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7.3.25

राजपूत जाती की उत्पत्ति और इतिहास History of Rajput caste


राजपूत इतिहास विडियो -



  राजपूत शब्द की सर्वप्रथम उत्पत्ति 6ठी शताब्दी ईस्वी में हुई थी. राजपूतों ने 6ठी शताब्दी ईस्वी से 12वीं सदी के बीच भारतीय इतिहास में एक प्रमुख स्थान प्राप्त किया था.
राजपूतों की उत्पत्ति के सन्दर्भ में विद्वानों ने कई सिद्धांत का उल्लेख किया हैं. श्री कर्नल जेम्स टॉड द्वारा दिए गए सिद्धांत के अनुसार राजपूतों की उत्पत्ति विदेशी मूल की थी. उनके अनुसार राजपूत कुषाण,शक और हूणों के वंशज थे. उनके अनुसार चूँकि राजपूत अग्नि की पूजा किया करते थे और यही कार्य कुषाण और शक भी करते थे. इसी कारण से उनकी उत्पति शको और कुषाणों से लगायी जाती थी.
इसी तरह दूसरे सिद्धांत के अनुसार राजपूतों को किसी भी विदेशी मूल से सम्बंधित नहीं किया जाता है. बल्कि उन्हें क्षत्रिय जाति से सम्बंधित किया जाता है. इस सन्दर्भ में यह कहा जाता है की चूँकि उनके द्वारा अग्नि की पूजा की जाती थी जोकि आर्यों के द्वारा भी सम्पादित किया जाता था. अतः राजपूतों की उत्पत्ति भारतीय मूल की थी.
तीसरे सिद्धांत के अनुसार राजपूत आर्य और विदेशी दोनों के वंशज थे. उनके अन्दर दोनों ही जातियों का मिश्रण सम्मिलित था.
चौथा सिद्धांत अग्निकुल सिद्धांत से संबंधित है. चंदवरदायी द्वारा १२वीं शताब्दी के अन्त में रचित ग्रन्थ 'पृथ्वीराज रासो' में चालुक्य (सोलंकी), प्रतिहार, चहमान तथा परमार राजपूतों की उत्पत्ति आबू पर्वत के अग्निकुण्ड से बतलाई है, किन्तु इसी ग्रन्थ में एक अन्य स्थल पर इन्हीं राजपूतों को "रवि - शशि जाधव वंशी" कहा है.
  इन तमाम विद्वानों के तर्को के आधार पर निष्कर्षतः यह कहा जा सकता है कि, यद्यपि राजपूत क्षत्रियों के वंशज थे, फिर भी उनमें विदेशी रक्त का मिश्रण  था. अतः वे न तो पूर्णतः विदेशी थे, न तो पूर्णत भारतीय.

राजपूत, क्षत्रिय वर्ण के लोग हैं. राजपूत शब्द, संस्कृत के 'राज-पुत्र' शब्द से बना है, जिसका मतलब है 'राजा का पुत्र'. राजपूतों को उनके साहस, वफ़ादारी, और राजशाही के लिए जाना जाता है.
राजपूतों की जाति में गोत्र, वंश, और शाखाएं उनके सामाजिक और भौगोलिक विभाजन के आधार पर बनी हैं.
राजपूतों को उनके साहस, वफ़ादारी और राजशाही के लिए सराहा गया.
राजपूतों ने राजस्थान और सौराष्ट्र की रियासतों में बीसवीं शताब्दी में सीमित बहुमत में शासन किया.

राजपूत और क्षत्रिय में क्या अंतर है?

राजपूत क्षत्रिय या क्षत्रियों के वंशज होने का दावा करते हैं , लेकिन उनकी वास्तविक स्थिति बहुत भिन्न है, जो राजसी वंश से लेकर आम किसानों तक फैली हुई है। राजस्थान के राजपूत अन्य क्षेत्रों के विपरीत विशिष्ट पहचान रखने के लिए जाने जाते हैं। इस पहचान को आमतौर पर "राजपूताना के गर्वित राजपूत" के रूप में वर्णित किया जाता है।
राजपूत और ठाकुर दोनों ही क्षत्रिय जाति के लोग होते हैं. राजपूत शब्द का मतलब है 'राजा का पुत्र'. राजपूत योद्धाओं की एक उप-वंशावली को राजपूत जाति कहते हैं. वहीं, ठाकुर शब्द का इस्तेमाल बड़े क्षत्रिय ज़मींदारों के लिए किया जाता था.

राजपूत और ठाकुर में अंतरः

राजपूत शब्द, राज शब्द से लिया गया है जिसका मतलब है 'राजा' और पूत का मतलब है 'पुत्र'.
ठाकुर शब्द का इस्तेमाल बड़े क्षत्रिय ज़मींदारों के लिए किया जाता था.
बी.डी. चट्टोपाध्याय के मुताबिक, 700 ईस्वी से उत्तर भारत में राजनीतिक और सैन्य परिदृश्य पर बड़े क्षत्रिय ज़मींदारों का दबदबा था.
इन ज़मींदारों में से कुछ पशुपालक जनजातियों और मध्य एशियाई आक्रमणकारियों के वंशज थे.
ये लोग बाद में राजपूत के नाम से जाने गए.
कई इतिहासकारों का मानना है कि क्षत्रिय जाति ही बाद में जाकर राजपूत जाति में बदली.
हिंदू धर्म में, क्षत्रिय समाज के लोग योद्धा जाति के प्रतिनिधि होते हैं. वे वर्ण व्यवस्था में ब्राह्मणों के बाद दूसरी सबसे ऊंची जाति हैं. क्षत्रिय समाज के लोग देश के रक्षक और शासक होते हैं.

क्षत्रिय समाज के लोगों के कर्तव्य:

गांवों, कबीलों, और राज्यों की रक्षा करना
वेदाध्ययन करना
प्रजापालन करना
दान करना
यज्ञ करना
विषयवासना से दूर रहना
शस्त्राभ्यास करना
भारतीय पौराणिक कथाओं के मुताबिक, महाराज पृथु संसार के पहले क्षत्रिय थे.
मनु-स्मृति और दूसरे धर्मशास्त्रों के मुताबिक, क्षत्रिय समाज के लोगों का कर्तव्य वेदाध्ययन, प्रजापालन, दान, और यज्ञ करना था.
क्षत्रिय समाज के लोगों का मुख्य व्यवसाय अध्ययन, शस्त्राभ्यास, और प्रजापालन था.
क्षत्रिय समाज के लोगों को ब्राह्मणों की सेवा करनी थी.
क्षत्रिय समाज के लोगों को राज्य के संवर्धन और शत्रुओं से रक्षा के लिए युद्ध करना था.
राजपूतों ने पश्चिमी, पूर्वी, और उत्तरी भारत के साथ-साथ पाकिस्तान के क्षेत्रों में शासन किया.
राजपूतों के समय में प्राचीन वर्ण व्यवस्था खत्म हो गई थी और कई जातियां और उपजातियां बन गई थीं.
राजपूतों में विभिन्न सामाजिक समूहों और शूद्रों और आदिवासियों सहित विभिन्न वर्णों का मिश्रण था.
राजपूतों में ठाकुर, सिसोदिया, कुशवाहा, पापा खुश, वसूल, राठौर जैसी कई जातियां शामिल हैं. 
  नाम के पीछे सिंह लगाने की वजह है - शौर्य, वीरता, और शक्ति का प्रतीक होना. यह शब्द संस्कृत के 'सिम्हा' शब्द से लिया गया है, जिसका मतलब होता है 'शेर'. सिंह शब्द का इस्तेमाल राजपूत और सिख पुरुषों के नामों में किया जाता है.

राजपूत के गुण क्या हैं?

मध्यकाल में राजपूतों को निडर, साहसी और साहसिक गुणों से जोड़ा जाता था। उन्होंने अरबों, तुर्कों, अफ़गानों और मुगलों जैसे कई दुश्मनों के खिलाफ़ कई लड़ाइयाँ और युद्ध लड़े।

क्या राजपूत जनेऊ पहनते हैं?

जनेऊ समारोह राजपूत और ब्राह्मण संस्कृति में एक महत्वपूर्ण अनुष्ठान है । इस समारोह के दौरान, पुरुष बच्चे द्वारा एक पवित्र धागा पहना जाता है, जो सीखने और आध्यात्मिक शिक्षा की दुनिया में उसकी दीक्षा का प्रतीक है।
नाम के पीछे सिंह क्यों लगाते हैं?
सिंह शब्द का इस्तेमाल करने की वजह:
सिंह शब्द का इस्तेमाल शौर्य और वीरता को दिखाने के लिए किया जाता है.
सिंह को शक्ति और साहस का प्रतीक माना जाता है.

राजपूत में कितने वंश होते हैं?

राजपूतों में तीन मूल वंश (वंश या वंश) हैं। इनमें से प्रत्येक वंश कई कुलों (कुल) (कुल 36 कुलों) में विभाजित है
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