हिन्दू समाज के सभी वर्गों ने हिन्दू संस्कृति के उन्नयन हेतु अपना अपना योगदान दिया है , सभी वर्गों में संत , सती और सूरमा हुए हैं जिन का गौरवशाली इतिहास हमें प्रेरणा देता है । आज हम मेघवंश में जन्मे तपस्वी , महान भक्त , संत साहित्य के रचयिता , वेद - पुराण , दर्शन इत्यादि शास्त्रों के मर्मज्ञ , समाज सुधारक , सामाजिक समरसता के पुरोधा सनातन धर्म संस्कृति के ध्वजवाहक संत स्वामी श्री गोकुलदास जी महाराज के बारे में जानकारी प्रस्तुत कर रहे हैं
स्वामी जी का जन्म अजमेर के निकट डूमाड़ा ग्राम की पवित्र धरा पर जमींदार श्री नन्दराम रामाजी सिंहमार मेघवंशी के घर मातुश्री छोटा देवी की पावन कोख से विक्रम संवत १९४८ फाल्गुन वदी चतुर्दशी ( शिवरात्रि ) शनिवार को हुआ .( सिंहमार मेघवंश चन्द्रवंशी भाटी राजपूतों से निकला है , जैसा कि पूर्व के लेखों में वर्णन किया जा चुका है कि भाटी राजपूत यदुवंशी हैं , यदुवंश चन्द्रवंशी क्षत्रियों की ही एक शाखा है , यदुवंश को पूर्णकलावतार भगवान श्रीकृष्ण का वंश होने का गौरव प्राप्त है अतः हम यह भी कह सकते हैं कि स्वामी गोकुलदास जी भी भगवान श्रीकृष्ण की पावन वंश परम्परा में ही जन्मे थे . ) निश्चित समय पर पवित्र मुहूर्त में आप का नामकरण हुआ शिशु के दिव्य भाल को देख कर गोकुल नाम रखा गया . माता पिता ने गोकुल को घर से छः किलोमीटर दूर सोमलपुर के जोधाजी सूबेदार पण्डित की पाठशाला में प्रारम्भिक शिक्षा हेतु भर्ती करवा दिया , गोकुल अपनी शिक्षा पूरी भी नहीं कर पाया कि तब की प्रचलित परम्परा के अनुसार मात्र छः वर्ष की आयु में ही पालरां वाला गाँव के देवाजी देवगांवा की सुपुत्री बनड़ी से विवाह कर दिया गया . चूँकि आप जन्म से ही वीतराग थे अतः आप को गृहस्थी में कोई रूचि नहीं थी , गोकुल सदैव संत महात्माओं के सानिध्य में रहना , ध्यान समाधि धारण करना और हरिभजन करना पसन्द करते थे , एक तो स्वयं का विरक्त स्वभाव और तिस पर साधु संतों का सानिध्य मानो सोने में सुहागा हो गया । विक्रम संवत् १९६० की फाल्गुन सुदी द्वितीया के दिन आप ने वृहद् सत्संग सभा का आयोजन कर स्वामी रामहंस जी महाराज से दीक्षा प्राप्त की . आप ने हरिभजन को ही अपने जीवन का एकमात्र लक्ष्य निर्धारित कर लिया , महावीर स्वामी , गौतम बुद्ध , भर्तृहरी जैसे कई महान व्यक्तित्व हुए हैं जिन्होंने विवाह के पश्चात गृहस्थी का त्याग कर मोक्ष मार्ग का वरण किया था , गोकुल भी उसी परम्परा के वाहक बने |अब आप स्वच्छन्द रूप से साधु महात्माओं के सत्संग तथा वेद पुराणादि शास्त्रों के अध्ययन , योगादि के अभ्यास में अधिक से अधिक समय व्यतीत करने लगे | दूर दूर से लोग जाति , समाज के बन्धन तोड़ कर आप के दर्शन करने , दिव्य उपदेशों को सुनने और सानिध्य प्राप्त करने के उद्देश्य से आने लगे , अपने भक्तों तथा अनुयायियों के आग्रह पर आप ने अनेक स्थानों पर चातुर्मास किए तथा समाज को अपने उपदेशों से लाभान्वित किया . स्वामी जी मन वचन और कर्म से वीतराग थे किन्तु समाज के प्रति अपने दायित्व को भी भलीभांति जानते थे अतः आप ने समाज को संगठित , शिक्षित , संस्कारित तथा सदाचारी बनाने के उद्देश्य से विक्रम संवत् १९७७ में अजमेर राज्य के दो सौ दस गाँवों की एक सभा दौराई गाँव में आयोजित की तत्पश्चात आप ने तीर्थराज पुष्कर में मेघवंश महासभा की स्थापना कर उस का पंजीयन करवाया , इस महासभा के माध्यम से स्वामी जी ने समाज के सैंकड़ों युवाओं को समाज सेवा के लिए कटिबद्ध कर दिया , . स्वामी गोकुलदास जी के भगीरथ प्रयत्न से समाज में नूतन चेतना का संचार हुआ , समाज शिक्षित और सदाचारी होने लगा , युवक नशे से दूर होने लगे , संगठित होने लगे , समाज के पुराने मन्दिरों , देवस्थानों , धार्मिक और सामाजिक स्थानों का जीर्णोद्धार होने लगा , जहाँ आवश्यकता थी वहाँ नए मन्दिरों का निर्माण होने लगा , कुँए खुदवाए जाने लगे , सार्वजनिक महत्व के भवन बनाए जाने लगे और यह सब उस समाज के पुरुषार्थ से होने लगा जिस की आर्थिक स्थिति कुछ अच्छी नहीं कही जा सकती थी , समाज ने सदाचारी जीवन अपनाना प्रारम्भ किया तो निश्चित था कि समाज में लक्ष्मी की स्थिरता के साथ साथ सरस्वती का भी वास होने लगा . स्वामी जी ने ही समाज को मेघरिख , रिखिया , मेघ , मेघवाल , बलाई , भांबी , चान्दौर , जुलाहा , सालवी , चोपदार , कोटवाल , छड़ीदार , बुनकर , कोष्टी आदि विभिन्न उपनामों तथा वशिष्ट , जाटा , मारू , वसीका , म्हेर , देशी बारिया तथा मेवाड़ा इत्यादि भेदों से मुक्त कर आदर सूचक मेघवंशी नामकरण करते हुए एकसूत्र में पिरो कर सुन्दर माला का निर्माण किया .
स्वामी जी ने अपना निजी सुख पूर्णतः त्याग दिया समाज सुधार के कार्यों के साथ आप ने अपना स्वाध्याय भी बरकरार रखा . आप स्नान ध्यान , भजन संध्योपासना , योगाभ्यास की नियमितता के प्रबल पक्षधर और अभ्यासी थे साथ ही घण्टों वेद , पुराण , उपनिषद , दर्शन , स्मृति , ज्योतिष , व्याकरण , वैद्यक , इतिहास तथा सत्साहित्य के स्वाध्याय में व्यतीत करते थे , आप में जन्मजात कवि और लेखक के गुण भरे हुए थे अतः आप ने कई ग्रथों की रचना की जिस में से प्रमुख ग्रन्थ निम्न हैं –
1. गोकुलदास भजनमाला 2. मेघवंश इतिहास ऋषि पुराण 3. अलख उपासना 4. बनजारा भास्कर 5. पड़दा प्रमाण
6. रामदेव जी महाराज चौबीस प्रमाण 7. भजन विलास आरोधि भजन 8. श्री रामदेव जी महाराज जमा जागरण विधि
9. धारुमाल रूपादे की बड़ी बेल 10. रामदेव जी का ब्यावला 11. रामदेव चालीसा 12. रामदेव भजन आराधना
विक्रम संवत् २०३४ की आश्विन कृष्ण एकादशी को स्वामी जी ने समाधिपूर्वक अपनी पावन आत्मा को परमात्मा में विलीन कर दिया , उन के समाधि स्थल पर इक्कावन फीट ऊँचा धवल संगमरमर से बना शिखरबन्द मन्दिर बना हुआ है साथ ही भव्य सत्संग भवन , साधुओं के लिए आश्रम , तीर्थयात्रियों के लिए सर्वसुविधाओं से युक्त आवास तथा निर्मल जलयुक्त कूप बना हुआ है ,स्वामी ने समाज के मूल में छुपी श्रेष्ठताओं को पहचाना और समाज को भी उन्हीं श्रेष्ठताओं से परिचित करवाया . स्वामी जी ने नकारात्मक संघर्ष के बजाय सदाचारी प्रयत्न का उपदेश दिया ,
. गुरु गोकुलदास महाराज का जन्म 6 जनवरी 1907 को उत्तरप्रदेश के बेलाताल गांव में हुआ था। इनके पिता का नाम करणदास तथा इनकी माता का नाम श्रीमती हर्बी था। गुरु गोकुलदास महाराज समाज में परिवर्तन की मुख्य भूमिका निभाने वाले मेघवंश, डोम, डुमार, बसोर, धानुक, नगारची, हेला आदि समाज के महान पुरोधा ,संत और वे एक तपस्वी, बाल ब्रह्मचारी संत थे। अपने अनुयायियों के साथ सत्संग में रत रहने वाले गोकुलदासजी ने पूरे भारत देश का भ्रमण किया था। सन् 1964 में भारत के आक्रमण पर तत्कालीन प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री से भेंट कर उन्होंने चित्रकूट की पहाड़ियों में भारत की विजय होने तक घोर तपस्या की थी। गुरु गोकुलदासजी के भीतर राष्ट्रभक्ति कूट-कूटकर भरी हुई थी। वे एक सच्चे देशभक्त रहे। स्वतंत्रता के आंदोलन में भाग लेने वालों का वे बहुत सम्मान करते थे। वे सदा यही कहा करते थे कि संकट की घड़ी में हर भारतीय को धर्म, जाति के भेदभाव से ऊपर उठकर देश की सेवा करना ही चाहिए। समाज के सजग प्रहरी और देशभक्त गोकुलदासजी महाराज समाज की पूजा-पद्धति, सामाजिक रीति-रिवाज, वैवाहिक पद्धति आदि को समान रूप से मानते थे। वे एक महान संत थे जिन्होंने अपना पूरा जीवन समाज को समर्पित कर उसे पहचान बनाई।गोकुल दस जी शांत स्वरूपा थे। उन्हें एकान्तवास बहुत प्रिय था। कहीं भी जाते थे तो शहर से बाहर, शोरगुल से दूर, एकांत स्थान पर रहते थे। उन्होंने बहुत तपस्या की थी और अधिकतर मौन रहा करते थे। महाराज जी का समस्त जीवन यज्ञमय था। उनका सम्पूर्ण जीवन लोगों के हित करने में ही बीता। ऐसे महान संत को नमन!
*दामोदर दर्जी समाज महासंघ आयोजित सामूहिक विवाह के विडिओ
*मंदिरों की बेहतरी हेतु डॉ आलोक का समर्पण भाग 1:-दूधाखेडी गांगासा,रामदेव निपानिया,कालेश्वर बनजारी,पंचमुखी व नवदुर्गा चंद्वासा ,भेरूजी हतई,खंडेराव आगर
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*मंदिरों की बेहतरी के लिए डॉ आलोक का समर्पण खण्ड 7 गायत्री शक्ति पीठ खड़ावदा(मंदसौर),शिव हनुमान मंदिर लुका का खेडा,कायावर्नेश्वर महादेव मंदिर क्यासरा -डग,बैजनाथ शिवालयआगर-मालवा,हनुमान बगीची सुनेल,मोडी माताजी का मंदिर सीतामऊ,गायत्री शक्ति पीठ शामगढ़
जाति इतिहास : Dr.Aalok भाग २ :-कायस्थ ,खत्री ,रेबारी ,इदरीसी,गायरी,नाई,जैन ,बागरी ,आदिवासी ,भूमिहार
*मनोरंजन ,कॉमेडी के विडिओ की प्ले लिस्ट
*जाति इतिहास:Dr.Aalok: part 5:-जाट,सुतार ,कुम्हार,कोली ,नोनिया,गुर्जर,भील,बेलदार
*जाति इतिहास:Dr.Aalok भाग 4 :-सौंधीया राजपूत ,सुनार ,माली ,ढोली, दर्जी ,पाटीदार ,लोहार,मोची,कुरेशी
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