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14.6.25

युधिष्ठिर ने स्त्रियों को क्या श्राप दिया था? औरतों के पेट में इसलिए नहीं पचती कोई बात.

 Mahabharat

विडिओ मे कहानी -


से जुड़े कई किस्से ऐसे हैं जो हैरान करने के साथ-साथ सीख भी देते हैं। ऐसा ही एक किस्सा युधिष्ठिर और मां कुंती से जुड़ा है। 


मित्रों ,पौराणिक कथा कहानियाँ के विडिओ की शृंखला मे आज का टॉपिक है
"युधिष्ठिर ने स्त्रियों को क्या श्राप दिया था? औरतों के पेट में इसलिए नहीं पचती कोई बात." 
  महाभारत के युद्ध को जीतने के बाद इसे धर्म की विजय माना गया लेकिन जीत के बावजूद भी धर्मराज युधिष्ठिर को अत्यंत दुख से गुजरना पड़ा था. धर्मराज युधिष्ठिर ने अपनी ही मां कुंती और संसार की सभी नारियों  को श्राप दे दिया था. आइए जानते हैं कि आखिर युधिष्ठिर ने ऐसा क्यों किया था.
  इतिहास (History) के सबसे बड़े युद्ध के रुप में जाने जानें वाले द्वापर युग के महाभारत की कहानियां आज भी लोगों की जुबान पर है। इस युद्ध से जुड़े कई किस्से अक्सर ही सुनने को मिलते हैं, जो न सिर्फ व्यक्ति को हैरान कर जाते हैं, बल्कि वह जीवन की सीख भी देते हैं। वहीं कई बार इन किस्सों के जरिए कुछ ऐसी बातों का भी पता चलता है, जो आज के युग यानी कलयुग में भी देखने को मिलती है। ऐसा ही एक किस्सा पांडव के जेष्ठ पुत्र यानी धर्मराज युधिष्ठिर से भी जुड़ा है। जिसे जानकर आप भी हैरान हो जाएंगे। आइए उसके बारे में जानते हैं।
पौराणिक कथाओं (Mythology) के मुताबिक, द्वापर युग में हुआ महाभारत का युद्ध 18 दिनों तक चला था और युद्ध के हर दिन कुछ न कुछ विशेष घटना घटित हुई थी, जो लोगों के लिए आज भी शिक्षा, संदेश और उपदेश की तरह है। वहीं इस युद्ध के अंत में धर्मराज युधिष्ठिर ने अपनी ही मां कुंती को एक भयंकर श्राप तक दे दिया था, जिसका परिणाम महिलाएं आज तक भुगत रही हैं। तो चलिए जानते हैं कि वह कौन सा श्राप था और युधिष्ठिर ने अपनी ही मां को क्यों दिया था?
अपनी ही मां कुंती को युधिष्ठिर ने क्यों दिया था श्राप, क्या है कहानी?

दरअसल युद्ध में कौरवों और पांडवों दोनों ही पक्ष के इतने परिजन मारे गए थे कि मात्र एक दिन में किसी का भी तर्पण करना संभव न था। धीरे-धीरे दिन बीतते गए और पांडव एक-एक कर कौरव पक्ष एवं पांडव पक्ष के परिजनों और सगे सम्बन्धियों का तर्पण करते गए।एक माह पूरे होने के साथ-साथ सभी रिश्तेदारों का तर्पण हो गया लेकिन कर्ण का तर्पण युधिष्ठिर ने नहीं किया। युधिष्ठिर ने श्री कृष्ण और माता कुंती को यह कहते हुए कर्ण का तर्पण करने के लिए मना कर दिया कि वह न तो कोई परिजन था और न ही रिश्तेदार।
  माता कुंती यह सुन व्याकुल हो उठीं। वह चाहती थीं कि पांडवों द्वारा कर्ण का भी तर्पण हो क्योंकि कर्ण वास्तव में पांडवों का भाई थे लेकिन वह इस सत्य को अपने पांचों पुत्रों को बताने से भयभीत हो रही थीं।लेकिन  श्री कृष्ण अपनी बुआ यानी कि माता कुंती की दुविधा समझ गए थे।
  श्री कृष्ण ने माता कुंती को विश्वास दिलाया कि वह उनके साथ हैं और माता कुंती अब अपने पुत्रों को कर्ण का सत्य बता दें। माता कुंती ने भी अपना हृदय कठोर कर पांडवों को इस बात का बोध कराया कि कि कर्ण पांडवों का भाई और माता कुंती का पुत्र था।कथा के अनुसार, जब कर्ण (Karna) की मृत्यु के बाद माता कुंती कर्ण के शव को अपनी गोद में लेकर रो रही थीं, तो पांडवों ने इसे देखा और कारण पूछा। कुंती ने उन्हें बताया कि कर्ण उनका सबसे बड़ा पुत्र था, जिसे उन्होंने छुपकर जन्म दिया था। वह यह रहस्य लंबे समय तक छुपाए रखी थीं, क्योंकि कर्ण को द्रुपद के घर में छोड़ दिया गया था और वह नहीं चाहती थीं कि यह तथ्य कभी सामने आए।

युधिष्ठिर ने मां कुंती को क्या श्राप दिया था?


 माता कुंती की बातें सुनकर युधिष्ठिर को क्रोध आ गया और उन्होंने अपनी माता से कहा कि आपने  इतनी बड़ी बात हमसे छिपाकर रखी |हमे  अपने बड़े भाई कर्ण का  हत्यारा बना दिया.उन्होंने अपनी माता कुंती सहित संपूर्ण स्त्री जाति को श्राप दे दिया और कहा कि आज मैं संपूर्ण स्त्री जाति को श्राप देता हूं कि वे चाहकर भी अपने दिल में कोई बात छिपाकर नहीं रख पाएंगी।
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