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3.3.25

वैश्य जाती का गौरव शाली इतिहास |History of vaishya caste


vaishya saaamaj ke itihas ka video 
                                     


वैश्य हिंदू वर्ण व्यवस्था के चार वर्णों में से एक है। वैश्य हिन्दू जाति व्यवस्था के अंतर्गत वर्णाश्रम का तृतीय एवं महत्त्वपूर्ण स्तंभ है। इस समुदाय में प्रधान रूप से किसान, पशुपालक, और व्यापारी समुदाय शामिल हैं। संस्कृत मे विश् शब्द का तात्पर्य है प्रजा। प्राचीन काल में प्रजा (अर्थात समाज) को विश् नाम से संबोधित किया जाता था। इसके मुख्य संरक्षक को विशपति (यानि राजा) कहते थे,
 मनु के अनुसार चार प्रधान सामाजिक वर्ण शूद्र, वैश्य, क्षत्रिय तथा ब्राह्मण थे, जिनमें सभ्यता के विकास के संग-संग नए व्यवसाय भी बाद में जुड़ते चले गए थे। 

व्युत्पत्ति

 मनुस्मृति के मुताबित वैश्यों की उत्पत्ति ब्रह्मा के उदर अर्थात पेट से हुई है। हालाकि कुछ अन्य विचारों के अनुसार ब्रह्मा से जन्मने वाले ब्राह्मण हुए और विष्णु भगवान से पैदा होने वाले वैश्य कहलाये और शंकर जी से   जिनकी उत्पत्ति हुई वो क्षत्रिय कहलाए. आज भी इसलिये ब्राह्मण  माँ सरस्वती (विद्या की देवी), वैश्य  माँ लक्ष्मी (धन की देवी), क्षत्रिय माँ दुर्गे (दुष्टों को विनाश करने वाली) को पूजते है।

वैश्य वर्ण का इतिहास

ज्यों-ज्यों क्षमता और सामर्थ्य बढ़ा, उसी के मुताबित नये किसान व्यवसायी समुदाय के पास शूद्रों की तुलना मे  ज्यादा साधन आते गये और वह एक ही जगह पर निवास कर सुखमय जीवन व्यतीत करने लगे। अब उनका प्रमुख उद्देश्य  ज्यादा सुख-सम्पदा एकत्रित करना था। इस व्यवसाय को संचालित करने हेतु व्यापारिक कौशल्या, सूझबूझ, व्यवहार-कुशलता, वाक्पटुता, परिवर्तनशीलता, खतरा अथवा जोखिम उठाने की क्षमता व साहस, धीरज, परिश्रम की जरुरत थी। जिन्होंने इस प्रकार की क्षमता हासिल कर ली थी, वह वैश्य वर्ग में शामिल हो गया। वैश्य कृषि-खेती, उत्पादक वितरण, पशुपालन और कृषि से जुडी औज़ारों व उपकरणों के संधारण (रखरखाव) तथा क्रय-विक्रय का व्यवसाय करने लगे। उनका जीवन शूद्र वर्ग के लोगो से अधिक आरामदायक हो गया और उन्होंने शूद्र जाति के लोगो को अनाज, कपड़ा, रहने का व्यवस्था आदि की जरुरी सुविधायें प्रदान कर अपनी मदद के लिये निजी अधिकार में रखना प्रारंभ कर दिया। 

बनिया के पूर्वज कौन थे?

बनियों का मानना ​​है कि इस समुदाय की उत्पत्ति 5000 साल पहले हुई थी, जब अग्रोहा, हरियाणा के पूर्वज महाराजा अग्रसेन (या उग्रसैन) ने वैश्य (हिंदू वर्ण व्यवस्था में तीसरा) समुदाय को 18 कुलों में विभाजित किया था।
वैश्य वर्ग को 'कोमाटी' या 'कोमाटिगा' भी कहा जाता है. उत्तर भारत में इन्हें 'बनिया' कहा जाता है. वहीं, दक्षिण भारत के व्यापारियों को चेट्टी या चेट्टियार कहा जाता है.
वैश्यों को पौराणिक राजा वैश्रवण के वंशज माना जाता है.
वैश्यों ने भारत के आर्थिक विकास में अहम भूमिका निभाई.
वैश्यों ने राज्य के प्रशासन में भी अहम भूमिका निभाई.
वैश्यों ने कर संग्रहकर्ता, लेखाकार, और अन्य प्रशासनिक पदों पर काम किया.
वैश्यों ने मुगल साम्राज्य के दौरान साहूकार, व्यापारी, और किसान के रूप में काम किया.
वैश्यों में कई लोग वित्त, आईटी, और विनिर्माण जैसे विभिन्न उद्योगों में लगे हुए हैं.

क्या बनिया वैश्य हैं?

बनिया शब्द का इस्तेमाल आम तौर पर उत्तर और मध्य भारत में व्यापारिक जातियों के लिए किया जाता है और इन जातियों को वर्ण व्यवस्था में वैश्य का दर्जा दिया गया है.बनिया ( जिसे वानिया भी कहते हैं) शब्द संस्कृत के शब्द वणिज से लिया गया है, जिसका अर्थ है "व्यापारी।"
इस शब्द का इस्तेमाल भारत की पारंपरिक व्यापारिक या व्यवसायिक जातियों के सदस्यों की पहचान करने के लिए व्यापक रूप से किया जाता है। इस प्रकार, बनिया लोग साहूकार, व्यापारी और दुकानदार होते हैं।

वैश्य वर्ण के लोग कैसे होते हैं?

अपने दृष्टिकोण पर ईमानदारी से काम करते हुए, एक वैश्य खुद को क्षत्रिय या ब्राह्मण जैसी उच्च चेतना में बदल सकता है। वैश्य के मामले में, वे जो भी काम या पेशा करते हैं, उनका मुख्य लक्ष्य अपने और अपने परिवार के लिए धन और संपत्ति अर्जित करना होता है। 

बनिया जाति में कुल 56 उपजातियां हैं. 
इनमें से कुछ प्रमुख उपजातियां ये हैं:

अग्रवाल, गुप्ता, खंडेलवाल, माहेश्वरी, राजशाही, राघव, भाटी, जायसवाल, मेहता, केजरीवाल.
बनिया जाति के लोग मुख्य रूप से गुजरात और राजस्थान के रहने वाले हैं. इसके अलावा, ये लोग उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र और अन्य उत्तरी राज्यों में भी रहते हैं.
बनिया जाति के लोग धार्मिक रूप से आम तौर पर जैन या हिंदू होते हैं. ये लोग औपचारिक शुद्धता का पालन करने में सख्त होते हैं.
बनिया जाति के लोग व्यापार, बैंकिंग, साहूकारी और वाणिज्यिक उद्यमों के मालिक होते हैं. ये लोग देश की अर्थव्यवस्था का अहम हिस्सा हैं.
बनिया जाति को हिंदू जाति व्यवस्था में तीसरे स्तर का दर्जा प्राप्त है. वे शूद्रों से ऊपर हैं, लेकिन ब्राह्मणों और क्षत्रियों से नीचे हैं.

बनिया और जैन में क्या अंतर है?

जैन का अर्थ है जैन धर्म को मानने वाला . बनिया शब्द संस्कृत के वणिक शब्द का अपभ्रंश या देशी रूप है जिसका अर्थ है वणिज या व्यापार करने वाला . बनिया लोग  सभी धर्मों में होते हैं

वैश्यों का गोत्र क्या है?

वैश्य समाज के लोगों के कई गोत्र होते हैं, जैसे कश्यप, अत्रि, भारद्वाज, गौतम, जमदग्नि, वशिष्ठ, और विश्वामित्र. गोत्र ऋषियों के संस्कृत नामों के समतुल्य होते हैं.

आर्य वैश्यों के 102 गोत्र हैं.

आर्य वैश्य अपने अनुष्ठानों के लिए 102 ऋषियों का अनुसरण करते थे.
सभी आर्य वैश्यों की पहचान और वर्गीकरण के लिए उपनाम गोत्र और ऋषि एक ही हैं.
भारत में गोत्र पद्धति के ज़रिए आपके वंश का पता चलता है. यह बहुत प्राचीन भारतीय पद्धति है..
वैश्य समाज के लोग पारंपरिक रूप से व्यापारी हैं.
वैश्य समाज के लोग व्यापार या अन्न से जुड़े काम करके लोगों का पेट भरते हैं.
उत्तर भारत में वैश्य समाज के लोगों को 'बनिया' कहा जाता है.
दक्षिण भारत में वैश्य समाज के लोगों को 'चेट्टी' या 'चेट्टियार' कहा जाता है.
महावर वैश्य समुदाय के लोगों को महाजन के नाम से भी जाना जाता है.
Disclaimer: इस लेख में दी गई जानकारी Internet sources, Digital News papers, Books और विभिन्न धर्म ग्रंथो के आधार पर ली गई है. Content को अपने बुद्धी विवेक से समझे।