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10.2.25

खटीक जाति का इतिहास|History of khatik caste


                                            
                                                 खटीक जाति का इतिहास का विडिओ                



खटीक जाति का इतिहास प्राचीन है और विविधता से भरा हुआ है. खटीक शब्द संस्कृत के 'खट्टीका' शब्द से बना है, जिसका मतलब है कसाई या शिकारी. खटीक समाज के लोग पारंपरिक रूप से मांस, चमड़ा, और मछली का कारोबार करते थे.
खटिक, भारत में पायी जाने वाली एक जाति है। भारत में ये राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल और गुजरात में पायी जाती है। भारत के अधिकांश खटिक हिन्दू हैं।
खटीक उत्तर भारत में व्यापक रूप से वितरित समुदाय है, और प्रत्येक खटीक समूह का अपना मूल मिथक है। उनमें जो समानता है वह यह है कि वे ऐतिहासिक रूप से क्षत्रिय थे जिन्हें राजाओं द्वारा किए गए यज्ञों में जानवरों को मारने का काम सौंपा गया था। आज भी, केवल खटिकों को हिंदू मंदिरों में बलि चढ़ाने के दौरान जानवरों को मारने का अधिकार है।
उनकी परंपराओं के अनुसार, भगवान ब्रह्मा ने उन्हें बकरी की खाल, पेड़ों की छाल और लाख सौंपी थी - ताकि वे मवेशियों को चरा सकें, बकरी और हिरण की खाल को रंग सकें; और छाल और लाख से तन छिपा रहता है। एक अन्य परंपरा का दावा है कि खटिक शब्द की उत्पत्ति हिंदी शब्द खाट से हुई है, जिसका अर्थ है तत्काल हत्या। वे इसे शुरुआती दिनों से जोड़ते हैं जब वे राजस्थान के राजाओं को मटन की आपूर्ति करते थे। जबकि अन्य स्रोतों का दावा है कि खटिक शब्द की उत्पत्ति संस्कृत शब्द कथिका से हुई है, जिसका अर्थ है कसाई या शिकार करना। पंजाब के खटीक बकरी और भेड़ की खाल को काला करने और रंगने के लिए नमक और मदार के पेड़ (कैलोट्रोपिस प्रोसेरा) के रस का इस्तेमाल करते थे।

khatik jati ke itihas ka video-

खटीक जाति मूल रूप से ब्राह्मण जाति है, जिनका काम आदि काल में याज्ञिक पशु बलि देना होता था। आदि काल में यज्ञ में बकरे की बलि दी जाती थी। संस्कृत में इनके लिए शब्द है, 'खटिटक'।
मध्यकाल में जब क्रूर इस्लामी अक्रांताओं ने हिंदू मंदिरों पर हमला किया, तो सबसे पहले खटिक जाति के ब्राह्मणों ने ही उनका प्रतिकार किया। राजा व उनकी सेना तो बाद में आती थी, उससे पहले मंदिर परिसर में रहने वाले खटीक ही उनका मुकाबला किया करते थे।
तैमूरलंग को दीपालपुर व अजोधन में खटीक योद्धाओं ने ही रोका था और सिकंदर को भारत में प्रवेश से रोकने वाली सेना में भी सबसे अधिक खटीक जाति के ही योद्धा थे। तैमूर खटीकों के प्रतिरोध से इतना भयाक्रांत हुआ कि उसने सोते हुए हजारों खटीक सैनिकों की हत्या करवा दी और 1,00,000 सैनिकों के सिर का ढेर लगवाकर उस पर रमजान की तेरहवीं तारीख पर नमाज अदा की।
मध्यकालीन बर्बर दिल्ली सल्तनत में गुलाम, तुर्क, लोदी वंश और मुगल शासनकाल में जब अत्याचारों की मारी हिंदू जाति मौत या इस्लाम का चुनाव कर रही थी, तो खटीक जाति ने अपने धर्म की रक्षा और बहू बेटियों को मुगलों की गंदी नजर से बचाने के लिए अपने घर के आसपास सूअर बांधना शुरू किया।
इस्लाम में सूअर को हराम माना गया है। मुगल तो इसे देखना भी हराम समझते थे और खटीकों ने मुस्लिम शासकों से बचाव के लिए सूअर पालन शुरू कर दिया। उसे उन्होंने हिंदू के देवता विष्णु के वराह (सूअर) अवतार के रूप में लिया। मुस्लिमों की गौहत्या के जवाब में खटीकों ने सूअर का मांस बेचना शुरू कर दिया और धीरे-धीरे यह स्थिति आई कि वह अपने ही हिंदू समाज में पद्दलित होते चले गए। कल के शूरवीर ब्राहण आज अछूत और दलित श्रेणी में हैं।
1857 की लडाई में, मेरठ व उसके आसपास अंग्रेजों के पूरे के पूरे परिवारों को मौत के घाट उतारने वालों में खटीक समाज सबसे आगे था। इससे गुस्साए अंग्रेजों ने 1891 में पूरी खटीक जाति को ही वांटेड और अपराधी जाति घोषित कर दिया।
जब आप मेरठ से लेकर कानपुर तक 1857 के विद्रोह की कहानी पढेंगे, तो रोंगटे खडे हो जाए्ंगे। जैसे को तैसा पर चलते हुए खटीक जाति ने न केवल अंग्रेज अधिकारियों, बल्कि उनकी पत्नी बच्चों को इस निर्दयता से मारा कि अंग्रेज थर्रा उठे। क्रांति को कुचलने के बाद अंग्रेजों ने खटीकों के गाँव के गाँव को सामूहिक रूप से फांसी दे दिया गया और बाद में उन्हें अपराधी जाति घोषित कर समाज के एक कोने में ढकेल दिया।
स्वतंत्रता से पूर्व जब मोहम्मद अली जिन्ना ने डायरेक्ट एक्शन की घोषणा की थी तो मुस्लिमों ने कोलकाता शहर में हिंदुओं का नरसंहार शुरू किया, लेकिन एक-दो दिन में ही पासा पलट गया और खटीक जाति ने मुस्लिमों का इतना भयंकर नरसंहार किया कि बंगाल के मुस्लिम लीग के मंत्री ने सार्वजनिक रूप से कहा कि हमसे भूल हो गई।
बाद में, इसी का बदला मुसलमानों ने बंग्लादेश में स्थित नोआखाली में लिया। आज हम आप खटीकों को अछूत मानते हैं, क्योंकि हमें उनका सही इतिहास नहीं बताया गया है, उसे दबा व साजिशन छुपा दिया गया है।
दलित शब्द का सबसे पहले प्रयोग अंग्रेजों ने 1931 की जनगणना में 'डिप्रेस्ड क्लास' के रूप में किया था। उसे ही बाबा साहब अंबेडकर ने अछूत के स्थान पर दलित शब्द में तब्दील कर दिया। इससे पूर्व पूरे भारतीय इतिहास व साहित्य में 'दलित' शब्द का उल्लेख कहीं नहीं मिलता है। मुस्लिमों के डर से अपना धर्म नहीं छोड़ने वाले, हिंसा और सूअर पालन के जरिए इस्लामी आक्रांताओं का कठोर प्रतिकार करने वाले एक शूरवीर ब्राहमण खटीक जाति को आज दलित वर्ग में रखकर अछूत की तरह व्यवहार किया और आज भी किया जा रहा है।
भारत में 1000 ईस्वी में केवल 1% अछूत जाति थी, लेकिन मुगल वंश की समाप्ति होते-होते इनकी संख्या 14% हो गई। आखिर कैसे ?
सबसे अधिक इन अनुसूचित जातियों के लोग आज के उत्तर प्रदेश, बिहार, बंगाल, मध्य भारत में है, जहाँ मुगलों के शासन का सीधा हस्तक्षेप था और जहाँ सबसे अधिक धर्मांतरण हुआ। आज सबसे अधिक मुस्लिम आबादी भी इन्हीं प्रदेशों में है, जो धर्मांतरित हो गये थे।
डॉ सुब्रहमनियन स्वामी लिखते हैं - ''अनुसूचित जाति उन्हीं बहादुर ब्राह्मण व क्षत्रियों के वंशज है, जिन्होंने जाति से बाहर होना स्वीकार किया, लेकिन मुगलों के जबरन धर्म परिवर्तन को स्वीकार नहीं किया। आज के हिंदू समाज को उनका शुक्रगुजार होना चाहिए, उन्हें कोटिश: प्रणाम करना चाहिए, क्योंकि उन लोगों ने हिंदू के भगवा ध्वज को कभी झुकने नहीं दिया, भले ही स्वयं अपमान व दमन झेला।''प्रोफेसर शेरिंग ने भी अपनी पुस्तक 'हिंदू कास्ट एंड टाईव्स' में स्पष्ट रूप से लिखा है कि - "भारत के निम्न जाति के लोग कोई और नहीं, बल्कि ब्राह्मण और क्षत्रिय ही हैं।" स्टेनले राइस ने अपनी पुस्तक "हिन्दू कस्टम्स एण्ड देयर ओरिजिन्स" में यह भी लिखा है कि - "अछूत मानी जाने वाली जातियों में प्रायः वे बहादुर जातियां भी हैं, जो मुगलों से हारीं तथा उन्हें अपमानित करने के लिए मुसलमानों ने अपने मनमाने काम करवाए थे।"
यदि आज हम बचे हुए हैं तो अपने इन्हीं अनुसूचित जाति के भाईयों के कारण जिन्होंने नीच कर्म करना तो स्वीकार किया, लेकिन इस्लाम को नहीं अपनाया।

खटीक जाति के इतिहास के बारे में कुछ खास बातें:
प्राचीन काल में खटीक जाति के लोग याज्ञिक पशु बलि देते थे.
पुराणों में खटक ब्राह्मणों का उल्लेख मिलता है.
गुजरात में खटीक जाति के लोगों को 'खाटकी' कहा जाता है.
राजस्थान में खटीक जाति के लोग राजपूत या क्षत्रिय से वंश का दावा करते हैं.
खटीक समाज के लोग सदियों से समाज के मांसाहारी वर्ग की सेवा करते आ रहे हैं.
खटीक समाज के लोग समय के साथ शिक्षा और अन्य पेशों में भी उन्नति कर रहे हैं.
खटीक समाज के लोग देश और हिंदू धर्म के लिए हमेशा खड़े रहे हैं.
खटीक समाज के लोगों को कानूनी तौर पर अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग श्रेणियों में रखा गया है.
खटिक जाति मूल रूप से वो जाति है, जिनका काम आदि काल में याज्ञिक पशु बलि देना होता था। आदि काल में यज्ञ में बकरे की बलि दी जाती थी। संस्कृत में इनके लिए शब्द है, ‘खटिटक’।
खटीक पहले वामामार्गी मन्दिरो में पशु बलि का कार्य करते थे। पुराणों में खटक ब्राह्मणों का उल्लेख है जो पशु बलि देते थे, जिनके हाथ से दी गयी बलि ही स्वीकार होती थी। खटीक शब्द खटक से बना है यानी जो खटका काटे यानी खटका मांस यानी एक झटके में सर काटने वाला खटीक हुआ। मुसलमान जबा यानी रेत कर गर्दन काटते थे और खटीक झटके से। खटिक के बहुत से गोत्र है जिनमे सोयल खटिक बघेरवाल आदि गोत्र है। सोनकर भी खटिक जाति के अन्तर्गत आता हैं।
खटिक शब्द संस्कृत खटिका से व्युत्पन्न है एक कस्तूरा या शिकारी जिसका अर्थ है। एक और व्युत्पत्ति शब्द खत से है जिसका अर्थ है कि तत्काल हत्या। अपने समुदाय के मूल के बारे में कई संस्करण हैं गुजरात में उन्हें ‘खाटकी' व राजस्थान मे खटीक कहा जाता है, वे राजपूत या क्षत्रिय से वंश का दावा करते हैं, जो शासक के दूसरे सबसे उच्च योद्धा वर्ग हैं। 
खटीक को गुजरात, बिहार, झारखंड, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना में अन्य पिछड़ा वर्ग और महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, पंजाब, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़, राजस्थान और दिल्ली में अनुसूचित जाति के रूप में पहचाना जाता है।
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