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6.5.25

सैनी समाज की उत्पत्ति का गौरवशाली असली इतिहास |कोइरी जाति?कुशवाहा



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सैनी समाज की  उत्पति को लेकर काफी मान्यताए है लेकिन सबसे प्रचलित मान्यता यह है कि यह शूरसेन के वंशज है।
सैनी समाज एक सामाजिक समूह है जो मुख्य रूप से पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और उत्तर प्रदेश के भारतीय राज्यों में पाया जाता है। सैनी समुदाय की उत्पत्ति का पता प्राचीन काल से लगाया जा सकता है, और उनका इतिहास अक्सर राजपूतों से जुड़ा होता है।

सैनी क्षत्रिय (योद्धा) वर्ण के वंशज होने का दावा करते हैं, जो हिंदू धर्म में चार मुख्य सामाजिक विभाजनों में से एक है। अपनी पारंपरिक कथा के अनुसार, वे खुद को पौराणिक राजा शूरसेन के वंशज मानते हैं, जिन्होंने वर्तमान उत्तर प्रदेश के एक ऐतिहासिक शहर मथुरा पर शासन किया था।

ऐतिहासिक रूप से, सैनी सैन्य और कृषि व्यवसायों से जुड़े रहे हैं। उनके पास एक मजबूत मार्शल परंपरा है और पूरे इतिहास में विभिन्न सैन्य अभियानों में भाग लिया है। सैनी परिवार खेती से भी जुड़ा हुआ है, जिनमें से कई ज़मीन के मालिक हैं और खेती करते हैं।

सैनी कौन सी बिरादरी में आते हैं?

सैनी एक भारतीय उपनाम है, जिसका प्रयोग उत्तर भारत में विभिन्न समुदायों द्वारा किया जाता है। उत्तर प्रदेश में इसका प्रयोग कुशवाह या कोइरी जाति के लोग करते हैं। राजस्थान और हरियाणा में इसे अक्सर माली जाति से जोड़ा जाता है। सैनी भी पंजाब का एक समुदाय है, जिसे 2016 से राज्य की अन्य पिछड़ा वर्ग की सूची में शामिल किया गया है।

सैनी के पूर्वज कौन हैं?

सैनियों का मानना ​​है कि उनके पूर्वज यादव थे और यह वही वंश था जिसमें कृष्ण का जन्म हुआ था। यादवों की 43वीं पीढ़ी में राजा विदार्थ के पुत्र शूर या सूर नामक राजा हुए। राजा शूर के एक पुत्र का नाम 'सैन' था।
यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि सैनी समाज की उत्पत्ति और इतिहास मौखिक परंपराओं, किंवदंतियों और सामुदायिक लोककथाओं पर आधारित हैं, जो हमेशा प्रलेखित ऐतिहासिक रिकॉर्ड के साथ संरेखित नहीं हो सकते हैं। नतीजतन, समुदाय के भीतर उनके इतिहास और मूल कहानियों के विभिन्न संस्करण मौजूद हो सकते हैं।

राजपूत और सैनी में क्या अंतर है?

वे भारत में दो अलग-अलग समुदाय हैं, जिनकी ऐतिहासिक उत्पत्ति और सामाजिक स्थिति अलग-अलग है। सैनी समुदाय को कई राज्यों में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) का हिस्सा माना जाता है, जबकि राजपूतों को पारंपरिक रूप से भारतीय जाति व्यवस्था में एक अगड़ी जाति के रूप में वर्गीकृत किया जाता है। 

क्या माली और सैनी एक ही हैं?

क्या माली और सैनी एक ही है : नहीं माली और सैनी सनातन धर्म की दो अलग-अलग जातियां हैं , माली बगीचे में काम करने वाले व्यक्ति को कहा जाता है माली कार्य है और सैनी एक क्षत्रिय जाती है जो कि उत्तर भारत में पाई जाती है ।

सैनी समाज की कुलदेवी कौन थी?

सैनी समाज की कुलदेवी नाग माता मानी जाती है। कुछ सैनी परिवारों के लिए, चामुंडा माता भी कुलदेवी हो सकती है। कई सैनी परिवारों में, अपनी गोत्र के अनुसार, अलग-अलग कुलदेवियाँ पूजी जाती हैं.

सैनी के कितने गोत्र होते हैं?

सैनी समाज में रिश्ते तय करते समय स्वयं, माँ, एवं दादी का गोत्र ही छोड़ा जायेगा। अब सैनी समाज में शादी नानी के गोत्र में भी हो सकेगी। समाज की बैठक में व्यापक चिन्तन ओर मंथन के बाद तय किया गया की केवल तीन गोत्र छोडने होंगे।

सैनी समाज के गुरु कौन हैं?

सैनी समाज के गुरु कौन हैं : सैनी समाज के गुरु प्रभु महादेव हैं ।

क्या सैनी सूर्यवंशी हैं?

भगवान बुद्ध के भी पूर्वज थे, अशोक महान के भी पूर्वज थे। समय की गति के साथ शाखाएं फूटती हैं किन्तु जड़ एक और स्थिर रहती है। सैनी सूर्यवंशी हैं सैनी नाम के भीतर भागीरथी,गोला, शुरसेन, माली, कुशवाह, शाक्य, मौर्य, काम्बोज आदि समाहित हैं।

सैनी किस धर्म को मानते हैं?

सैनी का भगवान कौन है : सैनी सनातन धर्म के सभी भगवानों को मानते हैं , सैनी जाति का एक हिस्सा सिख धर्म को भी मानता है सिख सैनी अपने धर्म गुरुओं के बताएं धर्म मार्ग पर चलते हैं
 
यह ध्यान देने योग्य है कि ऐतिहासिक और सामाजिक उत्पत्ति का अध्ययन जटिल हो सकता है और अलग-अलग व्याख्याओं के अधीन हो सकता है। इसलिए, विषय की व्यापक समझ के लिए विद्वानों के स्रोतों, ऐतिहासिक ग्रंथों और मानवशास्त्रीय अध्ययनों को संदर्भित करने की हमेशा सिफारिश की जाती है।

Disclaimer: इस विडियो में दी गई जानकारी Internet sources, Digital News papers, Books और विभिन्न धर्म ग्रंथो के आधार पर ली गई है. Content को अपने बुद्धी विवेक से समझे

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