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30.3.25

चमार जाति का पराक्रमी इतिहास :मेघवाल ,मेघवंश ,जाटव का अंतर :गोत्र की जानकारी

               

                          चमार जाति का इतिहास


    मित्रों ,भारत मे जाति व्यवस्था वैदिक काल से ही अस्तित्व मे है | जाति इतिहास के विडिओ की शृंखला मे आज" चमार ,मेघवाल,मेघवंश,जाटव जाति के इतिहास  और गोत्र " विषय   पर चर्चा करेंगे 
  चमार जाति का इतिहास एक जटिल और विविध विषय है, जो भारत के सामाजिक, राजनीतिक, और आर्थिक इतिहास से जुड़ा है। चमार शब्द का प्रयोग आमतौर पर दलित समुदाय के लिए किया जाता है, और ऐतिहासिक रूप से उन्हें चमड़े के काम से जोड़ा गया है। हालांकि, कुछ इतिहासकारों का मानना है कि चमारों का पारंपरिक व्यवसाय "चमड़ा"से जुड़ा होना एक आधुनिक अवधारणा है और वे ऐतिहासिक रूप से कृषक थे।
चमार जाति के इतिहास को समझने के लिए, निम्नलिखित पहलुओं पर विचार करना महत्वपूर्ण है:
चमार समुदाय का गौरवशाली इतिहास रहा है, जिसमें वीरता, धार्मिकता और सामाजिक योगदान शामिल हैं। चमार समुदाय के लोग, जिन्हें ऐतिहासिक रूप से दलितों में गिना जाता था, ने वीरता और बहादुरी के कई कार्य किए हैं, जैसे कि चमार रेजिमेंट का गठन और द्वितीय विश्व युद्ध में अंग्रेजों के लिए लड़ाई|

उत्पत्ति और नामकरण:

चमार शब्द संस्कृत शब्द "चर्मकार" से लिया गया है, जिसका अर्थ है "चमड़ा" कुछ इतिहासकारों का मानना है कि यह शब्द मध्यकाल में अस्तित्व में आया, जबकि कुछ का मानना है कि यह प्राचीन काल से चला आ रहा है।

पारंपरिक व्यवसाय:

चमारों का पारंपरिक व्यवसाय चमड़े का काम, जैसे कि चमड़ा और जूते बनाना, रहा है। हालांकि, आधुनिक समय में, चमार समुदाय के कई लोग विभिन्न व्यवसायों में लगे हुए हैं, जिनमें कृषि, मजदूरी, और सरकारी नौकरियां शामिल हैं।

सामाजिक स्थिति:

ऐतिहासिक रूप से, चमारों को भारतीय समाज में "अछूत" माना जाता था और उन्हें कई सामाजिक प्रतिबंधों का सामना करना पड़ता था। उन्हें सार्वजनिक स्थानों पर जाने, शिक्षा प्राप्त करने, और उच्च जाति के लोगों के साथ सामाजिक संपर्क स्थापित करने से वंचित रखा जाता था।

आधुनिक परिवर्तन:




20वीं सदी में, डॉ. बी.आर. अंबेडकर के नेतृत्व में चमार समुदाय ने सामाजिक न्याय और समानता के लिए संघर्ष किया। उनके प्रयासों के परिणामस्वरूप, चमारों को अनुसूचित जाति के रूप में मान्यता दी गई और उन्हें शिक्षा, रोजगार, और राजनीतिक प्रतिनिधित्व के क्षेत्र में कुछ अधिकार प्राप्त हुए।

सांस्कृतिक प्रभाव:

चमार समुदाय का भारतीय संस्कृति और कला पर भी महत्वपूर्ण प्रभाव रहा है। संत रविदास, एक प्रसिद्ध 16वीं सदी के कवि-संत, चमार समुदाय से थे और उन्होंने सामाजिक समानता और भक्ति के विचारों को बढ़ावा दिया।
आज, चमार समुदाय भारत में एक महत्वपूर्ण सामाजिक और राजनीतिक शक्ति है। वे शिक्षा, रोजगार, और राजनीतिक प्रतिनिधित्व के क्षेत्र में आगे बढ़ने के लिए संघर्ष कर रहे हैं, और वे भारतीय समाज में समानता और न्याय के लिए एक महत्वपूर्ण आवाज बने हुए हैं।

महान संत रविदास /रैदास 
  


चमार जाति के गोत्र 

  चमार जाति में कई गोत्र पाए जाते हैं, जिनमें से कुछ प्रमुख हैं: जाटव, अहिरवार, रैदास, कुरील, धुसिया, दोहरे, भारती, सागर, कर्दम, आनंद, चंद्र रामदसिया, और रविदासिया. इसके अलावा, चमार जाति में कुछ अन्य गोत्र भी पाए जाते हैं जैसे कि बैन्स, बस्सन, कलसी, अंगुराल, घई, और थापा. कुछ चमार समुदाय के लोग अपने गोत्र को उपनाम के रूप में भी इस्तेमाल करते हैं.

चमार की कुल देवी कौन है -



माता परमेश्वरी चमार जाति की कुल देवी हैं। इनका दूसरा नाम देवी चमरिया हैं।

चमार जाति मे उपजातियाँ -

चमार जाति में 150 से अधिक उपजातियाँ हैं. ये उपजातियाँ विभिन्न क्षेत्रों और व्यवसायों के आधार पर विभाजित हैं, लेकिन सभी चमार समुदाय का हिस्सा मानी जाती हैं.

कुछ प्रमुख चमार उपजातियाँ हैं:
अहिरवार:
यह उपजाति उत्तर भारत में पाई जाती है और इसे सूर्यवंशी या जाटव के नाम से भी जाना जाता है.

जाटव:
यह भी उत्तर भारत में पाई जाने वाली एक प्रमुख उपजाति है.

रेगर:
यह उपजाति राजस्थान और आसपास के क्षेत्रों में पाई जाती है.

बैरागी:
यह उपजाति भी राजस्थान और आसपास के क्षेत्रों में पाई जाती है.

धुसिया:
यह उपजाति उत्तर प्रदेश और अन्य राज्यों में पाई जाती है.

मेघवाल:
यह उपजाति राजस्थान में पाई जाती है और कुछ लोग इसे चमार जाति का हिस्सा मानते हैं.

जाटव जाति के गोत्र



जाटव जाति में कई गोत्र पाए जाते हैं, जिनमें से कुछ प्रमुख हैं: भारद्वाज, गौतम, कश्यप, मिश्रा, वशिष्ठ, शांडिल्य, और अत्रि. ये गोत्र जाटवों की सामाजिक और सांस्कृतिक पहचान का हिस्सा हैं और विवाह जैसे सामाजिक अनुष्ठानों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं

मेघवंशी और चमार मे अंतर -

मेघवंशी और चमार, दोनों ही भारत में पाई जाने वाली जातियाँ हैं, लेकिन दोनों में कुछ महत्वपूर्ण अंतर हैं। मेघवंशी, जिन्हें मेघवाल भी कहा जाता है, पारंपरिक रूप से बुनकर और किसान रहे हैं, जबकि चमार मुख्य रूप से चमड़े के काम से जुड़े रहे हैं।




मेघवंशी की जानकारी :
उत्पत्ति:
मेघवंशी समुदाय को मेघ ऋषि का वंशज माना जाता है और वे बादल और वर्षा के उपासक हैं।

पारंपरिक व्यवसाय:
इनका पारंपरिक व्यवसाय बुनाई और खेती रहा है।

सामाजिक स्थिति:

मेघवाल समुदाय को अनुसूचित जाति में शामिल किया गया है और वे सामाजिक रूप से अपेक्षाकृत अधिक संगठित हैं।

उपजातियां:
मेघवाल समुदाय में कई उपजातियां हैं, जैसे जाटव, बैरवा, जटिया, मारू, आदि।
मेघवाल और मेघवंशी में अंतर-

मेघवाल और मेघवंश दोनों शब्द एक ही समुदाय को दर्शाते हैं, लेकिन 'मेघवाल' एक जाति या समुदाय का नाम है, जबकि 'मेघवंश' उस समुदाय के वंश या कुल को दर्शाता है। दूसरे शब्दों में, मेघवाल एक जाति है, और मेघवंश उस जाति का वंश है।





मेघवाल जाति के गोत्र -

मेघवाल जाति में कई गोत्र पाए जाते हैं। कुछ प्रमुख गोत्रों में आठोड़िया, आयच, आसोपिया, आडान्या, अर्टवाल, ओलावट, आंढ़ोद, आशरम, चौहान, राठौर, परिहार, परमार, सोलंकी, ब्रेजवाल, बुनकर मरीचि, अत्री, अगस्त, भारद्वाज, मतंग, धनेश्वर, महाचंद, जोगचंद, जोगपाल, मेघपाल, गर्वा और जयपाल शामिल हैं

चमार और जाटव मे अंतर -

चमार और जाटव दोनों ही भारत में दलित समुदाय से संबंधित जातियाँ हैं, लेकिन जाटव को चमार जाति की एक उपजाति माना जाता है। चमार एक व्यापक शब्द है जो कई उपजातियों को समाहित करता है, जिनमें से एक जाटव भी है




मेघवाल और चमार  मे अंतर -

मेघवालों का सामाजिक स्तर चमारों और भंगियों से ऊँचा माना जाता है । यह सामाजिक पदानुक्रम इनकी  कहानियों में भी प्रतिबिंबित होता है। मेघवालों के संदर्भ में, अधिकांश लोगों का मानना ​​है कि अस्पृश्यता और निचली जाति का दर्जा उनके व्यवसाय और उनकी खान-पान की आदतों से आया है।

Disclaimer: इस content में दी गई जानकारी Internet sources, Digital News papers, Books और विभिन्न धर्म ग्रंथो के आधार पर ली गई है. Content को अपने बुद्धी विवेक से समझे


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