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17.4.25

कुमावत समाज का गौरव शाली इतिहास /History of Kumawat Caste



कुमावत स्वंयज की उत्पत्ति और इतिहास का विडिओ 


कुमावत एक भारतीय हिन्दू जाति है।
कुमावत कुंभलगढ़(मेवाड़) के निवासी हैं जिनका वर्तमान कार्य स्थापत्य कला के ठेकेदारी से सबंधित हैं। इस जाति(कुमावत) का जाति सूचक शब्द 'राजकुमार' हुआ करता था।दुर्ग, क़िले, मंदिर इत्यादि के निर्माण व मुख्य स्थापत्य कला एवं चित्रकारी की ठेकेदारी का काम कुमावत समाज के लोगों द्वारा किया जाता था । स्थापत्य कला एवं शिल्पकला दोनों अलग-अलग कलाएं हैं। कुछ लोग कुमावत और कुम्हार (प्रजापति) को एक ही समझ लेते है, लेकिन दोनों अलग-अलग जातियां है। कुमावत जाति के अधिकांश लोग स्थापत्य कला (वास्तुकला) के ठेकेदारी का काम करने लगें, जबकि कुम्हार जाति के लोग मिट्टी का अर्थात् हस्तशिल्पकला का काम करते थे।उनमें से अधिकांश मारवाड़ क्षेत्र और भारत के विभिन्न राज्यों में केंद्रित हैं। उन्हें अलग-अलग नामों से जाना जाता है जैसे मारू कुमावत, मेवाड़ी कुमावत, ढूंढाड़ी कुमावत, मारू ठेकेदार आदि। कुमावत को नायक, ठेकेदार, स्थपति और हुनपंच के नाम से भी जाना जाता है। इस समुदाय के लिए नृवंशविज्ञान संबंधी साक्ष्य रानी लक्ष्मी चंदाबत द्वारा लिखित बागोरा बटों की गाथा और जेम्स टॉड द्वारा लिखित एनल्स एंड एंटिक्विटीज़ ऑफ राजस्थान में उपलब्ध हैं। यह समाज जयपुर से अपना त्रैमासिक प्रकाशन कुमावत क्षत्रिय हिन्दी में भी निकलता है।
  कुमावत समाज के गौरवशाली इतिहास का वर्णन करते हुए ‘श्री चंडीसा’ ने लिखा है कि जैसलमेर के महान् संत श्री गरवा जी जो कि एक भाटी राजपूत थे, ने जैसलमेर के राजा रावल केहर द्वितीय के काल में विक्रम संवत् 1316 वैशाख सुदी 9 को राजपूत जाति में विधवा विवाह (नाता व्यवस्था) प्रचलित करके एक नई जाति बनायी। जिसमें 9   राजपूती गोत्रें के 62 राजपूत  शामिल हुए। इसी आधार पर इस जाति की 62 गौत्रें बनी | विधवा विवाह चूंकि उस समय राजपूत समाज में प्रचलित नहीं था इसलिए श्री गरवा जी महाराज ने विधवा लड़कियों का विवाह करके उन्हें एक नया सधवा जीवन दिया जिनके पति युद्ध में वीरगति को प्राप्त हो गए थे।
  यह तथ्य भी दिलचस्प है कि जातियों की उत्पत्ति के इतिहास  मे  भाटों  और  रावों ने अपनी बहियों -पोथियों मे अलग अलग कहानियों के माध्यम से लगभग  सभी  जातियों को राजपूतों  से जोड़ दिया है ताकि उनको  परम दानी   क्षत्रीय राजाओं  के वंशज बताकर अधिक से अधिक दान दक्षिणा प्राप्त कर सकें |
कुमावत जाति अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) में आती है. ये क्षत्रिय वर्ण के अंतर्गत आते हैं, इसलिए इन्हें मारू क्षत्रिय और मारू राजपूत भी कहा जाता है.


स्थापत्य कला बोर्ड

राजस्थान राज्य स्थापत्य कला बोर्ड,जो कुमावत समुदाय को समर्पित है, का गठन किया गया है।

कुमावत उत्पत्ति की पौराणिक कथा 


स्कंदपुराण के नागर खंड में एवं श्री विश्वकर्मा पुराण में शिल्पियों का वर्णन मिलता हैं जो भगवान विश्वकर्मा के पांचों संतानों
 मनु, 
मय,
त्वष्ठा,
शिल्पी और 
देवज्ञ 
में से महर्षि शिल्पी  के वंशज ही शिल्पकार समुदाय अर्थात कुमावत  समाज  के नाम से जाना जाता है| 
कुमावतो को प्राय: गजधर भी कहा जाता है जो दुर्ग के दुर्गपति हुआ करते थे।
कुमावतो को अलग अलग स्थानों  मे  शिल्पी, राजकुमार, राजगीर, संगतरास,राज, मिस्त्री, राजमिस्त्री, पथरछिता(पाषाण से संबंधित शिल्पकार), परचिनिया, पच्चीकार कहा जाता है।
कुमावत जाति के लोग अपने पारंपरिक स्थापत्य कला के अतिरिक्त अभिनय, चित्रकारी, भजन, लोक संगीत इत्यादि से भी संबंधित रहे हैं।

Disclaimer: इस विडियो में दी गई जानकारी Internet sources, Digital News papers, Books और विभिन्न धर्म ग्रंथो के आधार पर ली गई है. Content को अपने बुद्धी विवेक से समझे

|यूट्यूब विडिओ की प्लेलिस्ट -


*भजन, कथा ,कीर्तन के विडिओ

*दामोदर दर्जी समाज महासंघ  आयोजित सामूहिक विवाह के विडिओ 

*दर्जी समाज मे मोसर (मृत्युभोज) के विडिओ 

पौराणिक कहानियाँ के विडिओ 

मंदिर कल्याण की  प्रेरक कहानियों के विडिओ  भाग 1 

*दर्जी समाज के मार्गदर्शक :जीवन गाथा 

*डॉ . आलोक का काव्यालोक

*दर्जी  वैवाहिक  महिला संगीत के विडिओ 

*मनोरंजन,शिक्षाप्रद ,उपदेश के विडिओ 

*मंदिर कल्याण की प्रेरक कहानियाँ भाग 2 

*मंदिर  कल्याण की प्रेरक कहानियाँ के विडिओ भाग 3 

*मुक्ति धाम विकास की प्रेरक कहानियाँ भाग 2 

*मुक्ति धाम विकास की प्रेरक कहानियाँ भाग 3 

*मंदिर कल्याण की प्रेरक कहानियां के विडिओ भाग 4 

मंदिर कल्याण की प्रेरक कहानियाँ के विडिओ भाग 5 

*भजन,कथा कीर्तन के विडिओ 

*मंदिर कल्याण की प्रेरक कहानियाँ के विडिओ  भाग 6 

*मंदिर कल्याण की प्रेरक कहानियाँ के विडिओ भाग 7 

*मनोरंजन,शिक्षा ,पर्यटन,उपदेश के विडिओ 

*मनोरंजन ,कॉमेडी के विडिओ 

*जातियों के महापुरुषों की जीवनी के विडिओ 

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