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21.4.25

दैत्यगुरू शुक्राचार्य की बेटी देवयानी की प्रेम कथा ?देवयानी और कच की कहानी



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शुक्राचार्य की पुत्री : देवयानी

असुरों के पुरोहित शुक्राचार्य ने भी असुर नरेश वृषपर्वा को पढ़ाया था। एक दिन शुक्राचार्य की पुत्री देवयानी और वृषपर्वा की पुत्री शर्मिष्ठा अपनी अन्य सखियों के साथ जलक्रीड़ा के लिए गईं । एक पेड़ के नीचे उन्होंने अपने कपड़े रखे थे। लड़कियों की जलक्रीड़ा के दौरान तेज हवा चल रही थी जिससे कपड़े इधर-उधर हो गए। जब देवयानी ने नदी से बाहर आकर कपड़े पहने तो गलती से उसने शर्मिष्ठा के वस्त्र पहन लिए। हवा की वजह से सब कपड़े आपस में मिल गये थे अतः देवयानी से यह भूल हो गयी।

शर्मिष्ठा ने जब यह देखा कि देवयानी ने उसके वस्त्र पहन लिए तो उसने चिढ़कर कहा – राजकुमारी के कपड़े पहनने से तुम राजकुमारी नहीं बन जाओगी, तुम्हारे पिता मेरे पिता के सेवक ही हैं तो तुम भी सेविका ही हो। देवयानी एक अति सुन्दर युवती थी, राजकुमारी के वस्त्र पहनने से उसकी सुन्दरता और भी बढ़ गयी थी। यह सुनकर शर्मिष्ठा क्रोधित हो गई। “मेरे पिता राजा हैं जबकि तुम्हारे पिता उनकी स्तुति करके गुजर बसर करेंगे उसने कहा। तुम भिखारी की बेटी हो जो भिक्षा लेकर चलता है। मेरे पिता की प्रशंसा की जाती है जो हर किसी को दान देते हैं।

कुछ भी नहीं लेते। भिखमंगे की बेटी तुम्हें मुझ पर अनावश्यक गुस्सा क्यों आ रहा है? इसके बाद देवयानी गुस्से में शर्मिष्ठा के शरीर से अपने कपड़े खींचने लगी। शर्मिष्ठा ने इस खींचातानी में देवयानी को धक्का दिया और वह कुएं में गिर गई। वह क्रोधित हो गई थी इसलिए उसने कुएं में झांक भी नहीं देखा। शर्मिष्ठा नगर में वापस आई और सोचा कि देवयानी कुएं में गिरकर मर गई होगी। शर्मिष्ठा और उसकी सखियों के जाने के कुछ देर बाद वहां राजा ययाति आए। वह एक घातक जानवर का पीछा कर रहे थे।

राजा ययाति

  प्यास से परेशान राजा ययाति घने वन में एक कुआं देखकर उसके पास गए। उन्हें कुएं में झांककर देखा कि पानी के स्थान पर घास तिनके और लताओं पर एक सुंदर युवती है। युवती ने राजा ययाति से परिचय लिया। इसके बाद उन्होंने उसे  बहार  निकाला। युवती ने बाहर निकलते समय राजा ययाति को अपना दाहिना हाथ दिया। कुएं से बाहर निकलने के बाद ययाति ने देवयानी से कहा अब तुम निर्भय होकर जहां चाहो जा सकते हो।देवयानी  ने ययाति से कहा “तुमने मेरा दाहिना हाथ पकड़ा है इसलिए अब तुम मेरे पति हो गए हो । मुझे अब अपने साथ ले जाओ। “सुमुखी तुम ब्राह्मण कन्या हो मैं क्षत्रिय हूँ इसलिए हमारा विवाह नहीं हो सकता ययाति ने कहा। मैं आपसे शादी कैसे कर सकता हूँ? आप जगतगुरु होने के योग्य शुक्राचार्य की पुत्री हो।

 “ राजन ! अगर मेरे कहने पर तुम आज मुझे वरण करने को तैयार नहीं हो और मुझे साथ नहीं ले जाते हो तो मैं पिताजी की अनुमति लेकर तुम्हारा वरण करूंगी । तब तुम मुझे अपने साथ ले जाओगे । इसके बाद ययाति देवयानी से विदा लेकर चले गए । ययाति के जाने पर देवयानी घर नहीं गई । वहीं एक वृक्ष का सहारा लेकर खड़ी हो गई ।

चिन्तित शुकराचार्य

पुत्री के घर लौटने में हुए विलम्ब से चिन्तित शुकराचार्य ने उसकी खोज में एक दासी भेजी । दासी पदचिन्हों के सहारे देवयानी तक पहुंची और उसने उसे वहां रोते हुए पाया । जब दासी ने देवयानी से उसके पिता की इच्छानुसार शीघ्र घर पहुंचने को कहा तो उसने दासी को पहले शर्मिष्ठा द्वारा किए गए दुर्व्यवहार के बारे में बताया और फिर कहा कि पिताजी से कह देना कि अब मैं वृषपर्वा के नगर में पैर नहीं रखूंगी ।




शुक्राचार्य को देवयानी के अपमान की सूचना

दासी ने नगर लौटकर शुक्राचार्य को देवयानी के अपमान और निश्चय की सूचना दी। दासी की बात सुनकर शुक्राचार्य तुरंत अपनी पुत्री को ढूंढने निकल पड़े और उन्हें ढूंढने में काफी मशक्कत करनी पड़ी। उन्होंने अपनी बेटी को सांत्वना देते हुए कहा बेटी हमारा सुख या दुख हमारे अपने अच्छे या बुरे कर्मों से निर्धारित होता है. ऐसा लगता है कि आपने कोई बुरा कर्म किया है और उसका फल आपको भुगतना पड़ रहा है। इस पर देवयानी ने कुछ क्रोध और दुःख के साथ कहा: पिताजी कृपया मेरी बात ध्यान से सुनें और मेरे अच्छे या बुरे कर्मों के बारे में न पूछें। 

 देवयानी की बात से शुक्राचार्य बहुत क्रोधित और वृषपर्वा के पास गए। और कहा आपकी पुत्री शर्मिष्ठा  ने न केवल मेरी पुत्री देवयानी को कटु वचनों से अपमानित किया बल्कि उसे कुएं में धक्का देकर मारने का भी प्रयास किया। 
इस अपराध के लिये मैं अब आपके राज्य में नहीं रहूँगा। शुक्राचार्य की यह धमकी सुनकर वृषपर्वा भौचक रह गया । उसने कहा “ मुझे इस बारे में कुछ पता नहीं है लेकिन अगर आप हमें छोड़ कर जाएंगे तो हम समुद्र में कूद कर जान दे देंगे या जलती आग में कूद पड़ेंगे । वृषपर्वा के ये वचन सुनकर शुकराचार्य ने कहा “ आप कुछ भी करें चाहे समुद्र में कूदें या जलती आग में कूदें मैं अपनी पुत्री का अपमान और उसके प्रति किया गया कठोर व्यवहार सहन नहीं कर सकता । अगर आप मेरी पुत्री को संतुष्ट कर सकें तभी मैं आपके राज्य में रुकूंगा अन्यथा नहीं । वृषपर्वा और उसके दरबारी वन में देवयानी के पास गए और उससे क्षमा मांगी । देवयानी का गुस्सा शान्त नहीं हुआ था । उसने कहा “ शर्मिष्ठा ने कहा था कि मैं एक भिखारी की पुत्री हूं ।
  अतः अब वह अगर मेरी दासी बनना स्वीकार करे और मेरे विवाह के बाद भी मेरी सेवा करने का वचन दे मैं उसे क्षमा कर सकती हूं । वृषपर्वा और शर्मिष्ठा इस पर सहमत हो गए । शर्मिष्ठा ने अपना दोष स्वीकार किया ।  शर्मिष्ठा ने देवयानी से कहा मैं दासी बनकर तुम्हारी सेवा करूंगी और तुम्हारे विवाह के बाद तुम्हारे साथ जाऊंगी ।

देवयानी का ययाति से अनुरोध

कुछ समय बाद देवयानी फिर उसी वन में गई । संयोगवश ययाति भी शिकार के लिए वहां पहुंचे । ययाति ने खूबसूरत आभूषणों से सजी और दासियों से घिरी देवयानी को देखा । देवयानी ने एक बार फिर ययाति से अनुरोध किया “ चूंकि तुमने मेरा दाहिना हाथ पकड़ा था अतः तुम मुझे अपनी पत्नी बनाओ । ययाति शुक्राचार्य के भय से यह प्रतिलोम विवाह करने को तैयार न थे । अतः देवयानी ने दासी भेजकर अपने पिता को बुलाया । शुक्राचार्य के आगमन पर देवयानी ने कहा पिताजी  ये नहुष पुत्र राजा ययाति हैं । इन्होंने संकट के समय मेरा हाथ पकड़ा था । अत : मुझे इन्हें समर्पित कर दें । तब  शुक्राचार्य ने राजा   ययाति से कहा नहुष नंदन! मेरी पुत्री ने  आपको पति के रूप  मे वरण  किया है अतः इसे अपनी पटरानी के रूप में ग्रहण करो । वृषपर्वा की पुत्री शर्मिष्ठा भी तुम्हें समर्पित है । इसका सदैव सम्मान करना किन्तु इसे कभी अपनी सेज पर न बुलाना । इसके बाद शास्त्रोक्त विधि से ययाति के साथ देवयानी का विवाह हो गया ।  देवयानी ने एक पुत्र को जन्म दिया ।   कालान्तर में ययाति के देवयानी से दो और शर्मिष्ठा से तीन पुत्र हो गए । कुछ समय बाद देवयानी को ययाति और शर्मिष्ठा के घनिष्ठ संबंधों का पता लग गया । इस पर वह नाराज होकर अपने पिता के पास चली गई 

ययाति को शाप

देवयानी से शर्मिष्ठा के तीन पुत्रों की जन्म कथा सुनकर शुक्राचार्य नाराज हो गए और उन्होंने ययाति को शाप दिया “ तुमने जवानी के नशे में आकर यह अनुचित कार्य किया है । अतः तुम वृद्ध हो जाओ । शुक्राचार्य के शाप देते ही ययाति बूढ़े हो गए । ययाति ने शुक्राचार्य से कहा मुनिवर मेरी सुखभोग की इच्छा तृप्त नहीं हुई है । अत : मुझे फिर से यौवन प्रदान कीजिए । शुक्राचार्य ने यह सोचकर कि ययाति ने देवयानी को कुएं से निकालकर जीवन दान दिया था कहा मैं तुम्हें यह सुविधा देता हूं कि तुम किसी भी युवक का यौवन प्राप्त कर उसे अपना बुढ़ापा दे सकते हो । देवयानी ने जब देखा कि उसका युवा, सुंदर पति अब एक कुरूप बूढ़ा व्यक्ति हो गया है तो उसे कष्ट हुआ.
भोग में डूबे ययाति का मन यौवन के आनंद से भरा नहीं था. वो बड़े आत्मविश्वास से अपने बड़े पुत्र यदु के पास गया और उससे अपना  यौवन देने की बात कही. यदु ने ययाति को मना कर दिया. इसी प्रकार तुर्वस्तु, अनु, द्रुह्यु ने भी ययाति के आग्रह को ठुकरा दिया. अंत में ययाति ने अपने सबसे छोटे पुत्र पुरु से याचना की। पुरु ने सहर्ष अपने पिता की बात मान ली और यौवन दे दिया। उसी पल ययाति पुनः युवा बन गये और पुरु एक वृद्ध व्यक्ति बन गया। ययाति ने आनंदपूर्वक 100 साल तक यौवन का उपभोग किया। 100 वर्ष पूरे होने के बाद भी ययाति ने जब अपने को असंतुष्ट पाया तो वह सोच में पड़ गया। उसे समझ आया कि इच्छाओं का कोई अंत नहीं है, लाख मन की कर लो मगर फिर कोई नयी इच्छा पैदा हो जाती है। ऐसे कामनाओं के पीछे भागना व्यर्थ है. अतः ययाति ने अपने पुत्र पुरु के पास वापस जाकर उसे उसका यौवन वापस करने की सोची।

महानतम वंश का निर्माण

जब पुरु को अपने पिता ययाति की इच्छा पता चली तो उसने कहा – अपने पिता के आज्ञा का पालन तो मेरा कर्तव्य था, आप अगर चाहें तो कुछ समय और आनंद भोग करें, मुझे कोई कष्ट नही है। ययाति ने जब यह बात सुनी तो उन्हें बहुत ग्लानि हुई। ययाति पुरु की उदारता से बहुत प्रभावित हुए और सबसे छोटा होने के बावजूद उन्होंने पुरु को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया। ययाति ने पुरु को उसका यौवन वापस  लौटा दिया। पुनः वृद्ध रूप में आकर ययाति देवयानी और शर्मिष्ठा के साथ राज्य छोड़कर वानप्रस्थ हो गये। आगे चलकर राजा ययाति के पाँचों पुत्रों ने 5 महानतम वंश का निर्माण किया।

राजा यदु से  यदु वंश (यादव) का निर्माण हुआ 
राजा तुर्वस्तु से यवन वंश (तुर्क) का निर्माण हुआ 
राजा अनु से म्लेच्छ वंश (ग्रीक) का निर्माण हुआ 
राजा द्रुह्यु – भोज वंश का निर्माण हुआ 
राजा पुरु – पौरव वंश या कुरु वंश. का निर्माण हुआ