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10.3.25

जांगिड़ ब्राह्मणों की उत्पत्ति और गौरवशाली इतिहास | History of Jangid Brahman caste

जांगिड़ ब्राह्मणों की उत्पत्ति और गौरवशाली इतिहास विडिओ 




भारत एक बहुत बड़ा देश है. जहां विभिन्न धर्मों और जातियों के लोग रहते हैं. इन सबसे ही समाज का निर्माण होता है. सभी धर्म और जातियों का अपना अपना पुराना इतिहास रहा है. जांगिड़ ब्राह्मण समाज का भी अपना एक पुराना इतिहास रहा है. जांगिड़ समुदाय भारत में ब्राह्मण जाति से संबंधित है. स समुदाय के लोग बढ़ईगीरी और फर्नीचर से संबंधित व्यवसाय से जुड़े हुए होते हैं. इसके अलावा जांगिड़ ब्राह्मण समुदाय पेंटिंग और सजावटी मूर्तियों को बनाने का काम भी करते हैं.
जांगिड़ जाति ब्राहमण जाति हैं और यह जाति अंगिराऋषि  से संबंधित हैं । दिग्विजयी प्रतापी होने के कारण वह जांगिड़ कहलाये । अंगिरा ऋषि के आश्रम जांगल देश मे थे इसलिये अंगिरस स्थान जांगिड कहलाया है । आदि शिल्पाचार्य भुवन पुत्र विश्वकर्मा अंगिराऋषि के वंश के होने के कारण जंगिड़  कहलाये।
 मान्यता है कि अगिराऋषि आपने आश्रम में रहते थे तथा उनका आश्रम जांगल देश में था, जिसके कारण अंगिरा ऋषि की संतान स्थान के नाम के आधार पर जांगिड कहलाए. 
इसके अलावा ऐसी भी मान्यता है कि आदि शिल्पाचार्य भुवन पुत्र विश्वकर्मा देवों के शिल्पी होने के कारण जांगिड़ कहलाये. 
कुछ लोगों द्वारा जांगिड़ समाज के ब्राह्मण होने पर सवाल भी उठाए जाते हैं, लेकिन ऐसे कई प्रमाण है जिनसे पता चलता है कि जांगिड़ समाज ब्राह्मण समुदाय से संबंध रखता है. 
जांगिड़ ब्राह्मणों का इतिहास ब्रह्मर्षि अंगिरा से जुड़ा है. ये ब्राह्मण समुदाय की एक उपजाति है. 
जांगिड़ ब्राह्मण, भारत के हरियाणा, राजस्थान, दिल्ली, गुजरात, महाराष्ट्र, चंडीगढ़, गुड़गांव, नोएडा, जम्मू-कश्मीर, और पंजाब में पाए जाते हैं.
ये लोग ब्राह्मण बनने की भी कोशिश करते हैं तथा आरक्षण का भी लाभ लेना चाहते हैं।
सुथार जाति के लोग जांगिड़ ब्राह्मण नहीं होते. हालांकि, सुथार जाति के लोग अपने आप को जांगिड़ घोषित कर लेते हैं
जांगिड़ समाज के कई गोत्र हैं, जिनमें से एक गोत्र कुलरिया है. कुलरिया गोत्र की कुलदेवी मां चामुंडा हैं.
जांगिड़, भारत का एक ब्राह्मण समुदाय है. ये ब्रह्मर्षि अंगिरा की संतान हैं. जांगिड़ समाज के लोग वास्तुशिल्प कार्य, लकड़ी के काम, जहाज़ निर्माण, और लकड़ी के फ़र्नीचर बनाने में विशेषज्ञ हैं. आजकल, जांगिड़ समाज के लोग पेंटिंग के लिए भी जाने जाते हैं.
आमतौर पर गांव में इनके व्यवसाय को खाती के नाम से भी जाना जाता है. कुछ लोगों का मानना है कि खाती एक जाति होती है. लकड़ी के व्यवसाय से जुड़ा होने के कारण जांगिड़ समुदाय को खाती भी कहा जाता है. लेकिन खाती शब्द जाति से संबंधित ना  होकर व्यवसाय से संबंधित माना जाता है.
जांगिड़ समाज के लोग, विश्वकर्मा समुदाय की श्रेष्ठ जातियों में गिने जाते हैं.
जांगिड़ समाज के लोग, पूरे उत्तर भारत में पाए जाने वाले अन्य ब्राह्मण समुदायों के समान हैं.
जांगिड़ ब्राह्मणों के कई गोत्र हैं, जिनमें से कुछ ये हैं: भारद्वाज, अत्रि, वत्स, गौतम. 
जांगिड़ मूल रूप से बढ़ई को ही कहते हैं इनको  हरियाणा में धीमान बढ़ई के नाम से जाना जाता है
जांगड़ा ब्राह्मणों ने वेद पढ़ने और मंदिरों में पूजा करने जैसे ब्राह्मणों के पारंपरिक काम  के बजाय कृषि, इंजीनियरिंग, बढ़ईगीरी, पेंटिंग आदि जैसे व्यवसायों को अपनाया था। वे अन्य ब्राह्मण समुदायों की तरह जनेऊ नामक पवित्र धागा पहनते हैं और वृंदावन के मंदिरों में शिक्षा और दीक्षा प्राप्त कर सकते हैं जहां केवल ब्राह्मणों को शिक्षा दी जाती है। जिन जांगड़ा ब्राह्मणों को वेदों, पुराणों का ज्ञान है, वे अपने नाम के आगे पंडित भी लगाते हैं। वे भगवान विश्वकर्मा की पूजा करते हैं और इसलिए कभी-कभी वे विश्वकर्मा या विश्व ब्राह्मण या खाती के सरनेम से भी जाने जाते हैं

जांगिड़ समाज की कुलदेवी कौन हैं?

जांगिड़ समाज की कुलदेवी मां चामुंडा हैं. जांगिड़ समाज के कुलरिया गोत्र की कुलदेवी मां चामुंडा हैं. जैसलमेर ज़िले के गोगादे गांव के पास मां चामुंडा का मंदिर है
जांगिड़ ब्राह्मणों के लिए अखिल भारतीय जांगिड़ ब्राह्मण महासभा का गठन किया गया था. इसकी शुरुआत डॉ. इंद्रमणि शर्मा ने की थी.
 जंगिड़  ब्राह्मण लोगों मे निम्न विशेषताएं आम तौर पर उल्लेखनीय हैं 
चोरी नहीं करते
देशद्रोह नहीं करते
अपराधों में संलिप्त नहीं रहते
गुण्डागर्दी नहीं जानते
मेहनत करके खाते हैं
कभी अपने धर्म को छोड़कर दूसरा धर्म नहीं अपनाया
ई समाज मे पैसे की या योग्यता की कोई कमी नहीं है 
भारत 7.5 करोड़ जांगिड़ हैं। यह संख्या बहुत बड़ी है।
Disclaimer: इस लेख में दी गई जानकारी Internet sources, Digital News papers, Books और विभिन्न धर्म ग्रंथो के आधार पर ली गई है. Content को अपने बुद्धी विवेक से समझे।

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