25.3.25

कब और कैसे हुई चंद्र देव की उत्पत्ति? जिन्हें महादेव ने सिर पर किया था धारण

चन्द्रमा   की उत्पत्ति  की कथा  का विडिओ देखें-  



Origin Of Moon: चंद्रमा की उत्पत्ति कैसे हुई? जानें उनके जन्म से जुड़ी यह पौराणिक कथा

Moon Birth Story: ज्योतिष शास्त्र में चंद्रमा को ग्रह और देव दोनों माना गया है. चंद्रमा की उत्पत्ति को लेकर कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं. जानते हैं इन कथाओं के बारे में.
Moon Story: चंद्रमा नवग्रहों में से एक माना जाता है. वैदिक ज्योतिष में चंद्रमा को मन, मां और सुंदरता का कारक माना गया है. कुंडली में चंद्रमा की स्थिति शुभ हो तो जीवन में प्रसन्नता और सुख आता है. इसकी कृपा से माता का स्वास्थ्य बेहतर रहता है और अच्छा जीवन साथी प्राप्त होता है. वहीं चंद्रमा के अशुभ प्रभाव से मानसिक विकार, मन का भटकना, माता को कष्ट आदि परेशानी आती है.
ज्योतिष शास्त्र में चंद्रमा को विशेष स्थान प्राप्त है. इसे ग्रह और देव दोनों माना गया है. चंद्रमा की उत्पत्ति को लेकर कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं. आइए जानते हैं इस प्रचलित कथा के बारे में.

ऐसे हुई चंद्रमा की उत्पत्ति


ज्योतिष शास्त्र में चंद्रमा को सोम कहा गया है, जो मन का कारक है. अग्नि ,इंद्र ,सूर्य आदि देवों के समान ही सोम की स्तुति के मन्त्रों की रचना भी ऋषियों द्वारा की गई है. चंद्रमा के बारे में मत्स्य, पद्म, अग्नि और स्कन्द पुराण में विस्तार से बताया गया है.
पद्म पुराण के अनुसार ब्रह्मा जी ने अपने मानस पुत्र अत्रि को सृष्टि का विस्तार करने की आज्ञा दी. महर्षि अत्रि ने अनुत्तर नाम का तप आरम्भ किया. ताप काल में एक दिन महर्षि के नेत्रों से जल की कुछ बूंदें टपक पड़ी जो बहुत प्रकाशमय थीं. दिशाओं ने स्त्री रूप में आ कर पुत्र प्राप्ति की कामना से उन बूंदों को ग्रहण कर लिया जो उनके उदर में गर्भ रूप में स्थित हो गया.
हालांकि दिशाएं उस प्रकाशमान गर्भ को धारण न रख सकीं और त्याग दिया. उस त्यागे हुए गर्भ को ब्रह्मा ने पुरुष रूप दिया जो चंद्रमा के नाम से प्रख्यात हुए. देवताओं,ऋषियों और गन्धर्वों आदि ने उनकी स्तुति की. उनके ही तेज से पृथ्वी पर दिव्य औषधियां उत्पन्न हुई. ब्रह्मा जी ने चन्द्र को नक्षत्र,वनस्पतियों,ब्राह्मण व तप का स्वामी नियुक्त किया.
वहीं स्कन्द पुराण के अनुसार, जब देवों और दैत्यों ने क्षीर सागर का मंथन किया था तो उस में से चौदह रत्न निकले थे. चंद्रमा उन्हीं चौदह रत्नों में से एक है जिसे भगवान शंकर ने अपने मस्तक पर धारण कर लिया. हालांकि ग्रह के रूप में चन्द्र की उपस्थिति मंथन से पूर्व भी सिद्ध होती है.
मत्स्य पुराण में लिखा है कि जब सृष्टि के रचनाकार ब्रह्माजी ने मानस पुत्रों को प्रकट किया तो उनमें से एक पुत्र ब्रह्म ऋषि ‘अत्रि’ हुए. उनका विवाह कर्दम ऋषि की पुत्री अनुसुइया से हुआ था. अनुसुइया पतिव्रता स्त्री थीं. जब त्रिदेवों ने अनुसुइया की परीक्षा ली तो उस समय दुर्वासा ऋषि, दत्तात्रेय व सोम का जन्म हुआ, वही सोम चंद्रमा हैं.
चंद्र देव की उत्पति को लेकर स्कंद पुराण में भी वर्णन किया गया है। पौराणिक कथा के अनुसार, समुद्र मंथन के समय चौदह रत्न निकले थे, जिनमें चंद्रमा भी था। समुद्र मंथन से निकला विष महदेव ने पी लिया, जिसकी वजह से उनका शरीर गर्म हो गया। ऐसे में शीतलता के लिए भगवान शिव ने अपने सिर पर चंद्रमा धारण किया। धार्मिक मान्यता है कि तभी से उनके मस्तक पर चंद्रमा विराजमान हैं।
शिव पुराण में सूर्य और चंद्र की उत्पत्ति

शिव पुराण में सूर्य और चंद्रमा की उत्पत्ति का कारण शिव-पार्वती के आनंद तांडव को कहा गया है. जब शिव और पार्वती आनंद तांडव करते हुए एक होने लगे तब शिवजी के नेत्रों से निकली ऊर्जा सूर्य बन गई और देवी पार्वती की कांतिमान देह से चंद्रदेव आकाश में स्थापित हो गए. ब्रह्नवैवर्त पुराण इसकी एक और व्याख्या करते हुए कहता है कि, जब श्रीहरि विष्णु के नाभिकमल पर बैठे ब्रह्मा जी ने आंखें खोलीं तो देखा कि कहीं कुछ भी नहीं है. तब उनके मन में यह भाव जागा कि वह एक हैं और अकेले हैं. वेदों में इसे एको अहं कहा गया है, यानी कि 'एक हूं पर बहुत होना चाहता हूं.' तब ब्रह्मदेव ने अपने हृदय पर हाथ रखा तो उनके मन से निकलकर एक शीतल पिंड सामने आया. साफ, सफेद और शांति के इस प्रतीक पिंड ने ब्रह्मदेव को बहुत शांति और शीतलता का अनुभव कराया. यही पिंड चंद्रमा बनकर आकाश में स्थापित हुआ.
27 कन्याओं से विवाह
इसके बाद ब्रह्म लोक में देवता, गंधर्व और औषधियों ने सोमदैवत्व नामक वैदिक मंत्रों से चंद्रमा की पूजा की. इससे चंद्रमा का तेज और अधिक बढ़ गया. तब उस तेज समूह से पृथ्वी पर दिव्य औषधियां प्रगट हुई. तब से चंद्रमा ओषधीश कहलाए. इसके बाद दक्ष प्रजापति ने चंद्रमा को अपनी 27 कन्याएं पत्नी रूप में प्रदान की. चंद्रमा ने 10 लाख वर्षों तक भगवान विष्णु की तपस्या की. उससे प्रभावित होकर भगवान ने उन्हें इंद्र लोक विजयी होने सहित कई वरदान दिए थे.

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