19.5.24

भूमिहार जाती की उत्पत्ति और इतिहास ,All about Bhumihar Caste



भूमिहार कौन हैं ‘ब्राह्मण‘ या ‘क्षत्रिय’ ? 

भूमिहार (Bhumihar) उत्तर और पूर्वी भारत की एक हिंदू जाति है. इन्हें ब्राह्मण भूमिहार और बाभन (Babhan) के नाम से भी जाना जाता है. जमींदारों का एक बड़ा हिस्सा इसी जाति से आता था. इस जाति के लोग बड़ी-बड़ी रियासतों के मालिक रहे हैं. यह एक उच्च शिक्षित समुदाय है. इस समुदाय के लोग तीक्ष्ण बुद्धि और दिलेरी के लिए जाने जाते हैं. इनकी संख्या कम है लेकिन लगभग सभी क्षेत्रों में इनका वर्चस्व रहा है. इनकी गिनती भारत के सबसे शक्तिशाली जातियों में की जाती है.
हमारे देश में आज इस सवाल पर लोगों के मन में एक कौतूहल और रहस्य सा बना हुआ है, क्योंकि भूमिहारों की उत्पत्ति को लेकर भारतीय समाज में अनेक अवधारणाएँ प्रचालन में हैं। कई विद्वानों ने प्राचीन किंवदंतियों के आधार पर भूमिहार
वंश की उत्पत्ति के संबंध का इतिहास लिखने की एक पहल की है।
सबसे प्रसिद्ध अवधारणा के अनुसार, ऐसा माना जाता है कि भगवान परशुराम ने क्षत्रियों को पराजित किया और उनसे जीते हुये राज्य एवं भूमि ब्राह्मणों को दान कर दी। परशुराम से दान में प्राप्त राज्य / भूमि के बाद उन ब्राह्मणों ने पूजा की अपनी वांशिक / पारंपरिक प्रथा को त्याग कर जमींदारी और खेती शुरू कर दी और बाद में वे युद्दों में भी शामिल हुए। इन ब्राह्मणों को ही भूमिहार ब्राह्मण कहा जाता है।
इस ‘भूमिहारों’ शब्द को लेकर सबके मन मे हमेशा एक प्रश्न बना रहता है कि ये ‘ब्राह्मण हैं या क्षत्रिय’, :या फिर ये ‘त्यागी ब्राह्मण’ हैं ? ये किस वर्ग में आते हैं या इनका कोई अलग ही वर्ग है? आपके मन के इस प्रश्न का ही जबाब देने की कोशिश की है जिसे पढ़कर आप अपनी जानकारी दुरुस्त कर लीजिए।
  जाति इतिहासविद डॉ. दयाराम  आलोक के मतानुसार  ‘भूमिहार’ शब्द से पहचान है उन ब्राह्मणों की जिनका एक शक्तिशाली वर्ग है और जो अयाचक ब्राह्मण में आता है। भूमिहार या बाभन (अयाचक ब्राह्मण) एक जाति है जो अपनी वीरता और बुद्धिमत्ता के लिए जानी जाती है। बिहार, पश्चिमी उत्तर प्रदेश और झारखंड में रहने वाली भूमिहार जाति गैर-ब्राह्मण ब्राह्मणों से जानी और पहचानी जाती है।
ये भूमिहार ब्राह्मण प्राचीन काल से भगवान परशुराम को अपना “मूल पुरुष / भूमिहारों का पिता” मानते हैं। इसी कारण भगवान परशुराम को भूमिहार-ब्राह्मण वंश का पहला सदस्य माना जाता है।
इतिहासकारों के अनुसार मगध के महान सम्राट पुष्य मित्र शुंग और कण्व वंश दोनों ही राजवंश भूमिहार ब्राह्मण (बाभन) के वंश से ही संबंधित थे।
भूमिहार ब्राह्मणों के सरनेम :
भूमिहार ब्राह्मण समाज में, उपाध्याय भूमिहार, पांडे, तिवारी / त्रिपाठी, मिश्रा, शुक्ल, उपाध्याय, शर्मा, ओझा, दुबे, द्विवेदी हैं। ब्राह्मणों में राजपाठ और जमींदारी आने के बाद से भूमिहार ब्राह्मणों का एक बड़ा हिस्सा स्वयं के लिए उत्तर प्रदेश में राय, शाही, सिंह, और इसी प्रकार बिहार में शाही, सिंह (सिन्हा), चौधरी (मैथिल से), ठाकुर (मैथिल से) जैसे उपनाम/सरनेम लिखना शुरू कर दिया था।
भूमिहार ब्राह्मण प्राचीन काल से ही कुछ स्थानों पर पुजारी भी रहे हैं। शोध करने के बाद, यह पाया गया कि त्रिवेणी संगम, प्रयाग के अधिकांश पंडे भूमिहार हैं। हजारी बाग के इटखोरी और चतरा थाना के आस-पास के काफी क्षेत्र में भूमिहार ब्राह्मण सैकड़ों वर्षों से कायस्थ, राजपूत, माहुरी, बंदूट, आदि जातियों/वर्गों के यहाँ पुरोहिती का कार्य कर रहे हैं और यह गजरौला, तांसीपुर के त्यागियों का भी अनेक वर्षों से ये पुरोहिती का ही कार्य है।
इसके अतिरिक्त बिहार में गया स्थित सूर्यमंदिर के पुजारी भी केवल भूमिहार ब्राह्मण पाए गए। हालांकि, गया के इस सूर्यदेवमंदिर का काफी बड़ा भाग सकद्वीपियो को बेच दिया गया है।
भूमिहार ब्राह्मणों ने 1725-1947 तक बनारस राज्य पर अपना आधिपत्य बनाए रखा। 1947 से पहले तक कुछ अन्य बड़े राज्य भी भूमिहार ब्राह्मणों के शासन में थे जैसे बेतिया, हथुवा, टिकारी, तमकुही, लालगोला आदि ।
बनारस के भूमिहार ब्राह्मण राजा चैत सिंह ने अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह किया और वारेन हेस्टिंग्स और ब्रिटिश सेना को कड़ी टक्कर देते हुये उसके दांत खट्टे कर दिये थे। इसी प्रकार हथुवा के भूमिहार ब्राह्मण राजा ने 1857 में पहली बार अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह किया।
उत्तर भारत की अनेक जमींदारी एवं राज्य भी भूमिहार से संबंधित रहे हैं जिसमें से प्रमुख थे औसानगंज राज, नरहन राज्य, अमावा राज, शिवहर मकसूदपुर राज, बभनगावां राज, भरतपुरा धर्मराज राज, अनापुर राज, पांडुई राज, जोगनी एस्टेट, पुरसगृह एस्टेट (छपरा), गोरिया कोठारा एस्टेट (सीवान), रूपवाली एस्टेट, जैतपुर एस्टेट, घोसी एस्टेट, परिहंस एस्टेट, धरहरा एस्टेट, रंधर एस्टेट, अनापुर रंधर एस्टेट, हरदी एस्टेट, ऐशगंज जमींदारी, ऐनखाओं जमींदारी, भेलवाड़ गढ़, आगापुर राज्य पानल गढ़, लट्ठा गढ़, कयाल गढ़, रामनगर ज़मींदारी, रोहुआ एस्टेट, राजगोला ज़मींदारी, केवटगामा ज़मींदारी, अनपुर रंधर एस्टेट, मणिपुर इलाहाबाद आदि। इसके अतिरिक्त औरंगाबाद में बाबू अमौना तिलकपुर, जहानाबाद में शेखपुरा एस्टेट, तुरुक तेलपा क्षेत्र, असुराह एस्टेट, कयाल राज्य, गया बैरन एस्टेट (इलाहाबाद), पिपरा कोही एस्टेट (मोतिहारी) आदि सभी अब इतिहास की गोद में समा चुके हैं।
जुझौतिया ब्राह्मण, भूमिहार ब्राह्मण, किसान आंदोलन के पिता कहे जाने वाले ‘दंडी स्वामी सहजानंद सरस्वती”, १८५७ के क्रांति वीर मंगल पांडे, बैकुंठ शुक्ल जिन्हें 14 मई 1936 को ब्रिटिश शासन में फांसी दी गई, यमुना कर्जी, शैल भद्र याजी, करनानंद शर्मा, योगानंद शर्मा, योगेन्द्र शुक्ल, चंद्रमा सिंह, राम बिनोद सिंह, राम नंदन मिश्रा, यमुना प्रसाद त्रिपाठी, महावीर त्यागी, राज नारायण, रामवृक्ष बेनीपुरी, अलगु राय शास्त्री, राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर, राहुल सांस्कृत्यायन, जैसे अनेक प्रसिद्ध क्रांतिकारी और कवि एवं महान विभूतियाँ भूमिहार ही थे।

भारत में भूमिहार जाति की जनसंख्या

हालांकि भूमिहारों की संख्या ब्राह्मणों और राजपूतों की तुलना में तुलनात्मक रूप से कम है, लेकिन इसके विपरीत, अधिकांश भूमिहार बहुत समृद्ध हैं और उनके पास बड़ी कृषि योग्य भूमि है. भूमिहारों की ख्याति एक दबंग जमींदार जाति के रूप में रही है. अपनी बुद्धिमानी, निडरता और सैनिक प्रवृत्ति के कारण यह सत्ता के करीब रहे हैं. इस समुदाय के लोगों ने मुगल काल के दौरान सैन्य सेवा के माध्यम से अपनी अधिकांश संपत्ति अर्जित की. बाद में इन्होंने जमींदार के रूप में कार्य किया. इनमें से जो कुलीन थे वे मुस्लिम शासकों के लिए कर संग्रहकर्ता के रूप में काम करते थे. बाद में ब्रिटिश काल के दौरान, भूमिहारों ने ब्रिटिश सेना में सेवा की. साथ ही, इनमें से कई स्वतंत्रता सेनानी और क्रांतिकारी हुए जिन्होंने ब्रिटिश शासन के खिलाफ लड़ाई लड़ी और स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण योगदान दिया. ब्रिटिश काल से ही इस समुदाय की गणना भारत के सर्वाधिक साक्षर समूहों में की जाती रही है। डॉ. कृष्णा सिन्हा, सर गणेश दत्त, चंद्रशेखर सिंह, राम दयालू सिंह, श्याम नंदन मिश्रा, लंगट सिंह, रामधारी सिंह ‘दिनकर’, राहुल सांकृत्यायन, रामबृक्ष बेनीपुरी और गोपाल सिंह ‘नेपाली’ इसी जाति से आते हैं. भूमिहार आज भी समाज में उच्च स्थान रखते हैं. इस समुदाय के लोग बड़े पैमाने पर खेती करते हैं. इनमें से कई डॉक्टर, इंजीनियर, वकील, विश्वविद्यालय के प्रोफेसर, सैन्य अधिकारी, भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी (आईएएस) और वैज्ञानिक के रूप में काम कर रहे हैं और देश के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दे रहे हैं. भूमिहार राजनीतिक रूप से भी काफी प्रभावशाली हैं. आइए अब मुख्य विषय पढ़ाते हुए जानते हैं किभारत में भूमिहार जाति की जनसंख्या कितनी है. यहां उल्लेख करना जरूरी है अंतिम भारतीय जनगणना के आंकड़े 1931 में जारी किए गए थे, इसीलिए सटीकता से जातियों की जनसंख्या बताना अत्यंत ही मुश्किल है. भूमिहार मुख्य रूप से बिहार में रहते हैं और राज्य में उनकी आबादी 5 से 12% बताई जाती है. लेकिन ज्यादातर जानकारों का मानना ​​है कि बिहार में भूमिहार की आबादी 6% है. “आजतक” में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार उत्तर प्रदेश में भूमिहार की जनसंख्या कुल जनसंख्या का 1% है. झारखंड के कोडरमा, देवघर, पूर्वी सिंहभूम (जमशेदपुर), रांची आदि जिलों में भूमिहार जाति का काफी प्रभाव है. झारखंड में स्वर्ण जातियों की आबादी लगभग 13% है जिसमें ब्राह्मण राजपूत, भूमिहार और कायस्थ जातियां शामिल हैं. झारखंड, पश्चिम बंगाल और मध्य प्रदेश आदि राज्यों में भूमिहारों की संख्या कितनी है यह ठीक-ठाक बताना काफी मुश्किल है. यदि उपरोक्त तथ्यों का विश्लेषण करें तो भारत में भूमिहारों की जनसंख्या लगभग 1 से 1.5 करोड़ के बीच हो सकती है.
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