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15.2.25

काछी,कुशवाहा समाज की उत्पत्ति और इतिहास |History of Kushwaha caste

 

                                      काछी,कुशवाहा समाज की उत्पत्ति और इतिहास  का विडिओ                        


   आज हम जिस जाति की बात कर रहे हैं, वह कोई एक जाति नहीं, बल्कि जातियों का एक समूह है. मूल बात यह है कि ये सभी कृषक जातियां हैं. फिर चाहे वह कोईरी हों, दांगी हों या फिर काछी हों. सबसे पहले कोईरी/कुशवाहा की बात करते हैं जो बिहार में एक महत्वपूर्ण जाति रही है.
  कुशवाहा जाति भारतीय समाज की एक प्रमुख कृषि प्रधान जाति है, जिसका इतिहास प्राचीन काल से लेकर आधुनिक युग तक विस्तृत और विविधतापूर्ण रहा है। यह जाति मुख्यतः उत्तर भारत, विशेषकर उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान, और मध्य प्रदेश में पाई जाती है। कुशवाहा जाति को कई नामों से जाना जाता है, जैसे मौर्य, शाक्य, सैनी, और काछी।
काछी , कच्छवाहा सूर्यवंशी क्षत्रिय है जो कि समन्वित उद्भव का दावा करते हैं। यह समुदाय कुशवाह नाम से जाना जाता है। यह समुदाय  विष्णु के अवतार भगवान राम के पुत्र कुश के वंशज तथा सूर्यवंश से अवतरित हैं,            कुशवाह समुदाय की जातियाँ- कछवाहा, मुराव, काछी व कोइरी स्वयं को शिव व शाक्त सम्प्रदाय से जुड़ा हुआ मानते हैं ।  
प्राचीन काल
कुशवाहा जाति का उल्लेख प्राचीन भारतीय साहित्य और पौराणिक कथाओं में मिलता है। यह जाति भगवान राम के पुत्र कुश से अपनी उत्पत्ति मानती है, इसलिए इन्हें कुशवाहा कहा जाता है। इसके अलावा, यह जाति चंद्रवंश से भी संबंध रखती है। कुशवाहा जाति का प्राचीन इतिहास कृषि और बागवानी से गहराई से जुड़ा हुआ है। वैदिक और पौराणिक ग्रंथों में इस जाति के लोग कृषि कार्यों में निपुण माने जाते थे।
मध्यकालीन इतिहास
मध्यकाल में कुशवाहा जाति ने विभिन्न राज्यों और साम्राज्यों में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इस दौरान इस जाति के लोग कृषि कार्यों के अलावा सैनिक और शासक के रूप में भी सक्रिय रहे। कुशवाहा जाति के लोगों ने विभिन्न क्षत्रिय राजवंशों में अपनी जगह बनाई और सामाजिक तथा राजनीतिक क्षेत्रों में योगदान दिया। राजस्थान में सैनी और मौर्य जातियों के रूप में कुशवाहा जाति के लोग प्रसिद्ध हुए।
ब्रिटिश काल
ब्रिटिश शासन के दौरान कुशवाहा जाति की स्थिति में कुछ हद तक बदलाव आया। अंग्रेजों ने भारतीय समाज को समझने और वर्गीकृत करने के लिए कई जनगणनाएं और सर्वेक्षण किए। कुशवाहा जाति के लोग मुख्यतः कृषि कार्यों में लगे रहे, लेकिन इस दौरान शिक्षा और सामाजिक सुधारों की दिशा में भी कदम बढ़ाए गए। कुशवाहा जाति के लोगों ने स्वतंत्रता संग्राम में भी सक्रिय भूमिका निभाई और कई कुशवाहा नेताओं ने स्वतंत्रता संग्राम में हिस्सा लिया।
आधुनिक काल
स्वतंत्रता के बाद, कुशवाहा जाति ने शिक्षा, राजनीति, और व्यवसाय के क्षेत्र में महत्वपूर्ण प्रगति की। कई कुशवाहा नेता और समाज सुधारक उभरे जिन्होंने अपने समाज के विकास के लिए कार्य किया। कुशवाहा जाति के लोग आज विभिन्न पेशों में सफलतापूर्वक कार्यरत हैं और समाज में अपनी महत्वपूर्ण पहचान बना चुके हैं।
कुशवाहा जाति की संस्कृति और परंपराएं
कुशवाहा जाति की संस्कृति और परंपराएं समृद्ध और विविधतापूर्ण हैं। यह जाति कृषि और बागवानी में निपुण मानी जाती है और इनकी आजीविका का मुख्य साधन भी यही है। कुशवाहा समाज में पारंपरिक त्योहारों और रीति-रिवाजों का विशेष महत्व है। विवाह, जन्म, और अन्य सामाजिक समारोहों में पारंपरिक गीत, नृत्य, और व्यंजन प्रमुख होते हैं।
  जाती इतिहास कर डॉ. दयाराम आलोंक लिखते है कुशवाहा जाति का इतिहास प्राचीन काल से लेकर आधुनिक युग तक एक समृद्ध और विविधतापूर्ण यात्रा है। इस जाति ने भारतीय समाज के विभिन्न क्षेत्रों में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। कृषि, बागवानी, शिक्षा, और राजनीति में कुशवाहा जाति के लोगों की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। इस जाति की सांस्कृतिक और पारंपरिक धरोहर इसे भारतीय समाज का एक अभिन्न हिस्सा बनाती है। कुशवाहा जाति का यह गौरवपूर्ण इतिहास आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करता रहेगा और समाज के विकास में योगदान देने के लिए प्रेरित करेगा।
कुशवाहा समाज के लोग आमतौर पर कश्यप गोत्र से संबंधित होते हैं। हालांकि, कुछ कुशवाहा लोग विभिन्न अन्य गोत्रों से भी संबंधित हो सकते हैं, जैसे अत्रि, वशिष्ठ, और गौतमी।कुशवाहा समाज मुख्य रूप से व्यापार, कृषि, और शिल्प से जुड़ा हुआ होता है। यह समाज विशेष रूप से उत्तर भारत के कुछ हिस्सों में पाया जाता है।
कुशवाहा समाज की कुलदेवी जमुवाय माता है|  
कुशवाहा कितने प्रकार के होते हैं?
कुशवाह शब्द कम से कम चार उपजातियों (कुशवाह, कछवाहा, कोइरी व मुराओ) के लिए प्रयोग किया जाता हैं. वर्तमान में कच्छवाहा , कोईरी, मुराव , व मौर्य कुशवाहा समाज के की उपजातियां है।
पिछड़ी जाति के रूप में वर्गीकरण
2013 में हरियाणा सरकार ने कुशवाह, कोइरी और मौर्य जातियों को पिछड़े वर्गों की सूची में शामिल किया। बिहार में उन्हें ओबीसी के रूप में वर्गीकृत किया गया है। उत्तर प्रदेश में कुशवाह समुदाय की उपजातियाँ, जैसे कच्छी, शाक्य और कोइरी, भी ओबीसी के रूप में वर्गीकृत हैं।
Disclaimer: इस लेख में दी गई जानकारी Internet sources, Digital News papers, Books और विभिन्न धर्म ग्रंथो के आधार पर ली गई है. Content को अपने बुद्धी विवेक से समझे।