बलिदान:-
कोतवाल धन सिंह गुर्जर एक स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी और 1857 के महान क्रांतिकारी एवं शहीद थे। 10 मई 1857 को मेरठ में क्रान्ति आरम्भ करने का श्रेय धन सिंह गुर्जर को हैइसलिए 10 मई को हर साल ”क्रान्ति दिवस“ के रूप में मनाया जाता हैं। इस क्रान्ति की शुरूआत करने का श्रेय अमर शहीद कोतवाल धनसिंह गुर्जर को जाता है जिन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ आवाज बुलंद करने की हिम्मत दिखाई थी और उनकी पूरी हुकूमत को नाकों चने चबवा दिए थे।
10 मई 1857 को मेरठ में विद्रोही सैनिकों और पुलिस फोर्स ने अंग्रेजों के विरूद्ध साझा मोर्चा गठित कर क्रान्तिकारी घटनाओं को अंजाम दिया। जैसे ही शहर में ये खबर फैली कि सैनिकों ने विद्रोह कर दिया है आस-पास के गांव के लोग हजारों की तादाद में मेरठ की सदर कोतवाली क्षेत्र में जमा हो गए। इसी कोतवाली में धन सिंह कोतवाल (प्रभारी) के पद पर कार्यरत थे।
धन सिंह कोतवाल एक क्रान्तिकारी की तरह निकलकर सबके सामने आ गए थे। वो पुलिस में उच्च पद पर कार्यरत थे। धन सिंह ने इस भीड़ को एक नेता के तौर पर एक नई दिशा दी जो की अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ थी। धन सिंह के इस कदम की वजह से अंग्रेज उनसे डर गए थे। धन सिंह ने भीड़ के साथ रात 2 बजे मेरठ जेल पर हमला कर दिया। जेल तोड़कर 836 कैदियों को छुड़ा लिया और जेल में आग लगा दी।
जेल से छुड़ाए कैदी भी क्रान्ति में शामिल हो गए। उससे पहले पुलिस फोर्स के नेतृत्व में क्रान्तिकारी भीड़ ने पूरे सदर बाजार और कैंट क्षेत्र में क्रान्तिकारी घटनाओं को अंजाम दिया। रात में ही विद्रोही सैनिक दिल्ली कूच कर गए और विद्रोह मेरठ के देहात में फैल गया। मंगल पाण्डे 8 अप्रैल, 1857 को बैरकपुर, बंगाल में शहीद हो गए थे।छठी सदी के बाद गुर्जरों ने अपनी सत्ता कायम की। 7वीं से 12वीं सदी में गुर्जर अपने चरम पर थे। गुजरात के भीमपाल और उसके वंशज भी गुर्जर ही थे, जिन्होंने अरब आक्रमणकारियों को लगभग 200 साल तक भारतीय सीमा से खदेड़ा। भीनमाल गुर्जर सम्राज्य की राजधानी थी। भरुच का सम्राज्य भी गुर्जरों के अधीन था। गुर्जर-प्रतिहार वंश की सत्ता कन्नौज से लेकर बिहार, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र और गुजरात तक फैली थी। मिहिरभोज को गुर्जर-प्रतिहार वंश का बड़ा शासक माना जाता है और इनकी लड़ाई बंगाल के पाल वंश और दक्षिण-भारत के राष्ट्रकूट शासकों से होती रहती थी।
नवीं शती से लेकर दसवीं शतीं के अंत तक लगभग 200 वर्षों तक मथुरा प्रदेश गुर्जर प्रतीहार-शासन में रहा। इस वंश में मिहिरभोज, महेंन्द्रपाल तथा महीपाल बड़े प्रतापी शासक हुए। उनके समय में लगभग पूरा उत्तर भारत एक ही शासन के अंतर्गत हो गया था। अधिकतर प्रतीहारी शासक वैष्णव या शैव मत को मानते थे। उस समय के लेखों में इन राजाओं को विष्णु, शिव तथा भगवती का भक्त बताया गया है।
भारत में गूजर जम्मू कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, दिल्ली और हरियाणा में भी है.
हिमाचल और जम्मू कश्मीर में जहां गूजरों को अनुसूचित जनजाति का दर्ज़ा दिया गया है वहीं राजस्थान में ये लोग अन्य पिछड़ा वर्ग में आते हैं.
कुछ वर्ष पहले राजस्थान में जाटों को ओबीसी में शामिल किए जाने के बाद से गूजरों में असंतोष है.
नौकरियों में बेहतर अवसर की तलाश में गूजर अब ये माँग कर रहे हैं कि उन्हें राजस्थान में अनुसूचित जनजाति का दर्जा मिले.
हालांकि कुछ पर्यवेक्षकों का मानना है कि राजस्थान के समाज में इनकी स्थिति जनजातियों से कहीं बेहतर है.
प्राचनी काल में युद्ध कला में निपुण रहे गूजर मुख्य रूप से खेती और पशुपालन के व्यवसाय से जुराजपूतों की रियासतों में गूजर अच्छे योद्धा माने जाते थे और इसीलिए भारतीय सेना में अभी भी जुड़े हुए हैं
इतिहास
प्राचीन इतिहास के जानकारों के अनुसार गूजर मध्य एशिया के कॉकेशस क्षेत्र ( अभी के आर्मेनिया और जॉर्जिया) से आए थे लेकिन इसी इलाक़े से आए आर्यों से अलग थे.
कुछ इतिहासकार इन्हें हूणों का वंशज भी मानते हैं.
भारत में आने के बाद कई वर्षों तक ये योद्धा रहे और छठी सदी के बाद ये सत्ता पर भी क़ाबिज़ होने लगे. सातवीं से 12 वीं सदी में गूजर कई जगह सत्ता में थे. इनकी अच्छी ख़ासी संख्या है.
इतिहासकार कहते हैं कि विभिन्न राज्यों के गूजरों की शक्ल सूरत में भी फ़र्क दिखता है.
राजस्थान में इनका काफ़ी सम्मान है और इनकी तुलना जाटों या मीणा समुदाय से एक हद तक की जा सकती है.
उत्तर प्रदेश, हिमाचल और जम्मू-कश्मीर में रहने वाले गूजरों की स्थिति थोड़ी अलग है जहां हिंदू और मुसलमान दोनों ही गूजर देखे जा सकते हैं जबकि राजस्थान में सारे गूजर हिंदू हैं.
मध्य प्रदेश में चंबल के जंगलों में गूजर डाकूओं के गिरोह सामने आए हैं.
समाजशास्त्रियों के अनुसार हिंदू वर्ण व्यवस्था में इन्हें क्षत्रिय वर्ग में रखा जा सकता है लेकिन जाति के आधार पर ये राजपूतों से पिछड़े माने जाते हैं.
पाकिस्तान में गुजरावालां, फैसलाबाद और लाहौर के आसपास इनकी अच्छी ख़ासी संख्या है.
भारत और पाकिस्तान में गूजर समुदाय के लोग ऊँचे ओहदे पर भी पहुँच हैं. इनमें पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति फ़ज़ल इलाही चौधरी और कांग्रेस के दिवंगत नेता राजेश पायलट शामिल हैं.
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