आस्था और अंधविश्वास के बीच बेहद महीन रेखा होती है, पता ही नहीं चलता कि कब आस्था अंधविश्वास में तब्दील हो गई. विज्ञान, वकील ,डॉक्टर की डिग्री होने के बावजूद ऐसे कई लोग गले मे काला डोरा या ताबीज धारण करते हैं और राशिफल,कुंडली के चक्कर से बाहर नहीं निकल पाते हैं -Dr.Dayaram Aalok,M.A.,Ayurved Ratna,D.I.Hom(London)
माली ” शब्द की उत्पत्ति संस्कृत के शब्द माला से हुई है , एक पौराणिक कथा के अनुसार माली कि उत्पत्ति भगवान शिव के कान में जमा धुल (कान के मेल ) से हुई थी ,वहीँ एक अन्य कथा के अनुसार एक दिन जब पार्वती जी अपने उद्यान में फूल तोड़ रही थी कि उनके हाथ में एक कांटा चुभने से खून निकल आया , उसी खून से माली कि उत्पत्ति हुई और वहीँ से माली समाज Mali Samaj अपने पेशे बागवानी Bagwani से जुडा | माली समाज में एक वर्ग राजपूतों की उपश्रेणियों का है | भारत के अंतिम हिंदू सम्राट पृथ्वी राज चौहान के पतन के बाद जब शहाबुद्दीन गौरी और मोहम्मद गौरी शक्तिशाली हो गए और उन्होंने दिल्ली एवं अजमेर पर अपना कब्ज़ा कर लिया तथा अधिकाश राजपूत प्रमुख लड़ाई में मारे गए या मुग़ल शासकों द्वारा बंदी बना लिए गए , उन्ही बाकि बचे राजपूतों में कुछ ने मुस्लिम धर्म स्वीकार कर लिया और कुछ राजपूतों ने बागवानी और खेती का पेशा अपनाकर अपने आप को मुगलों से बचाए रखा , और वे राजपूत आगे चलकर माली कहलाये !
-वीडियो -माली और सैनी समाज की उत्पत्ति विडिओ
माली समाज का इतिहास : किसी भी जाती, वंश एव कुल परम्परा के विषय मे जानकारी के लिये पूर्व इतिहास एव पूर्वजो का ज्ञान होना अति आवश्यक है| इसलिए सैनी जाती के महत्वपूर्ण पुरुषो के विषय मे जानकारी हेतु महाभारत काल के पूर्व इतिहास पर द्रष्टि डालना अति आवश्यक है| सैनी शब्द की उत्पत्ति “महाराजा शूर सैनी” के नाम से हुई है, वह एक पराक्रमी शूर वीर योद्धा थे और महाराजा शूर सैनी " सम्राट शूरसेन " के पुत्र थे । कभी वर्तमान के मथुरा नगर पर सम्राट शूरसेन का शासन हुआ करता था , मथुरा प्राचीन भारत के 16 महाजनपदों में से एक था |
महाराजा शूर सैनी का जन्म महाभारत काल में हुआ था, वह एक शूरवीर क्षत्रिय थें , प्राचीन ऐतिहासिक अभिलेखों के अनुसार मथुरा " शूरसेन महाजनपद " की राजधानी थी और सम्राट शूरसैन वासुदेव के पिता और भगवान कृष्ण के दादा थे । इस पौराणिक मान्यता के अनुसार यही वह वंश है , जिसमें श्री कृष्ण का जन्म हुआ था और महाराजा शूर सैनी के वंशज ही सैनी कहलाए ।
सम्राट शूरसेन का विवाह हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार मारिशा नाम की एक नागा (या नागिन) महिला से हुआ था। भीम के लिए वासुकी के वरदान का कारण मारिशा ही थी |
महाभारत काल के बाद सैनी कुल के अन्तिम चक्रवर्ती सम्राट वीर विक्रेमादित्य हुए है जिनके नाम पर आज भी विक्रम सम्वत प्रचलित है|
शूरसैनी जाति की बड़ी आबादी पंजाब और हरियाणा में पाई जाती है , इस जाति के लोग सेना में बड़े अधिकारी होते हैं और बड़े जमींदार भी होते हैं । शूरसैनी ही असली सैनी है जो प्राचीन काल से अपनी संस्कृति से जुड़े हुए हैं । उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश मेसैनी जाति के लोगों को भागीरथी माली और गोले के नाम से जाना जाता है । यह लोग पहले " फूल माली " के नाम से भी जाने जाते थे । भागीरथी माली का इतिहास : - भारत के बड़े इतिहासकार मानते हैं कि भागीरथी माली और गोले प्राचीन जाति हैं । इन दोनों जातियों के लोग मूल रूप से पश्चिमी उत्तर प्रदेश में पाए जाते हैं , भागीरथी और गोले जाति के लोगों को सगरवंशी भी कहा जाता है और इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि इन दोनों जातियों का संबंध राजा सागर और राजा भगीरथ से है । जो कि सागर वंशी है, मां गंगा को धरती पर लाने वाले राजा भागीरथ के वंशजों को भागीरथी माली कहा जाता है । यह दोनों जातियां ठाकुर क्षत्रिय जाति की दो उपजातियां हैं ।
वर्तमान में भागीरथी और गोले अपने आप को सूर्यवंशी बोलते हैं और यह मौर्य , कुशवाहा ,शाक्य और माली जाति से अपना संबंध बताते हैं । भागीरथी और गोले अपने आप को मौर्यवंशी भी मानने लगे हैं, भागीरथी और गोले मूल रूप से छोटे किसान हुआ करते थे , जो फल फ्रूट और सब्जी की खेती किया करते थे और आज भी यह पश्चिमी उत्तर प्रदेश में सब्जी बेचने का कार्य करते हैं । भागीरथी और गोले वक्त वक्त पर अपना सरनेम बदलते रहे हैं । पहले माली , फिर सैनी और अब मौर्य ,कुशवाहा, शाक्य आदि उपनामों से जाने जाते हैं|
इन्हें भारत सरकार ने बैकवर्ड समाज ( OBC ) की श्रेणी में रखा है ।
Disclaimer: इस लेख में दी गई जानकारी Internet sources, Digital News papers, Books और विभिन्न धर्म ग्रंथो के आधार पर ली गई है. Content को अपने बुद्धी विवेक से समझे।
श्रीहरि गौशाला मेला ग्राउन्ड सुवासरा मे बैठक सुविधा हेतु
दामोदर पथरी अस्पताल शामगढ़ द्वारा
4 सिमेन्ट की बेन समर्पित
सुवासरा की श्रीहरि गौशाला मे गौ सेवा को सर्वोच्च महत्व दिया जाता है|
गौशाला का माहात्म्य बहुत अधिक है और यह हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है। गौशाला एक ऐसी संस्था है जहां गायों और अन्य पशुओं की देखभाल की जाती है और उन्हें सुरक्षित और स्वस्थ रखने के लिए आवश्यक सुविधाएं प्रदान की जाती हैं।
श्रीहरि गौशाला मे दान दाता दामोदर पथरी चिकित्सालय की दान पट्टिका स्थापित की गई
श्रीहरि गौशाला सुवासरा मे डॉ .अनिल कुमार जी राठौर दामोदर शामगढ़ द्वारा 4 सिमेन्ट की बेंच लगवाई
मंदसौर,झालावाड़ ,आगर,नीमच,रतलाम जिलों के
मन्दिरों,गौशालाओं ,मुक्ति धाम हेतु
समाजसेवी
डॉ.दयाराम जी आलोक शामगढ़ का आध्यात्मिक दान--पथ
मित्रों ,
परमात्मा की असीम अनुकंपा और कुलदेवी माँ नागणेचिया के आशीर्वाद और प्रेरणा से डॉ.दयारामजी आलोक द्वारा आगर,मंदसौर,झालावाड़ ,कोटा ,झाबुआ जिलों के चयनित मंदिरों और मुक्तिधाम में निर्माण/विकास / बैठने हेतु सीमेंट बेंचें/ दान देने का अनुष्ठान प्रारम्भ किया है| मैं एक सेवानिवृत्त अध्यापक हूँ और अपनी 5 वर्ष की कुल पेंशन राशि दान करने का संकल्प लिया है| इसमे वो राशि भी शामिल रहेगी जो मुझे google कंपनी से नियमित प्राप्त होती रहती है| खुलासा कर दूँ कि मेरी 6 वेबसाईट हैं और google उन पर विज्ञापन प्रकाशित करता है| विज्ञापन से होने वाली आय का 68% मुझे मिलता है| यह दान राशि और सीमेंट बेंचें पुत्र डॉ.अनिल कुमार राठौर "दामोदर पथरी अस्पताल शामगढ़ "के नाम से समर्पित हो रही हैं|
श्रीहरि गौशाला सुवासरा मे
4 सिमेन्ट की बेंच भेंट.29/12/2024
गौशाला के संरक्षक और शुभचिंतक -
अध्यक्ष: भेरूसिंग जी देवड़ा
प्रह्लाद जी रत्नावत
गौशाला कर्मचारी -कन्हैया लाल जी
दान की प्रेरणा _ राजेन्द्र जी धनोतिया पत्रकार घसोई
डॉ.अनिल कुमार दामोदर s/o डॉ.दयाराम जी आलोक 99265-24852,,दामोदर पथरी अस्पताल शामगढ़98267-95656 द्वारा श्रीहरि गौशाला सुवासरा हेतु हेतु दान सम्पन्न 28/12/2024
रुनिजा के कंठालेश्वर मंदिर मे डॉ . दयाराम आलोकजी शामगढ़ ने 4 बेंचें भेंट कीं 29/12/2024
कंठालेश्वर महादेव मंदिर मे लगी बेंचों का दृश्य
मंदसौर जिले का रुनिजा गाँव अपनी गंगा जमुनी परंपरा के लिए जाना जाता है, जो कि एक अद्वितीय सांस्कृतिक विरासत है। यहाँ का कंठालेश्वर मंदिर सड़क के निकट स्थित है, जो शिव उपासकों के लिए एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल है। मंदिर में भगवान शिव की प्रतिमा का अलौकिक सौन्दर्य देखते ही बनता है, जो भक्तों को आकर्षित करता है। सावन के महीने में भक्तों की संख्या बढ़ जाती है, और सड़क के पास होने से लोगों का आना जाना लगा रहता है। मंदिर के संरक्षक डॉ संजय जी राठौर, समिति के सदस्यों और पत्रकार राजेन्द्रजी धनोतिया ने लोगों को प्रेरित करने के उद्देश्य से दान दाता का शिलालेख मंदिर में स्थापित किया और आभार व्यक्त किया। रुनिजा गाँव की एक अन्य विशेषता यह है कि यहाँ के लोगों ने अपनी सामाजिक और सांस्कृतिक विरासत को संजो कर रखा है। गाँव में कई प्राचीन मंदिर और स्मारक हैं, जो यहाँ की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को प्रकट करते हैं।
मंदसौर,झालावाड़ ,आगर,नीमच,रतलाम जिलों के
मन्दिरों,गौशालाओं ,मुक्ति धाम हेतु
समाजसेवी
डॉ.दयाराम जी आलोक शामगढ़ का आध्यात्मिक दान--पथ
मित्रों ,
परमात्मा की असीम अनुकंपा और कुलदेवी माँ नागणेचिया के आशीर्वाद और प्रेरणा से डॉ.दयारामजी आलोक द्वारा आगर,मंदसौर,झालावाड़ ,कोटा ,झाबुआ जिलों के चयनित मंदिरों और मुक्तिधाम में निर्माण/विकास / बैठने हेतु सीमेंट बेंचें/ दान देने का अनुष्ठान प्रारम्भ किया है| मैं एक सेवानिवृत्त अध्यापक हूँ और अपनी 5 वर्ष की कुल पेंशन राशि दान करने का संकल्प लिया है| इसमे वो राशि भी शामिल रहेगी जो मुझे google कंपनी से नियमित प्राप्त होती रहती है| खुलासा कर दूँ कि मेरी 6 वेबसाईट हैं और google उन पर विज्ञापन प्रकाशित करता है| विज्ञापन से होने वाली आय का 68% मुझे मिलता है| यह दान राशि और सीमेंट बेंचें पुत्र डॉ.अनिल कुमार राठौर "दामोदर पथरी अस्पताल शामगढ़ "के नाम से समर्पित हो रही हैं|
यह विडिओ पत्रकार राजेन्द्रजी धनोतिया के सौजन्य से प्राप्त
श्री कंठालेश्वर महादेव मंदिर मे 4 बेंक लगने का विडिओ
श्री कंठालेश्वर महादेव मंदिर रुनिजा हेतु
4 सिमेन्ट की बेंच भेंट.29/12/2024
मंदिर के संरक्षक और शुभचिंतक -
डॉक्टर संजय जी राठौर
राजेन्द्र जी धनोतीया पत्रकार
रणछोड़ जी धाकड़
ईश्वर लाल जी जायसवाल रुनिजा
गोपाल जी टेलर
ईश्वर लाल जी राठौर रुनिजा
डॉ.अनिल कुमार दामोदर s/o डॉ.दयाराम जी आलोक 99265-24852,,दामोदर पथरी अस्पताल शामगढ़98267-95656 द्वारा श्री कंठालेश्वर महादेव मंदिर रुनिजा हेतु दान सम्पन्न 28/12/2024
जैन धर्म को प्राचीन भारत में उत्पन्न सबसे पुराने धर्मों में से एक माना जाता है। वर्धमान महावीर जैन धर्म के संस्थापक थे। उन्होंने अनुशासन और अहिंसा के माध्यम से आत्मा की शुद्धता और आत्मज्ञान प्राप्त करने का मार्ग बताया।
वर्धमान, जो सच्चा ज्ञान प्राप्त करने के बाद महावीर के नाम से जाने गए, बिहार में पैदा हुए थे और मगध के प्रसिद्ध राजवंश के सदस्यों से संबंधित थे। उन्हें 24 तीर्थंकरों में से अंतिम तीर्थंकर माना जाता था, पहले तीर्थंकर ऋषभ थे। बीस वर्ष की आयु में, उन्होंने सांसारिक जीवन त्याग दिया और सत्य की खोज में घर छोड़ दिया। तेरह वर्षों तक कठोर तपस्या और गहन ध्यान के बाद, वर्धमान ने केवला ज्ञान, या आध्यात्मिक मामलों का सच्चा ज्ञान प्राप्त किया, और महावीर के रूप में जाने गए। उनके अनुयायियों को जैन के रूप में जाना जाने लगा। महावीर की मृत्यु के बाद, उनके सिद्धांतों पर असहमति के कारण, जैन समुदाय, बाद में 300 ईसा पूर्व में, दो संप्रदायों में विभाजित हो गया: श्वेतांबर और दिगंबर।
जैन धर्म का उदय
छठी शताब्दी का भारत सामाजिक और धार्मिक अशांति का काल था। पुरानी कर्मकांडीय वैदिक परंपरा सुधार के लिए एक मजबूत कारक बन गई थी। बौद्धिक अशांति के अलावा, उस अवधि के दौरान कई सामाजिक और आर्थिक असमानताएँ मौजूद थीं। लोग एक अलग तरह का समाज और एक नई विश्वास प्रणाली चाहते थे। उन्होंने जीवन की बुराइयों और दुखों के बारे में गंभीरता से सोचना शुरू कर दिया और इन बुराइयों को दूर करने की उनकी इच्छा ने कई धार्मिक संप्रदायों की स्थापना की, जिनमें से जैन धर्म भी एक था।
जैन धर्म के उत्थान और विकास के पक्षधर विभिन्न कारण निम्नलिखित थे:
जाति व्यवस्था: वैदिक काल में समाज चार जातियों में विभाजित था: ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र। ये जाति विभाजन कठोर डिब्बों की तरह थे। जाति तय करते समय पेशे के बजाय जन्म को ध्यान में रखा जाता था। निचली जातियों के लोगों के साथ बुरा व्यवहार किया जाता था और उच्च जातियों द्वारा उन्हें नीची नज़र से देखा जाता था। छुआछूत बढ़ गई। यहां तक कि खाने-पीने और शादी-ब्याह पर भी प्रतिबंध थे। जातियों का आदान-प्रदान असंभव था। आलोचनात्मक विचारकों और सुधारकों ने लोगों के बीच इस तरह के अन्यायपूर्ण सामाजिक भेदभाव को अस्वीकार कर दिया। जैन धर्म एक ताज़ा हवा की तरह था; यह सभी मनुष्यों की समानता में विश्वास करता था। यह महिलाओं की स्वतंत्रता का भी समर्थन करता था, जिसने लोगों को नए धर्म में शामिल होने के लिए आकर्षित किया।
कर्मकांड के खिलाफ़ प्रतिक्रिया: अर्थहीन कर्मकांड और जटिल समारोहों ने प्रारंभिक आर्यों के सरल धर्म की जगह ले ली। पुजारियों द्वारा यज्ञ करने के लिए प्रोत्साहित किए जाने वाले अनुष्ठान और समारोह महंगे थे और आम लोगों की पहुँच से बाहर थे। इसने लोगों को धार्मिक विश्वासों और प्रथाओं से अलग कर दिया। जैन धर्म ने अर्थहीन कर्मकांडों और समारोहों को महत्व नहीं दिया। महावीर ने आत्मा की शुद्धि का उपदेश दिया और कहा कि सही विश्वास, उचित ज्ञान और सही आचरण का अभ्यास करके व्यक्ति कर्म चक्र और पुनर्जन्म से मुक्ति पा सकता है।
कठिन वैदिक भाषा : संस्कृत को एक पवित्र भाषा माना जाता था जिसमें अधिकांश वैदिक साहित्य की रचना की गई थी। ब्राह्मण पुजारी इस भाषा में प्रवचन देते थे और मंत्रोच्चार करते थे, जो स्थानीय लोगों की समझ से परे था। महावीर ने अपने विश्वासों और सिद्धांतों का प्रचार करने के लिए आम जनता की भाषाओं का इस्तेमाल किया, जो लोगों के लिए समझने योग्य और स्वीकार्य थीं।
बलि देने के लिए जानवरों की हत्या: औपचारिक बलि और यज्ञों में कई जानवरों की हत्या की आवश्यकता होती थी। इससे उनके खेती के काम में भी बाधा आती थी; इसलिए, लोग देवताओं को खुश करने के लिए इस तरह की मूर्खतापूर्ण बलि देने से नाराज थे। जैन धर्म ने ऐसी अंधकारमय प्रथाओं को प्रकाश दिया। ऐसा माना जाता है कि सभी जीव-जंतुओं में जीवन होता है।
आर्थिक कारण: वैश्य अपनी सामाजिक स्थिति को बढ़ाना चाहते थे, लेकिन रूढ़िवादी वर्ण व्यवस्था के तहत उन्हें इसकी अनुमति नहीं थी। वेदों में निषिद्ध धन उधार देना व्यापारियों के लिए अनिवार्य था। बलि देने के लिए जानवरों की हत्या करना गंगा घाटी के किसानों के हित के खिलाफ था। जैन धर्म और बौद्ध धर्म ने अहिंसा के सिद्धांत का प्रचार किया, जो स्थायी कृषि समुदायों के लिए बेहतर था। इससे कृषि विकास में मदद मिली, जिससे आर्थिक स्थिति में सुधार हुआ।
भारतीय समाज पर प्रभाव
जैन धर्म के संस्थापक महावीर के सरल सिद्धांतों ने कई अनुयायियों को आकर्षित किया। उन्होंने अहिंसा के अभ्यास पर जोर दिया। जैनियों ने वेदों के अधिकार को स्वीकार नहीं किया। शाही संरक्षण से जैन धर्म का विकास हुआ। राष्ट्रकूट या राजा चालुक्य जैसे कई राजाओं ने जैन धर्म का संरक्षण किया। यह ओडिशा, राजस्थान, गुजरात, कर्नाटक और भारत के कई अन्य राज्यों में फैल गया। दक्षिण भारत में जैन धर्म का प्रभाव भद्रबाहु की शिक्षाओं के कारण था।
जैन धर्म का भारतीय संस्कृति और समाज पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ा। स्थानीय भाषाओं, कला, वास्तुकला, मानव जाति के सामाजिक कल्याण आदि के विकास ने हजारों लोगों को नए धर्म को अपनाने के लिए आकर्षित किया।
निष्कर्ष
भारत सामाजिक और धार्मिक अशांति का काल था। पुराने कर्मकांड वैदिक काल के कारण बौद्धिक अशांति फैली, साथ ही उस काल में कई सामाजिक और आर्थिक असमानताएँ भी मौजूद थीं। लोग एक अलग तरह का समाज और एक नई आस्था प्रणाली चाहते थे।
छठी शताब्दी के अनुष्ठानों और जटिल समारोहों ने लोगों को धार्मिक विश्वासों और प्रथाओं से अलग कर दिया। इसने जैन धर्म के उत्थान में मदद की क्योंकि इसने अर्थहीन अनुष्ठानों को कोई महत्व नहीं दिया। लोगों को महावीर के उपदेश समझने योग्य और स्वीकार्य लगे क्योंकि उन्होंने संस्कृत के बजाय एक आम भाषा का इस्तेमाल किया, जिसे आम लोग नहीं समझ सकते थे। जैन धर्म का भारतीय संस्कृति और समाज पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ा।
बघुनिया ग्राम का मुक्ति धाम शामगढ़ तहसील मुख्यालय से 17 किलोमीटर दूरी पर है | बघुनिया ग्राम के मुक्ति धाम के विकास कार्यों के बारे में प्राप्त जानकारी इस प्रकार है- मुक्तिधाम समिति की देख रेख में विकास कार्य तीव्र गति से हो रहे हैं, जिनमें: - वाल बाउंड्री निर्माण किया गया है। - 2 बीघा जमीन पर पेड़-पौधे लगाए गए हैं। - बरसात से बचने के लिए चदर का शेड बनाने की योजना है। डॉ. दयाराम आलोक जी द्वारा मुक्तिधाम को 4 सिमेंट की बेंच दान करना एक महान कार्य है, जो दर्शनार्थियों के लिए बैठक सुविधा प्रदान करेगी। यह दान दामोदर पथरी अस्पताल शामगढ़ के माध्यम से किया गया है और ग्राम सरपंच पुष्कर लाल जी पाटीदार और समिति के सदस्यों ने दान दाता का सम्मान किया है।
इस प्रयास से:
- मुक्तिधाम का विकास होगा। - दर्शनार्थियों को बैठक सुविधा प्रदान होगी। - समाज में धार्मिक और आध्यात्मिक जागरूकता बढ़ेगी। - डॉ. दयाराम आलोक जी का दान एक उत्कृष्ट उदाहरण बनेगा। आपकी इस पहल को मैं हृदय से धन्यवाद देता हूँ और आशा करता हूँ कि आपका यह कार्य समाज में एक उत्कृष्ट उदाहरण बनेगा
मंदसौर,झालावाड़ ,आगर,नीमच,रतलाम जिलों के
मन्दिरों,गौशालाओं ,मुक्ति धाम हेतु
समाजसेवी
डॉ.दयाराम जी आलोक शामगढ़ का आध्यात्मिक दान--पथ
मित्रों ,
परमात्मा की असीम अनुकंपा और कुलदेवी माँ नागणेचिया के आशीर्वाद और प्रेरणा से डॉ.दयारामजी आलोक द्वारा आगर,मंदसौर,झालावाड़ ,कोटा ,झाबुआ जिलों के चयनित मंदिरों और मुक्तिधाम में निर्माण/विकास / बैठने हेतु सीमेंट बेंचें/ दान देने का अनुष्ठान प्रारम्भ किया है| मैं एक सेवानिवृत्त अध्यापक हूँ और अपनी 5 वर्ष की कुल पेंशन राशि दान करने का संकल्प लिया है| इसमे वो राशि भी शामिल रहेगी जो मुझे google कंपनी से नियमित प्राप्त होती रहती है| खुलासा कर दूँ कि मेरी 6 वेबसाईट हैं और google उन पर विज्ञापन प्रकाशित करता है| विज्ञापन से होने वाली आय का 68% मुझे मिलता है| यह दान राशि और सीमेंट बेंचें पुत्र डॉ.अनिल कुमार राठौर "दामोदर पथरी अस्पताल शामगढ़ "के नाम से समर्पित हो रही हैं|
वैकुंठ धाम बघुनिया को
4 सिमेन्ट की बेंच भेंट.12/9/2024
वैकुंठ धाम बघुनिया के संरक्षक और शुभ चिंतक-
पुष्कर लाल जी पाटीदार सरपंच बघुनिया 95894 53541
किशोरजी पटेल 8435530498
बसंती लालजी पाटीदार 9752457588
मुकेशजी राठौर 9981777012
दयाराम जी चौधरी 6261356017
पपू लाल जी पँवार बघुनिया 9993073078
डॉ.अनिल कुमार दामोदर s/o डॉ.दयाराम जी आलोक 99265-24852,,दामोदर पथरी अस्पताल शामगढ़98267-95656 द्वारा मुक्ति धाम बघुनिया हेतु दान सम्पन्न 12/9/2024
नाहरगढ़ ग्राम पंचायत मंदसौर जिला परिषद के सीतामऊ पंचायत समिति में स्थित मुक्ति धाम के सौंदर्यीकरण के लिए राकेश जी पंवार पेंटर के प्रयासों की जानकारी मुझे मिली है। यह एक सराहनीय कार्य है जो समाज में धार्मिक और आध्यात्मिक जागरूकता को बढ़ावा देता है।
डॉ. दयाराम आलोक जी द्वारा मुक्तिधाम को 4 सिमेंट की बेंच दान करने का निर्णय लेना एक महान कार्य है, जो दर्शनार्थियों के लिए बैठक सुविधा प्रदान करेगा। यह दान डॉ. अनिल कुमार राठौड़,दामोदर पथरी अस्पताल शामगढ़ के माध्यम से किया गया है .
मुक्तिधाम समिति के सदस्यों और राकेश जी पंवार पेंटर ने दान दाता का सम्मान किया है।
इस प्रयास से:
- मुक्तिधाम का सौंदर्यीकरण होगा।
- दर्शनार्थियों को बैठक सुविधा प्रदान होगी।
- समाज में धार्मिक और आध्यात्मिक जागरूकता बढ़ेगी।
- डॉ. दयाराम आलोक जी का दान एक उत्कृष्ट उदाहरण बनेगा।
आपकी इस पहल को मैं हृदय से धन्यवाद देता हूँ और आशा करता हूँ कि आपका यह कार्य समाज में एक उत्कृष्ट उदाहरण बनेगा|
नाहरगढ़ के मुक्ति धाम मे दान दाता का शिलालेख लगाया गया विडिओ video Nahar garh mukti dham
मंदसौर,झालावाड़ ,आगर,नीमच,रतलाम जिलों के
मन्दिरों,गौशालाओं ,मुक्ति धाम हेतु
समाजसेवी
डॉ.दयाराम जी आलोक शामगढ़ का आध्यात्मिक दान--पथ
मित्रों ,
परमात्मा की असीम अनुकंपा और कुलदेवी माँ नागणेचिया के आशीर्वाद और प्रेरणा से डॉ.दयारामजी आलोक द्वारा आगर,मंदसौर,झालावाड़ ,कोटा ,झाबुआ जिलों के चयनित मंदिरों और मुक्तिधाम में निर्माण/विकास / बैठने हेतु सीमेंट बेंचें/ दान देने का अनुष्ठान प्रारम्भ किया है| मैं एक सेवानिवृत्त अध्यापक हूँ और अपनी 5 वर्ष की कुल पेंशन राशि दान करने का संकल्प लिया है| इसमे वो राशि भी शामिल रहेगी जो मुझे google कंपनी से नियमित प्राप्त होती रहती है| खुलासा कर दूँ कि मेरी 6 वेबसाईट हैं और google उन पर विज्ञापन प्रकाशित करता है| विज्ञापन से होने वाली आय का 68% मुझे मिलता है| यह दान राशि और सीमेंट बेंचें पुत्र डॉ.अनिल कुमार राठौर "दामोदर पथरी अस्पताल शामगढ़ "के नाम से समर्पित हो रही हैं|
मुक्ति धाम नाहरगढ़(सितामऊ) हेतु
4 सिमेन्ट की बेंच भेंट.12/9/2024
नाहरगढ़ मुक्ति धाम मे बेंचें स्थापित
मुक्तिधाम नाहरगढ़ -सितामऊ के संरक्षक और शुभ चिंतक
ब्रिजराज सिंह जी सरपंच नाहरगढ़
राकेश जी पँवार पेंटर नाहरगढ़ सितामऊ वाले
डॉ.अनिल कुमार दामोदर s/o डॉ.दयाराम जी आलोक 99265-24852,,दामोदर पथरी अस्पताल शामगढ़98267-95656 द्वारा मुक्ति धाम नाहरगढ़ हेतु दान सम्पन्न 12/9/2024