6.4.24

वाल्मीकि समाज की उत्पत्ति और इतिहास /history of Valmiki Samaj


वाल्मीकि समाज की उत्पत्ति का इतिहास video





इस समुदाय का नाम महर्षि वाल्मीकि के नाम पर पड़ा है। ये लोग स्वयं को संस्कृत में 'रामायण' और 'योग वशिष्ठ' जैसे ग्रंथों के रचयिता आदि कवि महर्षि वाल्मीकि के वंशज बताते हैं। यह महर्षि वाल्मीकि को अपना गुरु और ईश्वर का अवतार मानते हैं।
वाल्मीकि (Valmiki) भारत में पाया जाने वाला एक जाति या संप्रदाय है. वाल्मीकि शब्द का प्रयोग पूरे भारत में विभिन्न समुदायों द्वारा किया जाता है, जो खुद को रामायण के रचयिता भगवान वाल्मीकि के वंशज होने का दावा करते हैं. यह एक मार्शल जातीय समुदाय है, पारंपरिक रूप से इनका कार्य युद्ध करना रहा है. भारत के विभिन्न राज्यों में इन्हें अलग-अलग नामों से जाना जाता है, जैसे-नायक, बोया, मेहतर, आदि. यह पूरे भारत में व्यापक रूप से पाए जाते हैं. उत्तरी भारत और दक्षिण भारत के राज्यों में पाए जाते हैं. उत्तरी भारत के राज्यों में इन्हें अनुसूचित जाति (Scheduled Caste, SC) के रूप में वर्गीकृत किया गया है.आइये जानते हैं वाल्मीकि समाज का इतिहास, वाल्मीकि जाति की उत्पति कैसे हुई?

वाल्मीकि समाज का इतिहास

उत्तर भारत में पाए जाने वाले इस समुदाय के लोग पारंपरिक रूप से सीवेज क्लीनर और स्वच्छता कर्मी के रूप में कार्य करते आए हैं. ऐतिहासिक रूप से इन्हें जातिगत भेदभाव, सामाजिक बहिष्कार और उत्पीड़न का सामना करना पड़ा है. हालांकि, शिक्षा और रोजगार के आधुनिक अवसरों का लाभ उठाकर अब यह अपने परंपरागत कार्य को छोड़कर अन्य पेशा भी अपनाने लगे हैं. इससे इनकी समाजिक स्थिति में सुधार हुई है.

वाल्मीकि समाज की जनसंख्या


2001 की जनगणना के अनुसार, पंजाब में यह अनुसूचित जाति की आबादी का 11.2% थे‌ और दिल्ली एनसीआर क्षेत्र में यह दूसरी सबसे अधिक आबादी वाली अनुसूचित जाति थी. 2011 की जनगणना के अनुसार उत्तर प्रदेश मेें अनुसूचित जाति की कुल आबादी 13,19,241 दर्ज की गई थी.

दक्षिण भारत के वाल्मीकि समाज

दक्षिण भारत में बोया या बेदार नायक समाज के लोग अपनी पहचान बताने के लिए वाल्मीकि शब्द का प्रयोग करते हैं. आंध्र प्रदेश में इन्हें बोया वाल्मीकि या वाल्मीकि के नाम से जाना जाता है.‌ बोया या बेदार नायक पारंपरिक रूप से एक शिकारी और मार्शल जाति है. आंध्र प्रदेश में यह मुख्य रूप से अनंतपुर, कुरनूल और कडप्पा जिलों में केंद्रित हैं. कर्नाटक में यह मुख्य रूप से बेलारी, रायचूर और चित्रदुर्ग जिलों में पाए जाते हैं. आंध्र प्रदेश में पहले इन्हें पिछड़ी जाति में शामिल किया गया था, लेकिन अब इन्हें अनुसूचित जनजाति के रूप में सूचीबद्ध किया गया है. तमिलनाडु में इन्हें सबसे पिछड़ी जाति (Most Backward Caste, MBC), जबकि कर्नाटक में अनुसूचित जनजाति के रूप में वर्गीकृत किया गया है.

वाल्मीकि समाज किस धर्म को मानते हैं?

यह मुख्य रूप से हिंदू धर्म को मानते हैं. पंजाब में निवास करने वाले कुछ वाल्मीकि सिख धर्म के अनुयाई हैं

वाल्मीकि समाज की उत्पति

 इस समुदाय या संप्रदाय का नाम महर्षि वाल्मीकि के नाम पर पड़ा है.इस समुदाय या संप्रदाय के सदस्य संस्कृत रामायण और योग वशिष्ठ जैसे ग्रंथों के रचयिता आदि कवि महर्षि वाल्मीकि के वंशज होने का दावा करते हैं. यह महर्षि वाल्मीकि को अपना गुरु और ईश्वर का अवतार मानते हैं.

क्या ब्राह्मण और क्षत्रिय थे वाल्मीकि?

हिन्दू समाज में लगभग 6500 जातियाँ है। 12वी शताब्दी के पहले सफाई कर्म या चर्म कर्म का उल्लेख नही मिलता है। शुद्र और अनुसूचित जाति मे फर्क है, हिंदू जाति पहले भी चार वर्णों में बंटी हुई थी पर कोई जाति अछूत नही थी।
  जाति इतिहासविद डॉ . दयाराम  आलोक के अनुसार दलित वर्ग का उदय विदेशी आक्रांता तुर्क, मुस्लिम , और मुगलकाल मे हुई । कुछ काम ऐसे हैं  कि कोई नही करना चाहेगा और सिर पर मैला ढोना, ये तो बिल्कुल भी कोई नही चाहेगा। यह काम जबरदस्ती कराया हुआ लगता है। अब सवाल है कि जबरदस्ती किसने कराया कुछ सेकुलर लोग तर्क देते हैं कि यह ब्राह्मणों ने कराया। हमारे भारत में घर में शौचालय होने का कभी कोई प्रमाण नहीं मिलता.   ब्राह्मण तो खासकर इसे अत्यंत ही अपवित्र समझते थे। आज भी बहुत से ब्राह्मण घर में शौचालय होने के सख्त विरोधी है। घर में शौचालय होने का प्रचलन मुस्लिम आगमन के बाद हुआ। मुस्लिम आक्रमणकारियों ने भारत को जी भर के लूटा मुगल तो यहीं बस गए । लाखों का जबरदस्ती धर्म परिवर्तन कराया गया जिन लोगों ने नहीं माना उन्हें मार डाला गया या असहनीय यातनाएं दी गई. सबसे ज्यादा मार क्षत्रियों और ब्राह्मणों को झेलना पड़ा उन्हें हिंदू धर्म छोड़ने के लिए विवश किया गया. नहीं करने पर जबरदस्ती उन्हें ऐसे कामों के लिए विवश किया गया जो बिल्कुल ही करने योग्य नहीं था. इन्हीं में से एक था सिर पर मैला ढोना गंदगी की सफाई करना. मुस्लिमों ने जबरदस्ती क्षत्रियों ब्राह्मणों को इसके लिए मजबूर किया. उन्होंने अपना धर्म नहीं छोड़ा बल्कि इस अपवित्र काम करने के लिए राजी हो गए. इससे यह कह सकते हैं कि अपने धर्म के लिए उन्होंने बहुत बड़ी कुर्बानी दी | इस समाज को प्रखर देशभक्ति धर्मपरायणता, हिंदू समाज रक्षक की भूमिका एवं त्याग बलिदान के लिए उचित स्थान मिलना चाहिए.
 उत्तर भारत में वाल्मीकि, महाराष्ट्र और दक्षिण भारत में सुदर्शन और मखियार गुजरात में रूखी पंजाब में मजहबी सिक्ख  वाल्मकी समाज के बारे में डॉक्टर भीमराव अंबेडकर ने लिखा है वर्तमान शूद्र और वैदिक काल में शूद्र दोनों अलग-अलग है. यह सारी जानकारी डॉक्टर विजय सोनकर शास्त्री के किताब हिंदू वाल्मीकि जाति
से ली गई है. घरों में शौचालय का निर्माण उस समय शुरू हुआ जब हजारों की संख्या में बनाई गई बेगमें घर से बाहर जाने पर अपने यौन सुख के लिए सुरक्षाकर्मियों से संपर्क करने लग गए. शुरुआत में शौचालय का सफाई नौकरों से कराया गया बाद में युद्ध बंदी हिंदू ब्राह्मणों और क्षत्रियों से कराया गया. वर्तमान वाल्मीकि जाति में ब्राह्मण के अनेक. गोत्र पाए जाते हैं. शरीर से हष्ट पुष्ट वाल्मीकि समाज के लोग एक कुशल योद्धा जाति है. धीरे -धीरे वाल्मीकि समाज शिक्षा से वंचित रह गए क्योंकि उन्हे अछूत समझा जाने लगा था। ये लोग अलग बस्ती में रहने लगे और हजारों वर्ष के अंदर दलित बन गए.

रामायण लिखने वाला वाल्मीकि कौन था?

वाल्मीकि, संस्कृत रामायण के प्रसिद्ध रचयिता हैं जो आदिकवि के रूप में प्रसिद्ध हैं। उन्होंने संस्कृत मे रामायण की रचना की। महर्षि वाल्मीकि द्वारा रची रामायण वाल्मीकि रामायण कहलाई। 
वाल्मीकि का जन्म अग्नि शर्मा के रूप में भृगु गोत्र के प्रचेता (जिसे सुमाली के नाम से भी जाना जाता है) नामक ब्राह्मण के घर हुआ था |इनका बचपन का नाम रत्नाकर था| 
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मोक्षधाम की बेहतरी के लिए समाज सेवी डॉ. आलोक के दान के विडिओ की लिंक

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मंदिरों को दान भारत देश महान || डॉ .आलोक के दान के विडिओ की प्लेलिस्ट

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देवालयों की बेहतरी के लिए समाज सेवी डॉ .आलोक के दान के विडिओ की लिंक


27.3.24

गोस्वामी समाज की उत्पत्ति और जानकारी ,Goswami community history




गोस्वामी समाज केवल एक जाति नही बल्कि एक सम्प्रदाय है एक ऐसा पंथ जो सदैव से ही भगवान महादेव की आराधना को अपना प्रथम कर्तव्य मानते हुए सनातन धर्म का प्रचार प्रसार करता है।
अनादिकाल से शैव ब्रह्मणों का ये सम्प्रदाय पठन पाठन, योग व अनेकों प्रकार के शोध के कार्य मे व्यस्त रहता था। कुछ जानकारों के अनुसार इस पंथ का उदय आदिगुरू शंकराचार्य जी के समय हुआ था। जबकि अगर गहनता से अध्यन करें तो पता चलता है ये पंथ अनादिकाल से भगवान महादेव की सेवा मे गणों के रूप मे विधमान है।
 धर्मरक्षक सन्यासियों का ये सम्प्रदाय दो भाग मे विभाजित हो गया.गृहस्थी  और सन्यासी जो साधु गृहस्थ जीवन मे आ गए वह गृहस्थ जीवन मे भी अपनी परम्परा अपने उपनामों से जुड़े रहे।
ऐसा नही है की सभी गोस्वामी शैव है वैष्णव सम्प्रदाय मे भी गोस्वामी होते है
आज हम केवल शैव ब्रह्मणों व दशनामी गोस्वामी पर चर्चा कर रहे है जिनको प्रमुख दश नामों से जाना जाता है वे हैं - गिरी,
पुरी,
भारती,
सरस्वती
,सागर,
 अरण्य
,तीर्थ,
वन,
आश्रम
और 
पर्वत हैं।
गोस्वामी समाज पंच देव उपासक एवं शिव को इष्ट मानने वाले ब्राह्मणों का समाज है आदि गुरु शंकराचार्य जी जो आज से लगभग 2500 वर्ष पूर्व यानी ईसा से लगभग 500 वर्ष पूर्व अवतरित हुए थे उन्होंने बौद्ध धर्म मे धर्मांतरण कर रहे सनातनी लोगों को बचाने के लिए विद्वान ब्राह्मणों को साथ लेकर अद्वैत वेदांत का प्रचार किया और बौद्ध मत को भारत से उखाड़ फेका और सनातन हिंदू धर्म का पुनरुद्धार किया।
जो ब्राह्मण भगवान आदि शंकराचार्य जी के द्वारा सन्यास लेकर परंपरा मे आए उनसे गुरु शिष्य सन्यास परंपरा चली जिसे नाद परंपरा कहा गया तथा जो ब्राह्मण ग्रहस्थ रहते हुए मत का प्रचार कर रहे थे उनसे गोस्वामी ब्राह्मण या दशनामी ब्राह्मण परंपरा चली इसे बिंदु परंपरा कहा गया, यही गृहस्थ ब्राह्मण गोस्वामी ब्राह्मण समाज के नाम से जानी जाती है।
गोस्वामी का मतलब गौ अर्थात पांचो इन्द्रयाँ का स्वामी अर्थात नियंत्रण रखने वाला। इस प्रकार गोस्वामी का अर्थ पांचो इन्द्रयों को वश  में रखने वाला होता हैं।
यह समाज सम्पूर्ण भारत समेत नेपाल पाकिस्तान एवं बांग्लादेश में फैला है सर्वाधिक गोस्वामी ब्राह्मण समाज के लोग राजस्थान,मध्यप्रदेश,गुजरात,उत्तराखंड,उड़ीसा,पश्चिम बंगाल, उत्तरप्रदेश बिहार एवं नेपाल और बांग्लादेश में रहते है ।
आज से लगभग 2500 वर्ष पूर्व आदि गुरु शंकराचार्य ने धर्म की हानि रोकने के लिए इस सम्प्रदाय को 10 भागों में विभाजित कर भारत के विभिन्न क्षेत्रों में धर्मरक्षार्थ हेतु भेज दिया।
 जिन संन्यासियों ने पहाड़ियों एवं पर्वतीय क्षेत्रों में प्रस्थान किया, वे गिरी एवं पर्वत 
और जिन्हें जंगली इलाकों में भेजा, उन्हें वन एवं अरण्य नाम दिया गया। 
जो संन्यासी सरस्वती नदी के किनारे धर्म प्रचार कर रहे थे, वे सरस्वती 
और जो जगन्नाथपुरी के क्षेत्र में प्रचार कर रहे थे, वे पुरी कहलाए। 
जो समुद्री तटों पर गए, वे सागर
 और जो तीर्थस्थल पर प्रचार कर रहे थे, वे तीर्थ कहलाए। 
जिन्हें मठ व आश्रम सौंपे गए, वे आश्रम 
और जो धार्मिक नगरी भारती में प्रचार कर रहे थे, वे भारती कहलाए।
इन साधुओं को भिन्न  भिन्न उपाधियां दी जाती हैं। इसमें महामंडलेश्वर, श्रीमहंत, महंत, एवं आचार्य आदि होते है। नागा साधु भी इस ही परम्परा मे आते है नागाओं को शंकराचार्य की सेना भी कहा जाता है नागा साधु को शस्त्र चलाने मे पारंगत हासिल है और वे वे दिगम्बर होते है।
गोस्वामी शिव को इष्ट मानकर शिव के साथ अन्य चार देव यानी कुल पांच देवों के उपासक होते है। ये तीन काल संध्या एवं शिव का पूजन करते है अतः ये स्मार्त ब्राह्मण माने जाते है।यह लोग स्मार्त यानी पंच देव उपासक होते हैं । इनके मुख्य कार्य शिवकथा, भागवतकथा, देवीभागवत आदि होते हैं। 
दशनामी सम्प्रदाय मे कुल 52 गोत्रों होते है। जिन्हे मढ़ी भी कहा जाता है
 गिरियों की कुल 27 मढ़ी, 
पुरियों की कुल 16, मढ़ी 
भारतीयों की कुल 4 मढ़ी, 
वनों की कुल 4 मढ़ी,
 व लामा गुरु की 1 मढ़ी है।
इस सम्प्रदाय के लोग एक दूसरे का सम्बोधन "ओम नमो नारायण" व "हर हर महादेव" से करते है।सनातन धर्म में इनकी "गुरुजी" महराज जी के रूप में प्रसिद्धि हैं।
गोस्वामी ब्राह्मण प्रायः गेरुआ (भगवा रंग)वस्त्र पहनते और गले में 108 रुद्राक्षों की माला पहनते हैं तथा ललाट पर चंदन या राख से त्रिपुंड धारण करते हैं, ये लोग शिखा एवं जनेऊ धारण करते हैं, दशनाम गोस्वामी ब्राह्मणों से लोग 'ॐ नमो नारायण' बोलकर अभिवादन करते है।
इनके अलाबा गोस्वामी उपाधि अनेक ब्रह्मण भी धारण करते हैं जिनमे तैलंग ब्राह्मण और वैष्णव प्रमुख हैं।

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मंदिरों की बेहतरी हेतु डॉ आलोक का समर्पण भाग 1:-दूधाखेडी गांगासा,रामदेव निपानिया,कालेश्वर बनजारी,पंचमुखी व नवदुर्गा चंद्वासा ,भेरूजी हतई,खंडेराव आगर

जाति इतिहास : Dr.Aalok भाग २ :-कायस्थ ,खत्री ,रेबारी ,इदरीसी,गायरी,नाई,जैन ,बागरी ,आदिवासी ,भूमिहार

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जाति इतिहास:Dr.Aalok: part 5:-जाट,सुतार ,कुम्हार,कोली ,नोनिया,गुर्जर,भील,बेलदार

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मुक्ति धाम अंत्येष्टि स्थलों की बेहतरी हेतु डॉ.आलोक का समर्पण ,खण्ड १ :-सीतामऊ,नाहर गढ़,डग,मिश्रोली ,मल्हार गढ़ ,नारायण गढ़

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मुक्ति धाम अंत्येष्टि स्थलों हेतु डॉ.आलोक का समर्पण part 2  :-आगर,भानपुरा ,बाबुल्दा ,बगुनिया,बोलिया ,टकरावद ,हतुनिया

दर्जी समाज के आदि पुरुष  संत दामोदर जी महाराज की जीवनी 

मुक्ति धाम अंत्येष्टि स्थलों की बेहतरी हेतु डॉ .आलोक का समर्पण भाग 1 :-मंदसौर ,शामगढ़,सितामऊ ,संजीत आदि

25.3.24

श्री राधा कृष्णा मंदिर गुराडिया कलां-झालावाड़ /दामोदर हॉस्पिटल शामगढ़ द्वारा ४ बेंच दान

  श्री राधा कृष्णा  मंदिर गुराडिया कलां  हेतु 

दामोदर पथरी अस्पताल शामगढ़  द्वारा 

सीमेंट की बेंचें भेंट 

गुराडीया कलाँ झालावाड़ जिले का डग नगर से कुछ ही किलोमीटर दूरी पर स्थित ग्राम है। इस गाँव मे राधा कृष्ण का सुन्दर मंदिर है। मंदिर तक पहुँचने के लिए सीढ़ियाँ बनी हुई हैं। श्यामदासजी बैरागी परंपरा से मंदिर की पूजा करते आ रहे हैं।
मध्य प्रदेश और राजस्थान के चयनित मंदिरों को नकद और सिमेन्ट की बेंचें दान करने के अपने आध्यात्मिक दान -पथ के तहत डॉ दयाराम जी आलोक ने इस मंदिर की बैठक सुविधा उन्नत करने के मकसद से 4 सिमेन्ट बेंचें पुत्र डॉ . अनिल कुमार राठौर ,दामोदर पथरी अस्पताल शामगढ़ के माध्यम से मंदिर के परिसर मे लगवा दी हैं, जिससे भक्तों मे हर्ष है| 
मंदिर समिति और शंकर सिंग जी सोलंकी सालरिया ने दान दाता का सम्मान किया और आभार व्यक्त किया है। यह एक सुंदर और पवित्र कार्य है जो समाज में आध्यात्मिक और सामाजिक समरसता को बढ़ावा देता है|

गुराडिया कलां के राधा कृष्णा  मंदिर का विडियो 



मंदसौर,झालावाड़ ,आगर,नीमच,रतलाम,झाबुआ जिलों के

मन्दिरों,गौशालाओं ,मुक्ति धाम हेतु


साहित्य मनीषी


डॉ.दयाराम जी आलोक




शामगढ़ का

आध्यात्मिक दान-पथ 

साथियों,

शामगढ़ नगर अपने दानशील व्यक्तियों के लिए जाना जाता रहा है| शिव हनुमान मंदिर,मुक्तिधाम ,गायत्री शक्तिपीठ आदि संस्थानों के जीर्णोद्धार और कायाकल्प के लिए यहाँ के नागरिकों ने मुक्तहस्त दान समर्पित किया है|
परमात्मा की असीम अनुकंपा और कुलदेवी माँ नागणेचिया के आशीर्वाद और प्रेरणा से डॉ.दयारामजी आलोक द्वारा आगर,मंदसौर,झालावाड़ ,कोटा ,झाबुआ जिलों के चयनित मंदिरों और मुक्तिधाम में निर्माण/विकास / बैठने हेतु सीमेंट बेंचें/ दान देने का अनुष्ठान प्रारम्भ किया है|
मैं एक सेवानिवृत्त अध्यापक हूँ और अपनी 5 वर्ष की कुल पेंशन राशि दान करने का संकल्प लिया है| इसमे वो राशि भी शामिल रहेगी जो मुझे google कंपनी से नियमित प्राप्त होती रहती है| खुलासा कर दूँ कि मेरी ६  वेबसाईट हैं और google उन पर विज्ञापन प्रकाशित करता है| विज्ञापन से होने वाली आय का 68% मुझे मिलता है| यह दान राशि और सीमेंट बेंचें पुत्र डॉ.अनिल कुमार राठौर "दामोदर पथरी अस्पताल शामगढ़ "के नाम से समर्पित हो रही हैं|



राधाकृष्णा मंदिर में दामोदर हॉस्पिटल की बेंच लगीं विडियो 



राधा कृष्ण मंदिर के शुभचिंतक 

श्यामदास जी बैरागी  गुराडीया कलां (पुजारी)

गोविन्द जी बैरागी ७७२६९-२१६५४ 

शंकर सिंग जी सोलंकी  सालारिया  ९८२८९-१२४१३

दान पट्टी  फिट करने वाले  मिस्त्री विष्णु जी विश्वकर्मा  

डॉ.अनिल कुमार दामोदर 98267-95656 s/o डॉ.दयाराम जी आलोक 99265-24852, दामोदर पथरी अस्पता  शामगढ़ 98267-95656  द्वारा श्री राधाकृष्ण मंदिर गुराडीया  कलाँ  हेतु दान सम्पन्न  
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27.2.24

गायत्री शक्ति पीठ सुवासरा-मंदसौर-मध्य प्रदेश /डॉ.दयाराम आलोक शामगढ़ का ११ हजार का दान

गायत्री शक्ति पीठ मंदिर सुवासरा  को

समाज सेवी डॉ.दयाराम आलोक  द्वारा 

११ हजार रूपये का नकद दान 

गुरुदेव राम शर्मा आचार्य की युग परिवर्तनकारी अवधारणा को मूर्तरूप देने के उद्देश्य से गांवों-शहरों में गायत्री शक्ति पीठ के मंदिर अस्तित्व में आ रहे हैं। इन शक्तिपीठों के माध्यम से मानव को मनसा, वाचा, कर्मणा जीवन मूल्यों के उच्च स्तर को आत्मसात करना है।
समाजसेवी साहित्य मनीषी डॉ. दयाराम आलोक जी ने मध्य प्रदेश और राजस्थान के चयनित मंदिरों को नकद दान करने के अपने आध्यात्मिक दान-पथ के तहत सुवासरा की गायत्री शक्ति पीठ के शुभचिंतक गेंदा लाल जी टेलर से संपर्क किया और 11 हजार दान की रसीद बनवाई। दान पट्टिका मंदिर में स्थापित की गई। मंदिर समिति के सदस्यों ने दान दाता का सम्मान करते हुए आभार व्यक्त किया।
यह एक पवित्र और धार्मिक कार्य है, जो धर्मशास्त्रानुसार महान पुण्य का कार्य माना जाता है। डॉ. दयाराम आलोक जी के इस महान कार्य के लिए हम उन्हें धन्यवाद देते हैं और उनके इस पुण्य कार्य की सराहना करते हैं। बोलिए गायत्री की माता की जय


गायत्री शक्ति पीठ सुवासरा का विडियो डॉ.आलोक की आवाज 


गायत्री शक्ति पीठ सुवासरा में दान पट्टी लगी


मंदसौर,झालावाड़ ,आगर,नीमच,रतलाम,झाबुआ जिलों के

मन्दिरों,गौशालाओं ,मुक्ति धाम हेतु


साहित्य मनीषी


डॉ.दयाराम जी आलोक




शामगढ़ का

आध्यात्मिक  दान-अनुष्ठान

मित्रों 
परमात्मा की असीम अनुकंपा और कुलदेवी माँ नागणेचिया के आशीर्वाद और प्रेरणा से डॉ.दयारामजी आलोक द्वारा आगर,मंदसौर,झालावाड़ ,कोटा ,झाबुआ जिलों के चयनित मंदिरों और मुक्तिधाम में निर्माण/विकास / बैठने हेतु सीमेंट बेंचें/ दान देने का अनुष्ठान प्रारम्भ किया है|
मैं एक सेवानिवृत्त अध्यापक हूँ और अपनी 5 वर्ष की कुल पेंशन राशि दान करने का संकल्प लिया है| इसमे वो राशि भी शामिल रहेगी जो मुझे google कंपनी से नियमित प्राप्त होती रहती है| खुलासा कर दूँ कि मेरी ६  वेबसाईट हैं और google उन पर विज्ञापन प्रकाशित करता है| विज्ञापन से होने वाली आय का 68% मुझे मिलता है| यह दान राशि और सीमेंट बेंचें पुत्र डॉ.अनिल कुमार राठौर "दामोदर पथरी अस्पताल शामगढ़ "के नाम से समर्पित हो रही हैं|




गायत्री शक्ति पीठ सुवासरा  हेतु 
11 हजार नकद  दान 


 गायत्री शक्ति पीठ  सुवासरा के शुभ चिन्तक- 

अर्जुनलाल जी चौहान- 89894-11420

लक्ष्मी नारायण जी टेलर ९४०६६-५७६१५ 

समिति के अध्यक्ष गेंदमल  जी टेलर हैं

गायत्री ट्रस्ट के वर्तमान पदाधिकारी निम्न हैं-

मुख्य ट्रस्टी सुनील जी मान्दलिया हैं,संयोजक लक्ष्मी नारायण जी परमार टेलर हैं. गेंदमल टेलर ट्रस्टी हैं. कोषाध्यक्ष राजेंद्र जी चौधरी हैं .

डॉ.अनिल कुमार दामोदर आत्मज  डॉ.दयाराम जी आलोक 99265-24852 ,दामोदर पथरी अस्पताल शामगढ़ 98267-95656 द्वारा सुवासरा गायत्री मंदिर हेतु दान सम्पन्न सन २०२२ 
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17.2.24

सोंधिया राजपूत जाति की उत्पत्ति और इतिहास

 

सौंधिया राजपूत समाज का इतिहास बहुत ही रोचक और गर्व से भरा है। डॉ. दयाराम आलोक के अनुसार, सौंधिया राजपूतों का उद्गम मालवा, मेवाड़ और हाड़ोती के क्षेत्रों में हुआ था, जो उस समय सौंधवाड़ के नाम से जाना जाता था ¹। यह क्षेत्र मंदसौर, झालावाड़, उज्जैन और राजगढ़ जिलों में फैला हुआ था। सौंधिया राजपूतों की उत्पत्ति के बारे में यह जानना महत्वपूर्ण है कि वे मूल रूप से राजपूत जाति से हैं, जो हिंदू धर्म में क्षत्रिय वर्ण के अंतर्गत आती है ¹। राजपूत जाति को इस देश की सैनिक और शासक जाति माना जाता है, जो युद्धप्रियता और देश एवं धर्म की रक्षा के लिए जानी जाती है। मुस्लिम आक्रमणकारियों के भारत में आने के बाद, राजपूतों को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा, जिसमें जीत और हार दोनों शामिल थे ¹। कुछ राजपूतों ने धर्म परिवर्तन कर मुस्लिम धर्म को अपनाया, जबकि अन्य दूरस्थ क्षेत्रों में जाकर बस गए। सौंधिया राजपूत समाज में विभिन्न वंशों के राजपूत शामिल हैं, जिनमें चौहान, तंवर, पंवार, सोलंकी, गहलोत, परिहार, बघेला और बोराना प्रमुख हैं ¹। 16वीं और 17वीं शताब्दी में मेवाड़ और मारवाड़ से कई राजपूत वंश सौंधवाड़ में आकर बसे। समय के साथ, राजपूत समाज ने अपनी अलग पहचान बनाई और स्थानीय सोंधिया राजपूतों से दूरी बनाए रखने के लिए उन्हें "सौंधवाड़ के  सोंधिया " कहकर बुलाया गया ¹। यह नाम धीरे-धीरे "सौंधिया राजपूत" में बदल गया और बोलचाल की भाषा में "सौंधिया" के रूप में प्रचलित हो गया |सोंधिया राजपूत समाज राजस्थान और मध्य प्रदेश में 700 वर्षों से निवास कर रही एक प्रमुख जाति है, जो छोटे किसानों का एक समुदाय है और वैष्णव हिंदू समुदाय से संबंधित है। इस समाज के लोगों की अपनी कोई विशेष रीति-रिवाज नहीं है, लेकिन उन्हें आमतौर पर पिछड़ी जाति श्रेणी से संबंधित माना जाता है ¹। राजपूत समाज की उत्पत्ति के बारे में कहा जाता है कि यह समाज 36 कुलों से बना है, जिनमें दस रवि, दस चंद्र, बारह ऋषि, और चार हुतासन शामिल हैं। इस समाज को क्षत्रिय भी कहा जाता है, जो शासक वर्ग के अच्छे और बुरे दोनों कार्यों के लिए जाना जाता है ¹। अब बात करते हैं राजपूत और ठाकुर में अंतर की। राजपूत एक संघ जाति है, जबकि ठाकुर एक उपाधि है जिसका उपयोग कई जातियों द्वारा किया जाता है। बिहार, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, और मध्य प्रदेश में कई जातियां ठाकुर सरनेम का उपयोग करती हैं, जिनमें नाई, राजपूत, और अहीर (यादव) शामिल हैं। सबसे पहले ब्राह्मणों ने ठाकुर उपाधि का उपयोग किया था, और आज भी गुजरात और बंगाल में ब्राह्मण ठाकुर कहलाते हैं ¹। सौंधवाड़ के सोंधिया राजपूत के प्रमुख व्यक्तियों मे शामिल हैं- समाज प्रदेश अध्यक्ष विधायक नारायण सिंह,जी राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष विधायक चंदरसिंह जी सिसौदिया, प्रदेश अध्यक्ष डॉ. शंभूसिंहजी , जिलाध्यक्ष किशनसिंह जी पावटी, प्रदेश उपाध्यक्ष दिलीपसिंहजी तरनोद, युवा जिलाध्यक्ष दरबार अभयसिंहजी किलगारी, जिला प्रवक्ता डॉ भंवरसिंहजी , प्रदेश सचिव डॉ. भोपालसिंहजी . २०२३ के विधानसभा चुनाव में सुसनेर से भैरो सिंग जी पड़िहार बापू निर्वाचित हुए हैं जो सोंधिया राजपूत समाज से आते हैं
 हमारे देश की भगौलिक रचना कुछ इस प्रकार है कि जो स्वरुप आज दिखाई देता है देश आजाद होने और उसके पूर्व के काल में ऐसा नहीं था । प्राचीन काल में मगध, पाटली पुत्र, पंचनद, उत्कलप्रदेश जैसे नाम प्रचलित थे । मुगलों और अंग्रेजों के काल में मेवाड़, मालवा, सौंधवाड़, हाड़ोती, महाकौशल, बुंदेलखण्ड जैसे नाम अलग-अलग क्षेत्रों के लिए उपयोग किये जाते थे । देश आजाद होने के बाद आज उतरप्रदेश, मध्यप्रदेश, राजस्थान जैसे नाम प्रचलित है ।
हिन्दू धर्म में प्रचलित चार वर्णों में क्षत्रिय वर्ण प्रमुख है इस वर्ण में राजपूत जाति इस देश की सैनिक और शासक जाति रही । \
   जुझारू जाति होने के कारण युद्धप्रियता और देश एवं धर्म की रक्षा का भार राजपूतों पर रहा । मुस्लिम आक्रमणकारियों के भारत में आने के बाद राजपूतों को कहीं जीत तो कहीं हार का सामना करना पड़ा । कहीं राजपूत धर्म परिवर्तन द्वारा मुस्लिम धर्म को अंगीकार करने के लिए बाध्य हुए तो कहीं दूरस्थ क्षेत्र में जाकर बसने को मजबूर हुए । चूँकि मुस्लिम शासकों का दबाव दिल्ली एवं उसके आसपास ज्यादा रहा अतः स्वाभिमानी राजपूत अपनी आन की रक्षा के लिए दूरस्थ क्षेत्रों में जाकर बस गए । उस समय मालवा, मेवाड़ एवं हाड़ोती से लगा हुआ "सौंधवाड़" एक सुरक्षित क्षेत्र था जिस कारण दिल्ली एवं उसके आसपास से राजपूत यहां आकर बसे ।
   जाति इतिहासविद डॉ. दयाराम आलोक के मतानुसार   मंदसौर, झालावाड़, उज्जैन, राजगढ़ आदि जिलों में फैला यह क्षेत्र सौंधवाड़ कहलाता है|। इस क्षेत्र में विभिन्न वंशो के राजपूत आकर बसे जिसमें चौहान, तंवर, पंवार, सोलंकी, गहलोत, परिहार, बघेला, बोराना, आदि प्रमुख है.16 वीं, 17 वीं शताब्दी में मेवाड़, मारवाड़ से इस क्षेत्र में चुण्डावत, राणावत, शक्तावत, भाटी, चौहान, राठोड़, झाला, सोलंकी, पंवार आदि राजपूत आकर बसना शुरू हुए । स्वयं के श्रेष्ठ होने की भावना के कारण अपनी अलग पहचान के लिए इन लोगों ने स्थानीय राजपूतों से दूरी बनाए रखने बाबत् पहले से बसे हुए राजपूतों को "सौंधवाड़" का राजपूत कहकर बुलाया जो कालान्तर में धीरे-धीरे "सौंधिया राजपूत" बन गया और बोलचाल की भाषा में "सौंधिया" के रूप में प्रचलित हो गया ।
सोंधिया राजस्थान और मध्य प्रदेश में 700 वर्षों से निवास कर रही राजपूत जाति  है|
सोंधिया छोटे किसानों का एक समुदाय हैं, |यह  एक वैष्णव हिंदू समुदाय हैं, और उनके कोई विशेष रीति-रिवाज नहीं हैं। सोंधिया को आमतौर पर पिछड़ी जाति श्रेणी से संबंधित माना जाता है।
   मप्र पिछड़ा आयोग की भोपाल में सुनवाई के दौरान सौंधिया राजपूत समाज के पदाधिकारियों ने समाज का पक्ष रखा। कहा कि पिछड़ा वर्ग की जातियों में सौंधिया राजपूत की जगह केवल सौंधिया लिखा है। सौंधिया के साथ राजपूत शब्द जोड़कर जाति को सौंधिया राजपूत किया जाए।
इस हेतु आयोग के समक्ष प्रदेशभर से आए समाजजन ने दस्तावेज पेश किए। समाज प्रदेश अध्यक्ष विधायक नारायण सिंह,


राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष विधायक चंदरसिंह सिसौदिया, प्रदेश अध्यक्ष डॉ. शंभूसिंह, जिलाध्यक्ष किशनसिंह पावटी, प्रदेश उपाध्यक्ष दिलीपसिंह तरनोद, युवा जिलाध्यक्ष दरबार अभयसिंह किलगारी, जिला प्रवक्ता डॉ भंवरसिंह, प्रदेश सचिव डॉ. भोपालसिंह और प्रदेश के पदाधिकारी माैजूद थे।
 

२०२३ के विधानसभा चुनाव में सुसनेर से  भैरो सिंग  पड़िहार बापू   निर्वाचित हुए हैं जो सोंधिया राजपूत समाज से आते हैं  
राजपूत कौन हैं और लोग उन्हें इतना प्रचारित क्यों करते हैं?
 राजपूत और ठाकुरों में क्या अंतर है?
राजपूत संघ है एक जिसमे 36 कुल के लोग शामिल है
“दस रवि से दस चन्द्र से, बारह ऋषिज प्रमाण,
चार हुतासन सों भये , कुल छत्तिस वंश प्रमाण
  मगर फिर घाल मेल हुआ 62 कुल हो गए इनको  क्षत्रिय  भी कहते है | शासक वर्ग के अच्छे बुरे सब कार्य का प्रचार होता है ठाकुर एक उपाधि है कोई संघ या जाती नही इसका प्रयोग लगभग सभी जातियॉ करती है |बिहार उत्तर प्रदेश में नाई जाती  भी  ठाकुर  सरनेम  का प्रयोग कराती है. तो राजस्थान में राजपूत भी  ठाकुर  कहलाते हैं. ,मध्य प्रदेश में घोषी अहीर(यादव) भी करते है  ठाकुर  सरनेम  उपयोग करते हैं. मगर सबसे पहले ब्राह्मणों ने प्रयोग किया था आज भी गुजरात बंगाल में ब्रह्मण  ठाकूर  कहलाते हैं.  राजपूत और ठाकुर में अंतर यहीं है कि राजपूत संघ जाती है . कुल मिलाकर  लोग ठाकुर कहलाने में गौरव  का अनुभव करते हैं ,
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14.2.24

शिव हनुमान मंदिर सिंगपुर-झालावाड /दामोदर हॉस्पिटल शामगढ़ द्वारा बेंच व्यवस्था

 झालावाड जिले के सिंगपुर में शिव हनुमान मंदिर  हेतु 

दामोदर पथरी अस्पताल शामगढ़ द्वारा 

४ सीमेंट बेंचें भेंट 

राजस्थान के झालावाड़ जिले के सिंगपुर गाँव मे शिव हनुमान मंदिर बहुत अच्छी लोकेशन पर है और क्षेत्र के हनुमान भक्तों  की आस्था का केंद्र है। मंदिर नया बना है और आधुनिक स्थापत्य  इस्तेमाल किया गया है। रंग रोगन देखते ही बनता है । मांगु सिंग जी चौहान और नारायण सिंग जी सिसौदिया से सपर्क किया गया। उनकी सहमति से मंदिर मे स्थापित की जाने वाली दान पट्टिका भिजवाकर गेट की दीवार पर लगवा दी गई है। मध्य प्रदेश और राजस्थान के चयनित मंदिरों मे  दर्शनार्थियों  के लिए बैठक सुविधा की दृष्टि से समाज सेवी डॉ. दयाराम जी आलोक के आदर्शों से प्रेरित पुत्र  डॉ. अनिल दामोदर पथरी अस्पताल शामगढ़ द्वारा शिव हनुमान मंदिर सिंगपुर को 4 सिमेन्ट बेंच समर्पित की गईं है। जय भोलेनाथ जय बजरंगबली !!


  

शिव हनुमान मंदिर सिंगपुर मे बेंच लगने के बाद का विडिओ  




नारायण सिंग जी सिसोदिया ने दान पट्टी फिट करने की जगह बताई 
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मंदसौर,झालावाड़ ,आगर,नीमच,रतलाम,झाबुआ जिलों के

मन्दिरों,गौशालाओं ,मुक्ति धाम हेतु


समाजसेवी 

डॉ.दयाराम जी आलोक



शामगढ़ का

आध्यात्मिक  दान-पथ 


  धार्मिक,आध्यात्मिक संस्थानों मे दर्शनार्थियों के लिए सिमेन्ट की बैंचों की व्यवस्था करना महान पुण्य का कार्य है। दान की भावना को साकार करते हुए डॉ. दयाराम जी आलोक मध्य प्रदेश और राजस्थान के चयनित मुक्ति धाम और मंदिरों के लिए नकद दान के साथ ही सैंकड़ों सीमेंट की बेंचें भेंट करने के अनुष्ठान को गतिमान रखे हुए हैं।
मैं एक सेवानिवृत्त अध्यापक हूँ और अपनी 5 वर्ष की कुल पेंशन राशि दान करने का संकल्प लिया है| इसमे वो राशि भी शामिल रहेगी जो मुझे google कंपनी से नियमित प्राप्त होती रहती है| खुलासा कर दूँ कि मेरी ६ वेबसाईट हैं और google उन पर विज्ञापन प्रकाशित करता है| विज्ञापन से होने वाली आय का 68% मुझे मिलता है| यह दान राशि और सीमेंट बेंचें पुत्र डॉ.अनिल कुमार राठौर "दामोदर पथरी अस्पताल शामगढ़ "के नाम से समर्पित हो रही हैं|

श्री शिव हनुमान मंदिर सिंगपुर हेतु 

4 सीमेंट बेंचें दान 

दान पट्टी  माँगूसिंग जी को भेजी गई


नारायण सिंग जी  सिसोदिया  सिंगपुर ने मंदिर का विडियो भेजा.

सामने वाले पिलर पर दान पट्टी लगने की जगह बताई गई


शिव हनुमान मंदिर के गेट की दीवार पर दान दाता की दान पट्टिका स्थापित की गई 24/6/2024 



मंदिर के शुभचिंतक -

मांगू सिंग जी सिंगपुर  ९५८७९-०७७७८ 

नारायण सिंग जी सिसोदिया  ९५८७९-०८६०४ 

बालूसिंग  जी सिंगपुर 

मंदिर के पुजारी रोडूलाल जी शर्मा हैं। 

डॉ.अनिल कुमार दामोदर 98267-95656 s/o डॉ.दयाराम जी आलोक 99265-24852 ,दामोदर पथरी अस्पताल 98267-95656 शामगढ़ द्वारा
शिव हनुमान मंदिर सिंगपुर हेतु दान सम्पन्न  9/7/2024 
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यूट्यूब विडिओ की प्लेलिस्ट -


*भजन, कथा ,कीर्तन के विडिओ

*मंदिरों की बेहतरी हेतु डॉ आलोक का समर्पण भाग 1:-दूधाखेडी गांगासा,रामदेव निपानिया,कालेश्वर बनजारी,पंचमुखी व नवदुर्गा चंद्वासा ,भेरूजी हतई,खंडेराव आगर

*जाति इतिहास : Dr.Aalok भाग २ :-कायस्थ ,खत्री ,रेबारी ,इदरीसी,गायरी,नाई,जैन ,बागरी ,आदिवासी ,भूमिहार

*मनोरंजन ,कॉमेडी के विडिओ की प्ले लिस्ट

*जाति इतिहास:Dr.Aalok: part 5:-जाट,सुतार ,कुम्हार,कोली ,नोनिया,गुर्जर,भील,बेलदार

*जाति इतिहास:Dr.Aalok भाग 4 :-सौंधीया राजपूत ,सुनार ,माली ,ढोली, दर्जी ,पाटीदार ,लोहार,मोची,कुरेशी

*मुक्ति धाम अंत्येष्टि स्थलों की बेहतरी हेतु डॉ.आलोक का समर्पण ,खण्ड १ :-सीतामऊ,नाहर गढ़,डग,मिश्रोली ,मल्हार गढ़ ,नारायण गढ़

*डॉ . आलोक का काव्यालोक

*मुक्ति धाम अंत्येष्टि स्थलों हेतु डॉ.आलोक का समर्पण part 2  :-आगर,भानपुरा ,बाबुल्दा ,बगुनिया,बोलिया ,टकरावद ,हतुनिया

*दर्जी समाज के आदि पुरुष  संत दामोदर जी महाराज की जीवनी 

*मुक्ति धाम अंत्येष्टि स्थलों की बेहतरी हेतु डॉ .आलोक का समर्पण भाग 1 :-मंदसौर ,शामगढ़,सितामऊ ,संजीत आदि