माली और सैनी समाज का इतिहास
माली ” शब्द की उत्पत्ति संस्कृत के शब्द माला से हुई है , एक पौराणिक कथा के अनुसार माली कि उत्पत्ति भगवान शिव के कान में जमा धुल (कान के मेल ) से हुई थी ,वहीँ एक अन्य कथा के अनुसार एक दिन जब पार्वती जी अपने उद्यान में फूल तोड़ रही थी कि उनके हाथ में एक कांटा चुभने से खून निकल आया , उसी खून से माली कि उत्पत्ति हुई और वहीँ से माली समाज Mali Samaj अपने पेशे बागवानी Bagwani से जुडा |
माली समाज में एक वर्ग राजपूतों की उपश्रेणियों का है | भारत के अंतिम हिंदू सम्राट पृथ्वी राज चौहान के पतन के बाद जब शहाबुद्दीन गौरी और मोहम्मद गौरी शक्तिशाली हो गए और उन्होंने दिल्ली एवं अजमेर पर अपना कब्ज़ा कर लिया तथा अधिकाश राजपूत प्रमुख लड़ाई में मारे गए या मुग़ल शासकों द्वारा बंदी बना लिए गए , उन्ही बाकि बचे राजपूतों में कुछ ने मुस्लिम धर्म स्वीकार कर लिया और कुछ राजपूतों ने बागवानी और खेती का पेशा अपनाकर अपने आप को मुगलों से बचाए रखा , और वे राजपूत आगे चलकर माली कहलाये !
माली समाज का इतिहास : किसी भी जाती, वंश एव कुल परम्परा के विषय मे जानकारी के लिये पूर्व इतिहास एव पूर्वजो का ज्ञान होना अति आवश्यक है| इसलिए सैनी जाती के महत्वपूर्ण पुरुषो के विषय मे जानकारी हेतु महाभारत काल के पूर्व इतिहास पर द्रष्टि डालना अति आवश्यक है| सैनी शब्द की उत्पत्ति “महाराजा शूर सैनी” के नाम से हुई है, वह एक पराक्रमी शूर वीर योद्धा थे और महाराजा शूर सैनी " सम्राट शूरसेन " के पुत्र थे । कभी वर्तमान के मथुरा नगर पर सम्राट शूरसेन का शासन हुआ करता था , मथुरा प्राचीन भारत के 16 महाजनपदों में से एक था |
महाराजा शूर सैनी का जन्म महाभारत काल में हुआ था, वह एक शूरवीर क्षत्रिय थें , प्राचीन ऐतिहासिक अभिलेखों के अनुसार मथुरा " शूरसेन महाजनपद " की राजधानी थी और सम्राट शूरसैन वासुदेव के पिता और भगवान कृष्ण के दादा थे । इस पौराणिक मान्यता के अनुसार यही वह वंश है , जिसमें श्री कृष्ण का जन्म हुआ था और महाराजा शूर सैनी के वंशज ही सैनी कहलाए ।सम्राट शूरसेन का विवाह हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार मारिशा नाम की एक नागा (या नागिन) महिला से हुआ था। भीम के लिए वासुकी के वरदान का कारण मारिशा ही थी |
महाभारत काल के बाद सैनी कुल के अन्तिम चक्रवर्ती सम्राट वीर विक्रेमादित्य हुए है जिनके नाम पर आज भी विक्रम सम्वत प्रचलित है|
शूरसैनी जाति की बड़ी आबादी पंजाब और हरियाणा में पाई जाती है , इस जाति के लोग सेना में बड़े अधिकारी होते हैं और बड़े जमींदार भी होते हैं । शूरसैनी ही असली सैनी है जो प्राचीन काल से अपनी संस्कृति से जुड़े हुए हैं ।
उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश मे सैनी जाति के लोगों को भागीरथी माली और गोले के नाम से जाना जाता है । यह लोग पहले " फूल माली " के नाम से भी जाने जाते थे ।
भागीरथी माली का इतिहास : - भारत के बड़े इतिहासकार मानते हैं कि भागीरथी माली और गोले प्राचीन जाति हैं । इन दोनों जातियों के लोग मूल रूप से पश्चिमी उत्तर प्रदेश में पाए जाते हैं , भागीरथी और गोले जाति के लोगों को सगरवंशी भी कहा जाता है और इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि इन दोनों जातियों का संबंध राजा सागर और राजा भगीरथ से है । जो कि सागर वंशी है, मां गंगा को धरती पर लाने वाले राजा भागीरथ के वंशजों को भागीरथी माली कहा जाता है । यह दोनों जातियां ठाकुर क्षत्रिय जाति की दो उपजातियां हैं ।
उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश मे सैनी जाति के लोगों को भागीरथी माली और गोले के नाम से जाना जाता है । यह लोग पहले " फूल माली " के नाम से भी जाने जाते थे ।
भागीरथी माली का इतिहास : - भारत के बड़े इतिहासकार मानते हैं कि भागीरथी माली और गोले प्राचीन जाति हैं । इन दोनों जातियों के लोग मूल रूप से पश्चिमी उत्तर प्रदेश में पाए जाते हैं , भागीरथी और गोले जाति के लोगों को सगरवंशी भी कहा जाता है और इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि इन दोनों जातियों का संबंध राजा सागर और राजा भगीरथ से है । जो कि सागर वंशी है, मां गंगा को धरती पर लाने वाले राजा भागीरथ के वंशजों को भागीरथी माली कहा जाता है । यह दोनों जातियां ठाकुर क्षत्रिय जाति की दो उपजातियां हैं ।
वर्तमान में भागीरथी और गोले अपने आप को सूर्यवंशी बोलते हैं और यह मौर्य , कुशवाहा ,शाक्य और माली जाति से अपना संबंध बताते हैं । भागीरथी और गोले अपने आप को मौर्यवंशी भी मानने लगे हैं,
भागीरथी और गोले मूल रूप से छोटे किसान हुआ करते थे , जो फल फ्रूट और सब्जी की खेती किया करते थे और आज भी यह पश्चिमी उत्तर प्रदेश में सब्जी बेचने का कार्य करते हैं ।
भागीरथी और गोले वक्त वक्त पर अपना सरनेम बदलते रहे हैं । पहले माली , फिर सैनी और अब मौर्य ,कुशवाहा, शाक्य आदि उपनामों से जाने जाते हैं|
भागीरथी और गोले मूल रूप से छोटे किसान हुआ करते थे , जो फल फ्रूट और सब्जी की खेती किया करते थे और आज भी यह पश्चिमी उत्तर प्रदेश में सब्जी बेचने का कार्य करते हैं ।
भागीरथी और गोले वक्त वक्त पर अपना सरनेम बदलते रहे हैं । पहले माली , फिर सैनी और अब मौर्य ,कुशवाहा, शाक्य आदि उपनामों से जाने जाते हैं|
इन्हें भारत सरकार ने बैकवर्ड समाज ( OBC ) की श्रेणी में रखा है ।
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